Monday, May 15, 2017

सांस की बीमारी के लक्षण और उपचार


कई बार आप लोगों ने देखा होगा कोई बीमारी ना होते हुए भी सांस फूलने लगती है ये कोई जरुरी नहीं है की सांस केवल मोटे व्यक्ति की ही फूले ऐसा किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है फिर चाहे वो पतला इंसान ही क्यों न हो . इसके पीछे का जो कारण है वो आज आपको बताते हैं अक्‍सर ऐसा होता है कि बिना किसी बीमारी के भी काम करते हुए सांस फूलने लगती है या सीढ़ियां चढ़ने से सांस फूल जाती है। कई लोग सोचते हैं कि मोटे लोगों की सांस जल्दी फूलती है, लेकिन ऐसा नहीं है। कई बार पतले लोगों की सांस भी थोड़ा चलने पर ही फूलने लगती है। दिल्ली मुम्बई और Industrial area में सांस फूलने की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है।

सांस की बीमारी होने के कारण (Due to respiratory illness)

सांस फूलना या सांस ठीक से न लेने का अहसास होना एलर्जी, संक्रमण, सूजन, चोट या मेटाबोलिक स्थितियों की वजह से हो सकता है। सांस तब फूलती है जब मस्तिष्क से मिलने वाला संकेत फेफड़ों को सांस की रफ्तार बढ़ाने का निर्देश देता है। फेफड़ों से संबंधित पूरी प्रणाली को प्रभावित करने वाली स्थितियों की वजह से भी सांसों की समस्या आती है। फेफड़ों और ब्रोंकाइल ट्यूब्स में सूजन होना सांस फूलने के आम कारण हैं। इसी तरह सिगरेट पीने या अन्य टाक्सिंस की वजह से श्वसन क्षेत्र (रेस्पिरेट्री ट्रैक) में लगी चोट के कारण भी सांस लेने में दिक्कत आती है। दिल की बीमारियों और खून में ऑक्सीजन का स्तर कम होने से भी सांस फूलती है।इस वजह से 2 बीमारियां आमतौर पैर हो जाती है 1.दमा 2. ब्रोंकाइटिस

दमा (Asthma)

जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।

दमा रोग का लक्षण (Symptoms of asthma):-

दमा रोग में रोगी को सांस लेने तथा छोड़ने में काफी जोर लगाना पड़ता है। जब फेफड़ों की नलियों (जो वायु का बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों) में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़े वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर पचा नहीं पाते हैं। जिसके कारण रोगी व्यक्ति को पूर्ण श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ देने को मजबूर होना पड़ता है। इस अवस्था को दमा या श्वास रोग कहा जाता है। दमा रोग की स्थिति तब अधिक बिगड़ जाती है जब रोगी को श्वास लेने में बहुत दिक्कत आती है क्योंकि वह सांस के द्वारा जब वायु को अन्दर ले जाता है तो प्राय: प्रश्वास (सांस के अन्दर लेना) में कठिनाई होती है तथा नि:श्वास (सांस को बाहर छोड़ना) लम्बे समय के लिए होती है। दमा रोग से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।

जब दमा रोग से पीड़ित रोगी का रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो उसे दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है। जब दौरा अधिक क्रियाशील होता है तो शरीर में ऑक्सीजन के अभाव के कारण रोगी का चेहरा नीला पड़ जाता है। यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है।

जब दमा रोग से पीड़ित रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी खांसी होती है और ऐंठनदार खांसी होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी चाहे कितना भी बलगम निकालने के लिए कोशिश करे लेकिन फिर भी बलगम बाहर नहीं निकलता है। दमा रोग प्राकृतिक चिकित्सा से पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

दमा रोग होने का कारण (Reaons to Asthma):-

औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने से दमा रोग हो जाता है।खान-पान के गलत तरीके से दमा रोग हो सकता है।मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा रोग हो सकता है।खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा रोग हो सकता है।नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा रोग हो सकता है।नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने से दमा रोग हो सकता है।भूख से अधिक भोजन खाने से दमा रोग हो सकता है।मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से दमा रोग हो सकता है।फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी तथा स्नायुमण्डल में कमजोरी हो जाने के कारण दमा रोग हो जाता है।मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण दमा रोग हो सकता है।धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूजनक पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा रोग हो सकता है।मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से दमा रोग हो सकता है।धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है।

दमा रोग के लक्षण (Asthma Symptoms):-

दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है।सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार(Asthma patient ‘s natural healing remedies):-

दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नींबू तथा शहद को पानी में मिलाकर पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 1 सप्ताह तक फलों का रस या हरी सब्जियों का रस तथा सूप पीकर उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। इसके बाद साधारण भोजन करना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को नारियल पानी, सफेद पेठे का रस, पत्ता गोभी का रस, चुकन्दर का रस, अंगूर का रस, दूब घास का रस पीना बहुत अधिक लाभदायक रहता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी यदि मेथी को भिगोकर खायें तथा इसके पानी में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिएं तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।तुलसी तथा अदरक का रस शहद मिलाकर पीने से दमा रोग में बहुत लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच त्रिफला को नींबू पानी में मिलाकर सेवन करने से दमा रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता हैं।

