Sunday, May 7, 2017

सुबह खाली पेट चाय पीने के हैं ये 9 नुकसान

आज हम आपको मोर्निंग हेल्थ टिप्स में बतायेंगे कि सुबह खाली पेट चाय पीने के हैं ये 9 नुकसान

चाय भारतीय समाज का एक अभिन्‍न अंग बन चुकी है, जिसे हम चाह कर भी नज़र अंदाज नहीं कर सकते। जिस दिन चाय ना पियों तो ऐसा लगता है मानों दिन की शुरुआत ही नहीं हुई है। भारत में लगभग 90 प्रतिशत लोग सुबह नाश्‍ते से पहले चाय जरुर पीते हैं। क्‍या आपको लगता है कि यह एक अच्‍छी आदत है? रिसर्च के अनुसार सुबह खाली पेट चाय पीना काफी नुकसानदायक हो सकता है, खासतौर पर गर्मियों में।

चाय में कैफीन और टैनिन होते हैं

जो कि शरीर में ऊर्जा भर देते हैं। काली चाय में अगर दूध मिला कर पिया जाए तो इससे एंटीऑक्‍सीडेंट खतम हो जाता है और फिर वह उतनी असरदार नहीं होती।

क्‍या आप का चाय पिये बिना काम नहीं चलता

अगर ऐसा है तो चाय के बारे में कुछ जरुरी जानकारी है जो हम आपके साथ आज शेयर कर रहे हैं। अगर आप खाली पेट या फिर अधिक चाय पीते हैं तो आपको इसके नुकसान के बारे में जरुर पता होना चाहिये।

क्‍या चाय पी कर मतली आती है

चाय में ढेर सारा एसिड होता है जिसे खाली पेट सुबह पीने से पेट के रस पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिये कई लोगों को सुबह चाय पीनी अच्‍छी नहीं लगती।

क्‍या ब्‍लैक टी नुकसानदेह है

अगर चाय में दूध ना मिलाया जाए तो वह काफी फायदा पहुंचाती है, जैसे मोटापा कम करना। पर अगर अधिक ब्‍लैक टी का सेवन किया जाए तो वह सीधे पेट पर असर करती है।

दूध की चाय पीने के नुकसान

अध्‍यन के अनुसार पाया गया है कि जो लोग खाली पेट बहुत अधिक दूध वाली चाय पीते हैं, उन्‍हें थकान का एहसास होता है। चाय में दूध मिलाने से एंटीऑक्‍सीडेंट का असर खतम हो जाता है।

कड़ी चाय पीने के प्रभाव

खाली पेट कड़ी चाय पीन से पेट को सीधा नुकसान पहुंच सकता है। कड़ी चाय से पेट में अल्‍सर और एसिडिटी हो सकती है।

दो अलग-अलग चाय मिला कर पीने का नुकसान

अध्‍यन के अनुसार पता चला है कि अगर आप दो अलग अलग ब्रैंड की चाय एक साथ मिला कर पियेंगे तो उसका असर काफी तेज़ होगा और आपको ऐसा महसूस होगा कि आप नशा चढ़ चुका है।

चाय के साथ बिस्‍कुट खाने से क्‍या होता है

चाय के साथ बिस्‍कुट या अन्‍य चीज़ें खाने से पेट दृारा चाय अच्‍छी तरह से पचा ली जाती है। दूसरी ओर चाय के साथ नमकीन या मीठा खाने से शरीर को सोडियम की प्राप्‍ती होती है, जिससे अल्‍सर नहीं होता।

चाय पीने की गंदी आदत

क्‍या है चाय में टैनिन होता है, खासतौर पर गहरे रंग वाली चाय में। ऐसे में वह आपके खाने में मौजूद आयरन के साथ रिएक्‍ट कर सकती है इसलिये दोपहर में खाना खाने के बाद चाय ना पियें।

प्रोस्‍टेट कैंसर का खतरा

बढ़ता है जो पुरुष दिन में 5- कप चाय पीते हैं, उन्‍हे प्रोस्‍टेट कैंसर का खतरा बढ़ता है, ऐसी बात एक अध्‍यन में आई है। इससे पहले कई शोधो में दावा किया गया है कि चाय पीने से कैंसर का खतरा टलता है।

ज्‍यादा गर्म चाय पीने का नुकसान

ब्रिटिश मैडिकल जर्नल में छपे नए अध्‍यन के मुताबिक ज्‍यादा गर्म चाय पीने से खाने की नली या गले का कैंसर होने का खतरा आठ गुना तक बढ़ जाता है। तेज गर्म चाय गले की टिशू को नुकसान पहुंचाती है।

खाना बनाने के लिए कौन-सा तेल है बेहतर?

