ज़िंदगी की भागदौड़ अक्सर हमें शरीर के कई हिस्सों में दर्द दे देती है। सिरदर्द, हाथ-पैर दर्द, पीठ दर्द तो जैसे अब लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा है। आप घर के कामकाज करते हों या बाहर नौकरी, ये दर्द कभी न कभी आपको परेशान ज़रूर करते होंगे। शरीर में दर्द होने पर कम ही लोग डॉक्टर के पास जाते हैं, ज़रूरत पड़ने पर सबसे आसान रास्ता अपनाते हैं, जो कि ‘पेन किलर’ है। पेन किलर अमूमन एलोपैथिक दवाओं में आती है। ये भले ही कुछ मिनटों में आपको दर्द से राहत दे, लेकिन इनका ज्यादा सेवन आपको कई नई बीमारियां दे सकता है। तो क्या एलोपेथिक के अलावा कहीं और इस दर्द का इलाज नहीं? जानने के लिए हमने आयुर्वेदिक डॉक्टर नाज़िया नईम से बातचीत की।
पेन का कॉन्सेप्ट
डॉक्टर नाज़िया कहती हैं, पेनकिलर्स पर बात करने से पहले हमें ‘पेन’ का कॉन्सेप्ट समझ लेना चाहिए। कमरे में गंदगी हो तो या तो लाइट ऑफ़ कर दें ताकि गन्दगी ना दिखे या कमरा साफ़ कर दें। ज़ाहिर है दूसरे विकल्प में समय और प्रयास लगेगा पर कमरा साफ़ हो जाएगा। ये जो पेनकिलर है, ये लाइट स्विच ऑफ़ करने वाला ही विकल्प हैं। दर्द और बुख़ार कोई बीमारी नहीं बल्कि बीमारी के लक्षण मात्र हैं। ये हमारे शुभचिंतक हैं, हमें सचेत करते हैं कि शरीर में समस्या है, इसे हल करो।और हम क्या करते हैं, समस्या की तरफ ध्यान दिलाने वाले व्हिसल ब्लोअर का ही मुंह बंद करवाने दौड़ पड़ते हैं। सबसे ज़्यादा इसकी ही दवा खाई जाती हैं। समस्या तो अपनी जगह रहती ही है (बल्कि बढ़ भी सकती है), ऊपर से पेनकिलर्स के साइड इफेक्ट और क्षतिग्रस्त किडनी लिवर तोहफे में।
आयुर्वेद का पेन मैनेजमेंट
बार-बार पेन किलर खाने से पहले हमें आयुर्वेद में इस समस्या के लिए संभावनाएं देखनी चाहिए। आयुर्वेद में पेन मैनेजमेंट इस तरह होता है कि दर्द कम करने के साथ साथ जिस वजह से दर्द हो रहा है, वह भी दूर की जाए केवल सिम्पटमेटिक या लाक्षणिक चिकित्सा नहीं हो। डॉक्टर नाज़िया ने बताया, आयुर्वेद में दर्द को शूल कहा जाता है। सिरदर्द- शिरः शूल, पेटदर्द-उदरशूल, कमरदर्द-कटि शूल, दांतदर्द- दंतशूल आदि। इनके लिए सिर्फ दादी नानी के नुस्खे, अजवाइन, लौंग, हल्दी ही नहीं बल्कि सैकड़ों शास्त्रोक्त और पेटेंट प्रॉडक्ट्स हैं। ये वेदनास्थापन और शूलघ्न औषधियां कहलाती हैं। पर ये अकेले नहीं दी जाती। साथ में, उस समस्या या रोग को खत्म करने वाली दवाइयां, डाइट और योगासन भी बताए जाते हैं।
दर्द या शूल हमेशा वात के कारण होता है। वात-पित्त-कफ में जब असंतुलन होता है और वात बढ़ जाता है, दर्द होता है। वात संतुलित हो जाए तो दर्द भी दूर हो जाता है। डॉक्टर नाज़िया के मुताबिक, कुछ सामान्य औषधियां जो रोगी और रोग के अनुसार दी जाती हैं, उनमें प्रमुख हैं- पेटदर्द में- शूलवज्रिणी वटी, शंख वटी, अमृत धारा आदि। अगर माहवारी का दर्द है तो साथ में ज़ीरा-काला नमक युक्त छाछ या मठा लें। इसका आसानी से एब्सॉर्ब होने वाला कैल्शियम क्रैम्प्स और दर्द में राहत देगा। एंटी इन्फ्लामेट्री-एनाल्जेसिक्स- जोड़ों में, कमर में, गर्दन में, हाथ पैरों में सामान्य रूप से होने वाले दर्द में गुग्गुल की बहुत सारी तैयारियां बहुत प्रभावी हैं। योगराज गुग्गुल, वातारि गु., सिंहनाद गु., त्र्योदशांग गु., गुग्गुलतिक्त घृत आदि। शल्लकी, लशुनपाक भी असरकारक हैं।
सिरदर्द में- शिरः शूलादि वज्र रस दांत दर्द में- लौंग का तेल लगाने को, दशन संस्कार चूर्ण मंजन इनके अलावा प्रभावित जगह पर तेल की मालिश बहुत प्रभावी है क्योंकि तेल वात का शमन करने में बेस्ट है। महानारायण तेल, महाविषगर्भ तेल, प्रसारिणी तेल, बला तेल, चन्दनबलालाक्षादि तेल, क्षीरबला तेल, निर्गुन्डी तेल आदि की नियमित मसाज करें। ये सामान्य घरेलू नुस्खों से जब दर्द न कम हो तो चिकित्सीय परामर्श से लें। साथ में ज़रूरी अन्य औषधियां भी।