Friday, June 16, 2017

कद्दू के बीज फेंकिए मत, लाभ इतने हैं कि गिनते थक जाएंगे आप!


कद्दू की सब्जी बनाते समय इसे काटने के बाद अन्दर से जो बीज निकलते हैं, आपके घर में भी उन्हें फेंक ही दिया जाता होगा। लेकिन अगर हम कहें कि कद्दू के बीजों में कद्दू से कहीं ज्यादा पोषक तत्व होते हैं तो..। ..तो शायद आप अगली बार कद्दू के बीज फेंकेंगे नहीं। कद्दू के बीजों में मैंगनीज़, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता और विटामिन जैसे पोषक तत्वों से भरे हुए हैं।

एक शोध के अनुसार कद्दू के बीज में सामान्य तौर पर 44% जिंक, 22% तांबा, 42% मैग्नेशियम, 16% मैंगनीज, 17% पोटेशियम और लगभग 17% लौह तत्व पाए जाते हैं।

Image : Google

पहले जानिए, क्या हैं इन तत्वों के लाभ

मैंगनीज के फायदे

मैंगनीज का मुख्य काम शरीर के मेटाबोलिज़म को नियंत्रित करना होता है। हड्डियों के पूर्ण विकास के लिए भी मैंगनीज बहुत जरूरी होता है।

जिंक (Zinc) के फायदे

ज़िंक दिल से जुड़ी बीमारियों को दूर रखने में सहायक होता है।

तांबे (Copper) के फायदे

गठिया के रोग को दूर करने में तांबा काफी फायदेमंद होता है।

मैग्नीशियम (Magnesium) के फायदे

मैग्नीशियम सर दर्द, अनिद्रा और अस्थमा जैसी बीमारियों में काफी फायदेमंद होता है।

पोटेशियम (Potassium) के फायदे

पोटेशियम ब्लड शुगर को नियंत्रित और माँसपेशियों को दुरुस्त रखता है।

उपरोक्त जानकारी आपको ये बताने के काफी है कद्दू के बीजों में बेहद पोषक तत्व समाहित होते हैं। तो चलिए आगे हम आपको बताते हैं कि कद्दू के बीजों से आपको क्या-क्या लाभ होते हैं-

मधुमेह यानि शुगर का खतरा कम करने में

साल 2010 में जर्नल ऑफ़ डायबिटीज एंड इट्स कॉम्प्लीकेशन्स (Journal of Diabetes and its Complications) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, कद्दू का बीज इंसुलिन को नियमित करता है। इसके अलावा कद्दू बीज के तेल में मौजूद फाइटोकेमिकल्स यौगिक डायबिटिक नेफ्रोपैथी (Diabetic Nephropathy) को रोकने में मदद करता है। शुगर के रोगी को रोजाना नाश्ते में 2 बड़े चम्मच कद्दू के भुने हुए बीज का सेवन करना चाहिए।

प्रोस्टेट वृद्धि को रोकने में

साल 2008 में यूरोलोजिया इंटरनेशनलिस (Urologia Internationalis) नामक जर्नल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार कद्दू के बीजों के तेल से प्रोस्टेट वृद्धि कम होती है। इससे परेशान रोगी को रोजाना कम से कम 4-5 ग्राम बीजों का सेवन जरूर करना चाहिए।

इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने में

कद्दू के बीजों में मौजूद जिंक (जस्ता) इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) को दुरुस्त रखता है और वायरल, सर्दी-खांसी-जुकाम जैसे संक्रमणों से शरीर को सुरक्षित रखता है।

रजोनिवृति और उससे जुड़ी समस्याएं

वर्ष 2008 में प्रकाशित जर्नल फाईटोथेरापी रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार जिन महिलाओं को 12 सप्ताह तक कद्दू के बीजों के तेल (2 मिली) का सेवन कराया गया उनमें रजोनिवृति पर होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं जैसे ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्राल का बढ़ना तथा हारमोंस की कमी आदि में काफी सुधार देखा गया।

जोड़ों के दर्द यानि गठिया के इलाज में

कद्दू के बीज के तेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatory) गुण पाया जाता है जो गठिया के इलाज में फायदेमंद होता है।

इसके अलावा कद्दू के बीज पथरी, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा तथा तनाव आदि समस्याओं में भी काफी फायेमंद होते हैं। तो अब कद्दू के बीजों को फेंकना है या नहीं ये आपकी मर्जी।

ऐसी ही जानकारियां लगातार पाते रहने के लिए आप हमारे पेज को लाईक कर सकते हैं।

तरबूज खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए! कितनी सच्चाई है इसमें?


इन्फोपत्रिका, हेल्थ डेस्क।

हम आपको पिछले आर्टिकल में बता चुके हैं कि गर्मियों के लिए कुदरत का वरदान है तरबूत, तो इसे अपनी डाइट में शामिल किया जाना चाहिए।

तरबूज को लेकर समाज में कई तरह की धारणाएं हैं। कुछ लोग कहते हैं कि तरबूज खाने या इसका रस पीने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। इस बात में कितनी सच्चाई है, ये हम आपको आज बताने जा रहे हैं-

नहीं पीना चाहिये पानी के पीछे का लॉजिक


चूंकि तरबूज में 96 प्रतिशत मात्रा पानी की होती है तो कुछ लोग कहते हैं इसे खाने के बाद पानी की कोई ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि तरबूज खाने के बाद पानी पीने से शरीर में पानी की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाएगी। शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने से पाचन तंत्र पर असर होगा।

