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Thursday, March 16, 2017

छाछ के फायदे, छाछ व मट्ठा के आयुर्वेदिक गुण, छाछ व मट्ठा के औषधीय गुण, छाछ व मट्ठा के गुण, छाछ व मट्ठा के घरेलू नुस्खे, छाछ व मट्ठा के फायदे, छाछ व मट्ठा के लाभ, छाछ व मट्ठा क्यों पीना चाहिये?, मट्ठा के उपयोग

छाछ (मट्ठे) के आयुर्वेदिक और औषधीय गुणछाछ अपने गरम गुणों, कसैली, मधुर और पचने में हलकी होने के कारण कफ़नाशक और वातनाशक होती है, पचने के बाद इसका विपाक मधुर होने से पित्तक्रोप नही करती

जो भोरहि माठा पियत है, जीरा नमक मिलाय !
बल बुद्धि तीसे बढत है, सबै रोग जरि जाय !!

मट्ठा को पीने से सिर के बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। भोजन के अन्त में छाछ, रात के मध्य दूध और रात के अन्त में पानी पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।छाछ या मट्ठा शरीर में उपस्थित विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर नया जीवन प्रदान करता है। यह शरीर में प्रतिरोधात्मक (रोगों से लड़ने की शक्ति) शक्ति पैदा करता है। मट्ठा में घी नहीं होना चाहिए। गाय के दूध से बनी मट्ठा सर्वोत्तम होती है। मट्ठा का सेवन करने से जो रोग नष्ट होते हैं। वे जीवन में फिर दुबारा कभी नहीं होते हैं। छाछ खट्टी नहीं होनी चाहिए। पेट के रोगों में छाछ को दिन में कई बार पीना चाहिए। गर्मी में मट्ठा पीने से शरीर तरोताजा रहता है। रोजाना नाश्ते और भोजन के बाद मट्ठा पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। मट्ठा को पीने से सिर के बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। भोजन के अन्त में मट्ठा, रात के मध्य दूध और रात के अन्त में पानी पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

दही को मथकर छाछ को बनाया जाता है। छाछ गरीबों की सस्ती औषधि है। मट्ठा गरीबों के अनेक शारीरिक दोषों को दूरकर उनकी तन्दुरुस्ती बढ़ाने में तथा आहार के रूप में महत्वपूर्ण है।

कई लोगों को छाछ नहीं पचती है। उनके लिए मट्ठा बहुत ही गुणकारी होती है। ताजा मट्ठा बहुत ही लाभकारी होती है। छाछ की कढ़ी स्वादिष्ट होती है और वह पाचक भी होती है। उत्तर भारत में तथा पंजाब में छाछ में चीनी मिलाकर उसकी लस्सी बनाकर उपयोग करते हैं। लस्सी में बर्फ का ठण्डा पानी डाला जाए तो यह बहुत ही लाभकारी हो जाती है। लस्सी जलन, प्यास और गर्मी को दूर करती है। लस्सी गर्मी के मौसम में शर्बत का काम करती है। छाछ में खटाई होने से यह भूख को बढ़ाती है। भोजन में रुचि पैदा करती है और भोजन का पाचन करती है जिन्हें भूख न लगती हो या भोजन न पचता हो, खट्टी-खट्टी डकारें आती हो और पेट फूलने से छाती में घबराहट होती हो तो उनके लिए छाछ का सेवन अमृत के समान लाभकारी होता है। इसके लिए सभी आहारों का सेवन बंद करके 6 किलो दूध की छाछ बनाकर सेवन करने से शारीरिक शक्ति बनी रहती है। केवल छाछ बनाकर सेवन करने से मलशुद्धि होती है तथा शरीर फूल सा हल्का हो जाता है। शरीर में स्फूर्ति आती है उत्साह उत्पन्न होता है तथा जठराग्नि और आंतों को ताजगी तथा आराम मिलता है। मट्ठा जठराग्नि को प्रदीप्त कर पाचन तन्त्र को सुचारू बनाती है। छाछ गैस को दूर करती है। अत: मल विकारों और पेट की गैस में छाछ का सेवन लाभकारी होता है।

