Tuesday, June 13, 2017

डायबिटीज से जुड़े भ्रम –30 Myths About Diabetes

डायबिटीज के बारे में कई मिथक हैं और इस बीमारी से ग्रसित लोगों के खान-पान के बारे में भी कई मिथक हैं। डायबिटीज की बीमारी में मरीज को अपना विशेष ध्यान हमेशा रखना पड़ता है, जिसके कारण लोग ज्यादा गौर करने लगते हैं जो गैरजरुरी है |

क्या आप जानते हैं कि भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग और अमेरिका में 2.5 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रसित हैं, ऐसा हाल ही में हुई एक रिसर्च से पता चला है। इतनी भारी संख्या में लोग इस बीमारी से घिरे हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद इस बीमारी के बारे में कई मिथक बने हुए  हैं। इसमें कोई शक नहीं है की डायबिटीज के रोगी को कार्बोहाइड्रेट के सेवन से बचना चाहिए और संतुलित खुराक का सेवन करना चाहिए। डायबिटीज -रोगियों के लिये संतुलित आहार और नियमित रूप से शुगर के स्तर की जांच करवाना जरूरी है और समस्या बढ़ने पर डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।

डायबिटीज रोग से जुडी 30 आम गलतफहमियां और भ्रम :

Top 30 Myths busted About Diabetes

मिथ: डाइबिटीज होने पर दवाइयों का सेवन करना ही काफी है। कुछ और करने की जरुरत नहीं है |

सच: ऐसा कतई नहीं है, डाइबिटीज़ होने पर आपको परहेज भी रखना पड़ता है। इलाज से ज्यादा परहेज रखने से बीमारी के दुष्प्रभावों से आराम मिलता है। खासतौर पर सही खानपान और नियमित लाइफ स्टाइल का ख्याल रखना चाहिए |


मिथ: इन्सुलिन का इंजेक्शन सेहत के लिए ठीक नहीं होता है | यह बेहद नुकसानदायक इंजेक्शन होता है।

सच: यह धारणा सही नहीं है वैसे तो सभी दवाइयों के कुछ न कुछ साइड इफेक्ट्स तो होते है पर इन्सुलिन का इंजेक्शन शरीर में ब्लड-शुगर स्तर को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय भी नही होता है |

मिथ: डायबिटीज है तो ब्लड डोनेट नहीं कर सकते।

सच: अमेरिकन रेड क्रॉस के अनुसार डायबिटीज के मरीज एक स्वस्थ इंसान की तरह रक्तदान कर सकते हैं बशर्ते कुछ मानकों को पूरा करते हों।

मिथ: शुगर फ्री गोलियां या उससे बनी मिठाइयाँ कितनी भी खाई जा सकती है |

सच: शुगर फ्री का मतलब कैलरी फ्री नहीं है। शुगर फ्री के नाम पर जमकर मिठाइयां खाना नुकसानदेय हो सकता है। आप शुगर-फ्री बिस्किट, और मिठाइयां आसानी से खा सकते हैं। लेकिन अगर उन प्रोडक्ट्स में शुगर न हो पर कार्बोहाइड्रेट तो भरपूर मात्रा में होता ही है ना | शुगर फ्री होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि इससे भी ब्लड-शुगर का स्तर बढ़ेगा ही। इसके आलावा खोए से बनी मिठाइयो में क्रीम आदि की कैलरी भी शामिल होती हैं, जो शुगर अनियंत्रित कर सकती है।

मिथ: डाइबिटीज़ में शरीर को ज्यादा थकान अनुभव नही करवाना चाहिए |

सच : डाइबिटीज़ की बीमारी में ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहिए, ताकि शरीर से ज्यादा केलारी बर्न हो, ब्लड-शुगर का स्तर कम हो। पर हमेशा अपने दिल की धड़कन को मॉनिटर करें और आवश्यक मात्रा में ही शारीरिक मेहनत करें।मिथ: डायबिटीज हो तो फल खाना बंद कर दें।