खाना बनाने के लिए सरसों या मूंगफली का तेल, कौन-सा है बेहतर?

आप खाना बनाने के लिए कौन-से तेल का इस्तेमाल करते​ है?

मुझे ये जानना है कि खाना बनाने के लिए सरसों का तेल या मूंगफली के तेल, कौन-से तेल का इस्तेमाल करना सेहत के नजरिये से अच्छा होता है? क्या एक ही तेल में हमेशा खाना पकाना अच्छा होता है?

आहार विशेषज्ञ नेहा चांदना के अनुसार दोनों तेल ही सेहत के नजरिये से हेल्दी है लेकिन सरसों के तेल का इसका इस्तेमाल ज्यादा करना ठीक नहीं है। क्योंकि इसमें यूरोसिस एसिड (erucic acid) होता है जो शरीर में टॉक्सिक की मात्रा को बढ़ाता है। सच बात तो ये हैं आप खाना बनाने के लिए हमेशा हर एक-दो महीने के बाद खाना बनाने का तेल बदलते रहिये। इससे आप तेल को हेल्दी तरीके से बिना किसी साइड इफेक्ट के इस्तेमाल कर सकते हैं।

वैसे तो भारतीय ज्यादातर पकवान तेज आंच में ही पकाया जाता है जहां तेल का स्मिोकिंग प्वाइंट हाई रहता है। हाई स्मोकिंग प्वाइंट हाई होने के कारण ये टूटता नहीं है। सनफ्लावर, सोयाबीन, राईस ब्रान, मूंगफली, तिल, सरसों और कैनॉला ऑयल जैसे तेलों में हाई स्मोकिंग प्वाइंट होता है। सिर्फ ऑलिव ऑयल का स्मोकिंग प्वाइंट लो होने के कारण ये सलाद बनाने या सौते (sautéing) करने के लिए अच्छा होता है।
दो तेलों को मिलाने का तरीका

राईस ब्रान और ऑलिव ऑयल तथा राईस ब्रान और सनफ्लावर को मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। या तो आप दो तेलों को मिलाकर इसका इस्तेमाल करें या दो महीने में एक बार तेल को बदलें। इस तरह आप हेल्दी तरीके से खाना पका पायेंगे।

तलने का तेल कौनसा लें – Suitable Oils​ For Deep Frying

खाना बनाने  के तेल – Cooking Oil

 
बाजार में कई प्रकार के खाने के तेल मिलते है। मूंगफली , सोयाबीन , सूरजमुखी , जैतून , सरसों , तिल , राइस ब्रान आदि। उसमे भी फिल्टर्ड

और  रिफाइंड टाइप के तेल होते है।  बड़ी दुविधा रहती है कौनसा तेल खाना बनाने में यूज़ करना चाहिए।  सब्जी कौनसे तेल में बनायें , तलने

का तेल कौनसा लें । पराठे किस तेल से बनायें।

 

 

तेल और घी का उपयोग बहुत जरुरी होता है। ये सिर्फ स्वाद नहीं बढ़ाते  , इनसे  एनर्जी मिलती है। कई प्रकार के विटामिन फैट में घुलकर

ही शरीर मे पहुँचते है।  फैट मे घुलनशील  विटामिन  A , विटामिन  D , विटामिन  E , विटामिन  K  आदि के अवशोषण के लिए तेल या

घी आवश्यक होता है। फैट की मदद से ही प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की ऊर्जा शरीर को मिलती है। ये पाचन में भी मदद  करते है। शरीर