खाना न पचने की शिकायत– जिन लोगों को खाना ठीक से न पचने की शिकायत होती है। उन्हें रोजाना मट्ठा में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर धीरे-धीरे पीना चाहिए। इससे पाचक अग्रि तेज हो जाएगी।

दस्त– गर्मी के कारण अगर दस्त हो रही हो तो बरगद की जटा को पीसकर और छानकर छाछ में मिलाकर पीएं।

एसीडिटी– मट्ठा में मिश्री, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर रोजाना पीने से एसीडिटी जड़ से साफ हो जाती है।

कब्ज- अगर कब्ज की शिकायत बनी रहती हो तो अजवाइन मिलाकर मट्ठा पीएं। पेट की सफाई के लिए गर्मियों में पुदीना मिलाकर लस्सी बनाकर पीएं।

मट्ठा पित्तनाशक होती है यह रोगी को ठण्डक और पोषण देती है। शरीर में प्रवेश करने के बाद छाछ महास्रोत (जठर, ग्रहणी और आंतों) पर जो प्रभाव करती है। उसमें पाचन तन्त्र में सुधार होता है तथा शरीर के आन्तरिक जहर नष्ट हो जाते हैं। छाछ दिल को शक्तिशाली बनाती है और खून को शुद्ध करती है। विशेषत: संग्रहणी (दस्त) रोग की क्रिया अधिक व्यवस्थित होती है। उससे महास्रोत के विभिन्न रोग जैसे- संग्रहणी रोग (दस्त), अर्श (बवासीर), अजीर्ण (भूख न लगना), उदर रोग (पेट के रोग), अरुचि (भोजन करने का मन न करना), शूल अतिसार (दस्तों का दर्द), पाखाना या पेशाब बंद होना, तृषा (प्यास), वायु गुल्म (पेट में गैस का गोला), उल्टी, तथा यकृत-प्लीहा (जिगर तथा तिल्ली) के रोगों में छाछ पीना लाभकारी है। छाछ शीतलता प्रदान करने वाली, कषैला, मधुर रस उत्तेजित पित्त दोष को शान्तकर शरीर को मूल प्राकृतिक स्थिति में ले आता है। इसलिए पीलिया और पेचिश में भी छाछ का सेवन उपयोगी होता है। छाछ मोटापे को कम करती है। छाछ का सेवन करने वाले वृद्धावस्था (बुढ़ापे) से दूर रहते हैं। छाछ शरीर की चमक को बढ़ाती है। इससे चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं। यदि पहले से होती हैं तो वे नष्ट हो जाती हैं। छाछ आंतों के रोगों में उपयोगी होती है। यह आंतों को संकुचित कर उन्हें क्रियाशील बनाती है और पुराने जमे हुए मल को बाहर निकालती है। छाछ के मलशोधन गुण के कारण मलोत्पत्ति तथा मलनिष्कासन सरल बनता है। इसलिए पुराने मल के इकट्ठा होने से उत्पन्न टायफाइड (मियादी बुखार) की बीमारी में छाछ सेवन के लिए दी जाती है। मट्ठा का सबसे अधिक महत्वपूर्ण गुण है आमजदोष को दूर करना। हम लोग जिस भोजन का सेवन करते हैं। उस भोजन में से पोषण के लिए उपयोगी रस अलग होकर बिना पचे पड़ा रहता है। उसे आम कहते हैं। आम अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। इन आमज दोषों को दूर करने में मट्ठा बहुत उपयोगी होता है। आमज की चिकनाहट को तोड़ने के लिए खटाई की आवश्यकता पड़ती है। यह खटाईपन छाछ में उपलब्ध होती है। मट्ठा इस चिकनाहट को धीरे-धीरे आंतों से अलगकर उसे पकाकर शरीर से बाहर निकाल देती है। इसीलिए पेचिश में इन्द्रजौ के चूर्ण के साथ तथा बवासीर में हरड़ के साथ छाछ का सेवन करने से लाभ मिलता है।

तक्रकल्प :