सच: डायबिटीज़ होने पर खान-पान के बारे में सबसे मिथक फैलते हैं। इसी तरह कई लोग मानते हैं कि फलों में कार्बोहाइड्रेट होता है, जिससे ब्लड-शुगर का स्तर बढ़ जाता है। ऐसा सिर्फ फल के जीआई इंडेक्स पर निर्भर करता है। सामान्यत: फलों में कम जीआई इंडेक्स होता है, इसलिए डाइबिटीज़ की बीमारी में फलों का सेवन आराम से किया जा सकता है। डायबिटीज में लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले फल जरूर खाने चाहिए। इनमें सेब, संतरा, मौसमी, अमरूद और पपीता खाएं। चीकू, केला और अंगूर जैसे फल न लें। फल खाएं पर जूस न लें |

मिथ: डायबिटीज रोग मीठा खाने से होता है 

सच: मीठे से डायबिटीज होने का कोई संबंध नहीं है। इसके लिए वंशानुगत और अन्य कारण जिम्मेदार होते हैं। हालांकि डायबिटीज हो जाने के बाद मीठा खाने से शुगर और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

मिथ: डायबिटीज में अल्कोहल पीने से कोई फर्क नहीं पड़ता है |

सच: नियमित तौर पर अल्कोहल के इस्तेमाल से शरीर में यूरिक एसिड और ट्राइग्लिसरॉइड बढ़ते हैं। साथ ही शुगर भी अनियंत्रित हो जाता है।

मिथ: डायबिटीज के लिए स्पेशल खाना होता है।

सचः डायबिटीज में संतुलित आहार की जरूरत होती है, जिसमें 50-60 पर्सेंट कार्बोहाइड्रेट, 15-20 पर्सेंट प्रोटीन और 20-25 पर्सेंट फैट और दूसरे तत्व शामिल हों।

मिथ: ड्राई फ्रूट्स खाने से परहेज करना चाहिए।

सच: बादाम और अखरोट जैसे सूखे मेवों से शरीर में अच्छा यानी एच.डी.एल कॉलेस्ट्रॉल बढ़ता है जो हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है, इसलिए मेवे जरुर खाने चाहिए |

मिथ: डायबिटीज हो तो कम भोजन खाना चाहिए 

सच: कम खाना खाना सही नहीं है। थोड़ा-थोड़ा, बार-बार खाएं। न तो ज्यादा देर भूखे रहें और न ही एक बार में ढेर सारा खाना खाएं।

मिथ: बार-बार खाने से क्या लाभ होगा एक ही बार भरपेट भोजन खाना चाहिए |

सच : लंबे समय तक खाली पेट रहने से अगर आपके खून में शक्कर का स्तर अचानक गिर जाए तो आपको मिचली आ घेरेगी, कम्पन पैदा होगा, कमजोरी के अलावा सिर-दर्द और दूसरे लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं। पसीना छूटने के साथ हाथ-पैर ठंडे पड़ सकते हैं। थोड़ा-थोड़ा करके हरेक दो से तीन घंटे बाद खाइए, ताकि खून में शक्कर का स्तर मान्य स्तरों पर कायम रहे। यह बचाव का एक ऐसा इलाज है, जो डॉक्टर के नहीं, आपके हाथ में है। स्वास्थ्यकर नाश्ता अपने साथ हरदम रखिए, ताकि जब जरूरत हो खाया, जा सके।

मिथ: डायबिटीज कोई गंभीर बीमारी नहीं है | इसलिए ज्यादा सावधानी की आवश्यकता नहीं होती है |

सच : डायबिटीज यानी डायबिटीज को हलके में नहीं लेना चाहिए, यह एक गंभीर बीमारी होती है। इसकी सबसे बड़ी समस्या है कि लोग इसे गम्भीरता से नहीं लेते हैं और आम बीमारी समझते हैं। वास्तव में, डाइबिटीज़ होने पर शरीर के इम्यून-सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है। कई बार इस बीमारी से किडनी और अन्य अंगों के फेल और खराब होने का डर रहता है। शरीर के रोगों से लड़ने की नेचुरल शक्ति कम होने की वजह से  मधुमेह रोगियों के कोई भी छोटी-मोटी बीमारी बड़ी मुसीबत बन सकती है जैसे चोट लग जाना |

