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Wednesday, May 24, 2017

सिर्फ ठंडक ही नहीं, पोषण भी देता है बेल

गर्मियों में बेल का शरबत न सिर्फ आपको भीतर तक ठंडक और ताजगी से भर देता है बल्कि सेहत से जुड़ी कई समस्याओं को भी दूर करता है।


इसमें 31.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.3 ग्राम फैट्स, 1.8 ग्राम प्रोटीन, विटामिन ए,बी,सी, थाइमाइन, राइबोफ्लोबिन, 85 मिलीग्राम कैल्शियम, 600 मिलीग्राम पोटैनिशयम, 2.9 ग्राम फाबिर, 61.5 ग्राम फाइबर और 137 के कैलोरी ऊर्जा है।

हालांकि गर्भावस्था में इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है।

जानिए, गर्मियों में बेल के शरबत से मिलने वाले सेहत से जुड़े सात बड़े फायदों के बारे में। 

1-डायरिया, हैजा और चर्मरोगों में फायदेमंद

बेल में मौजूद तत्व-टैनिन डायरिया और हैजा के उपचार में मददगार है। बेल के पाउडर का इस्तेमाल आयुर्वेद में इन रोगों से बताव में मददहार है। वहीं कच्चे बेल का पल्प विटिलिगो के इलाज में भी मददगार हो सकता है।

2-गैस्ट्रिक अल्सर में फायदेमंद

बेल में कुछ फेनोलिक तत्व हैं जिनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स गैस्ट्रिक अल्सर ठीक करने में मददगार हैं। इतना ही नहीं, इसके सेवन से पेट में एसिड का संतुलन भी बना रहता है।

3-संक्रमण से दूर रखता है

कई शोधों में प्रमाणित हो चुका है कि बेल में कई तरह के एंटीमाइक्रोबियल गुण हैं जो शरीर को संक्रमण से मुक्त रखने में मददगार हैं।

4-कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण

बेल के पत्तों में मौजूद अर्क का का सेवन कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में मददगार हो सकता है। आयुर्वेद में इसकी मदद से कॉलेस्ट्रॉल कम किया जाता है।

5-श्वास संबंधी रोगों में फायदेमंद

आयुर्वेद में बेल से निकलने वाले तेल का इस्तेमाल दमा और श्वास से जुड़े रोगों के उपचार में किया जाता है।

6-दिल के लिए फायदेमंद

बेली के रस को घी के साथ मिलाकर थोड़ी मात्रा में नियमित रूप से लेने पर दिल से जुड़े रोगों से बचा जा सकता है। बेल के शरबत के सेवन से स्ट्रोक के खतरे से बचाव संभव हो सकता है।

7-डायबिटीज में फायदेमंद

बेल में लेक्साटिव का स्तर अधिक होता है जो शरीर में ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करते हैं। यह शरीर में इन्सुलिन बनाने में मददगार है जिससे डायबिटीज मे आराम मिलता है। स्त्रोत : अमर उजाला

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बेल : औषधीय गुणों का मेल 

बीके निर्मला अग्रवाल

आयुर्वेद में बेल को स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद फल माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार पका हुआ बेल मधुर, रुचिकर, पाचक तथा शीतल फल है। बेलफल बेहद पौष्टिक और कई बीमारियों की अचूक औषधि है। इसका गूदा खुशबूदार और पौष्टिक होता है। 

बेल के फल के 100 ग्राम गूदे का रासायनिक विश्लेषण इस प्रकार है- नमी 61.5 प्रतिशत, वसा 3 प्रश, प्रोटीन 1.8 प्रश, फाइबर 2.9 प्रश, कार्बोहाइड्रेट 31.8 प्रश, कैल्शियम 85 मिलीग्राम, फॉस्फोरस 50 मिलीग्राम, आयरन 2.6 मिलीग्राम, विटामिन 'सी' 2 मिलीग्राम। इनके अतिरिक्त बेल में 137 कैलोरी ऊर्जा तथा कुछ मात्रा में विटामिन 'बी' भी पाया जाता है।