गाय का दूध जमाकर हल्की खट्टी दही में 3 गुना पानी मिलाकर मथकर मक्खन निकालकर उसकी छाछ तैयार कर लें। इसे सुबह-शाम भोजन के बाद 1 गिलास से लेकर अनुकूलता के अनुसार अधिक से अधिक मात्रा में निरन्तर 5-7 दिनों तक सेवन करें। प्यास लगने पर पानी के स्थान पर छाछ पियें। भोजन में चावल, खिचड़ी, उबली हुई तरकारी, मूंग की दाल तथा रोटी का सेवन करें और मट्ठा की मात्रा बढ़ाते जाएं तथा अनाज की मात्रा घटाते जाएं।

पाचन शक्ति की दुबर्लता, (भोजन पचाने की शक्ति कमजोर होना) जठराग्नि की मन्दता, संग्रहणी (पेचिश) आदि रोगों में इस तक्र कल्प का प्रयोग करने से नवजीवन प्राप्त होता है। अग्नि प्रबल होने पर रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ती है जिस रोग को लक्ष्यकर तक्रकल्प करना हो तो वह यदि वात जन्य हो तो छाछ में सेंधानमक और सोंठ डाले। पित्तजन्य हो तो उसमें थोड़ी सी इलायची व शक्कर डालें। कफजन्य हो तो उसमें त्रिकुटा का चूर्ण मिलाएं।

वैज्ञानिक मतानुसार : मट्ठा में विटामिन `सी` होता है। अत: इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा त्वचा की आरोग्यता और सुन्दरता बरकरार रहती है। मट्ठा में लैक्टिड एसिड होने से वह पाचन तन्त्र के रोगों में लाभदायक सिद्ध होती है।

विशेष : मट्ठा के अन्दर रहे हुए मक्खन या उसमें से निकाले हुए मक्खन की मात्रा एवं छाछ में मिलाए हुए पानी की मात्रा के आधार पर छाछ 4 प्रकार के होती है।

1. घोल

2. मथित

3. तक्र

5. छच्छिका यानि छाछ

घोल : जब दही में थोड़ा-सा पानी डालकर उसे बिलोया (मथा) जाय तब यह घोल कहलाता है। यह ग्राही, उत्तेजक, पाचक और शीतल है तथा वायु नाशक (गैस को खत्म करने वाला) है परन्तु बलगम को बढ़ाता है। हींग, जीरा और सेंधानमक मिला हुआ घोल गैस का पूरी तरह नाश करने वाला तथा अतिसार (दस्त) और बवासीर को मिटाने वाला रुचिवर्द्धक, पुष्टिदायक, बलवर्द्धक और नाभि के नीचे के भाग के शूल मिटाने वाला है। गुड़ डाला हुआ घोल, मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और चित्रक मिलाया हुआ घोल पाण्डु (पीलिया) रोग को नष्ट करता है। शर्करायुक्त घोल के गुण आम के रस के समान होते हैं।

मथित : दही के ऊपर वाली मलाई निकालकर बिलोया हुआ दही मथित (मट्ठा) कहलाता है। मट्ठा वायु तथा पित्तनाशक, आनन्द एवं उल्लास प्रदान करने वाला तथा कफ और गर्मी को दूर करने वाला होता है। यह गर्मी के कारण होने वाले दस्तों, अर्श (बवासीर) और संग्रहणी में लाभकारी होता है।

तक्र : दही में उसके चौथे हिस्से का पानी निकालकर मथा जाए तो उसे तक्र कहते हैं। तक्र खट्टा, कषैला, पाक तथा रस में मधुर, हल्का, गर्म, अग्नि प्रदीपक, मैथुनशक्तिवर्द्धक, तृप्तिदायक और वायुनाशक है। यह हल्का एवं कारण दस्त सम्बंधी रोगों के लिए लाभकारी होता है तथा यह पाक में मधुर होने के कारण पित्त प्रकोप नहीं करता है तथा यह कषैला, गर्म और रूक्ष होने के कारण कफ को तोड़ता भी है।

उद्क्षित : दही में आधा हिस्सा पानी मिलाकर जब मथा जाए तब उसे उद्क्षित कहते हैं। यह कफकारक, बलवर्द्धक और आमनाशक (दस्त में आंव आना) होता है।