मिथ : गर्भावस्था में होने वाला मधुमेह स्थाई होता है |

सच : बिलकुल नहीं, गर्भवस्था में होने वाला डायबिटीज अक्सर Pregnancy के बाद बिलकुल ठीक हो जाता है |

मिथ: डाइबिटीज़ के सभी रोगियों को इंस्युलिन इंजेक्शन जरूरी होते हैं : ऐसा लगभग सभी लोग मानते हैं कि मधुमेह होने पर इंस्युलिन इंजेक्शन का उपयोग जरूरी होता है।

सच : यह सच है उन लोगों में, जिनको टाइप-1 डाइबिटीज होती है और दवाइयों से जिनका उपचार नहीं किया जा सकता, ऐसे लोगों को इंस्युलिन इंजेक्शन देना जरुरी होता है। पर टाइप-2 डाइबिटीज़ में गोलियां ही असरदार होती है |

मिथ: डायबिटीज में खास आहार ही लेना चाहिए |

सच: अच्छा आहार वही है जिसमें 40-60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 20 प्रतिशत प्रोटीन और 30 प्रतिशत या उससे कम वसा है। खाने में शाक-सब्जी व फल की अच्छी मात्रा जरूरी है। खाना नियमित अंतराल पर लें।

मिथ: टाइप 2 डायबिटीज टाइप 1 की तरह खतरनाक नहीं है।

सच: रोकथाम न हो तो डायबिटीज के दोनों रूप समस्याओं को जन्म देते हैं। दोनों मामलों में सही दवा के साथ स्वस्थ जीवनशैली जरूरी है। एक को खतरनाक बता कर दूसरे को कम नहीं आंका जा सकता।

मिथ: डायबिटीज एक उम्र के बाद ही होता है।

सच: नवजात और छोटे बच्चों में भी यह समस्या दिखती है। उम्र बढ़ने के साथ टाइप 2 डायबिटीज की शिकायत बढ़ती है।

मिथ : डायबिटीज़ में एक्सरसाइज़ नही करनी चाहिए |

सच : डायबिटीज के बारे में एक मिथक यह भी है कि डाइबिटीज़-मरीज को एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। ऐसा कतई नहीं है, आपको एक्सरसाइज करनी चाहिए और नियमित रूप से करनी चाहिए। इससे आपका वजन संतुलित रहेगा और ब्लड-शुगर स्तर कट्रोल में रहेगा।

मिथ : प्राय सभी मधुमेह रोगियों का डाइट चार्ट एक जैसा होता है |

सच: डायबिटीज-रोगी का डाइट चार्ट ऐसा होना चाहिए, जो रक्त-ग्लूकोज़ को बढ़ने से रोके एवं रोग पर अनुकूल प्रभाव डाले। भोजन पौष्टिक होना चाहिए, जिसमें कार्बोहाइड्रेट एवं रेशे प्रचुर मात्रा में हों। भोजन की मात्रा भी शारीरिक श्रम, उम्र, मधुमेह की अवस्था और कैलोरी की जरुरत के अनुसार नियंत्रित होनी चाहिए।

मिथ : मधुमेह रोग में दवाओं की क्या जरुरत है?

