पीठ के निचले भाग में दर्द एक बहुत आम समस्या है. अलग-अलग व्यक्तियों में ये विभिन्न प्रकार से पाया जाता है. इसमें प्रभावित क्षेत्र में अकड़न, जलन या फिर टाँगों और और नितंब के क्षेत्र की तरफ बहुत तीक्ष्ण रूप का दर्द भी हो सकता है. बहुत से लोगों में इस दर्द की वजह से उनके दैनिक कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है. अनेक कार्यों को करने में उसे रूचि नही रहती और जीवन के अनेक कार्यों में से प्रसन्नता चली जाती है.
वैसे तो यह समस्या अधिक तौर से 45-64 वर्षा के महुष्यों में पाई जाती है परंतु अब बढ़े हुए तनाव और अनियमित जीवनचर्या की वजह से जवान लोगों में भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है. मज़े की बात यह है जिन्हें यह समस्या शुरू होती है, ज़्यादातर लोगों में 1.5 से 3 महीने में स्वतः ही ठीक हो जाती है. परंतु गत 5 प्रतिशत लोग ऐसे भी हैं जिनमें यह समस्या नसों के प्रभावित हो जाने के कारण बनी रहती है.
कटीग्राहम के कारण (Causes of Back-ache As Per Ayurveda)
आजकल दौड़ भाग के समय में ना चाहते हुए भी व्यक्ति तनाव ग्रस्त हो जाता है और इससे वात की विकृति आती है. जिस कारण कटीग्राहम अथवा पृष्ठशूल की समस्या उत्पन्न हो जाती है.
मुख्यतः यह समस्या रीढ़ की हड्डी को झुकाकर बैठने अथवा ग़लत तरीके से उठने बैठने से होती है. यदि व्यक्ति कमर सीधी करके बैठे तो उसे मांसपेशियों, हड्डियों और आंतरिक अंगों पर दबाव भी नही पड़ता और व्यक्ति स्वस्थ भी रहता है.यह समस्या हड्डियों की कमज़ोरी की परिचायक भी हो सकती है.लिगमेंट में मोच अथवा इसके ग़लत रूप से मूड़ जाने के कारण भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है.स्त्रीयो में फिबरोमयलगिया की समस्या से या फिर एस्टरोगेन की कमी से भी यह तकलीफ़ हो जाती है.गर्भाशय में ट्यूमर या रसोली से भी कटी में दर्द हो सकता है.बिल्कुल भी व्यायाम ना करने से अथवा ग़लत तरीके से योगाभ्यास अथवा व्यायाम करने से भी पीठ में दर्द उत्पन्न हो जातआ है.बहुत कम या बहुत अधिक वज़न के शरीर में भी यह समस्या उत्पन्न होती है.
योगासन द्वारा उपचार (Yogasanas Helpful In Back-Ache)
इस स्थिति में बहुत कुशल योगाचार्य से एवं उनके निरीक्षण में ही कुछ ख़ास प्रकार के आसनों का अभ्यास करना चाहिए. बैक बेंडिंग (back-bending) के आसन जैसे भुजंगासन, शलभासन, मकरासन, गरुड़ासन, मार्जरि का अभ्यास लाभदायक है.आसन करते समय प्रभावित क्षेत्र में ध्यान अवश्य दें और यह समझना चाहिए की प्रभावित क्षेत्र में प्राण उर्जा का संचार हो रहा है. इस प्रकार धारणा करने से दोगुना लाभ मिलता है.वीरासन में बैठने का अभ्यास भी अत्यंत हितकारी है. इससे कमर की मांसपेशियाँ मजबूत हो जाती ही और कमर सीधी रखने का अभ्यास बनता है. स्वयं को तनाव रहित करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.
कटीग्राहम का आयुर्वेदिक उपचार (Ayurvedic Treatment Of Back-Ache)
इस समस्या के निवारण के लिए वैसे तो आंतरिक और बाहिय दोनो हो उपचार किए जाते हैं.
अष्ठवर्ग औषधि का सेवन इस समस्या में किया जाता है,साथ ही साथ अभ्यंग और बस्ती करना इसमें बहुत लाभदायक है. नियमित रूप से विरेचन भी करना चाहिए.
उपचार में लाभदायक आयुर्वेदीय औषधियाँ इस प्रकार हैं- योगराजगुग्गूल, लक्ष्यादि गुग्गुलु, त्रिफला गुग्गूल. आयुर्वेदाचार्य से सलाह अवश्य लें.
कमर दर्द में उपयोगी घरेलू नुस्खे ( Ayurvedic Home Remedies Useful In Back-Ache Hindi)
नाश्ते में अखरोट और अलसी का 1-1 चम्मच दूध के साथ सेवन कीजिए.इससे हड्डियाँ मजबूत होती हैं. सर्दियों में तिल का एक चम्मच खा सकते हैं.रात्रि को 60 ग्राम गेहूँ भिगो कर रखें. प्रातः काल इसमें 2 चम्मच धनिया और 2 चम्मच खसखस पाउडर मिलाइए. इसका पेस्ट बनाएँ और इसी 250 मिलीलीटर दूध में मिलकर 15-20 मिनट पकाएँ. हल्का गर्म होने पर इसका सेवन कर लीजिए.वात को बढ़ाने वाले भोजन का त्याग करें. महनारायण तेल से प्रभावित क्षेत्र में हल्की मालिश रोज़ रात्रि के समय करें.आप लहसुन का तेल बनाकर भी उसका प्रयोग कर सकते हैं. 50 मिलीलीटर नारियल या तिल के तेल में 8-10 लौंग लहसुन के डालें. अब इन्हें हल्का जल जाने तक भूने. इस तेल अब प्रभावित क्षेत्र में हल्की मालिश करें!
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