कुछ लोग मानते हैं कि इससे पेट का इन्फेक्शन हो सकता है। क्योंकि तरबूज में बहुत अधिक मात्रा में पानी और शुगर होती है तो ऊपर से और पानी पीने से पेट में इन्फेक्शन हो सकता है।

तरबूज के बाद पानी हानिकारक


आयुर्वेद में भी कुछ चीजों को अकेले खाए जाने और अकेले पचाने की सलाह दी गई है। जैसे कि तरबूज। कहा गया है कि तरबूज खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए। आहार विशेषज्ञों की राय है कि इससे हमारी जठरआंत (पेट और आंत से जुड़ा एक भाग) प्रभावित होती है और हमें गैस की समस्या हो सकती है।

ऐसा करके बैक्टीरिया को बढ़ने न दें

तरबूज में पहले से ही बहुत पानी के साथ-साथ शुगर और फाइबर जैसे तत्व होते हैं। लॉजिक ये भी है कि बैक्टीरिया को फैलने के लिए पानी और शुगर दोनों की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। ऐसे में तरबूज खाने के बाद यदि पानी पी लिया जाए तो बैक्टीरिया को पलने-बढ़ने का अच्छा मौका मिल जाता है। ये बैक्टीरिया पूरे पाचन-तंत्र में फैलकर बहुत सारी समस्याओं को जन्म देता है।

ठोस भोजन के साथ खाएं तरबूज


आपने सुना होगा कि ठोस भोजन के साथ पानी नहीं पीना चाहिए। बिलकुल यही बात भोजन के साथ तरबूज खाने पर भी लागू होती है। चूंकि तरबूज में 96 प्रतिशत पानी होता है तो भोजन के साथ इसे खाने पर पाचन-तंत्र अपना कार्य सही से नहीं कर पाता।

यह कहा जा सकता है कि पाचन तंत्र धीरे कार्य करता है और पेट में गैस बनती है। वैसे तो किसी भी फल के साथ पानी नहीं पीना चाहिए, मगर तरबूज के साथ विशेष ध्यान रखने की जरूरत है।

खाली पेट लीची खाना मौत को बुलावा देने जैसा: रिपोर्ट में खुलासा


सुबह उठकर खाली पेट यदि लीची का फल खा लिया जाए तो ये मौत का कारण भी बन सकता है। ये किसी व्यक्ति का कहना नहीं है, बल्कि विज्ञानिकों की एक रिपोर्ट का दावा है।

रात को भूखे सोये और सुबह लीची खाई

मामला भारत से ही जुड़ा हुआ है। बिहार के मुजफ्फरपुर में 2014 से पहले तक हर साल लगभग 100 लोग इसी बीमारी की वजह से मर जाते थे। इसके बाद भारत और अमेरिका के विज्ञानितों ने एक शोध किया, जिसमें ये पता चला कि ये बीमारी खाली पेट लीची खाने से होती थी। मरने वालों में ज्यादा लोग ऐसे थे, जो रात में भूखे सोये थे और सुबह उठकर लीची खा ली थी।

दिमाग संबंधी बीमारी भी

मुजफ्फरपुर में रहस्यमयी तरीके से फैली ये बीमारी मष्तिष्क से जुड़ी हुई थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि शाम का खाना न खाने से रात को हाइपोग्लाइसीमिया या लो-ब्लड शुगर की समस्या हो जाती है। खासकर उन बच्चों को ये समस्या होती है, जिनके लिवर और मसल्स में ग्लाइकोजन-ग्लूकोज का स्टोरेज बहुत कम होता है। इससे फैटी ऐसिड्स जो शरीर में एनर्जी पैदा करते हैं और ग्लूकोज बनाते हैं, का ऑक्सीकरण हो जाता है।

लीची में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थ जिन्हें hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) कहा जाता है, शरीर में फैटी ऐसिड मेटाबॉलिज़्म बनने में रुकावट पैदा करते हैं। इसकी वजह से ही ब्लड- शुगर लो लेवल में चला जाता है और मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दौरे पड़ने लगते हैं।

रिसर्चर्स की यह खोज ‘द लैनसेट’ नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है। 2013 में नैशनल सेंटर ऑफ डिज़ीज़ कंट्रोल (NCDC) और यूएस सेंटर ऑफ डिज़ीज़ कंट्रोल ने इस मामले में एक साझा शोध किया।

122 बच्चों की हुई थी मौत

नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुज्जफरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल और कृष्णादेवी देवीप्रसाद केजरीवाल मैटरनिटी हॉस्पिटल में 15 साल से कम के 350 बच्चे मस्तिष्क संबंधी बीमारियों की वजह से भर्ती कराए गए थे, जिनमें से 122 बच्चों की मौत हो गई।

इनमें से 204 बच्चों का ब्लड-ग्लूकोज लेवल कम था। इनमें से ज्यादातर बच्चों ने लीची खाई थी और उनके माता-पिता ने बताया था कि उन्होंने रात में खाना नहीं खाया था। जिन गांवों में यह बीमारी तेजी से असर दिखा रही थी वहां के लोगों ने बताया कि बच्चे मई और जून के महीनों में बगीचों में चले जाते हैं और सारा दिन लीची खाते हैं। वे शाम को घर लौटते हैं और खाना खाए बिना ही सो जाते हैं। बता दें कि मुजफ्फरपुर लीची की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है।