आयुर्वेद में बेल को स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद फल माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार पका हुआ बेल मधुर, रुचिकर, पाचक तथा शीतल फल है। कच्चा बेलफल रुखा, पाचक, गर्म, वात-कफ, शूलनाशक व आंतों के रोगों में उपयोगी होता है। बेल का फल ऊपर से बेहद कठोर होता है। इसे नारियल की तरह फोड़ना पड़ता है। अंदर पीले रंग का गूदा होता है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में बीज होते हैं। गूदा लसादार तथा चिकना होता है, लेकिन खाने में हल्की मिठास लिए होता है। ताजे फल का सेवन किया जा सकता है और इसके गूदे को बीज हटाकर, सुखाकर, उसका चूर्ण बनाकर भी सेवन किया जा सकता है। 

उदर विकारों में बेल का फल रामबाण दवा है। वैसे भी अधिकांश रोगों की जड़ उदर विकार ही है। बेल के फल के नियमित सेवन से कब्ज जड़ से समाप्त हो जाती है। कब्ज के रोगियों को इसके शर्बत का नियमित सेवन करना चाहिए। बेल का पका हुआ फल उदर की स्वच्छता के अलावा आँतों को साफ कर उन्हें ताकत देता है।

मधुमेह रोगियों के लिए बेलफल बहुत लाभदायक है। बेल की पत्तियों को पीसकर उसके रस का दिन में दो बार सेवन करने से डायबिटीज की बीमारी में काफी राहत मिलती है।

रक्त अल्पता में पके हुए सूखे बेल की गिरी का चूर्ण बनाकर गर्म दूध में मिश्री के साथ एक चम्मच पावडर प्रतिदिन देने से शरीर में नए रक्त का निर्माण होकर स्वास्थ्य लाभ होता है।

गर्मियों में प्रायः अतिसार की वजह से पतले दस्त होने लगते हैं, ऐसी स्थिति में कच्चे बेल को आग में भून कर उसका गूदा, रोगी को खिलाने से फौरन लाभ मिलता है। 

गर्मियों में लू लगने पर बेल के ताजे पत्तों को पीसकर मेहंदी की तरह पैर के तलुओं में भली प्रकार मलें। इसके अलावा सिर, हाथ, छाती पर भी इसकी मालिश करें। मिश्री डालकर बेल का शर्बत भी पिलाएं तुरंत राहत मिलती है। स्त्रोत : वेब दुनिया डॉट कॉम


पाचन-तंत्र की तकलीफों से बचाता है बेल

बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं।

इसके वृक्ष लगभग पूरे भारत में विशेषतः हिमालय के सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। मध्य तथा दक्षिण भारतीय जंगलों में भी बेल के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। बेल का वृक्ष कंटीला होता है, जिसकी ऊंचाई 20 से 30 फुट तक होती है। इसके पत्ते संयुक्त−त्रिपत्रक तथा गंधयुक्त होते हैं। बाजार में प्रायः दो प्रकार के बेल उपलब्ध होते हैं छोटे जंगली तथा बड़े उगाए हुए। दोनों के गुण समान होते हैं। जंगली फल कुछ छोटा होता है, जबकि उगाए हुए फल अपेक्षाकृत कुछ बड़े होते हैं।

ग्राही पदार्थ मूलतः बेल के गूदे में पाए जाते हैं। ये पदार्थ हैं−क्यूसिलेज, पेक्टिक, शर्करा, टैनिन्स आदि। मार्मेलोसिन नामक रसायन जो स्वल्प मात्रा में ही विरेचक होता है इसका मूल रेचक संघटक है। इसके अलावा इसमें उड़नशील तेल भी पाया जाता है। इसके पत्ते, जड़ तथा तने की छाल भी औषधीय गुणों से युक्त होते हैं।

औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है, वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा, तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है। चूर्ण को शरबत आदि की अपेक्षा प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि चूर्ण अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी होता है। दशमूलारिष्ट आदि में इसकी जड़ की छाल का प्रयोग किया जाता है।

