खाना बनाने के लिए सरसों या मूंगफली का तेल, कौन-सा है बेहतर?
आप खाना बनाने के लिए कौन-से तेल का इस्तेमाल करते है?
मुझे ये जानना है कि खाना बनाने के लिए सरसों का तेल या मूंगफली के तेल, कौन-से तेल का इस्तेमाल करना सेहत के नजरिये से अच्छा होता है? क्या एक ही तेल में हमेशा खाना पकाना अच्छा होता है?
आहार विशेषज्ञ नेहा चांदना के अनुसार दोनों तेल ही सेहत के नजरिये से हेल्दी है लेकिन सरसों के तेल का इसका इस्तेमाल ज्यादा करना ठीक नहीं है। क्योंकि इसमें यूरोसिस एसिड (erucic acid) होता है जो शरीर में टॉक्सिक की मात्रा को बढ़ाता है। सच बात तो ये हैं आप खाना बनाने के लिए हमेशा हर एक-दो महीने के बाद खाना बनाने का तेल बदलते रहिये। इससे आप तेल को हेल्दी तरीके से बिना किसी साइड इफेक्ट के इस्तेमाल कर सकते हैं।
वैसे तो भारतीय ज्यादातर पकवान तेज आंच में ही पकाया जाता है जहां तेल का स्मिोकिंग प्वाइंट हाई रहता है। हाई स्मोकिंग प्वाइंट हाई होने के कारण ये टूटता नहीं है। सनफ्लावर, सोयाबीन, राईस ब्रान, मूंगफली, तिल, सरसों और कैनॉला ऑयल जैसे तेलों में हाई स्मोकिंग प्वाइंट होता है। सिर्फ ऑलिव ऑयल का स्मोकिंग प्वाइंट लो होने के कारण ये सलाद बनाने या सौते (sautéing) करने के लिए अच्छा होता है।
दो तेलों को मिलाने का तरीका
राईस ब्रान और ऑलिव ऑयल तथा राईस ब्रान और सनफ्लावर को मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। या तो आप दो तेलों को मिलाकर इसका इस्तेमाल करें या दो महीने में एक बार तेल को बदलें। इस तरह आप हेल्दी तरीके से खाना पका पायेंगे।
तलने का तेल कौनसा लें – Suitable Oils For Deep Frying
खाना बनाने के तेल – Cooking Oil
बाजार में कई प्रकार के खाने के तेल मिलते है। मूंगफली , सोयाबीन , सूरजमुखी , जैतून , सरसों , तिल , राइस ब्रान आदि। उसमे भी फिल्टर्ड
और रिफाइंड टाइप के तेल होते है। बड़ी दुविधा रहती है कौनसा तेल खाना बनाने में यूज़ करना चाहिए। सब्जी कौनसे तेल में बनायें , तलने
का तेल कौनसा लें । पराठे किस तेल से बनायें।
तेल और घी का उपयोग बहुत जरुरी होता है। ये सिर्फ स्वाद नहीं बढ़ाते , इनसे एनर्जी मिलती है। कई प्रकार के विटामिन फैट में घुलकर
ही शरीर मे पहुँचते है। फैट मे घुलनशील विटामिन A , विटामिन D , विटामिन E , विटामिन K आदि के अवशोषण के लिए तेल या
घी आवश्यक होता है। फैट की मदद से ही प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की ऊर्जा शरीर को मिलती है। ये पाचन में भी मदद करते है। शरीर
के तापमान को बनाये रखने मे भी इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।अतः तेल और घी बंद नहीं किये जा सकते।
ये भी पता होता है की अधिक घी तेल नुकसान करते है। । इसलिए परिवार की सेहत की चिंता बनी रहती है। कुछ परिवारो में वर्षो तक एक
ही प्रकार का तेल हर काम में प्रयोग किया जाता है। चाहे तलने का तेल हो या सब्जी बनाने का या तवे पर सिकाई का तेल । क्या यह उचित
होता है ? क्या तेल बदलना चाहिए ? आइये देखें।
रिफाइंड तेल और फिल्टर्ड तेल का अंतर
Refined filtered oil me kya fark he
रिफाइण्ड तेल प्रोसेस किया हुआ तेल होता है। इसमें तेल में कई प्रकार के ब्लीच और केमिकल डाले जाते है। इससे तेल के वास्तविक गुण
खत्म हो जाते है। तेल का रंग , स्वाद और खुशबू चले जाते है। इसके साथ ही तेल में लाभदायक तत्व भी कम हो जाते है। विशेष कर बीटा