सोर्स:BBC NEWS.                                     शेयर करें:

Thursday, June 15, 2017

पेशाब अगर बंद हो या कम हो, खुलकर पेशाब लाने वाले 11 अनुभूत आयुर्वेदिक घरेलु नुस्खे

जब किसी कारण से मूत्राशय में पेशाब एकत्रित हो जाता है या मूत्रनली में किसी रुकावट के कारण पेशाब नहीं आता है तो उसे मूत्र न आना रोग कहते हैं परन्तु जब किसी कारण से मूत्राशय में पेशाब नहीं आता है या नहीं बनता तो उसे मूत्र-नाश (सुप्रेशनस ऑफ यूरेन) कहते हैं। पेशाब रुकने पर पेट का निचला भाग फूल जाता है और मूत्र-नाश में पेट का नीचे का भाग नहीं फूलता है। मूत्र-नाश रोग में जब शरीर के अन्दर के दूषित पदार्थ नहीं निकल पाता है तो कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं जैसे- रोगी को सुस्ती आना, पूरे दिन ऊंघते रहना, मोह पैदा होना, बेहोशी उत्पन्न होना आदि।


कारण :-

★ मूत्र-नाश रोग बुखार व हैजा के कारण उत्पन्न होता है।
★ यह रोग सुजाक में एकाएक पीब आना बंद हो जाने पर और मूत्रग्रन्थि में जलन या मूत्रस्थली में लकवा मार जाने या किसी तरह के चोट लगने के कारण भी उत्पन्न होता है।

आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :

1. अजवायन: ठंडी प्रकृति वाले रोगी को आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन को शहद के साथ और गर्म प्रकृति वाले को आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन सिरके के साथ देने से बंद पेशाब( pesab ) आने लग जाता है।

2. राई: 1-1 ग्राम राई और कलमीशोरा को पीसकर इसमें 2 ग्राम खांड को मिलाकर हर 2-2 घंटे के बाद 2-2 ग्राम की मात्रा में पीने से बंद पेशाब खुल जाता है।

3. पीपल: 5-5 ग्राम पीपल, कालीमिर्च, छोटी इलायची और सेंधानमक को पीसकर और छानकर इसमे से आधा चम्मच चूर्ण को शहद में मिलाकर रोगी को देने से पेशाब बंद होने का रोग दूर हो जाता है।

4. एरंड: 1 छोटा चम्मच एरंड का तेल बच्चे को पिलाने से बच्चे का बंद पेशाब खुल जाता है।

5. सज्जीखार: 4 ग्राम सज्जीखार को पीसकर छाछ में मिलाकर पीने से बंद पेशाब( pesab ) खुल जाता है।

6. शोराकलमी: 2-2 ग्राम शोराकलमी, जवाखार, रेवन्दचीनी और सौंफ को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 8 ग्राम खांड को मिलाकर आधे गिलास पानी के साथ लेने से पेशाब बंद होने के रोग मे लाभ होता है।

7. गोपी चन्दन: गोपी चन्दन को पीसकर नाभि पर लेप करने से पेशाब( pesab ) बंद होने का रोग दूर हो जाता है।

8. कपूर: लिंग के छेद के अन्दर थोड़ा सा कपूर डालने से बंद पेशाब के रोग में आराम आ जाता है।

9. जौखार: 5 ग्राम जौखार को 2 गिलास छाछ के साथ मिलाकर पीने से पेशाब बंद होने का रोग ठीक हो जाता है।

10. कांच: आधा ग्राम कांच को पीसकर ज्यादा पानी के साथ रोगी को देने से पेशाब बंद होने का रोग ठीक हो जाता है।

11. ढाक: ढाक के फूलों को काफी गर्म पानी में डालकर निकाल लें। इस गर्म-गर्म ही नाभि के नीचे बांधने से पेशाब खुलकर आने लगता है।

Wednesday, June 14, 2017

आँखों की देखभाल के लिए घरेलू नुस्खे

आँखों की देखभाल बहुत जरुरी होती है क्योंकि आखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है| ऐसा कहा गया है की सभी इंद्रियों में आंखें ही श्रेष्ठ हैं। आंखों की उचित देखभाल के करने के लिए हम आपको बताएँगे खास टिप्स साथ ही साथ कुछ घरेलू नुस्खे जिनकी सहायता से आप पाएंगे स्वस्थ और सुंदर आँखें


आँखों की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण टिप्स

आंखों में जब भी थकान का अनुभव हो तो ठंडे पानी से छींटें मारने चाहिए, जिससे आँखें तरोताजा बनी रहे ।कभी भी अंधेरे में, कम रोशनी में, तेज रोशनी में, तेज धूप में या ज्यादा झुककर व लेटकर लिखने-पढ़ने की आदत न डालें।प्रतिदिन प्रात:काल अपनी आखों पर ठंडे व ताजे पानी से छींटें मारने चाहिए।सर्दियों के दिनों में प्रात:काल ओस की बूंदों को लेकर अपनी आंखों पर लगाना चाहिए।धूप में निकलते समय सदैव धूप का चश्मा लगाना चाहिए।अगर आप प्रतिदिन अपनी आंखों में काजल या सुरमा लगाते हों तो आँखों की देखभाल के लिए धीरे-धीरे छोड़ दें, क्योंकि काजल कभी-कभार ही लगाना अच्छा रहता है |आंखों के लिए यदि संभव हो तो कृत्रिम प्रसाधनों की अपेक्षा प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन ही काम में लें।आँखों की देखभाल करने के लिए आँखों के नीचे बादाम के तेल की मालिश फायदेमंद रहती है।यदि ककड़ी का रस लगाया जाए तो आंखों को काफी फायदा होता है।खीरे के दो गोल टुकड़े थोड़ी देर आंखों पर रखें।यदि आंखें लाल हों तो टी-बैग लगाकर थोड़ी देर सो जाएं।