के तापमान को बनाये रखने मे भी इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।अतः तेल और घी बंद नहीं किये जा सकते।

 

ये भी पता होता है की अधिक घी तेल नुकसान करते है। । इसलिए परिवार की सेहत की चिंता बनी रहती है। कुछ परिवारो में वर्षो तक एक

ही प्रकार का तेल हर काम में प्रयोग किया जाता है। चाहे तलने का तेल हो या सब्जी बनाने का या तवे पर सिकाई का तेल । क्या यह उचित

होता है ?  क्या तेल बदलना चाहिए  ?  आइये देखें।

 

रिफाइंड तेल और फिल्टर्ड तेल का अंतर

Refined filtered oil me kya fark he

 

रिफाइण्ड तेल प्रोसेस किया हुआ तेल होता है। इसमें तेल में कई प्रकार के ब्लीच और केमिकल डाले जाते है। इससे  तेल के वास्तविक गुण

खत्म हो जाते है। तेल का रंग , स्वाद और खुशबू चले जाते है। इसके साथ ही तेल में लाभदायक तत्व भी कम हो जाते है। विशेष कर बीटा

केरोटीन और विटामिन E  की कमी हो जाती है। लेकिन इससे बना खाना ओरिजिनल टेस्ट देता है।

 

फिल्टर्ड तेल में पोषक तत्व अधिक होते है। फिल्टर्ड तेल के स्ट्रॉन्ग स्वाद और खुशबु के कारण खाने का ओरिजिनल टेस्ट दब जाता है।

फिल्टर्ड तेल की शेल्फ लाइफ रिफाइण्ड की अपेक्षा कम होती है। फ़िल्टर तेल से किसी किसी को एलर्जी हो सकती है।

 

लेकिन फिर भी पोषक तत्व अधिक होने के कारण फिल्टर्ड तेल लेना ज्यादा अच्छा होता है।

 

तलने का तेल कौनसा अच्छा – Talne Ka Tel Konsa Le

 

तेल और घी में फैटी एसिड  होते है। इनमे से कुछ फायदेमंद होते है और कुछ नुकसान देह होते है। ये फैटी एसिड चार प्रकार के होते है।

 

सैचुरेटेड फैटी एसिड ( SFA )

मोनो अनसैचुरेटेड फैट ( MUFA )

पॉली अनसैचुरेटेड फैट ( PUFA )

ट्रांस फैटी एसिड ( TFA )

 

हमारे लिए वह तेल अच्छा होता है जिसमे  SFA कम हो तथा  MUFA और  PUFA अधिक हो ।  सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट नुकसान अधिक

करते है। इनके कारण दिल की बीमारी होने की सम्भावना बढ़ जाती है।  इनसे रक्त में  LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है जो नुकसान करता है । ये

धमनियों  को अवरुद्ध कर सकते है। अतः ये  तेल में कम होने चाहिए।

 

अनसैचुरेटेड फैट शरीर के लिए फायदेमंद होते है। ये  HDL कोलेस्ट्रॉल कोबढ़ाने में सहायक होते है जो फायदेमंद होता है । ये  LDL  को

कम भी करते है। अतः इनकी  तेल में अधिक मात्रा होनी चाहिए। इन फैट की मात्रा पैकिंग पर देख लेनी चाहिए । 

 

इसके अलावा हर तेल का एक स्मोक पॉइंट होता है। ये वह तापमान है जिससे अधिक गर्म होने पर तेल से नुकसान देह तत्व निकलने शुरू हो

जाते है। अतः तलने का तेल या पराठे आदि बनाने के लिए अधिक स्मोक पॉइंट वाला तेल सही रहता है।

 

 

सब्जी बनाने में तेल बहुत अधिक देर तक तेज गर्म नहीं होता। अतः सब्जी बनाने में कम स्मोक पॉइंट वाला तेल ले सकते है। आजकल

कई प्रकार के सलाद ट्रेंड में है। सलाद में तेल को ठंडा ही डाला जाता है। सलाद में डालने के लिए जैतून का तेल ( Olive oil ) अच्छा रहता है। 

रिफाइण्ड तेल प्रोसेस किये हुए होते है। ऐसा करके उनका स्मोक पॉइंट बढ़ा दिया जाता है।

