Thursday, May 25, 2017

लौंग / लवंग - लौंग के फायदे और घरेलू उपचार

लौंग / लवंग / CLOVE / CARYOPHYLLUS AROMATICUS : परिचय 

लौंग भारतीय रसोई घर का एक अभिन्न मसाला जिसे कौन नहीं जनता ? भारत में सभी घरो में लौंग का इस्तेमाल मसाले के रूप में  या घरेलु उपचार के रूप में प्रयोग किया जाता है | परम्परागत चिकित्सा पद्धति एवं घरेलु नुस्खो में लौंग का इस्तेमाल पुरातन समय से होता आरहा है | लौंग का उत्पादन उष्णकटिबंधीय  इलाको में  बहुतायत से होता है , वस्तुत: यह मलैका का देशज पौधा है जो अब उष्णकटिबंधीय इलाको में भी उगाया जाता है | यह जंजीबार, जंगबार, मालाबार, पेम्बा, सुमात्रा, ब्राजील, जमैका , वेस्ट इंडीज आदि में होता है | इसका 90 % उत्पादन जंजीबार में होता है | भारत में भी केरल राज्य में इसकी खेती की जाती है |


लौंग का पौधा 30 से 40 फीट लम्बा और सीधे तने का सदाबहार वृक्ष है | लौंग के पत्ते अडूसे के पत्तो की तरह ही होते है जो चमकीले, सुगन्धित, और हरितवर्णी होते है | इसकी शाखाओं के अग्रिम भाग पर नीले और लाल रंग के पुष्प गुच्छों में लगते है | जिनमे से तेज सुगंध आती है, शुरुआत में इन पुष्प कलियों का रंग पिला होता है जो धीरे - धीरे हरी होने लगती एवं पूरी खिलने पर ये लाल रंग की हो जाती है तब इनको तोडा जाता है | इन्ही कलियों को सुखाने के बाद लौंग कहा जाता है |

लौंग का रासायनिक संगठन 

लौंग में उड़नशील तेल, टेनिन, केरोफाईनील , गौंद और कुछ मात्रा में भुजिनल तत्व पाए जाते है |

लौंग के आयुर्वेदिक गुण-धर्म 

लौंग में अनेक आयुर्वेदिक गुण-धर्म होते है | लौंग का रस कटु और तिक्त होता है , यह स्निग्ध, तीक्षण और लघु गुणों से युक्त होता है , इसका वीर्य शीत एवं विपाक कटु होता है | लौंग आँखों के लिए अच्छी, शीतल, पाचक, रुचिकारक, बल्य , कफशामक, दर्द नाशक, उतेजना और एंटीसेप्टिक गुणों से युक्त होती है |


लौंग के घरेलु प्रयोग और फायदे 

1. दांत दर्द में लौंग का उपयोग 

आजकल सभी दंतमंजन में लौंग का प्रयोग प्राथमिकता से किया जा रहा है क्योंकि इसमें पाए जाने वाले तत्व दांतों के लिए लाभदायक होते है | जब कभी आप के दांतों में दर्द हो तो बस एक लौंग अपने मुंह में रख कर चबा ले दर्द में तुरंत राहत मिलेगी क्योंकि लौंग में एनाल्जेसिक और एंटी इन्फ्लेमेट्री गुण होते है जो दांतों के दर्द और मसूड़ों में होने वाली सुजन को कम करते है | दांतों के दर्द में आप लौंग का तेल भी इस्तेमाल कर सकते है , जिस भी दांत में दर्द है उसपर लौंग के तेल से फोया भिगोकर लगा ले तुरंत आराम मिलेगा |

2.  सिर दर्द में लौंग के फायदे 

सिरदर्द होने पर 5 - 7 लौंग को पिसकर माथे पर लेप करे जल्द ही आराम मिलेगा | सिरदर्द में आप लौंग का तेल भी इस्तेमाल कर सकते है , लौंग के तेल को माथे पर लगाये और तुरंत आराम पाए | नारियल तेल  या तिल तेल में कुछ बुँदे लौंग के तेल की मिलाले और इससे सिर पर हलके हाथो से मालिश करे , जल्द ही सिरदर्द से छुटकारा मिलेगा |