सच : डायबिटीज रोग शरीर में इन्सुलिन की कमी के कारण होता है, अतः यदि किसी प्रकार इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाई जा सके, तो इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। रोगी को सीधे इन्सुलिन दिया जा सकता है, किन्तु यह केवल सूई के रूप में ही उपलब्ध है। इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाने का दूसरा तरीका खाने की दवायें हैं।

मिथ: कई लोगों का ऐसा मानना होता है कि मोटापा बढ़ने के कारण डाइबिटीज हो जाती है।

सच: वैसे यह बात ठीक है कि मोटे लोगों में इन्सुलिन -प्रतिरोध की मात्रा ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि मोटापा ही डाइबिटीज़ की वजह है। कई बार दुबले-पतले लोगों को भी डायबिटीज का रोग हो जाता है। इसलिए डायबिटीज किसी को भी हो सकती है, वह चाहे मोटा हो या पतला।

मिथः डायबिटीज का मरीज भारी भरकम काम नही कर सकता जैसे जिम जाना वजन उठाना।

सच: ऐसे लोगों की मिसालें हैं जो डायबिटीज के बावजूद खेल-कूद में एक मकाम हासिल कर चुके हैं, जैसे ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट तैराक गैरी हॉल, क्रिकेट खिलाड़ी वसीम अकरम।

मिथ: डायबिटीज मरीज महिला को गर्भधारण नहीं करना चाहिए।

सच: मां बनने से परहेज करने की कोई जरूरत नहीं है। एक्सपर्ट की देखरेख में संतुलित जीवनशैली अपनाना जरूरी है। गर्भधारण से पहले, गर्भावस्था के दौरान और आगे भी सही शुगर लेवल मेनटेन रखें।

मिथ: डायबिटीज के मरीज की उम्र कम हो जाती है।

सच: शुगर लेवल सही रखा जाए और जीवन शैली सही हो तो डायबिटीज के मरीज की भी उम्र लंबी हो सकती है।

मिथ: दवा ले रहे हों तो कुछ भी खा सकते हैं।

सचः डायबिटीज के मरीज को खाने में रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और सैचुरेटेड फैट से परहेज करने की सलाह दी जाती है। नियमित एक्सरसाइज, समय पर आहार और सही दवा जरूरी है। 

सवाल : क्या डायबिटीज की दवा जिंदगी भर लेनी पडती है |जवाब : जी हाँ, डायबिटीज के हर रोगी को जीवनभर दवा लेने की आवश्यकता होती हैं। आधुनिक मेडिकल साइंस के अनुसार डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता हैं पर उसे जड़ से मिटा देना फिलहाल मुमकिन नहीं हैं | हालंकि आयुर्वेद इसके निवारण का दावा जरुर करता है |

मिथ: मधुमेह एक संक्रामक रोग है।

सचः डायबिटीज एक संक्रामक रोग नहीं है। मधुमेह एक अंतःस्रावी ग्रंथि से जुड़ी बीमारी है जो अग्न्याशय में बीटा कोशिकाओं द्वारा निर्मित अधिक इंसुलिन के कारण जन्म लेती है। डायबिटीज पीढ़ी दर पीढ़ी फैलने वाली एक बीमारी है।

मिथ: मधुमेह के रोगी कभी मीठा नहीं खा सकते।

सचः डायबिटीज के रोगियों को कार्बोहाइड्रेट को पचाने में मुश्किल होती है, जिसका प्रभाव उनके पूरे शरीर पर पड़ता है। डायबिटीज के रोगियों को मीठे का सेवन बहुत नियमित रुप से करना चाहिए तथा उन्हें सही समय पर दवा लेने की एवं कसरत करने की आवश्यकता है। इससे आपका शरीर स्वस्थ रहेगा और उसमें शुगर का स्तर भी बना रहेगा तथा आप इस बीमारी के बढने से भी बचे रहेंगे।

मिथ: डायबिटीज थोड़ा सा कंट्रोल करने पर आपको चेकअप की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सचः डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है। इसे काबू में करने के लिए आपको नियमित आहार व कसरत के साथ-साथ दवा लेने की भी जरूरत है। आप भले ही शुगर के स्तर को बनाए रखने में सफल हो जाएं लेकिन रेगुलर चेकअप करवाने पड़ते है |