मूंगफली , सरसों , राइस ब्रान , सोयाबीन ,सूरजमुखी का तेल अधिक स्मोक पॉइंट वाले तेल है। घी का स्मोक पॉइंट भी अधिक होता है। इन्हें

तलने का तेल में या पराठे बनाने में काम ले सकते है। जिस तेल का स्मोक पॉइंट कम हो उस तेल को तलने आदि में काम नहीं लेना चाहिए।

जैतून के तेल , नारियल का तेल , तिल का तेल , बटर का स्मोक पॉइंट कम होता है। इसलिए इन्हें तलने में काम नहीं लेना चाहिए।

 

तेल को जितनी बार और जितनी ज्यादा देर तक गर्म करते है उसमे फैटी एसिड की मात्रा बढ़ती चली जाती है तथा उसका स्मोक पॉइंट कम

होता जाता है। इसलिए दो बार से ज्यादा बार तलने का तेल गर्म किया गया है तो उसे  काम नहीं लेना चाहिए । फैट हमें दूध , अनाज ,

दाल , सब्जी आदि से भी मिलते है। अतः तेल और घी का अधिक यूज़ नहीं करना चाहिए।
 

खाने के लिए अलग अलग तेल के अलग फायदे और नुकसान होते है। सभी तरह के पोषक तत्व शरीर को मिलें उसके लिए एक ही प्रकार के

तेल को हर जगह काम लेने के बजाय तेल को बदल बदल कर काम मे लेना अच्छा रहता है। हर दो महीने में तेल बदल लेना ठीक होता है।

इससे दिल की बीमारियां, मोटापा, शुगर व तेल के कारण होने वाली अन्य बीमारियों की आशंका कम हो जाती है।

फ्लैट टमी पाना चाहती है तो ना करें यह गलतियां

अच्छा फिगर पाना हर लड़की का सपना होता है। लड़कियां अपने टमी(पेट) को फ्लैट रखने के लिए जिम, डाइटिंग, योग, एक्सरसाइज जैसे कई उपाय करती है। इसके साथ ही वह खाने से भी दूरी बनाने लगती है। पेट के फैट कम करने से पहले अक्सर लड़कियां ऐसी गलतियां कर बैठती हैं जिससे उनके स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगते हैं। आज हम आपको फ्लैट टमी पाने की राह में महिलाओं के द्वारा की जाने वाली आम गलतियां के बारे में बताने जा रहें हैं….

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1. पौष्टिक आहारों सेवन ना करना

पौष्टिक आहारों का सेवन करने से हमारा शरीर कई बीमारियों से दूर रहता है। शहद का सेवन हमारे शरीर के मोटोपे को कम करने के लिए फायदेमंद होता है। अगर रोजाना सुबह खाली पेट शहद की थोड़ी सी मात्रा गुनगुने पानी के साथ सेवन कर ली जाए, तो इससे आप अपने मोटापे को आसानी से कम कर सकती है। इसके अलावा मोटापा कम करने के लिए आपको जंकफूड से भी दूर बनानी होगी, जिससे कुछ ही दिनों में आप अपने पेट और शरीर में जमा चर्बी से मुक्ति पा सकती है।

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2. हाई प्रोटीन का डाइट ना लेना

शरीर को प्रोटीन की आवश्यकता होती है। अपने पेट की चर्बी को कम करने वाली महिलाओं को इसकी खासतौर जरूरत होती है। इसके लिए हमें सप्ताह में कम से कम तीन बार तो स्टीम की हुई सब्जियों का सेवन करना ही चाहिए। दूध, सेब, दही, पनीर और हरी सब्जियों में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इनका नियमित सेवन करने से पेट की चर्बी जल्द ही बर्न हो जाती है।

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3. सोडियम का अधिक सेवन

पेट की चर्बी को कम करने के लिए सोडियम का सेवन कम मात्रा में करें। शरीर में सोडियम की मात्रा ठीक बनाए रखने के लिए हमें पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। इसके लिए हमें दिनभर में 10 से 12 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। पेट की चर्बी को कम करने का यह एक सरह उपाय है।