3. श्वास या कफज विकारों में लौंग के फायदे 

श्वास रोग में लौंग को भुन कर चूसने से अस्थमा में राहत मिलती है , इससे जल्द ही कफ छूटने लगता है और गला खुल जाता है | अस्थमा में आप लौंग का काढ़ा बना कर भी इस्तेमाल कर सकते है , काढ़ा बनाने के लिए 7-8 लौंग को दरदरा कूट ले और एक कप पानी में उबाल ले जब पानी आधा रह जावे तब इसमें ठंडा करने के पश्चात शहद डाल कर सेवन करे | यह उपाय अस्थमा में राहत प्रदान करता है एवं अन्य कफज विकारो में भी लाभ देता है |

4. जी मचलाने में लौंग का प्रयोग 

लौंग अति सुगन्धित द्रव्य है , इसलिए इसका इस्तेमाल उबकाई या उल्टी को रोकने में भी कर सकते है | अगर आप का जी मचलाता हो तो लौंग के तेल को सूंघने से आराम मिलेगा | उबकाई को रोकने के लिए 2-3 लौंग को चबाये इससे आपकी उबकाई रुक जावेगी | उल्टी को रोकने के लिए लौंग का चूर्ण बना ले और इसमें शहद मिला कर सेवन करे उल्टी होना बंद हो जावेगी |

5. त्वचा विकारों में लौंग के फायदे 

त्वचा पर फंगल इन्फेक्शन , मुंहासे, फोड़ा - फुंसी से निजात पाने के लिए लौंग के तेल को किसी अन्य तेल में मिलाकर इस्तेमाल करे , तिल तेल या नारियल तेल में कुछ बुँदे लौंग के तेल की मिलाकर इसे संक्रमित त्वचा पर लगावे , त्वचा के सभी फंगल इन्फेक्शन से राहत मिलेगी एवं जल्दी ही रोग का नाश होगा |

6. तनाव में करे लौंग का इस्तेमाल 

तनाव आज  हर किसी के जीवन में है | इसका सीधा सा उपाय है लौंग क्योंकि लौंग में कई तनावरोधी तत्व पाए जाते है जो आपको तनाव से मुक्त करते है | नित्य 2 लौंग खाने से व्यक्ति तनाव से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है | 

7. जोड़ो के दर्द और संधिवात में लौंग के फायदे 

लौंग अच्छी वातहर और दर्द निवारक औषधि है | जोड़ो के दर्द से राहत पाने के लिए एरंड  तेल में लौंग का तेल मिलाकर घुटनों पर या प्रभावित जोड़ो पर 10 से 15 मिनट मालिश करे , इसके दर्द निवारक गुण आपके जॉइंट्स पेन को कम करेंगे एवं मांसपेशियों की सुजन को भी कम करेंगे |

लौंग के अन्य फायदे 

अधिक प्यास लगने की समस्या में लौंग और मिश्री को सामान मात्रा में पिस कर खाने से बार - बार प्यास लगने की समस्या से निजात मिलती है |अम्लपित की समस्या में खाना खाने के बाद नित्य 1 से 2 लौंग खाने से अम्लपित की समस्या में आराम मिलता है |अपच होने पर खाना खाने के बाद 2-3 लौंग को पानी में उबाल कर गरम - गरम पानी को पीले | अपच की समस्या से निजात मिलेगा |नमक के साथ लौंग को चबाने से गले में स्थित कफ बाहर निकलता है एवं खांसी एवं गले के दर्द से राहत मिलती है |कान दर्द में लौंग के तेल के साथ तिल का तेल मिलकर कान में डालने से , कान दर्द में तुरंत आराम मिलता है |आँखों में गुहेरी निकलने पर लौंग को पिस कर आँख के पास लगाने से गुहेरी जल्दी ही बैठ जाती है |पेटदर्द में लौंग का प्रयोग काफी फायदा देता है | पेटदर्द में लौंग को पीसकर इसकी फंकी लेने से पेटदर्द में आराम मिलता है |खसरे में दो - तीन लौंग को पिसकर शहद के साथ सेवन करने से खसरे में लाभ मिलता है |सुखी खांसी में लौंग को आग में भुन कर, शहद के साथ लेने से खांसी चली जाती है |मुंह में दुर्गन्ध आती हो तो लौंग को नित्य चूसने से मुंह से दुर्गन्ध आने की समस्या नहीं रहेगी एवं यह दांतों और मसुडो के लिए भी फायदेमंद होगी |

