Tuesday, May 16, 2017

क्या आस्था है जिम्मेदार नदीयों में प्रदूषण के लिए?


धर्म और आस्था की संगम गंगा नदी की सफाई में धर्म और आस्था ही आड़े आ रही है। हिन्दू धर्म में मां का दर्जा प्राप्त गंगा नदी की निर्मलता के रास्ते में श्रद्धालुओं की आस्था रोड़े अटकाने का काम कर रही है। संत समाज द्वारा गंगा की निर्मलता के लिए आंदोलन भी चलाया जा रहा है लेकिन मंदिरों में चढ़ाये जाने वाले फूल मालाओं के साथ देवी देवताओं की मूर्तियों को गंगा नदी में प्रवाहित किए जाने से गंगा की निर्मलता और स्वच्छता प्रभावित हो रही है।

 

 

गंगा के किनारे बसे 'बनारस' शहर को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है क्योंकि शहर के छोटे इलाकों से लेकर बड़े इलाकों में मंदिर बने हुए हैं। यहां तक कि अस्सी घाट से लेकर राजघाट तक गंगा के किनारे असंख्य मंदिर बने हुए हैं। बाहर से आने वाले पर्यटकों, श्रद्धालुओं के साथ-साथ बनारस शहर के हजारों लोग प्रतिदिन गंगा में स्नान करने के बाद घाटों पर बने मंदिरों में दर्शन करते हैं और साथ ही फूल की मालाएं भी चढ़ाते हैं। मंदिरों में प्रतिदिन इकठ्ठा होने वाली फूल की मालाओं को गंगा में ही प्रवाहित कर दिया जाता है। गर्मी के दिनों में गंगा में पानी का स्तर कम हो जाता है जिस कारण प्रवाह भी बहुत धीमी गति से होता है अब ऐसे में गंगा में प्रवाहित किए  गईं फूल मालाएं सड़ कर गंगा नदी को भी दूषित करने लगती हैं।

यहां तक कि घरों में पूजा करने वाले लोग भी फूल मालाओं के सूखने के बाद उनका प्रवाह गंगा नदी में ही करते हैं। फूल मालाओं के अतिरिक्त घरों में पूजा के लिए रखी हुई मूर्तियां भी लोग गंगा में ही विसर्जित करते हैं। मूर्तियों को सजाने संवारने में प्रयोग में लाए गए केमिकल भी गंगा के पानी को दूषित बना देते हैं। गंगा घाट पर स्थित 'मां गंगा मंदिर' के पुजारी प्रशांत पाण्डेय के अनुसार धर्म और आस्था के साथ जुड़े होने के कारण लोग फूल मालाओं को कहीं और नहीं फेंकना चाहते हैं इसीलिए उसको नदी में ही विसर्जित कर देते हैं साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गंगा की सफाई के लिए सरकार हर साल हजारों करोड़ रूपये खर्च कर रही है लेकिन उसका फायदा नजर नहीं आ रहा है। पर्यावरणविद और बीएचयू के प्रोफ़ेसर बी डी त्रिपाठी ने बताया कि गंगा की स्वच्छता में बाधक बनने वालों कारणों में से एक कारण गंगा में अधिक मात्रा में फूल मालाएं फेंका  जाना है। नगर निगम भी इस मामले में उदासीन बना हुआ है लेकिन गंगा को स्वच्छ रखने के लिए फूल मालाओं के निस्तारण हेतु वह कोई सार्थक कदम नहीं उठा पा रहा है।

हमारी आस्था की वजह से ही हमारे ईषट जैसे गंगा-यमुना नदी को दूषित होने का कारण​ हैं!

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