बेल का सर्वाधिक प्रयोग पाचन संस्थान संबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। पुरानी पेचिश तथा दस्तों में यह फल बहुत लाभकारी है। इसके कच्चे फल का प्रयोग अग्निमंदता, जलन, गैस, बदहजमी आदि के उपचार में किया जाता है।

बेल में म्यूसिलेज इतना अधिक होता है कि डायरिया के बाद यह तुरन्त घावों को भर देता है। जिससे मल संचित नहीं हो पाता और आतें कमजोर नहीं होतीं। बेल चाहे कच्चा हो या पक्का आंतों के लिए लाभदायक होता है। इससे आंतों की कार्यक्षमता बढ़ती है तथा भूख सुधरती है। पुरानी पेचिश के साथ−साथ यह अल्सरेटिव, कोलाइटिस जैसे जीर्ण असाध्य रोगों के इलाज में भी उपयोगी होता है। पेक्टिव बेल के गूदे का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह अपने से बीस गुना अधिक जल में एक कोलाइटल घोल के रूप में मिल जाता है जो चिपाचिपा तथा अम्ल प्रधान होता है। यह घोल आतों पर अधिशोषक (एड्सारबेंट) तथा रक्षक के रूप में कार्य करता है। बड़ी आंत में पाए जाने वाले जीवाणुओं को मारने की क्षमता भी इसमें होती हैं।

ताजे कच्चे फल का स्वरस आधा से एक चम्मच दिन में एक बार, सुखाए कच्चे बेल के कतलों के जल का निष्कर्ष एक से दो चम्मच दो बार, बेल का चूर्ण दो से चार ग्राम। ये सभी संग्रहणी व रक्त स्राव सहित अतिसार में बहुत लाभदायक होते हैं।

पुरानी पेचिश तथा कब्जियत में पके फल का शर्बत या 10 ग्राम बेल, 100 ग्राम गाय के दूध में उबाल कर ठंडा करके देते हैं। संग्रहणी जब खून के साथ बहुत वेगपूर्ण हो तो कच्चे फल के लगभग पांच ग्राम चूर्ण को एक चम्मच शहद के साथ दो−चार बार देते हैं। हैजा होने पर बेल पर शरबत या चूर्ण गर्म पानी के साथ देते हैं। आषाढ़ या श्रावण मास में निकाले गये पत्तों के रस को काली मिर्च के साथ देने से रोगी को पुराने कब्ज में आराम पहुंचता है। इसके अलावा पके हुए फल का गूदा मिसरी के साथ देने से कब्ज में लाभ मिलता है।

दांत निकलते समय जब बच्चों को दस्त लगते हैं, तब बेल का 10 ग्राम चूर्ण आधा पाव पानी में पकाकर शेष बीस ग्राम को पांच ग्राम शहद में मिलाकर दो−तीन बार देते हैं। इससे उन्हें दांत निकलने की तकलीफ से आराम मिलता है।

कच्चे बेल का गूदा गुड़ के साथ पकाकर या शहद मिलाकर देने से रक्तातिसार तथा खूनी बवासीर में लाभ पहुंचता है। इन स्थितियों में जहां तक हो सके, पके फल का प्रयोग नहीं करें, क्योंकि ग्राही क्षमता अधिक होने के कारण हानि भी हो सकती है।

बेल की कोमल पत्तियों को सुबह−सुबह चबाकर खाने और फिर ठंडा पानी पीने से शूल तथा मानसिक रोगों में शांति मिलती है। आंखों के रोगों में इसके पत्तों का रस, उन्माद अनिद्रा में जड़ का चूर्ण तथा हृदय की अनियमितता में फल का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

प्रायः सर्वसुलभ होने के कारण बेल के फल में मिलावट कम होती है। परन्तु कभी−कभी इसमें ग्रार्सीनिया मेंगोस्टना तथा कैच के फल मिला दिए जाते हैं, परन्तु फल को काटकर इसे पहचाना जा सकता है। अनुप्रस्थ काटने पर बेल दस−पन्द्रह भागों में बंटा सा दिखाई देता है, जिसके प्रत्येक भाग में 6 से 10 बीज होते हैं!