गर्म पानी पीने से लाभ बहुत है, लेकिन ध्यान दें ।

हमारे शरीर का 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना है। प्रतिदिन शरीर को 6 से 10 गिलास पानी की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता का एक बड़ा भाग खाद्य पदार्थों के रूप में शरीर ग्रहण करता है। शेष पानी मनुष्य पीता है। इसके साथ ही कहते है कि गर्म पानी पीना शरीर के लिए बहुत फायदे करता है। ये सच है मगर क्या आपको पता है आप जो पानी पीते हैं वो अगर ज्यादा गर्म है तो आपके लिए घातक भी साबित हो सकता है।


अंदरुनी अंगों को नुकसान

एक इंसान को दिन में 6-10 गिलास पानी पीने की सलाह दी जाती है, यह शरीर को संतुलित रखता है। मगर जब आप इससे ज्यादा पानी पीते है तो यह आपके अंदरुनी अंगो को नुकसान पहुंचाने लगती है। 

होठों का जलना
गर्म पानी पीते हुए अक्सर लोगों के होंठ जल जाते हैं। इसलिए हमेशा पानी का छोटा घूंट लेकर पिए। ताकि वह आपके होंठ न जले। 
 
आंतरिक अंग घायल
गर्म पानी पीने से शरीर के आंतरिक अंग जल सकते है, क्योंकि गर्म पानी का तापमान आपके शरीर के अंग से बिलकुल अलग होता है।

प्यास लगने पर ही पानी पीना
पानी पीने के फायदे को देखते हुए लोग जरुरत से ज्यादा पानी पीने लगते हैं। मगर ऐसा नहीं करना चाहिए जब आपको प्यास लगे तभी पानी पीना चाहिए। क्योंकि बिना प्यास के पानी पीने की वजह से आपके दिमाग की नसों में सूजन आ सकता है।

सोते हुए न पीए पानी
सोते हुए गर्म पानी नहीं पीना चाहिए। इसकी वजह से आपकी रात की निंद खराब होती है, और आपको बार-बार उठकर रेस्टरुम जाना पड़ता है।

किडनी खराब
किडनी शरीर के विषाक्त पदार्थों को निकालने का काम करती है। मगर ज़रूरत से ज़्यादा पानी पीने से किडनी खराब हो जाती है, क्योंकि किडनी पर पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

बाय-पास सर्जरी में मनाही
जिन लोगों की बाय-पास सर्जरी हुई होती है, उनमें से कुछ मामलों में भी डॉक्टर्स मरीजों को पानी कम पीने की सलाह देते हैं।

पाचन की समस्या
जरूरत से ज्यादा पानी पीने से हमारे शरीर में मौजूद वह पाचन रस काम करना बंद कर देता है, जिससे खाना पचता है। इस वजह से खाना देर से पचने लगता है और कई बार खाना पूरी तरह से डाइजेस्ट भी नहीं हो पाता है।

सार यह है कि गर्म पानी पीना चाहिए, परन्तु ये ध्यान रहे कि वह ज्यादा गर्म न हो, गुनगुना करके पिएं और सुबह बासी मुंह ही पिएं !

Wednesday, May 24, 2017

पंचकर्म - अपनी गाड़ी की तरह अपने शरीर की सर्विसिंग भी करवाए


बाइक या कार का उपयोग आप सभी करते है तो आपको ये भी पता होगा की अपनी कार को अच्छी तरह से मेन्टेन रखने के लिए हम हर महीने या एक निश्चित दुरी तय करने के बाद  उसकी किसी सर्विस सेण्टर से सर्विस करवाते है ताकि गाडी के कल-पुर्जे अच्छी तरह काम करते रहे | आप ने ध्यान दिया हो तो गाड़ी के सर्विस करने के बाद वह चलने में और बेहतर हो जाती है | लेकिन अगर इसके विपरीत हम गाडी को खरीदने के बाद एक बार भी सर्विसिंग न करवाए तो क्या उस मशीन का उपयोग हम लम्बे समय तक कर सकते है ? आपका उतर होगा नहीं | क्योकि मशीनरी में बैगर तेल या सर्विसिंग के उसके कल - पुर्जे काम करना बंद कर देते है या वे ख़राब हो जाते है |

हमारा शरीर भी यांत्रिक मशीन के तरह काम करता है, सिर्फ फर्क इतना है की यह सजीव है और अपनी हीलिंग अपने - आप करता रहता है लेकिन जीवित रहने के लिए हम खान - पान करते है और वर्तमान समय में खाना या वातावरण कितना शुद्ध है ये सभी को पता है | आजकल जो हम खाते है उनमे से 90 % पद्धार्थो में केमिकल या अन्य विजातीय तत्व मिले हुए होते है , जब हम इनका उपयोग करते है तो ये हमारे शारीर में इकट्ठा होते रहते है और कालांतर में जाकर निश्चित ही किसी रोग का कारन बनते है | अब प्रश्न आता है की इनसे बचे कैसे तो इनसे बचना तो मुस्किल है लेकिन इन तत्वों को शारीर से बहार निकालना हमारे लिए आसान है और जिस पद्धति से इनको बहार निकाला जा सकता है वह है - आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा पद्धति | 