आंखों की देखभाल के लिए प्रतिदिन कुछ सेकंड के लिए अपनी आंखों के कोनों, माथे पर दबाव डालें। इससे आपको आराम महसूस होगा। आँखों की देखभाल के लिए यह अच्छा व्यायाम है |आंखों की देखभाल के लिए भोजन में विटामिन ‘ए’ युक्त पदार्थ लेने चाहिए, जैसे हरी पतेदार सब्जियां, गाजर, पपीता, दूध। शरीर में प्राकृतिक रूप से विटामिन ‘ए’ की पूर्ति होने से आंखों की रोशनी कम नहीं होती है।आंखों में धूल गिरने पर आंखों को मलें नहीं, बल्कि ठंडे पानी के छींटे मारने चाहिए।आंखों को मसलने से आंखों पर दबाव पड़ता है। यह दबाव आंखों के लिए नुक्सान दायक होता है क्योंकि ऑंखें हमारे शरीर का बहुत कोमल अंग होती है |आंखों को धुएं से बचाएं। लंबे समय तक आंखों में निरंतर धुआं पड़ना नुकसानदेह है। धुएं वाले स्थान पर कार्य करना पड़े तो चश्मा लगाना चाहिए।आंखों की देखभाल के लिए किसी दूसरे का रुमाल उपयोग में न लाएं। किसी दुसरे के रूमाल का उपयोग करने से संक्रमण की आशंका रहती है।एक ही डिब्बी में रखे हुए काजल का उपयोग कई लोगों द्वारा करने पर भी संक्रमण की आशंका रहती है।गंदे कपड़े से आंख पोंछना एवं अस्वच्छ पानी से आंख धोना उचित नहीं।गर्म पानी से आँखों को धोना या सिर पर गर्म पानी डालकर नहाना भी आँखों के लिए हानिप्रद है।लंबे समय का तनाव तथा अनिद्रा आंखों के लिए नुकसानदायक है।आंखों की सुरक्षा के लिए तनाव से बचना चाहिए तथा गहरी नींद सोने का पूरा प्रयास करना चाहिए।

आँखों की देखभाल के लिए कुछ घरेलू नुस्खे  

कुनकुने (हल्के गर्म) दूध में रुई का फोहा भिगोकर यदि आंखों पर कुछ देर रखा जाए तो कभी भी आँखों के नीचे काले धब्बे नहीं पड़ेंगे।आंखों को स्वस्थ रखने के लिए बेहद सरल उपाय यह है कि रात्रि में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण भिगोकर प्रातः उस पानी को छानकर उससे आंखें धोये यह आँखों की रोशनी व खूबसूरती बढ़ा देगा।कपूर का इस्तेमाल भी आंखों के लिए फायदेमंद है। इसके प्रयोग के दो तरीके हैं, एक तो कपूर काजल और दूसरा कपूर का लेप ।कपूर जलाकर उसके धुएं को एक छोटी-सी डिबिया में रख लें और हर रोज लगाएं।एक छोटी कटोरी में एक चम्मच-भर असली घी गरम कर लें और इसमें एक या दो कपूर डालकर इतना गरम करें कि कपूर और घी मिल जाएं। इसे रोज आंखों में लगाएं। आंखों की देखभाल के लिए यह एक अच्छा घरलू उपाय है |आलू के पतले गोल टुकड़े काटकर आंखों के नीचे मलें तो आंखों का कालापन दूर हो जायेगा।आंखों में जलन हो तो गुलाब जल से धोना चाहिए। प्रात:काल स्वच्छ ठंडे पानी से आँखों को धोना ताजगी प्रदान करता है।कच्ची गाजर या बादाम की 5-6 गिरियां प्रातः छिलका उतारकर खूब पीसकर एक गिलास गर्म मीठे दूध के साथ 21 दिन पीते रहें। आंखों के चारों ओर का कालापन जाता रहेगा।पलकों को घना और काला करने के लिए सप्ताह में 2-3 बार रात्रि को सोने से पहले अरंडी के तेल की पलकों पर मालिश करें और सो जाएं।आंखों में चमक लाने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में छोटा चम्मच शहद मिलाकर पानी ठंडा होने पर दिन में तीन-चार बार आँखों को धोएं। इससे आँखों में ताजगी आएगी।जब कभी आंखों में पीलापन दिखाई दे, तो तांबे के बरतन में रखा हुआ पानी सवेरे, कुछ भी खाने के पहले पी लें। तांबे का असर इसमें फायदा करता है। इसके अलावा फिटकरी और आंवले का पानी भी इस्तेमाल करें।आंखों में चमक लाने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में छोटा चम्मच शहद मिलाकर पानी ठंडा होने पर दिन में तीन-चार बार आँखों को धोएं। इससे आँखों में ताजगी आएगी।दो-तीन (Amla) आंवलों को एक गिलास पानी में रात को भिगो दें। सवेरे आंवले निकाल दें और उस पानी से आँखों को छींटें दें। ऐसा करीब दो हफ्ते करें। पीलापन, जलन, खुजली दूर हो जाएगी।रात को सोने से पहले गुलाबजल की कुछ बूंदें आंखों में डालें। इससे आंखों की दिन-भर की थकान दूर हो जाती है और आंखें हल्कापन महसूस करती हैं।आंखों के चारों ओर कालापन होने पर लाल पके हुए टमाटरों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें।