1 कप गर्म पानी में शहद डालकर प्रतिदिन दिन में 3 बार पीने से दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी ही भोजन करके सो जाना चाहिए तथा रात को सोने से पहले गर्म पानी को पीकर सोना चाहिए तथा अजवायन के पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी छाती पर तथा अपनी रीढ़ की हड्डी पर सरसों के तेल में कपूर डालकर मालिश करनी चाहिए तथा इसके बाद भापस्नान करना चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी हैं जिनको करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभांति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तानमन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।दमा रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में नमक तथा चीनी का सेवन बंद कर देना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रीढ़ की हड्डी को सीधे रखकर खुली और साफ स्वच्छ वायु में 7 से 8 बार गहरी सांस लेनी चाहिए और छोड़नी चाहिए तथा कुछ दूर सुबह के समय में टहलना चाहिए।दमा रोग से पीड़ित रोगी को चिंता और मानसिक रोगों से बचना चाहिए क्योंकि ये रोग दमा के दौरे को और तेज कर देते हैं।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ रखना चाहिए तथा कभी कब्ज नहीं होने देना चाहिए।दमा रोग से पीड़ित रोगी को धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ नहीं रहना चाहिए तथा धूम्रपान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस रोग का प्रकोप और अधिक बढ़ सकता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी और उसके बाद गुनगुने जल का एनिमा लेना चाहिए। फिर लगभग 10 मिनट के बाद सुनहरी बोतल का सूर्यतप्त जल लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन पीना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया को प्रतिदिन नियमपूर्वक करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 2-3 बार सुबह के समय में कुल्ला-दातुन करना चाहिए। इसके बाद लगभग डेढ़ लीटर गुनगुने पानी में 15 ग्राम सेंधानमक मिलाकर धीरे-धीरे पीकर फिर गले में उंगुली डालकर उल्टी कर देनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने रोग के होने के कारणों को सबसे पहले दूर करना चाहिए और इसके बाद इस रोग को बढ़ाने वाली चीजों से परहेज करना चहिए। फिर इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी घबराना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दौरे की तीव्रता (तेजी) बढ़ सकती है।दमा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को कम से कम 10 मिनट तक कुर्सी पर बैठाना चाहिए क्योंकि आराम करने से फेफड़े ठंडे हो जाते हैं। इसके बाद रोगी को होंठों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हवा खींचनी चाहिए और धीरे-धीरे सांस लेनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी की मालिश करवानी चाहिए तथा इसके साथ-साथ कमर पर गर्म सिंकाई करवानी चाहिए। इसके बाद रोगी को अपनी छाती पर न्यूट्रल लपेट करवाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में दमा रोग ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी के लिए कुछ सावधानियां:-दमा रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी की अवस्था और खराब हो सकती है।इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में लेसदार पदार्थ तथा मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।रोगी व्यक्ति को धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए क्योंकि धुल तथा धुंए से यह रोग और भी बढ़ जाता है।रोगी व्यक्ति को मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगड़ों से बचना चाहिए।इस रोग से पीड़ित रोगी को शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ दमा रोग की तीव्रता को बढ़ा देते हैं।

2.ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)

जीर्ण जुकाम को ब्रोंकाइटिस भी कहते हैं। इस रोग के कारण रोगी की श्वास नली में जलन होने लगती है तथा कभी-कभी तेज बुखार भी हो जाता है जो 104 डिग्री तक हो जाता है। यह रोग संक्रमण के कारण होता है जो फेफड़ों में जाने वाली सांस की नली में होता है। यह पुराना ब्रोंकाइटिस और तेज ब्रोंकाइटिस 2 प्रकार का होता है।  इस रोग से पीड़ित रोगी को सूखी खांसी, स्वरभंग, श्वास कष्ट, छाती के बगल में दर्द, गाढ़ा-गाढ़ा कफ निकलना और गले में घर्र-घर्र करने की आवाज आती है।

तेज ब्रोंकाइटिस (Sharp bronchitis) –

इस रोग के कारण रोगी को सर्दियों में अधिक खांसी और गर्मियों में कम खांसी होती रहती है लेकिन जब यह पुरानी हो जाती है तो खांसी गर्मी हो या सर्दी दोनों ही मौसमों में एक सी बनी रहती है।

तेज ब्रोंकाइटिस के लक्षण (Symptoms of bronchitis fast):-

तेज ब्रोंकाइटिस रोग में रोगी की सांस फूल जाती है और उसे खांसी बराबर बनी रहती है तथा बुखार जैसे लक्षण भी बन जाते हैं। रोगी व्यक्ति को बैचेनी सी होने लगती है तथा भूख कम लगने लगती है।

तेज ब्रोंकाइटिस के कारण (Faster due to bronchitis):-

 जब फेफड़ों में से होकर जाने वाली सांस नली के अन्दर से वायरस (संक्रमण) फैलता है तो वहां की सतह फूल जाती है, सांस की नली जिसके कारण पतली हो जाती है। फिर गले में श्लेष्मा जमा होकर खांसी बढ़ने लगती है और यह रोग हो जाता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस (Chronic bronchitis)