आइए अब जानते है पंचकर्म के बारे में 

पंचकर्म दो शब्दों से मिलकर बना है - पञ्च + कर्म | यंहा पञ्च मतलब - पांच और कर्म से तात्पर है - कार्य |

आयुर्वेद में -  "क्रियते अनेन इति कर्म:" क्रिया या कर्म को चिकित्सा भी कहते है | 

पंचकर्म में पांच कर्म किये जाते है जो इस प्रकार है -

1. वमन    -    उल्टी करवाना 

2. विरेचन -    दस्त करवाना 

3. अनुवासन - मेडिकेटिड घी से एनिमा दिया जाता है 

4. निरुह -      औषध क्वाथ से एनिमा 

5 नश्य      -    नाक के द्वारा औषधि 

कैसे करते है पंचकर्मा 

पंचकर्म तीन चरणों में किया जाता है - 

1. पूर्व कर्म - पाचन / स्नेहन / स्वेदन 

2. प्रधान कर्म - पांचो कर्म 

3. पश्चात कर्म - संसर्जन कर्म / रसायन कर्म / शमन 

पूर्व कर्म :

जिस प्रकार मलिन वस्त्र पर रंग नहीं चढ़ता , रंग चढाने के लिए पहले उसे साफ़ करना पड़ता है उसी प्रकार पंचकर्म करने से पूर्व शारीर को सुध किया जाता है ताकि पंचकर्म का पूर्ण लाभ हो | पूर्वकर्म में निम्न लिखित कर्म किये जाते है |

पाचन - सबसे पहले पाचन क्रिया ठीक की जाती है क्योकि पाचन ठीक होगा तो ही पंचकर्म ठीक तरीके से होगा

स्नेहन - स्नेहन दो प्रकार से किया जाता है |

 A. बाह्य स्नेहन - इसमें औषद तेल से शारीर की मालिस की जाती है |

 B. अभ्यंतर स्नेहन - इसमें मेडिकेटिड घी ये तेल रोगी को पिलाया जाता है |

स्वेदन - इसमें औषधियों की भाप से शारीर में पशीना लाया जाता है जिससे की शरीर में इकठ्ठा हुए मल छूटकर कोष्ठों ( अमाशय ) में एकत्रित हो जावे |

प्रधान कर्म :

वमन - इस कर्म में निपुण चिकित्सक की देख - रख में औषधियों के द्वारा वमन ( उलटी ) करवाई जाती है | जिससे की अमाशय में इकट्ठी हुई गंदगिया वमन के द्वारा शारीर से बहार निकल जावे |

विरेचन - निपुण चिकित्सक की देख-रेख में औषधियों के द्वारा रोगी को दस्त लगवाये जाते है , जिसके कारन गुदा मार्ग में स्थित दोष शारीर से बहार निकलते है |

अनुवाशन - इस कर्म में शारीर में औषधी घी या तेल से एनिमा लगाया जाता है | इसका कार्य शारीर को उर्जा देना और गंदगी को शारीर से बहार निकलना होता है

निरुह बस्ती - इसमें भी शारीर में एनिमा दिया जाता है जो औषधी काढ़े रूप में होता है और इसका कार्य भी शारीर में स्थित दोषों को बाहर निकालना है |

नश्य - साइनस, एलर्जी आदि रोगों में नाक के द्वारा औषधि दी जाती है | यह औषधि घी , तेल या अन्य किसी रूप में हो सकती है |

पश्चात कर्म :

प्रधान कर्म के बाद किया जाने वाला कार्य पश्चात कर्म कहलाता है |

संसर्जन कर्म - पूर्वकर्म और प्रधान कर्म के बाद शारीर शुद्ध हो जाता है उसे बनाए रखने के लिए संसर्जन कर्म किया जाता है |

रसायन कर्म - इस कर्म में व्यक्ति को Rejuvanation अर्थात शारीर की कायाकल्प करने के लिए , व्यक्ति की प्रकृति और रोग के अनुशार रसायन का सेवन करवाया जाता है |

शमन कर्म - इसमें रोगी के रोग का पूर्ण रूप से रोग का शमन कर के उसे सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार कर दिया जाता है |

पंचकर्म क्यों जरुरी है ?