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4. सुबह के नाश्ते को छोड़ना

बेशक आप फ्लैट टमी और वजन कम करने के बारे में सोच रहीं हों पर फिर भी आपको सुबह का नाश्ता नहीं छोड़ना चाहिए। इससे मैटॉबोलिज्म सिस्टम खराब होने से आपका वजन कम होने के बजाय बढ़ भी सकता है। सुबह और शाम तो सैर करने से शरीर दुरुस्त रहता है और इससे हमारे शरीर की चर्बी भी कम हो जाती।

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5. फलों के जूस का कम सेवन करना

आप अपने पेट की चर्बी को कम करने के लिए फलों के जूस का सेवन कर सकती हैं। फल हमारे शरीर को चुस्ती-फुर्ती देता है और साथ ही हमारी पाचन शक्ति को भी ठीक रखता है। पाचन क्रिया ठीक रहने से हमारा शरीर ठीक रहता है और चर्बी जमा नहीं हो पाती।

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6. खाना चबा चबाकर ना खाना

आज के आधुनिक युग में लोगों के पास समय का आभाव है, जिस वजह से अक्सर महिलाएं भोजन को अच्छी तरह से चबाएं बिना ही खा लेती है। इससे उनके शरीर में कई विकार उत्पन्न होने लगते हैं। पेट की चर्बी बढ़ने का यह भी एक मुख्य कारण है।

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सेहत के लिए कच्चे आम के 12 फायदे


सेहत के लिए कच्चे आम के 12 फायदे

गर्मियों के आते ही बाजारों में आम की बाहार आ जाती है। गर्मियों में फल का राजा आम हर जगह ही देखा जाता है। पक्के आम के साथ ही इस दौरान कच्चे आम का भी प्रयोग बहुत किया जाता है। पक्के आम का स्वाद जहां लोगों को बहुत ही भाता है वहीं कच्चा आम सेहत के लिए वरदान साबित होता है। इन कच्चे आम के फायदे के बारे में हम आप को आज बता रहे है।

1 एसिडिटी को दूर करें
हमारे अनियमित भोजन की आदतों के कारण पेट में अक्सर एसिडिटी की शिकायत हो जाती है। आज के दौर में एसीडिटी एक आम समस्या बन गई है। लेकिन इस समस्या का समाधान है कच्चा आम। इससे एसिडिटी को आसानी से दूर किया जा सकता है।

2 पानी की कमी से बचाव
गर्मियों के दौरान शरीर में पानी की कमी हो जाती है। हमारे शरीर से पानी पसीने के माध्यम से तेजी से बाहर आता है। पानी की इस कमी से बचने के लिए हमें थोड़े से नमक के साथ कच्चे आम का सेवन करना चाहिए और ये बेहद ही आसान तरीका है। इससे शरीर में पानी की कमी को पूरा किया जा सकता हैं।

3 पेट के रोगों से छुटकारा
गर्मियों के दौरान पेट की समस्या होना आम बात है। दरअसल गर्मियों के दौरान पेट संवेदनशील हो जाता है। ऐसे में पेट जल्द ही खराब हो जाता है। लेकिन कच्चे आम की सहायता से इन समस्याओं से आसानी से बचा जा सकता है। साथ ही इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है।

4 वजन कम करने में सहायक
आमों में उच्च मात्रा में फाइबर पाया जाता है। जो हमारे शरीर से अतिरिक्त वसा को दूर करता है। साथ ही आम को खाने से आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगती है।

5 मसूड़ो से खून को रोकता है
कच्चे आम में विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन सी स्कर्वी और मसूड़ों से खून को बहने से रोकने में मदद करता है। अगर आप भी इस तरह की समस्या से पीडित है तो आपको भी इस कच्चे आम को खाना चाहिए। जिससे आसानी से इस समस्या से बचा जा सकता है।

6 दांतो का स्वस्थ बनाता है
कच्चा आम न सिर्फ मसूड़ों की समस्या में कारगार उपाय है। बल्कि आपके लिए यह दांतो की सफाई का भी एक सरल तरीका साबित होता है। कच्चे आम से दांत लंबे समय तक मजबूत रहते है। साथ ही इससे सांसों की र्दुगंध की समस्या भी नहीं होती है।

