शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है।
शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है. किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं. यहां तक कि चिता में भी बांस की लकड़ी का प्रयोग वर्जित है. अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग होता है लेकिन उसे भी नही जलाते.
नई दिल्ली: शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है. किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं. यहां तक कि चिता में भी बांस की लकड़ी का प्रयोग वर्जित है. अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग होता है लेकिन उसे भी नही जलाते.
शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है. क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है? बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते हैं. लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है. हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं, लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नहीं जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हम लोग रोज अगरबत्ती में जलाते हैं.
अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है. यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है. यह भी श्वास के साथ शरीर मे प्रवेश करता है. इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक व हेप्टोटोक्सिक को भी श्वास के साथ शरीर मे पहुंचाती है. इसकी लेश मात्र उपस्थिति केंसर अथवा मस्तिष्क आघात का कारण बन सकती है. हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है. शास्त्रों में पूजन विधान में कहीं भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धूप ही लिखा है।
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