जिस प्रकार एक गंदे कपड़े पर अगर हम रंग चढ़ाना चाहेंगे तो रंग सही तरीके से नही चढ़ेगा लेकिन जब उसी कपड़े को धोकर साफ़ करने के बाद रंग चढ़ावे तो रंग भली प्रकार चढ़ेगा | यही सिद्धांत हमारे शारीर पर लागु होता है | क्योकि दवा का असर उस समय होता है जब हमारा शरीर उसे स्वीकार करे अगर शरीर में पहले से ही गंदगी ( विकृत दोष ) पड़ी है तो दवा अपना असर नहीं करेगी | आयुर्वेद के ऋषि मुनिओ ने इसे पहचान लिया और उन्होंने दवा से पहले शरीर के शोधन को प्राथमिकता दी | यही शोधन चिकित्सा अब पंचकर्म कहलाती है | अत: रोग के शमुल नाश के लिए पहले शारीर का शोधन जरुरी होता है और आयुर्वेद में रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए पंचकर्म पद्धति अपनाइ जाती है | पंचकर्म को कोई भी करवा सकता है इसके लिए उसे रोगी होना जरुरी नहीं क्योकि यह शोधन पद्धति है इसलिए हर कोई इसे अपना सकता है | 


यह पंचकर्म का संक्षिप्त परिचय है | सम्पूर्ण विश्व आज पंचकर्म के चमत्कारिक लाभों के कारण इसके पीछे भाग रहा है और हम इससे अनभिज्ञ है | इसलिए आप सभी से निवेदन है की इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करे ताकि अन्य लोगो को भी आयुर्वेद और इसकी चिकित्सा पद्धतियों के बारे में जानकारी मिले और वे इससे लाभान्वित हो सके |

धन्यवाद

Leech Therapy - जोंक विधि से हों रहे हैं इलाज

आयुर्वेद आचार्य सुश्रुतानुसार Leech Therapy -जोंक विधि का इस्तेमाल पित्त दुष्टि में किया जाता है | साधारण भाषा में अगर कहे तो जोंक थेरेपी का इस्तेमाल रक्त में उपस्थित अशुद्धियो को दूर करने के लिए किया जाता है | इस विधि में शरीर में स्थित ख़राब खून को जलोका (जोंक) के माध्यम से शरीर से बाहर निकलवाया जाता है |कैसे की जाती है Leech Therapy ?

जलौका (जौंक) विधि या Leech Therapy के लिए सबसे पहले आपकी प्रक्रति और उपस्थित दोषों के बारे में पता किया जाता है | इसी के आधार पर जलौका का निर्धारण किया जाता है  | मुख्यतया रक्त विकारो में सावरिका जलौंका (जौंक) को प्रयोग में लिया जाता  है जिसमे विष नहीं होता | सावरिका जौंक की लार में 100 से अधिक ऐसे तत्व होते है जो खून में जाकर इसे शुद्ध और पतला करने का कार्य करते है, इसी लिए यह हार्ट के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होती है | अब शरीर में जौंक को रोगानुसार जिस जगह पर आपके रोग का प्रधान स्थान है उस जगह को पहले थोडा रुक्ष करते है और फिर जौंक को रक्तपान के लिए छोड़ देते है | शुरुआत में रोगी को थोडा अजीब महसूस होता है लेकिन फिर सब सामान्य हो जाता है | जौंक को तब तक रुग्ण के शरीर पर लगाया रखा जाता है जब तक की वह अशुद्ध रक्त को नहीं चूस लेती | शुद्ध रक्त को चूसने पर  रोगी को हल्की खुजली महसूस होती है उस समय उसे रोगी के शरीर से अलग कर दिया जाता है | Leech Therapy में एक जौंक या एक से अधिक जौंक का इस्तेमाल भी किया जा सकता है |

Leech Therapy के स्वास्थ्य लाभ 

1. बालों के झड़ने में Leech Therapy का उपयोग

 बालों के झड़ने की समस्या में जौंक थेरेपी का प्रयोग किया जाता है यह सिर की त्वचा में स्थित दूषित रक्त को चूस लेती है जिससे बालों मे शुद्ध रक्त का प्रवाह बढ़ता है जो बालों के गिरने को कम करता है | बालों में होने वाली अन्य सम्स्याई जैसे - फंगस , दंदृफ्फ़ आदि में भी लाभकारी होती है |