आँखों की सुन्दरता के लिए सुझाव

अपनी पलकों को सुंदर, आकर्षक व घनी करने के लिए उनकी पर्मिंग भी कराई जा सकती है। पर्मिंग पूर्ण रूप से सुरक्षित है तथा इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। दरअसल, पर्मिंग कराने से आपको मसकारा लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पर्मिंग किसी भी अच्छे ब्यूटी पार्लर में जाकर करवाई जा सकती है।यदि प्रकृति ने आपकी आंखें छोटी, बड़ी, उभरी व धंसी हुई बनाई हैं तो वह अपने वश में नहीं है, लेकिन यदि आप उचित रूप से अपनी आंखों का रख-रखाव और मेकअप करें तो आप उन्हें आकर्षक बना सकते हैं।आंखों की सुंदरता बहुत कुछ हमारी भौंहों (Eyebrows) के आकार पर निर्भर करती है। यदि आपकी आंखें छोटी हैं तो भौंहों को पतला आकार न दें। घनी भौंहों से आंखें बड़ी लगेंगी। भौंहों को धनुषाकार रूप न देकर बादाम का आकार दें। इससे आँखें बड़ी-बड़ी और खिली-खिली रहेंगी।यदि कम आयु में ही आंखों के चारों ओर काले घेरे या निशान बन जाते हैं तो भोजन में हरी सब्जियों का व दूध का भरपूर इस्तेमाल करें।

Tuesday, June 13, 2017

मांस खाने से हानि (HARM BY TAKING MEAT)

परिचय-

मनुष्य मांसाहारी जीव नहीं है। मनुष्य के दांतों का आकार, उसके मुंह की रस ग्रंथियां,छोटी आन्त एवं पाचनतंत्र में से कोई भी मांसाहारी जीवों की तरह के नहीं होते।

Introduction

            The human is not non-nonvegetarian creature. Teeth shape, juice glands of his mouth, small enlargement, digestive system etc. any part of human is not like non-vegetarian creatures.


जानकारी-

Knowledge-

मनुष्य बिना मांस खाये सारा जीवन बिता सकता है लेकिन केवल मांस के सहारे अपना पूरा जीवन नहीं बिता सकता है।

The human can live his whole life without eating meat but he also cannot live his life on the meat.

मांस खाने वाले व्यक्ति की उम्र कम हो जाती है। जबकि शाकाहारी की उम्र लंबी होती है।

The age of non-vegetarian person is reduced whenever vegetarian person has long age.

मांस खाने वाले व्यक्ति शक्तिशाली और स्वस्थ नहीं रहते। बल्कि रोगी और कमजोर हो जाते हैं। मांस खाने वाले व्यक्ति जल्द ही थक जाते हैं और शाकाहारी व्यक्ति देरी से थकते हैं।

Non-vegetarian people are not stayed strong and healthy rather they become patient and weak. These types of people feel tiredness soon and vegetarian person feels tiredness from delay.

फल खाने वाले व्यक्ति के शरीर में जितनी फुर्ती, कार्य करने की इच्छा, लगन, और निष्ठा रहती है। उतने मांस खाने वाले व्यक्ति में संभव नहीं होती है। मांस अम्लधर्मी (खट्टापन बढ़ाने वाला) होता है। इससे रोगों से लड़ने की शक्ति में कमी आ जाती है। जिससे कई तरह के रोग हो जाते हैं।

As much energy, desire of work, inclination and loyalty stay in the vegetarian person as strength is not stayed in non-vegetarian person. The meat is about to increase sourness. Resistant power is reduced by it and many types of diseases take birth.

मांसाहार में यूरिक एसिड अधिक पाया जाता है। जो हमारे शरीर के अन्दर जमा होकर गठिया आदि कई रोगों को पैदा करता है।

Uric acid is found in the non-vegetarian food, which generates rheumatismetc. many types of diseases after gathering in the body.

मांसाहारी व्यक्ति को दिल के रोग और कैंसर के रोग होने के ज्यादा चांस होते हैं।

The person, who takes meat, can suffer from heart problems and cancer.

एक सर्वेक्षण के द्वारा पता चला है कि अपराधियों में मांस खाने वालों की संख्या अधिक पाई गई है। मांसाहारी व्यक्तियों में अधिक रोग पाए जाते हैं। उसकी सहनशक्ति कम हो जाती है, उसके अन्दर गुस्सा व चिड़चिड़ापन ज्यादा बढ़ जाता है, वासना और उत्तेजना की सोच बढ़ जाती है। मनुष्य क्रूर व निर्दयी हो जाता है,उसकी अपराधिक सोच बढ़ जाती है। मांस गलत सोच को जन्म देता है जिससे समाज में आपसी मनमुटाव, घर का तनाव, लड़ाई झगड़े, लूटमार, आदि की वारदातें बढ़ जाती हैं।

It has found by a survey that more numbers about to eat meat have found in culpable. Many types of diseases are found in non-vegetarian person. His tolerating power is reduced by which anger and irritation increase in this person. His passion and excitement thinking are increased. The human becomes ruthless and his criminal thinking is increased. Meat gives birth to wrong thinking by which house depression, altercation, snatching etc. crimes are increased.

