जामुन बरसात में होने वाला फल है। इसमें थोड़ा खारापन व रुखापन रहता है, जिससे जीभ में ऐंठन हो जाती है। इसलिए यह कम मात्रा में खाया जाता है। बड़े जामुन स्वादिष्ट, भारी, रूचिकर व संकुचित करने वाले होते हैं। और छोटे जामुन ग्राही, रुखी और पित्त, कफ रक्तविकार और जलन का शमन करने वाले होते हैं।। इसकी गुठली मल बांधने वाली और मधुमेह रोगनाशक होती है। इसमें प्रोटिन, विटामिन ए, बी, सी, वसा खनिज द्रव्य व पौष्टिक तत्व होते हैं। इसमें पोषक तत्वों की प्रचुरता तो है ही, साथ ही यह सेहत से जुड़े कई फायदों का भी सबब है। जामुन में 251 kJ ऊर्जा, 14 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.6 फाइबर, 0.23 ग्राम फैट्स व 0.995 ग्राम कई प्रकार के विटामिन, कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम आदि मौजूद हैं।जामुन का सेवन डायबिटीज के रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद है।
सेहत से जुड़े जामुन के फायदे
इसमें ग्लाइकेमिक इंडेक्स कम होता है जिससे रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित होता है। साथ ही, डायबिटीज के मरीजों को बार-बार प्यास लगने वा अधिक बार युरीन पास होने की समस्या में भी मददगार है। इस फल में विभिन्न प्रकार के मिनिरल जैसे कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम और विटामिन सी अच्छी मात्रा में है। इसकी वजह से यह हड्डियों के लिए फायदेमंद तो है ही, साथ ही शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है।एनिमिक लोगों के लिए जामुन का सेवन संजीवनी बूटी की तरह ही है। अन्नामलाई विश्वविद्यालय के शोध की मानें तो इसके नियमित सेवन से रक्त में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ जाता है। जामुन में पोटैशियम की मात्रा अधिक है। 100 ग्राम जामुन के सेवन से शरीर को 55 मिलीग्राम पोटैशियम मिलता है। इससे दिल का दौरा, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक आदि का रिस्क कम होता है। जामुन का फल ही नहीं बल्कि इसकी पत्तियों के भी काफी फायदे हैं। आयुर्वेद में इसकी पत्तियों का पाचन ठीक रखने और मुंह से जुड़ी समस्याओं में काफी इस्तेमाल किया जाता है।
जामुन का सिरका
कब्ज और उदर रोग में जामुन का सिरका उपयोग करें। जामुन का सिरका गुणकारी और स्वादिष्ट होता है, इसे घर पर ही आसानी से बनाया जा सकता है और कई दिनों तक उपयोग में लाया जा सकता है।सिरका बनाने की विधि- काले पके हुए जामुन साफ धोकर पोंछ लें। इन्हें मिट्टी के बर्तन में नमक मिलाकर मुँह साफ कपड़े से बाँधकर धूप में रख दें। एक सप्ताह धूप में रखने के पश्चात इसको साफ कपड़े से छानकर रस को काँच की बोतलों में भरकर रख लें। यह सिरका तैयार है।मूली, प्याज, गाजर, शलजम, मिर्च आदि के टुकड़े भी इस सिरके में डालकर इसका उपयोग सलाद पर आसानी से किया जा सकता है। जामुन साफ धोकर उपयोग में लें।यथासंभव भोजन के बाद ही जामुन का उपयोग करें। जामुन खाने के एक घंटे बाद तक दूध न पिएँ। जामुन पत्तों की भस्म को मंजन के रूप में उपयोग करने से दाँत और मसूड़े मजबूत होते हैं।
जामुन की गुठली
जामुन का गूदा पानी में घोलकर या शरबत बनाकर पीने से उल्टी, दस्त, जी-मिचलाना, खूनी दस्त और खूनी बावासीर में लाभ देता है।जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह फांकने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।नए जूते पहनने पर पांव में छाला या घाव हो जाए तो इस पर जामुन की गुठली घिसकर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में घोट-पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है।जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है।जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है।पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें।गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।