2. गठिया रोग में Leech Therapy का प्रयोग 

गठिया रोग में भी जौंक थेरेपी बहुत उपयोगी है | इसका  मुख्य कारण जौंक की लार में उपस्थित एक प्राक्रतिक एंजाइम होता है जो रोगी के खून में मिल कर शरीर में प्राकृतिक अनेस्थेसिया का काम करता है, जिसके कारण संधि शोथ और संधि शूल में आराम मिलता है | गठिया रोग का मुख्य कारण ही रक्त में अशुद्धि होता है अत: जौंक के इस्तेमाल से यह अशुद्ध रक्त बाहर निकल जाता है और रोगी स्वस्थ महसूस करता है |

3. मधुमेह में Leech Therapy के लाभ 

मधुमेह रोग में भी रक्त की अशुद्धि मुख्य वजह होती है | मधुमेह में जौंक का इस्तेमाल करने से शरीर में रक्त का घनत्व संतुलित होता है जिसके कारण रोगी को स्वास्थ्य लाभ मिलता है | जौंक की लार में हिरुदीन नामक तत्व होता है जो खून को पतला करता है और शरीर में खून को जमने नहीं देता | इसलिए मधुमेह के रोगियों को Leech Therapy जरुर करवानी चाहिए |

अन्य भी बहुत से रोग है  जिनमे जौंक थेरेपी का इस्तेमाल कर सकते है जैसे - पीलिया ,  कुष्ठ , पीडिका , रक्तपित, मुख्पाक, गुदपाक, आँखों के रोग , प्रमेह, अग्निमंध्य, गुल्म, चर्म रोग, संताप , अरुचि, शारीर दोर्गंध्य, कंदु, अर्श रोग, विदाह आदि रोगों में इसका उपचार लिया जा सकता है  |

रखा जाता है खास ख्याल

इंफेक्शन न हो, इसके लिए एक जोंक का एक ही मरीज के लिए प्रयोग किया जाता है। दूषित रक्त चूसने के बाद इनको उल्टी कराई जाती है, ताकि ये अपने मुंह से दूषित रक्त निकाल दें।

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हेल्‍थ टिप्‍स: कपूर के इस्‍तेमाल से कुछ इस तरह करें बीमारियों का इलाज

कपूर का इस्तेमाल आमतौर पर हर घर में पूजा-पाठ के लिए होता है. मगर हम आपको बता दें कि कपूर सौंदर्य समस्याओं को दूर करने के लिए भी काफी कारगर उपाय माना जाता है!

कपूर का इस्तेमाल आमतौर पर हर घर में पूजा-पाठ के लिए होता है. मगर हम आपको बता दें कि कपूर सौंदर्य समस्याओं को दूर करने के लिए भी काफी कारगर उपाय माना जाता है. स्किन के साथ-साथ हम आपको ऐसी कई समस्याओं के बारे में बता रहे हैं है जिनमें कपूर का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है-

 जलने पर- अगर आग से कोई हिस्सा जल गया है तो कपूर बेहद फायदेमंद साबित होता है. कपूर के तेल को आग से जली हुई जगह पर लगाने से जलन से राहत मिलती है.

खुजली के लिए - गर्मियों के मौसम में खुजली की समस्या ज्यादा होती है. अगर खुजली हो रही हो तो अपनी स्किन पर कपूर को घिसें. इससे खुजली बहुत हद तक खत्म हो जाएगी.

पेट का दर्द : पेट दर्द होने पर कपूर बहुत फायदेमंद होता है. आप अजवायनए, पुदिना और कपूर को मिलाकर इसका शर्बत बनाएं और इसका सेवन करें पेट के दर्द में आराम मिलेगा.

टेंशन और सिर दर्द -  अगर बेवजह के तनाव से दिमाग में परेशानी हो रही हो तो अपने सिर में कपूर के तेल की मालिश करें. कपूर के तेल की मालिश से तनाव धीरे-धीरे खत्म होने लगता है. साथ ही सिर का दर्द भी दूर होता है.

जुकाम- सर्दी जुकाम में आपको कपूर को सूंघने से राहत मिलेगी.

 गठिया - जो लोग गठिया के दर्द से परेशान हैं वो कपूर के तेल से गठिया वाली जगह पर मालिश करें. इससे तुरंत आराम मिलता है.