7 गर्भवती महिलाओं के लिए बेहतर
सुबह के समय में गर्भवती महिलाओं को जी मचलाने की समस्या होने लगती है। इस समस्या से बचने के लिए कच्चे आम का प्रयोग किया जा सकता है। इस समस्या से बचने के लिए कच्चे आम में थोड़ा सा नमक मिलाकर लेने से गर्भवती महिला का जी मचलाना बंद हो जाता है।

8 दृष्टि बढ़ाता है
कच्चे आम में बीटा कैरोटीन, अल्फा कैरोटीन और विटामिन ए ये सभी पोषक तत्व पाए जाते है। यह आंखों के लिए फायदेमंद होते हैं। साथ ही इससे दृष्टि भी तेज होती है।

9 लीवर के लिए फायदेमंद
कच्चे आम से लीवर की समस्या में सुधार किया जा सकता है। यह लीवर को ठीक करने का एक प्राकृतिक उपाय है। लीवर में पित्त और एसिड बढ़ने से कई सारी समस्याएं शुरू हो जाती है। आपको बता दें कि कच्चा आम आंतों में होने वाले संक्रमण को भी दूर करता है।

10 लू से बचाता है
तेज गर्मी के कारण लू लग जाती है। कच्चा आम लू लगने की समस्या से भी निजात दिलाता है। साथ ही गर्मियों में जब त्वचा में लाल रंग के दाने होने लगते है तो कच्चा आम त्वचा की सभी समस्याओं से शरीर को दूर रखता है और शरीर को शीतलता प्रदान करने में सहायक साबित होता है।

11 पसीने को कम करना
गर्मियों में पसीना आने की समस्या आम बात है। कच्चे आम का रस पीने से पसीने का निकलना नियंत्रित हो जाता है। ज्यादा पसीने बहने से आयरन और सोडियम क्लोराइड के नुकसान होने से भी आम का रस बचाता है।

12 रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है
कच्चा आम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। साथ ही हमे रोग से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करता है।

महिलाओं को क्यों खानी चाहिए कसूरी मेथी...


हर घर में किचन के जरूरी मसालों में मेथी जरूर होती है. मेथी की खास बात ये हैं कि इसके पौधे से लेकर बीज तक का इस्तेमाल खाने का स्वाद बढ़ाने के काम आता है. मेथी के अलावा इसकी एक और वेराइटी होती है जिसे हम कसूरी मेथी के नाम से जानते हैं. 

कसूरी मेथी खाने की खूशबू बढ़ाने के काम आती है ये बात तो ज्यादातर लोग जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कसूरी मेथी हमारी सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. 

आयुर्वेद में भी कसूरी मेथी को औषधि माना गया है और इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है.

आइए जानें, कसूरी मेथी के पांच बड़े फायदों के बारे में...

1. एनीमिया 
महिलाओं में खून की कमी यानि एनीमिया की बीमारी को अक्सर ही देखा जाता है. इसी समस्या को घर पर ही सही डाइट की मदद से आसानी से ठीक किया जा सकता है. मेथी को अपने खाने का हिस्सा बनाएं. मेथी का साग खाने से एनीमिया की बीमारी में लाभ मिलता है.

2. ब्रेस्टफीड कराने वाली मांओं के लिए 
ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओं के लिए भी कसूरी मेथी काफी फायदेमंद रहती है. कसूरी मेथी में पाया जाने वाल एक तरह का कंपाउंड, स्‍तनपान करवाने वाली महिलाओं के ब्रेस्‍ट मिल्‍क को बढ़ाने में मदद करता है. 

3. हार्मोनल चेंज को कंट्रोल करने में 
कसूरी मेथी महिलाओं में होने वाली सबसे बड़ी समस्याओं में से एक मेनोपॉज में होने वाली परेशानी में भी बचाता है. कसूरी मेथी में phytoestrogen काफी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो मेनोपॉज के दौरान हो रहे हार्मोनल चेंज को कंट्रोल करता है. 
 