छाछ : दही में जब ज्यादा पानी मिलाकर बिलोया (मथा) जाए और उसके ऊपर से मक्खन निकालकर फिर पानी मिलाया जाए, इस प्रकार खूब पतले बनाये गये दही को छाछ कहते हैं। जिसमें से सारा मक्खन निकाल लिया गया हो, वह छाछ हल्की तथा जिसमें से थोड़ा सा मक्खन निकाल गया हो वह कुछ भारी और कफकारक होती है और जिसमें से जरा सा भी मक्खन न निकाला गया हो वह छाछ भारी पुष्टदायक और कफकारक है। घोल की अपेक्षा मथित मट्ठा और मट्ठे की अपेक्षा छाछ पचने में हल्की, पित्त, थकान तथा तृषानाशक (प्यास दूर करना), वायुनाशक और कफकारक है। नमक के साथ छाछ को पीने से पाचनशक्ति बढ़ती है। छाछ जहर, उल्टी, लार के स्राव, विषमज्वर, पेचिश, मोटापे, बवासीर, मूत्रकृच्छ, भगन्दर, मधुमेह, वायु, गुल्म, अतिसार, दर्द, तिल्ली, प्लीहोदर, अरुचि, सफेद दाग, जठर के रोगों, कोढ़, सूजन, तृषा (अधिक प्यास) में लाभदायक और पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाली होती है।

वायु रोग : खट्टी (सोंठ तथा सेंधानमक से युक्त) छाछ पित्त पर, शक्कर मिला हुआ मट्ठा वात वृद्धि पर और सोंठ, कालीमिर्च एवं पीपरयुक्त मट्ठा कफवृद्धि पर उत्तम है। सर्दी के मौसम में, अग्निमान्द्य में (भूख का कम लगना), वायुविकारों में (गैस के रोग में), अरुचि में, रस वाहनियों के अवरोध में मट्ठा अमृत के समान लाभकारी होती है। `चरक` अरुचि मन्दाग्नि और अतिसार में छाछ को अमृत के समान मानते हैं। `सुश्रुत` मट्ठा को मधुर, खट्टी, कषैली, गर्म, लघु, रूक्ष, पाचनशक्तिवर्द्धक, जहर, सूजन, अतिसार, ग्रहणी, पाण्डुरोग (पीलिया), बवासीर, प्लीहा रोग, गैस, अरुचि, विषमज्वर, प्यास, लार के स्राव, दर्द, मोटापा, कफ और वायुनाशक मानते हैं।

हानिकारक प्रभाव : क्षत विक्षत दुर्बलों तथा बेहोशी, भ्रम और रक्तपित्त के रोगियों को गर्मियों मेंमट्ठा का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि चोट लगने से घाव पड़ गया हो, जख्म हो गया हो, सूजन आ गई हो, शरीर सूखकर कमजोर हो गया हो तथा जिन्हें बेहोशी, भ्रम या तृषा रोग हो यदि वे मट्ठा का सेवन करें तो कई अन्य रोग होने की संभावना रहती है।

सावधानियां

* मट्ठे को रखने के लिए पीतल, तांबे व कांसे के बर्तन का प्रयोग न करें। इन धातु से बनने बर्तनों में रखने से मट्ठा जहर समान हो जाएगा। सदैव कांच या मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करें।
* दही को जमाने में मिट्टी से बने बर्तन का प्रयोग करना उत्तम रहता है।
* वर्षा काल में दही या मट्ठे का प्रयोग न करें।
* भोजन के बाद दही सेवन बिल्कुल न करें, बल्कि मट्ठे का सेवन अवश्य करें।
* तेज बुखार या बदन दर्द, जुकाम अथवा जोड़ों के दर्द में मट्ठा नहीं लेना चाहिए।
* क्षय रोगी को मट्ठा नहीं लेना चाहिए।
* यदि कोई व्यक्ति बाहर से ज्यादा थक कर आया हो, तो तुरंत दही या मट्ठा न लें।
* दही या मट्ठा कभी बासी नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसकी खटास आंतो को नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण से खांसी आने लगती है।

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