अंडा भी मांसाहार है। इसमें कोलेस्ट्राल बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह बहुत ही नुकसानदायक होता है। इससे दिल के रोग होने की ज्यादा संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

The egg is also non-vegetarian food. It contains more quantity of cholesterol, which is more harmful. The possibility of heart diseases is also increased.

मांस या अंडा किसी का हो यह आपके शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक है।

Egg or meat of any animal is very harmful for our body.

पश्चिमी देशों के मांसाहारी लोग अब दुबारा शाकाहारी हो रहे हैं।
The people of western countries keep on becoming vegetarian again.

डायबिटीज से जुड़े भ्रम –30 Myths About Diabetes

डायबिटीज के बारे में कई मिथक हैं और इस बीमारी से ग्रसित लोगों के खान-पान के बारे में भी कई मिथक हैं। डायबिटीज की बीमारी में मरीज को अपना विशेष ध्यान हमेशा रखना पड़ता है, जिसके कारण लोग ज्यादा गौर करने लगते हैं जो गैरजरुरी है |

क्या आप जानते हैं कि भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग और अमेरिका में 2.5 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रसित हैं, ऐसा हाल ही में हुई एक रिसर्च से पता चला है। इतनी भारी संख्या में लोग इस बीमारी से घिरे हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद इस बीमारी के बारे में कई मिथक बने हुए  हैं। इसमें कोई शक नहीं है की डायबिटीज के रोगी को कार्बोहाइड्रेट के सेवन से बचना चाहिए और संतुलित खुराक का सेवन करना चाहिए। डायबिटीज -रोगियों के लिये संतुलित आहार और नियमित रूप से शुगर के स्तर की जांच करवाना जरूरी है और समस्या बढ़ने पर डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।

डायबिटीज रोग से जुडी 30 आम गलतफहमियां और भ्रम :

Top 30 Myths busted About Diabetes

मिथ: डाइबिटीज होने पर दवाइयों का सेवन करना ही काफी है। कुछ और करने की जरुरत नहीं है |

सच: ऐसा कतई नहीं है, डाइबिटीज़ होने पर आपको परहेज भी रखना पड़ता है। इलाज से ज्यादा परहेज रखने से बीमारी के दुष्प्रभावों से आराम मिलता है। खासतौर पर सही खानपान और नियमित लाइफ स्टाइल का ख्याल रखना चाहिए |


मिथ: इन्सुलिन का इंजेक्शन सेहत के लिए ठीक नहीं होता है | यह बेहद नुकसानदायक इंजेक्शन होता है।

सच: यह धारणा सही नहीं है वैसे तो सभी दवाइयों के कुछ न कुछ साइड इफेक्ट्स तो होते है पर इन्सुलिन का इंजेक्शन शरीर में ब्लड-शुगर स्तर को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय भी नही होता है |

मिथ: डायबिटीज है तो ब्लड डोनेट नहीं कर सकते।

सच: अमेरिकन रेड क्रॉस के अनुसार डायबिटीज के मरीज एक स्वस्थ इंसान की तरह रक्तदान कर सकते हैं बशर्ते कुछ मानकों को पूरा करते हों।

मिथ: शुगर फ्री गोलियां या उससे बनी मिठाइयाँ कितनी भी खाई जा सकती है |

सच: शुगर फ्री का मतलब कैलरी फ्री नहीं है। शुगर फ्री के नाम पर जमकर मिठाइयां खाना नुकसानदेय हो सकता है। आप शुगर-फ्री बिस्किट, और मिठाइयां आसानी से खा सकते हैं। लेकिन अगर उन प्रोडक्ट्स में शुगर न हो पर कार्बोहाइड्रेट तो भरपूर मात्रा में होता ही है ना | शुगर फ्री होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि इससे भी ब्लड-शुगर का स्तर बढ़ेगा ही। इसके आलावा खोए से बनी मिठाइयो में क्रीम आदि की कैलरी भी शामिल होती हैं, जो शुगर अनियंत्रित कर सकती है।

मिथ: डाइबिटीज़ में शरीर को ज्यादा थकान अनुभव नही करवाना चाहिए |

सच : डाइबिटीज़ की बीमारी में ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहिए, ताकि शरीर से ज्यादा केलारी बर्न हो, ब्लड-शुगर का स्तर कम हो। पर हमेशा अपने दिल की धड़कन को मॉनिटर करें और आवश्यक मात्रा में ही शारीरिक मेहनत करें।मिथ: डायबिटीज हो तो फल खाना बंद कर दें।

सच: डायबिटीज़ होने पर खान-पान के बारे में सबसे मिथक फैलते हैं। इसी तरह कई लोग मानते हैं कि फलों में कार्बोहाइड्रेट होता है, जिससे ब्लड-शुगर का स्तर बढ़ जाता है। ऐसा सिर्फ फल के जीआई इंडेक्स पर निर्भर करता है। सामान्यत: फलों में कम जीआई इंडेक्स होता है, इसलिए डाइबिटीज़ की बीमारी में फलों का सेवन आराम से किया जा सकता है। डायबिटीज में लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले फल जरूर खाने चाहिए। इनमें सेब, संतरा, मौसमी, अमरूद और पपीता खाएं। चीकू, केला और अंगूर जैसे फल न लें। फल खाएं पर जूस न लें |