पुराना ब्रोंकाइटिस रोग रोगी को बार-बार उभरता रहता है तथा यह रोग रोगी के फेफड़ों को धीरे-धीरे गला देता है और तेज ब्रोंकाइटिस में रोगी को तेज दर्द उठ सकता है। इसमें सांस की नली में संक्रमण के कारण मोटी सी दीवार बन जाती हैं जो हवा को रोक देती है। इससे फ्लू होने का भी खतरा होता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस का लक्षण (Symptoms of chronic bronchitis):-

इस रोग के लक्षणों में सुबह उठने पर तेज खांसी के साथ बलगम का आना शुरू हो जाता है। शुरू में तो यह सामान्य ही लगता है। पर जब रोगी की सांस उखडने लगती है तो यह गंभीर हो जाती है जिसमें एम्फाइसीमम का भी खतरा हो सकता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण रोगी के चेहरे का रंग नीला हो जाता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस होने का कारण (The cause of (COPD) chronic obstructive pulmonary disease) :-रोग होने का सबसे प्रमुख कारण धूम्रपान को माना जाता है। धूम्रपान के कारण वह खुद तो रोगी होता ही है साथ जो आस-पास में व्यक्ति होते हैं उनको भी यह रोग होने का खतरा होता है।

तेज ब्रोंकाइटिस तथा पुराना ब्रोंकाइटिस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार (Sharp bronchitis and chronic bronchitis treatment of the disease Natural Medicine)/Treatment of COPD:

 जब किसी व्यक्ति को तेज ब्रोंकाइटिस रोग हो जाता है तो उसे 1-2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा फिर फलों का रस पीना चाहिए तथा इसके साथ में दिन में 2 बार एनिमा तथा छाती पर गर्म गीली पट्टी लगानी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

गहरी कांच की नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 6 बार सेवन करने तथा गहरी कांच की नीली बोतल के सूर्यतप्त जल में कपड़े को भिगोकर पट्टी गले पर लपेटने से तेज ब्रोंकाइटिस रोग जल्द ही ठीक हो जाता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस रोग कभी-कभी बहुत जल्दी ठीक नहीं होता है लेकिन इस रोग को ठीक करने के लिए नमकीन तथा खारीय आहार का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए तथा शारीरिक शक्ति के अनुसार उचित व्यायाम करना चाहिए। इसके परिणाम स्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।पुराने ब्रोंकाइटिस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को 2-3 दिनों तक फलों के रस पर रहना चाहिए और अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद सादा भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति यदि नियमित रूप से प्रतिदिन उपचार करता है तो उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के क्षारधर्मी आहार (नमकीन, खारा, तीखा तथा चरपरा) है जिनका सेवन करने से ब्रोंकाइटिस रोग ठीक हो जाता है। क्षारधर्मी आहार (नमकीन, खारा, तीखा तथा चरपरा) इस प्रकार हैं-आलू, साग-सब्जी, सूखे मेवे, चोकर समेत आटे की रोटी, खट्ठा मट्ठा और सलाद आदि।पुराने ब्रोंकाइटिस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म पानी पिलाकर तथा उसके सिर पर ठण्डे पानी से भीगी तौलिया रखकर उसके पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए। उसके बाद रोगी को उदरस्नान कराना चाहिए और उसके शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए। इसके बाद रोगी के शरीर में गर्मी लाने के लिए कम्बल ओढ़कर रोगी को पूर्ण रूप से आराम कराना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया कम से कम 2 बार करनी चाहिए।जब इस रोग की अवस्था गंभीर हो जाए तो रोगी की छाती पर भापस्नान देना चाहिए और इसके बाद रोगी के दोनों कंधों पर कपड़े भी डालने चाहिए!

इस रोग के साथ में रोगी को सूखी खांसी हो तो उसे दिन में कई बार गर्म पानी पीना चाहिए और गरम पानी की भाप को नाक तथा मुंह द्वारा खींचना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।नींबू के रस को पानी में मिलाकर अधिक मात्रा में पीना चाहिए तथा रोगी व्यक्ति को खुली हवा में टहलना चाहिए और सप्ताह में कम से कम 2 बार एप्सम साल्टबाथ (पानी में नमक मिलाकर उस पानी से स्नान करना) लेना चाहिए। इसके फलस्वरूप पुराना ब्रोंकाइटिस रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी पर मालिश करनी चाहिए तथा इसके साथ-साथ कमर पर सिंकाई करनी चाहिए इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक आराम मिलता है और उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।रोगी को प्रतिदिन अपनी छाती पर गर्म पट्टी लगाने से बहुत आराम मिलता है।इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्राणायाम क्रिया करनी चाहिए। इससे श्वसन-तंत्र के ऊपरी भाग को बल मिलता है और ये साफ रहते हैं। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

ब्रोंकाइटिस रोग से पीड़ित रोगी के लिए कुछ सावधानियां (Bronchitis patient some precautions) :-

इस रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ध्रूमपान करने से इस रोग की अवस्था और गंभीर हो सकती है।इस रोग से पीड़ित रोगी को लेसदार पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे बलगम बनता है।

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