डायबिटीज में क्या खाए और क्या नहीं: 31 टिप्स – Diabetic Diet

Diabetic Diet Plan शुगर को बढ़ने से रोकने तथा नियंत्रण और यहां तक कि काफी हद तक पूरी तरह से ठीक करने में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है | एक Diabetic Patient को अपने भोजन को चुनने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए,जैसे कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट कम से कम लेना चाहिए |

इसलिए हम आपको बता रहे है एक आदर्श Diabetic Diet Plan जिसमे यह बताया गया है की मधुमेह से पीड़ित रोगी क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए | साथ ही साथ इससे उन लोगो को भी लाभ मिलेगा जो इस बीमारी से बचना चाहते है, क्योंकि “क्या न खाए” भाग में जिन चीजो को रखा गया है उनकी मात्रा आज ही अपनी थाली से कम करे , क्योंकि एक सही डायबिटीज डाइट इस रोग को काबू करने में काफी मदद करती है | वैसे भी रोगों से बचाव ही सबसे अच्छा उपचार होता है |

मधुमेह का एक संक्षिप्त परिचय -> शरीर में Pancreas Gland से इन्सुलिन न बनने के कारण मधुमेह रोग उत्पन्न होता है। यह हार्मोन शरीर में सेवन की गई चीनी का पाचन कर उसे ऊर्जा में परिवर्तित करता है और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित स्तर से अधिक नहीं बढ़ने देता। बाकि बची हुई फालतू शुगर की मात्रा इंसुलिन द्वारा ही ग्लाइकोजन में परिवर्तित करके पेट और मांसपेशियों में एकत्रित कर दी जाती है। आमतौर पर खाली पेट में रक्त की शुगर का स्तर 80 से 120 मिली ग्राम प्रति 100 सी.सी. के बीच होता है और खाना खाने के बाद यह स्तर 100 से 140 मिलीग्राम हो जाता है। अकसर यह रोग महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में, गरीबों की अपेक्षा अमीरों में तथा 35 से 60 वर्ष की आयु वालों में अधिक होता है। वैसे वंशानुगत (Hereditary Disease) की श्रेणी में आने कारण से यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है। यानि जिनके माता-पिता या दादा-दादी को मधुमेह रोग रहा हो तो उन्हें तो बचपन से ही इस रोग के प्रति जागरूक हो जाना चाहिए और समय-समय पर अपनी जाँच करवाते रहना चाहिए |

Diabetic Diet Plan के अनुसार क्या खाना चाहिए 

डायबिटीज में क्या खाएं

Diabetic Diet में ज्यादा फाइबर युक्त भोजन -जैसे छिलके सहित पूरी तरह से बनी हुई गेहूं की रोटी, जई इत्यादि जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट शामिल होनी चाहिए, क्योंकि वे खून के प्रवाह में धीरे-धीरे मिल जाते हैं। इस प्रकार Insulin उत्पादित Glucose का बेहतर ढंग से सामना कर सकती है।

गेहूं और जौ 2-2 किलो की मात्रा में लेकर एक किलो चने के साथ पिसवा लें। ऐसे चोकर सहित आटे की बनी चपातियां भोजन में खाएं। इसे अपने Diabetic Diet में अवश्य शामिल करें |

मधुमेह रोगियों के लिए आहार के अंतर्गत सब्जियों में करेला, मेथी, सहजन , पालक, तुरई, शलगम, बैंगन, परवल, लौकी, मूली, फूलगोभी , broccoli , टमाटर , बंदगोभी , Tofu, सोयाबीन की मंगौड़ी, जौ, बंगाली चना, काला चना, दालचीनी,  पत्तेदार सब्ज़ियां शामिल करें तथा इन सब्जियों से बने पतले सूपों का जितना चाहें उतना सेवन करें।

मधुमेह में फल (Fruit For Diabetes Patient )- फलों में जामुन, नीबू , आंवला  टमाटर, पपीता , खरबूजा , कच्चा अमरुद, संतरा, मौसमी, ककड़ी ,चुकन्दर , मीठा नीम, बेल का फल, जायफल , नाशपाती को शामिल करें। आम ,पका केला ,सेब, खजूर तथा अंगूर में शुगर होता है, लेकिन क्योंकि फलों में फाइबर ज्यादा होता है इसलिए ये अच्छे शुगर की केटेगरी में आते है |