मिथ: डायबिटीज रोग मीठा खाने से होता है 

सच: मीठे से डायबिटीज होने का कोई संबंध नहीं है। इसके लिए वंशानुगत और अन्य कारण जिम्मेदार होते हैं। हालांकि डायबिटीज हो जाने के बाद मीठा खाने से शुगर और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

मिथ: डायबिटीज में अल्कोहल पीने से कोई फर्क नहीं पड़ता है |

सच: नियमित तौर पर अल्कोहल के इस्तेमाल से शरीर में यूरिक एसिड और ट्राइग्लिसरॉइड बढ़ते हैं। साथ ही शुगर भी अनियंत्रित हो जाता है।

मिथ: डायबिटीज के लिए स्पेशल खाना होता है।

सचः डायबिटीज में संतुलित आहार की जरूरत होती है, जिसमें 50-60 पर्सेंट कार्बोहाइड्रेट, 15-20 पर्सेंट प्रोटीन और 20-25 पर्सेंट फैट और दूसरे तत्व शामिल हों।

मिथ: ड्राई फ्रूट्स खाने से परहेज करना चाहिए।

सच: बादाम और अखरोट जैसे सूखे मेवों से शरीर में अच्छा यानी एच.डी.एल कॉलेस्ट्रॉल बढ़ता है जो हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है, इसलिए मेवे जरुर खाने चाहिए |

मिथ: डायबिटीज हो तो कम भोजन खाना चाहिए 

सच: कम खाना खाना सही नहीं है। थोड़ा-थोड़ा, बार-बार खाएं। न तो ज्यादा देर भूखे रहें और न ही एक बार में ढेर सारा खाना खाएं।

मिथ: बार-बार खाने से क्या लाभ होगा एक ही बार भरपेट भोजन खाना चाहिए |

सच : लंबे समय तक खाली पेट रहने से अगर आपके खून में शक्कर का स्तर अचानक गिर जाए तो आपको मिचली आ घेरेगी, कम्पन पैदा होगा, कमजोरी के अलावा सिर-दर्द और दूसरे लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं। पसीना छूटने के साथ हाथ-पैर ठंडे पड़ सकते हैं। थोड़ा-थोड़ा करके हरेक दो से तीन घंटे बाद खाइए, ताकि खून में शक्कर का स्तर मान्य स्तरों पर कायम रहे। यह बचाव का एक ऐसा इलाज है, जो डॉक्टर के नहीं, आपके हाथ में है। स्वास्थ्यकर नाश्ता अपने साथ हरदम रखिए, ताकि जब जरूरत हो खाया, जा सके।

मिथ: डायबिटीज कोई गंभीर बीमारी नहीं है | इसलिए ज्यादा सावधानी की आवश्यकता नहीं होती है |

सच : डायबिटीज यानी डायबिटीज को हलके में नहीं लेना चाहिए, यह एक गंभीर बीमारी होती है। इसकी सबसे बड़ी समस्या है कि लोग इसे गम्भीरता से नहीं लेते हैं और आम बीमारी समझते हैं। वास्तव में, डाइबिटीज़ होने पर शरीर के इम्यून-सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है। कई बार इस बीमारी से किडनी और अन्य अंगों के फेल और खराब होने का डर रहता है। शरीर के रोगों से लड़ने की नेचुरल शक्ति कम होने की वजह से  मधुमेह रोगियों के कोई भी छोटी-मोटी बीमारी बड़ी मुसीबत बन सकती है जैसे चोट लग जाना |

मिथ : गर्भावस्था में होने वाला मधुमेह स्थाई होता है |

सच : बिलकुल नहीं, गर्भवस्था में होने वाला डायबिटीज अक्सर Pregnancy के बाद बिलकुल ठीक हो जाता है |

मिथ: डाइबिटीज़ के सभी रोगियों को इंस्युलिन इंजेक्शन जरूरी होते हैं : ऐसा लगभग सभी लोग मानते हैं कि मधुमेह होने पर इंस्युलिन इंजेक्शन का उपयोग जरूरी होता है।

सच : यह सच है उन लोगों में, जिनको टाइप-1 डाइबिटीज होती है और दवाइयों से जिनका उपचार नहीं किया जा सकता, ऐसे लोगों को इंस्युलिन इंजेक्शन देना जरुरी होता है। पर टाइप-2 डाइबिटीज़ में गोलियां ही असरदार होती है |

मिथ: डायबिटीज में खास आहार ही लेना चाहिए |

सच: अच्छा आहार वही है जिसमें 40-60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 20 प्रतिशत प्रोटीन और 30 प्रतिशत या उससे कम वसा है। खाने में शाक-सब्जी व फल की अच्छी मात्रा जरूरी है। खाना नियमित अंतराल पर लें।

मिथ: टाइप 2 डायबिटीज टाइप 1 की तरह खतरनाक नहीं है।

सच: रोकथाम न हो तो डायबिटीज के दोनों रूप समस्याओं को जन्म देते हैं। दोनों मामलों में सही दवा के साथ स्वस्थ जीवनशैली जरूरी है। एक को खतरनाक बता कर दूसरे को कम नहीं आंका जा सकता।

मिथ: डायबिटीज एक उम्र के बाद ही होता है।

सच: नवजात और छोटे बच्चों में भी यह समस्या दिखती है। उम्र बढ़ने के साथ टाइप 2 डायबिटीज की शिकायत बढ़ती है।