बालों का झड़ना-  अगर बाल लगातार झड़ रहें हो तो नरियल के तेल में कपूर के तेल को मिलाकर इसको बालों पर लगाएं. कुछ ही दिनों में आपके बाल झड़ना रूक जाएगें.

क्या है कपूर: कपूर के वृक्ष भारत में देहरादून, कर्नाटक, सहारनपुर, मैसूर और नीलगिरी के पर्वत श्रंखलाओ में पाए जाते है | इसके आलावा ये चीन, सुमात्रा और जापान में बहुतायत से पाए जाते है | कपूर चीन और जापान का ही मुख्य वृक्ष है, लेकिन इसके उत्पादन एक लिए इसे बाद में अन्य देशो में भी उगाया जाने लगा | कपूर के वृक्ष 60 से 70 फीट ऊँचे एवं घने होते है | इनके पते चिकने , मुलायम , अंडाकार, हरे रंग के लेकिन हल्का पीलापन लिए रहते है | कपूर के फुल सफ़ेद गुच्छो में लगते है जिन पर बाद में मटर के आकार के फल लगते है | कपूर की प्राप्ति भी इन्ही के निर्यास से की जाती है अर्थात disttilation ( काष्ठ आसवन) की विधि से कपूर को तैयार किया जाता है | यह गौंद की तरह होता है इसका रंग सफ़ेद तथा पारदरशी होता है | कपूर में एक तरह का उड़नशील तेल मिलता है | आयुर्वेद में इसी कपूर का इस्तेमाल औषध निर्माण में किया जाता है |

अगर आपको पहले पथरी हो चुकी है तो हो जाएं सावधान !


पूरे जीवन में गुर्दे में पथरी होने की आशंका पुरुषों में 13 प्रतिशत और महिलाओं में मात्र 7 प्रतिशत होती है. एक बात यह भी है कि 35 से 50 प्रतिशत लोग, जिन्हें पहले गुर्दे में पथरी हो चुकी है, उन्हें आने वाले पांच साल में दोबारा हो सकती है.

आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया, 'पथरी से कोई और समस्या तो नहीं होती, लेकिन इससे दर्द होता है.

गुर्दे में होने वाली पथरी आम तौर पर छोटी होती है और पेशाब के साथ निकल जाती है। हां, कुछ पथरी गुर्दे या पेशाब वाहिनी नली में फंस जाती है और इस वजह से समस्याएं हो सकती हैं.'

उन्होंने बताया कि अटकी हुई पत्थरी को निकालने के कई तरीके हैं. जिन लोगों को एक बार पथरी होती है, उनमें से आधे लोगों को जीवन में दोबारा पथरी जरूर होती है. दिन में काफी मात्रा में पानी पीना ऐसा होने से रोक सकता है.'

डॉ. अग्रवाल कहते हैं, 'जब पथरी गुर्दे या पेशाब वाहिनी नली में फंस जाती हैं, तब दर्द बहुत बढ़ जाता है और मरीज को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ सकता है. कई बार पथरी इतनी बड़ी होती है कि यह पेशाब नली को पूरी तरह से बंद कर ही देती है. इससे गुर्दे में संक्रमण या क्षति हो सकती है.एक्स-रे के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है और बड़ी पथरी को निकाला जा सकता है.'

डॉ. अग्रवाल की सलाह :

* पानी पीने की मात्रा इतनी बढ़ा दें कि दिन में कम से कम दो लीटर पेशाब आए. दिनभर में पानी ज्यादा पीने से दोबारा पत्थरी होने का खतरा आधा रह जाता है और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता. लेकिन जो लोग पहले से काफी मात्रा में पानी पीते हैं, ऐसे लोगों को और अधिक पानी नहीं पीना चाहिए.

* प्रमाणों से पता चला है कि सामान्य पानी की बजाय किसी खास ब्रांड का पानी पीने से पथरी की समस्या पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

* अगर ज्यादा पानी पीने से गुर्दे में पथरी होना बंद न हो तो थाइजाइड ड्युरेक्टिक, स्रिटेट या एलोप्युरिनोल दवाओं के जरिए मोनोथेरेपी ली जा सकती है. यह दवाएं उन लोगों में कैल्शियम जमा होने से बनने वाली पथरी के दोबारा पैदा होना कम कर देते हैं, जिन्हें पहले दो या ज्यादा बार पत्थरी हो चुकी है।

* कॉम्बिनेशन थेरेपी मोनोथेरेपी से ज्यादा प्रभावशाली नहीं है. इन सभी दवाओं के दुष्प्रभाव देखे गए थे. थाइजाइड्स से ओर्थोस्टासिस, पाचनतंत्र में गड़बड़ी, मर्दाना कमजोरी, कमजोरी और मांसपेशियों में समस्या आदि होती है. स्रिटेट्स से पाचनतंत्र में समस्या और एलोपूरिनोल से रैश, गंभीर गठिया और ल्यूकोपेनिया हो सकता है.