4. ब्‍लड शुगर से बचाव 
स्‍वाद में थोड़ी कड़वी मेथी लोगों को डायबिटीज से बचाने के भी काम आती है. एक छोटे चम्मच मेथी दाना को रोज सुबह एक ग्लास पानी के साथ लेने से डायबिटीज में राहत मिलती है. शोधकर्ताओं का मानना है कि कसूरी मेथी टाइप 2 डायबिटीज में ब्लड में शुगर के स्तर को कम करती है.

5. पेट के इंफेक्‍शन से बचाए 
पेट की बीमारियों से बचना चाहते हैं तो इसे अपने खाने का हिस्सा बनाएं. इसी के साथ यह हार्ट, गैस्ट्रिक और आंतों की समस्‍याओं को भी ठीक करती है.

इस जूस से सिर्फ 45 दिनों में ख़त्म होगा कैंसर, अब तक 42000 लोग हो चुके है पूरी तरह ठीक। शेयर जरूर करे


एक विशेष भोजन की मौजूदा जो 45 दिनों के लिए रहता है का आविष्कार किया। रुडोल्फ सिफारिश की है कि सभी लोगों को सिर्फ चाय और इस सब्जी का रस पीना चाहिए।इस अद्भुत घर का बना रस में मुख्य घटक चुकंदर है । उनका दावा है कि इस चक्र के दौरान , कैंसर की कोशिका मर जाते हैं।

नोट : सुनिश्चित करें कि आप जैविक या स्थानीय उगाई सब्जियों का उपयोग करते हैं। आप निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी :

चुकंदर (55 %),
गाजर (20 %),
अजवाइन रूट (20 %),
आलू (3%),
मूली (2 %)

[इनका जूस बनाएं, अपने ड्रिंक का आनंद लें।]

नोटइस जुस को जादा मात्रा में न पिये, अपने शारीरिक आवश्यकता के अनुसार ही पिये।

ऑस्ट्रिया के Rudolf Breuss ने कैंसर के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक इलाज खोजने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया है।

Rudolf Breuss ने बताया के कैंसर ठोस भोजन पर ही जिंदा रहता है , कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है अगर कैंसर का मरीज़ 42 दिन तक सिर्फ सब्जिओं का रस और चाय ही ले |

Rudolf Breuss ने एक ख़ास जूस तयार किया जिसके बहुत ही शानदार नतीजे देखने को मिले , उन्होंने इस तरीके से 45,000 से भी ज़यादा लोग जिन्हें कैंसर या कई इसी लाइलाज बीमारियाँ थी को ठीक किया | ब्रोज्स का कहना था के कैंसर सिर्फ प्रोटीन पर ही जिंदा रहता है!

Saturday, April 22, 2017

अम्लता (Acidity) (तेजाब बनना) लक्षण व उपाय

परिचय:-

अम्लता (एसिडिटी) रोग के कारण रोगी व्यक्ति के पेट में कब्ज बनने लगती है जिसके कारण उसके पेट में हल्का-हल्का दर्द बना रहता है। इस रोग में रोगी का खाया हुआ खाना पचता नहीं है। इस रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।

अम्लता रोग होने के लक्षण:-

अम्लता (एसिडिटी) रोग के कारण रोगी के पेट में जलन होने लगती है, उल्टी तथा खट्टी डकार आने लगती है और रोगी व्यक्ति को मिचली भी होने लगती है।

अम्लता रोग होने के कारण:-अम्लता रोग पेट में कब्ज रहने के कारण होता है।मानसिक तनाव तथा अधिक चिंता फिक्र करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।तेज मसालेदार भोजन खाना, भूख से अधिक खाना, कॉफी-चाय, शराब, धूम्रपान तथा तम्बाकू का अधिक सेवन करना आदि से भी अम्लता रोग हो जाता है।गुटका खाने, चीनी तथा नमक का अधिक सेवन करने और मानसिक तनाव के कारण भी अम्लता रोग हो सकता है।पेट में अधिक हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्राव होने के कारण भी अम्लता रोग हो जाता है।