मिथ : डायबिटीज़ में एक्सरसाइज़ नही करनी चाहिए |

सच : डायबिटीज के बारे में एक मिथक यह भी है कि डाइबिटीज़-मरीज को एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। ऐसा कतई नहीं है, आपको एक्सरसाइज करनी चाहिए और नियमित रूप से करनी चाहिए। इससे आपका वजन संतुलित रहेगा और ब्लड-शुगर स्तर कट्रोल में रहेगा।

मिथ : प्राय सभी मधुमेह रोगियों का डाइट चार्ट एक जैसा होता है |

सच: डायबिटीज-रोगी का डाइट चार्ट ऐसा होना चाहिए, जो रक्त-ग्लूकोज़ को बढ़ने से रोके एवं रोग पर अनुकूल प्रभाव डाले। भोजन पौष्टिक होना चाहिए, जिसमें कार्बोहाइड्रेट एवं रेशे प्रचुर मात्रा में हों। भोजन की मात्रा भी शारीरिक श्रम, उम्र, मधुमेह की अवस्था और कैलोरी की जरुरत के अनुसार नियंत्रित होनी चाहिए।

मिथ : मधुमेह रोग में दवाओं की क्या जरुरत है?

सच : डायबिटीज रोग शरीर में इन्सुलिन की कमी के कारण होता है, अतः यदि किसी प्रकार इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाई जा सके, तो इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। रोगी को सीधे इन्सुलिन दिया जा सकता है, किन्तु यह केवल सूई के रूप में ही उपलब्ध है। इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाने का दूसरा तरीका खाने की दवायें हैं।

मिथ: कई लोगों का ऐसा मानना होता है कि मोटापा बढ़ने के कारण डाइबिटीज हो जाती है।

सच: वैसे यह बात ठीक है कि मोटे लोगों में इन्सुलिन -प्रतिरोध की मात्रा ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि मोटापा ही डाइबिटीज़ की वजह है। कई बार दुबले-पतले लोगों को भी डायबिटीज का रोग हो जाता है। इसलिए डायबिटीज किसी को भी हो सकती है, वह चाहे मोटा हो या पतला।

मिथः डायबिटीज का मरीज भारी भरकम काम नही कर सकता जैसे जिम जाना वजन उठाना।

सच: ऐसे लोगों की मिसालें हैं जो डायबिटीज के बावजूद खेल-कूद में एक मकाम हासिल कर चुके हैं, जैसे ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट तैराक गैरी हॉल, क्रिकेट खिलाड़ी वसीम अकरम।

मिथ: डायबिटीज मरीज महिला को गर्भधारण नहीं करना चाहिए।

सच: मां बनने से परहेज करने की कोई जरूरत नहीं है। एक्सपर्ट की देखरेख में संतुलित जीवनशैली अपनाना जरूरी है। गर्भधारण से पहले, गर्भावस्था के दौरान और आगे भी सही शुगर लेवल मेनटेन रखें।

मिथ: डायबिटीज के मरीज की उम्र कम हो जाती है।

सच: शुगर लेवल सही रखा जाए और जीवन शैली सही हो तो डायबिटीज के मरीज की भी उम्र लंबी हो सकती है।

मिथ: दवा ले रहे हों तो कुछ भी खा सकते हैं।

सचः डायबिटीज के मरीज को खाने में रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और सैचुरेटेड फैट से परहेज करने की सलाह दी जाती है। नियमित एक्सरसाइज, समय पर आहार और सही दवा जरूरी है। 

सवाल : क्या डायबिटीज की दवा जिंदगी भर लेनी पडती है |जवाब : जी हाँ, डायबिटीज के हर रोगी को जीवनभर दवा लेने की आवश्यकता होती हैं। आधुनिक मेडिकल साइंस के अनुसार डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता हैं पर उसे जड़ से मिटा देना फिलहाल मुमकिन नहीं हैं | हालंकि आयुर्वेद इसके निवारण का दावा जरुर करता है |

मिथ: मधुमेह एक संक्रामक रोग है।

सचः डायबिटीज एक संक्रामक रोग नहीं है। मधुमेह एक अंतःस्रावी ग्रंथि से जुड़ी बीमारी है जो अग्न्याशय में बीटा कोशिकाओं द्वारा निर्मित अधिक इंसुलिन के कारण जन्म लेती है। डायबिटीज पीढ़ी दर पीढ़ी फैलने वाली एक बीमारी है।

मिथ: मधुमेह के रोगी कभी मीठा नहीं खा सकते।

सचः डायबिटीज के रोगियों को कार्बोहाइड्रेट को पचाने में मुश्किल होती है, जिसका प्रभाव उनके पूरे शरीर पर पड़ता है। डायबिटीज के रोगियों को मीठे का सेवन बहुत नियमित रुप से करना चाहिए तथा उन्हें सही समय पर दवा लेने की एवं कसरत करने की आवश्यकता है। इससे आपका शरीर स्वस्थ रहेगा और उसमें शुगर का स्तर भी बना रहेगा तथा आप इस बीमारी के बढने से भी बचे रहेंगे।

मिथ: डायबिटीज थोड़ा सा कंट्रोल करने पर आपको चेकअप की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सचः डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है। इसे काबू में करने के लिए आपको नियमित आहार व कसरत के साथ-साथ दवा लेने की भी जरूरत है। आप भले ही शुगर के स्तर को बनाए रखने में सफल हो जाएं लेकिन रेगुलर चेकअप करवाने पड़ते है |