* पीड़ित को कोला और फास्फोरिक एसिड वाली चीजों का सेवन कम से कम करना चाहिए.

* फलों के स्वाद वाले साफ्ट ड्रिंक लिए जा सकते हैं, क्योंकि उनमें स्रिटक एसिड होता है.

मरीज को चॉकलेट, चुकंदर, मूंगफली, रेवाचीनी, पालक, स्ट्रॉबेरी, चाय और व्हीट ब्रान का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें आहारीय ऑक्सालेट मौजूद होता है.

* मरीज को जीवों से मिलने वाले प्रोटीन और प्यूरीन का सेवन कम से कम करना चाहिए और सामान्य आहारीय कैल्शियम लेते रहना चाहिए.

वर्ल्ड थायरॉइड डे: इस बीमारी से जुड़ी 10 बातें, जो आपको जरूर पता होनी चाहिए


बदलती दिनचर्या और तनाव थायरॉइड की समस्या का सबसे बड़ा कारण है. थायरॉइड के रोगियों में लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं हैं. यह शरीर के साथ ही आपके दिमाग को भी प्रभावित करता है. थायरॉइड की वजह से हर साल न जाने कितने मरीजों की मौत भी हो जाती है. इसकी वजह से थकान होना, रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना, जुकाम, त्वचा का रूखापन, अवसाद, वजन बढ़ना और हाथ-पैर ठंडे रहने जैसी समस्याएं होती हैं.

आइए हम आपको थायरॉइड हॉर्मोन से जुड़ी कुछ बातें बताते हैं.

1. थायरॉइड एक तितली के आकार की ग्रंथि है, जो गर्दन के निचले हिस्‍से में पाई जाती है. इस ग्रंथि का काम थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाकर उसे रक्त तक पहुंचाना है, जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म नियंत्रित रहता है.

2. थायरॉयड ग्रंथि में टी3 और टी4 दो प्रकार के हॉर्मोन बनते हैं और इन्हीं हार्मोन्स के असंतुलित होने की वजह से थायरॉइड होता है.

3. थायरॉइड हॉर्मोन की मात्रा कम होने के कारण शरीर में ऊर्जा की कमी हो जाती है और आलस आने लगता है, लेकिन मात्रा अगर जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो शरीर ज्यादा सक्रिय हो जाता है.

4. थायरॉइड ग्रंथि का नियंत्रण पिट्यूटरी ग्रंथि से होता है और इस पिट्यूटरी ग्रंथि को हाइपोथेलमस नियंत्रित करता है.

थायरॉइड ग्रंथि तितली के आकार की होती है.

5. कुछ लोगों की थायरॉइड ग्रंथि में कोई रोग नहीं होता है, लेकिन पिट्यूटरी ग्रंथि के ठीक तरह से काम न करने की वजह से थायरॉइड ग्रंथि में बनने वाले हॉर्मोन्‍स प्रभावित होते हैं और थायरॉइड की बीमारी घेर लेती है.

6. हाइपोथायरॉइड में टीएसएच का स्तर बढ़ जाता है और टी3 व टी4 की मात्रा कम होने लगती है.

7. हाइपरथायरॉइड में टीएसएच का स्तर घटता है और टी3 व टी4 की मात्रा बढ़ने लगती है.

थायरॉइड की वजह से वजन अचानक घटने या बढ़ने लगते है.

8. थायरॉइड ग्रंथि में बनने वाले थायरॉक्सिन हार्मोन की मात्रा अधिक होने की वजह से शरीर का तापमान बढ़ जाता है और अचानक बेचैनी, घबराहट और शरीर का वजन तेजी से घटना जैसी समस्या होने लगती है.

9. थायरॉइड हार्मोन के असंतुलित होने की वजह से बच्चे के शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के विकास में बाधा उत्पन्न हो जाती है.

10. थायरॉइड जेनेटिक भी होता है. रक्‍त संबंधों में किसी को थायरॉइड हो तो यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है.