केरोटीन और विटामिन E की कमी हो जाती है। लेकिन इससे बना खाना ओरिजिनल टेस्ट देता है।
फिल्टर्ड तेल में पोषक तत्व अधिक होते है। फिल्टर्ड तेल के स्ट्रॉन्ग स्वाद और खुशबु के कारण खाने का ओरिजिनल टेस्ट दब जाता है।
फिल्टर्ड तेल की शेल्फ लाइफ रिफाइण्ड की अपेक्षा कम होती है। फ़िल्टर तेल से किसी किसी को एलर्जी हो सकती है।
लेकिन फिर भी पोषक तत्व अधिक होने के कारण फिल्टर्ड तेल लेना ज्यादा अच्छा होता है।
तलने का तेल कौनसा अच्छा – Talne Ka Tel Konsa Le
तेल और घी में फैटी एसिड होते है। इनमे से कुछ फायदेमंद होते है और कुछ नुकसान देह होते है। ये फैटी एसिड चार प्रकार के होते है।
सैचुरेटेड फैटी एसिड ( SFA )
मोनो अनसैचुरेटेड फैट ( MUFA )
पॉली अनसैचुरेटेड फैट ( PUFA )
ट्रांस फैटी एसिड ( TFA )
हमारे लिए वह तेल अच्छा होता है जिसमे SFA कम हो तथा MUFA और PUFA अधिक हो । सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट नुकसान अधिक
करते है। इनके कारण दिल की बीमारी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इनसे रक्त में LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है जो नुकसान करता है । ये
धमनियों को अवरुद्ध कर सकते है। अतः ये तेल में कम होने चाहिए।
अनसैचुरेटेड फैट शरीर के लिए फायदेमंद होते है। ये HDL कोलेस्ट्रॉल कोबढ़ाने में सहायक होते है जो फायदेमंद होता है । ये LDL को
कम भी करते है। अतः इनकी तेल में अधिक मात्रा होनी चाहिए। इन फैट की मात्रा पैकिंग पर देख लेनी चाहिए ।
इसके अलावा हर तेल का एक स्मोक पॉइंट होता है। ये वह तापमान है जिससे अधिक गर्म होने पर तेल से नुकसान देह तत्व निकलने शुरू हो
जाते है। अतः तलने का तेल या पराठे आदि बनाने के लिए अधिक स्मोक पॉइंट वाला तेल सही रहता है।
सब्जी बनाने में तेल बहुत अधिक देर तक तेज गर्म नहीं होता। अतः सब्जी बनाने में कम स्मोक पॉइंट वाला तेल ले सकते है। आजकल
कई प्रकार के सलाद ट्रेंड में है। सलाद में तेल को ठंडा ही डाला जाता है। सलाद में डालने के लिए जैतून का तेल ( Olive oil ) अच्छा रहता है।
रिफाइण्ड तेल प्रोसेस किये हुए होते है। ऐसा करके उनका स्मोक पॉइंट बढ़ा दिया जाता है।
मूंगफली , सरसों , राइस ब्रान , सोयाबीन ,सूरजमुखी का तेल अधिक स्मोक पॉइंट वाले तेल है। घी का स्मोक पॉइंट भी अधिक होता है। इन्हें
तलने का तेल में या पराठे बनाने में काम ले सकते है। जिस तेल का स्मोक पॉइंट कम हो उस तेल को तलने आदि में काम नहीं लेना चाहिए।
जैतून के तेल , नारियल का तेल , तिल का तेल , बटर का स्मोक पॉइंट कम होता है। इसलिए इन्हें तलने में काम नहीं लेना चाहिए।
तेल को जितनी बार और जितनी ज्यादा देर तक गर्म करते है उसमे फैटी एसिड की मात्रा बढ़ती चली जाती है तथा उसका स्मोक पॉइंट कम
होता जाता है। इसलिए दो बार से ज्यादा बार तलने का तेल गर्म किया गया है तो उसे काम नहीं लेना चाहिए । फैट हमें दूध , अनाज ,
दाल , सब्जी आदि से भी मिलते है। अतः तेल और घी का अधिक यूज़ नहीं करना चाहिए।
खाने के लिए अलग अलग तेल के अलग फायदे और नुकसान होते है। सभी तरह के पोषक तत्व शरीर को मिलें उसके लिए एक ही प्रकार के
तेल को हर जगह काम लेने के बजाय तेल को बदल बदल कर काम मे लेना अच्छा रहता है। हर दो महीने में तेल बदल लेना ठीक होता है।
इससे दिल की बीमारियां, मोटापा, शुगर व तेल के कारण होने वाली अन्य बीमारियों की आशंका कम हो जाती है।