जामुन के पत्ते
जामुन का फल ही नहीं इसके वृक्ष की जड से लेकर पत्ती तक उपयोगी है। इसका फल साल में कुछ दिन उपलब्ध रहता है। मधुमेह के रोगियों के लिए तो जामुन उपयोगी है इसकी गुठली का चूर्ण बनाकर खाने से भी मधुमेह में लाभ होता है।नेशनशल इंट्रीगेडिग मेडिकल एसोशियेशन के पूर्व पदाधिकारी डा.सुरेन्द्र रघुवंशी ने बताया कि जामुन के पत्ते खाने से भी मधुमेह रोगियों को लाभ मिलता है। प्राचीनकाल में अधिकतर जामुन के वृक्ष तालाब और बावडियों के पास इसलिए लगाये जाते थे की इसकी जडें काफी गहराई तक चली जाती हैं और वह तालाब के पानी को शुद्ध रखती हैं।श्री रघुवंशी ने कहा कि गांव में कुआं बनाते समय नींव में जामुन की लकडी डाली जाती थी। जामुन की लकडी जल को शुद्ध करने का काम करती है और जल को खराब नहीं होने देती। जामुन का वृक्ष आंधी में भी नहीं गिरता इसलिए बाग के चारों ओर इसके वृक्ष लगाये जाते हैं। आमतौर पर जामुन के पेड में बीमारी कम से कम लगती हैं। जामुन के वृक्ष की उम्र सैकडों साल बतायी गयी है।
जामुन की छाल
वैसे तो जामुन के पंचांग का प्रयोग औषध रूप में होता है किन्तु फल फूलादि तो जब ऋतु में इसके वृक्ष फलते हैं, तभी प्राप्त होते हैं किन्तु छाल (वल्कल), पत्ते और जड़ तो सदैव प्राप्त होते हैं । उनमें जामुन की छाल कहां कहां औषध रूप में कार्य में आती है, वह जानना अतिआवश्यक है।सामान्यतया जामुन की छाल का क्वाथ बच्चों के आम व रक्तातिसार में देते हैं। जामुन की छाल के क्वाथ से मसूड़ों के रक्तस्राव (पायोरिया) क्षत व जिह्वा विदारण में कुल्ले गरारे कराते हैं, इससे अच्छा लाभ होता है। सभी कण्ठ के रोगों में इसकी छाल के क्वाथ के गरारों से लाभ होता है।जामुन की छाल में स्तम्भन का विशेष गुण है । इसी कारण इसका क्वाथ निर्बल बच्चों और निस्तेज स्त्रियों के अतिसार को दूर करता है।छाल का क्वाथ जामुन की नरम-नरम अन्तर-छाल दो तोले जौकुट करके ३२ तोले जल में उबालें। जब वह आठ तोले रह जाये तो मलकर छान लें। उसको तीन भागों में बांट लें। इसे तीन बार दिन में पिलायें और प्रत्येक बार धनिया जीरा का चूर्ण दो-दो माशे क्वाथ के साथ देते रहें। इस प्रकार तीन-चार दिन करने से अतिसार बन्द हो जाता है।सगर्भा अतिसार यदि गर्भवती स्त्री को अतिसार हो तो जामुन और आम की ताजी छाल दो तोले ले लें और १६ गुणा जल में क्वाथ करें। चतुर्थांश रहने पर उसे मल छानकर तीन भाग कर लें और तीन-चार घण्टे के अन्तर से प्रतिबार दो-दो माशे धनिया और जीरे का चूर्ण साथ देने से सगर्भा स्त्री के अतिसार (दस्त) तीन चार दिन में सर्वथा बन्द हो जाते हैं।मसूड़ों की सूजन जामुन की छाल का क्वाथ वा फाण्ट बनायें और उससे दिन में दो बार कुल्ले करते रहने से मसूड़ों का शोथ और पीड़ा दूर हो जाती है और हिलते हुए दान्त भी दृढ़ होकर जम जाते हैं । क्वाथ की मात्रा दो तोले से चार तोले तक शक्ति के अनुसार देनी चाहिये।रक्तप्रदर श्वेतप्रदर नया हो, गरम-गरम और जल के समान स्राव होता हो तो जामुन की छाल का क्वाथ दिन में दो बार पांच-सात दिन देने से प्रदर रोग शान्त हो जाता है । क्वाथ में थोड़ा-थोड़ा मधु मिलाकर देने से अधिक लाभ होता है, किन्तु स्त्री-पुरुष दोनों को कई मास तक ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिये । यह इस रोग का सबसे बड़ा पथ्य है।अशुद्ध पारा वा रसकपूर के खाने से किसी का मुख आ जाए तो जामुन की छाल के क्वाथ से कुल्ले करने से ठीक हो जाता है । मुख के अन्दर की सूजन, लार बहना, जखम और पीड़ा !