अम्लता रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

अम्लता रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को गाजर, खीरा, पत्ता गोभी, लौकी तथा पेठे का अधिक सेवन करना चाहिए।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार उपवास रखना चाहिए ताकि उसकी पाचनशक्ति पर दबाव कम पड़े और पाचनशक्ति अपना कार्य सही से कर सके। इसके फलस्वरूप अम्लता रोग जल्द ही ठीक हो जाता है।

अम्लता रोग से ग्रस्त रोगी को 1 सप्ताह से 3 सप्ताह तक केवल फल, सलाद तथा अंकुरित अन्न ही खाने चाहिए तथा रोगी व्यक्ति को चीनी तथा नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। जब कभी भी रोगी व्यक्ति को खाना खाना हो तो उसे भोजन को अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाना चाहिए।

अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू, शहद का पानी, नारियल पानी, फलों का रस और सब्जियों का रस अधिक पीना चाहिए।गाजर तथा पत्तागोभी का रस इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए बहुत ही उपयोगी है। इनका सेवन प्रतिदिन करने से अम्लता रोग ठीक हो जाता है।

ताजे आंवले का रस या फिर आंवले का चूर्ण रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन चटाने से अम्लता रोग कुछ ही दिनों में ही ठीक हो जाता है।थोड़ी सी हल्दी को शहद में मिलाकर चाटने से भी रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। हल्दी तथा शहद के मिश्रण को चाटने के बाद रोगी को गुनगुना पानी पीना चाहिए।5 तुलसी के पत्तों को सुबह के समय में चबाने से अम्लता रोग नहीं होता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को अगर सूर्य की किरणों से बनाया गया आसमानी बोतल का पानी 2-2 घंटे पर पिलाया जाए तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका रोग ठीक हो जाता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद वज्रासन करना चाहिए इससे अम्लता रोग ठीक हो जाता है।

अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रोज एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद कुंजल क्रिया करना चाहिए और इसके बाद स्नान करना चाहिए। फिर सूखे तौलिये से शरीर को अच्छी तरह से रगड़ना चाहिए। इसके परिणाम स्वरूप यह रोग तथा बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं।

इस रोग से पीड़ित रोगी को खुली हवा में लम्बी-लम्बी सांसे लेनी चाहिए।रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी के पेट पर गीली मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए। फिर उसके पेट गर्म तथा ठंडा सेंक करना चाहिए। इसके बाद रोगी को गर्म पाद स्नान भी कराना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार रोगी व्यक्ति के शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को तुरन्त आराम पाने के लिए अपने पेट पर गर्म व ठंडी सिंकाई करनी चाहिए।अम्लता रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन रात को सोते समय अपने पेट पर ठंडी पट्टी करे तो उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह उठकर नियमानुसार शौच के लिए जाना चाहिए तथा अपने दांतों को साफ करना चाहिए।रोगी व्यक्ति को रात के समय में सोने से पहले तांबे के बर्तन में पानी को भरकर रखना चाहिए तथा सुबह के समय में उठकर उस पानी को पीना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

अम्लता रोग से पीड़ित रोगी के लिए सावधानी :-

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अम्लता रोग से पीड़ित रोगी को दूध का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि दूध एक बार तो जलन को शांत कर देता है लेकिन दूध को हजम करने के लिए पेट की पाचनशक्ति को तेज करना पड़ता है और यदि रोगी को अम्लता रोग हो जाता है तो उसकी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है।दवाइयों के द्वारा यह रोग ठीक तो हो जाता है लेकिन बाद में यह रोग अल्सर रोग बन जाता है तथा यह रोग कई रोगों के होने का कारण भी बन जाता है जैसे- नेत्र रोग, हृदय रोग आदि। इसलिए दवाईयों के द्वारा इस रोग को ठीक नहीं करना चाहिए बल्कि इसका इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।

जानकारी-

इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने से रोगी का अम्लता रोग ठीक हो जाता है तथा बहुत समय तक यह रोग व्यक्ति को फिर दुबारा भी नहीं होता है। यदि रोगी व्यक्ति अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे तो उसे दुबारा यह रोग नहीं होता है।