किसी का नाभि खिसक सकती है। हमारे नाभि में समान वायु स्थित होती है, उसके अपने स्थान से इधर-उधर हो जाने को नाभि खिसकना या नाड़ा उखड़ना कहते हैं। भारी सामान उठाने, गिरन-पड़ने या हाथ-पांव में तेज़ झटका लग जाने से समान वायु इधर से उधर हो जाती है। योग के अनुसार नाड़ियों की संख्या बहत्तर हज़ार है जिनका उद्गम स्थल नाभि को माना जाता है। इसलिए नाभि खिसकने से नाड़िया डिस्टर्ब हो जाती है। सामान्य तौर पर पुरुषों की बाएं तरफ़ व स्त्रियों की दाएं तरफ़ नाभि सरकती है।
नाभि खिसकना – लक्षण
नाभि खिसकने से पेचिस, पेट दर्द, कब्ज़, पेट का फूलना, भूख न लगना, दस्त, सर्दी-ज़ुकाम, कफ, मंदाग्नि, अपच, अफरा व हरारत आदि की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसे ठीक कर लेने से ये समस्याएं अपने आप विदा हो जाती हैं।
अनेक विकारों के जन्म की आशंका
नाभि लंबे समय तक उखड़ी रह जाने से तमाम तरह के विकारों की उत्पत्ति होती है। पेट, दांत, आंख के रोग उत्पन्न होने लगते है। बिना काम किए थकान, आलस्य, चिड़चिड़ापन, कुछ करने का मन न करना, दुश्चिंता, अकारण भय, निराशा आदि मनुष्य को घेर लेती है। अगनाशय प्रभावित होने लगता है, फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शुगर, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस आदि बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। नाभि का डिस्टर्ब होना महिलाओं के गर्भधारण में भी समस्या उत्पन्न करता है।
कैसे जानें नाभि खिसक गई है?
– दोनों पैरों को सटाकर सीधे खड़े हो जाएं। दोनों हाथों को सामने सीधा करके मिलाएं। दोनों हाथों की अंगुलियां बराबर हैं तो नाड़ा ठीक है, छोटी-बड़ी दिख रही हैं तो नाड़ा उखड़ा हुआ है।
– सुबह खाली पेट पीठ के बल लेट जाएं। हाथ-पैरों को ढीला छोड़ दें। दाएं हाथ का अंगूठा व दो अंगुलियों को मिलाकर नाभि पर रखें, यदि ठीक नाभि के ऊपर पल्स चल रही है तो नाभि ठीक है अन्यथा अगल-बगल चल रही है तो उखड़ी हुई है।
– मरीज़ को सीधा लेटा दें। किसी धागे से नाभि से दोनों छातियों की दूरी नापें, यदि दूरी समान है तो नाड़ा ठीक है अन्यथा उखड़ा हुआ है।
नाभि खिसकना कैसे ठीक करें?
– सीधे खड़े हो जाएं। दोनों हथेलियों को मिलाने पर यदि अंगुलियां छोटी-बड़ी दिख रही हैं तो जिधर की उंगली छोटी हो उधर के हाथ की मुट्ठी बांध लें और दूसरे हाथ से उस हाथ की कोहनी को पकड़कर कंधे की तरफ़ झटकें। आठ-दस बार ऐसा करने से नाभि अपनी जगह आ जाती है।
– अपनी पीठ के बल लेट जाएं।
पादांगुष्ठनासास्पर्शासन कर लें। लेटे हुए बाएं पैर को घुटने से मोड़कर हाथों से पैर को पकड़ लें व पैर को खींचकर मुंह तक लाएं। सिर उठा लें व पैर का अंगूठा नाक से लगाने का प्रयास करें। कुछ देर रुकें फिर छोड़ दें। अब दूसरे पैर से भी यही करें। फिर दोनों पैरों से एक साथ करें। तीन-तीन बार करने नाड़ा ठीक हो जाता है। उत्तानपादासन, मत्स्यासन, धनुरासन व चक्रासन से भी नाभि अपनी जगह आ जाती है।
– पीठ के बल लेटकर पेट पर सरसों का तेल लगाएं, नाभि जिस तरफ़ सरकी हो उस तरफ़ हाथ के अंगूठे से दबाव देकर नाभि की तरफ़ मालिश करें।
– पीठ के बल लेट जाएं। नाभि के चारों तरफ़ सूखा आंवले के चूर्ण में अदरक का रस मिलाकर नाभि पर बांध दें और दो घंटे लेटे रहें। दिन में दो बार ऐसा करने से नाड़ा अपनी जगह पर आ जाता है।
– नाड़ा बैठ जाने पर दो चम्मच सौंफ का पाउडर गुड़ में मिलाकर एक सप्ताह तक सेवन करें, इससे नाड़ा अपनी जगह से पुन: खिसकता नहीं है।
आहार
जिसका नाभि खिसक गयी है उसे मूंग के दाल की खिचड़ी के अलावा कुछ भी नहीं देना चाहिए। दिन में एक-दो बार पांच मिलीग्राम तक अदरक का रस देने से लाभ होता है।
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