जिनको हाई लेवल मधुमेह नहीं है वो इनको कम मात्रा में ले सकते है| इनका जूस बिल्कुल ना पियें क्योंकि उससे फाइबर निकल जाते है |

मेथी दाना (बीज) 25 से 100 ग्राम तक प्रतिदिन सुबह खाली पेट या सब्जी बनाकर, आटे में मिलाकर अथवा दाल के साथ नियमित रूप से खाएं।

मक्खन एवं पनीर के बजाय नमक के पानी में डिब्बाबंद मशरूम, Salmon Fish के साथ उबले आलू का उपयोग करें।खाने से पहले एक कटोरी सलाद जरुर लें।

Diabetic Diet में बादाम , लहसुन , प्याज, अंकुरित दाले , अंकुरित छिलके वाला चना , सत्तू,  बाजरा आदि शामिल करे |

कमजोरी दूर करने के लिए हरा कच्चा नारियल, अखरोट, मूंगफली के दाने, काजू, सोयाबीन, मटन का सूप, दही, छाछ का सेवन करें।

इंसुलिन के बनने में क्रोमियम की कमी से रुकावट आती है। इसलिए इसकी कमी को पूरी करने के लिए फूलगोभी, मशरूम, चोकर सहित खड़े अनाज, खमीर, सूखे मेवे यानि ड्राई फ्रूट्स अधिक खाएं और दालचीनी (cinnamon), अजमोद का भी सेवन करें।

फलों का ताज़ा जूस न पीए इसकी बजाय फल खाएं क्योकि उसमे ज्यादा फाइबर होता है !

मधुमेह से ग्रस्त रोगियों को अधिकतर ताजी, हरी सब्जियां खानी चाहिए । प्रत्येक भोजन के साथ सलाद जरुर लेना चाहिए । खाने में आधिक मात्रा में फल एवं सब्जियां लेने से शरीर में अधिक पानी पहुंचता है।

पानी की भरपूर मात्रा गुर्दों एवं यूरिन उत्सर्जन तंत्र के लिए आवश्यक है ।

आहार प्रबंधन और Diabetic Diet के माध्यम से अपना वज़न पर नियंत्रित रखें। एक संतुलित आहार का मुख्य गुण यह है कि उसमे भोजन की प्रकृति व्यक्ति विशेष की जरुरत के हिसाब से बदल जाती है ।

भोजन एक बार में न कर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में 4-5 बार करें।किसी भी समय का भोजन न छोड़ें तीन बार बराबर-बराबर भोजन ले और यदि आवश्यकता हो तो शाम को हल्का नाश्ता ले |चीनी रहित चाय, कॉफी, दूध का सेवन करें। मिठास के लिए “Artificial Sweeteners” या शूगर फ्री गोलियां उपयोग में लें सकते है।

भोजन ठीक से चबा चबाकर खाएं, फ़ूड विशेषज्ञ इस बात की सलाह देते हैं कि , प्रत्येक खाने का ग्रास पंद्रह बार चबाया जाना चाहिए |

ख़ाली पेट न रहें और लिए जाने वाले भोजन की कुल मात्रा में कमी लाएं एवं नियमित रूप से व्यायाम करें।

यदि आप अपनी सीमा से ज़्यादा खा लेते हैं तो अगले समय के भोजन में थोडा कम खाए |

आप Diabetic Diet में शहद और गाजर को कम मात्रा में शामिल कर सकते है क्योकि ये “Good Sugar Substitutes” श्रेणी में आते है | लेकिन इसके लिए अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें क्योंकि यह Diabetes के विभिन्न Types पर निर्भर करता है |ठीक इसी प्रकार मधुमेह में गुड़ को लेकर अक्सर लोगो में शंका बनी रहती है |

डायबिटीज में गुड खाने की सलाह नहीं दी जाती है लेकिन glycemic index के अनुसार गुड निश्चित रूप से refined sugar यानि चीनी से बेहतर होता है | लेकिन इसको आप अपनी डाइट में कितनी मात्रा शामिल कर सकते हैं ? या शामिल कर भी सकते हैं या नही ? यह आपके शुगर लेवल, डाइट चार्ट और आपकी कैलोरी की जरुरत पर निर्भर करता है | जो निश्चित रूप से सभी के लिए अलग- अलग होता है | वैसे आपके डॉक्टर आपको गुड लेने की सलाह दें तो तिल और गुड मिलाकर खाना बेहतर होता है |

मधुमेह से पीड़ित रोगियों को क्या नहीं खाना चाहिए 

Diabetic Diet प्लान में से घी और नारियल का तेल आदि चिकनाई युक्त चीजो को निकाल देना चाहिए।

पूरी, कचौड़ी, समोसा, पकौड़े आदि खाने से भी बचना चाहिए।गुड़, शक्कर, मिश्री, चीनी, शर्बत, मुरब्बा, शहद, पिज़्ज़ा ,बर्गर आइसक्रीम तथा ठंडे पेय पदार्थ इस्तेमाल नहीं करने चाहिए |

Diabetes नियंत्रण करने वाली औषधियों के प्रयोग के दौरान Diabetic Patient को भोजन नहीं छोड़ना चाहिए |

चिकन Leg piece को खाने से बचें ।चावल और आलू का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए। खासतौर पर नए चावल न खाएं |

मैदे से बनी सफ़ेद रोटी (नान, तंदूरी रोटी ), नूडल्स, नाश्ते में अनाज, मीठे बिस्कुट, केक, परांठे, मैदे से बनी सफेद डबलरोटी एवं पेस्ट्री, कचौरी, चाट भी न खाएं।चाशनी में डिब्बाबंद फल न खाएं।

शराब, बियर आदि मादक पदार्थो का सेवन न करे |

मकई का आटा, सूजी, ज्यादा वसायुक्त पनीर, sauce, cheese, अचार, मुरब्बा , सीताफल , पेठा जैसे भोजन का सेवन न करें।

सुनहरी चाशनी, च्यूइंगम, मीठे पेय, डब्बा बंद जूस, सोडा , मिठाइयाँ,  Energy drinks, कोला एवं चीनी से बने जैम का सेवन न करें।

रक्त परीक्षण (Blood Test) और मूत्र परीक्षण (Urinal Test) हर दूसरे-तीसरे महीने करवाते रहना चाहिए। इससे आपको Blood Sugar level की जानकारी रहेगी तथा आप सजग और सतर्क रहेंगे ।

नियमित रूप से सुबह शाम सैर (Morning Evening Walk) करें और एक जगह बैठकर मानसिक परिश्रम कम से कम करें |

मधुमेह कम करने के लिए आयुर्वेदिक उपाय  – साभार { पतंजलि आयुर्वेद }

खीरा, करेला और टमाटर एक-एक की संख्या में लेकर इसका जूस निकालकर, सुबह खाली पेट पीने से Diabetes में लाभ होता हैजामुन की गुठली का पाउडर करके, एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी के साथ लेने से Diabetes नियंत्रित होती है।

नीम के 7 पत्ते सुबह खाली पेट चबाकर अथवा पीसकर पानी के साथ लेने पर Diabetes में लाभ मिलता हैसदाबहार के 7 फूलों को खाली पेट पानी के साथ चबाकर सेवन करने से भी Diabetes में लाभ मिलता है।

गिलोय , जामुन , कुटकी निम्ब पत्र , चिरायत, काल मेघ, सूखा करेला, काली जीरी, मेथी, इनको समान मात्र में लेकर पीस लें। फिर यह पिसा हुआ पाउडर  1-1 चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी के साथ लेने  से Diabetes में विशेष लाभ मिलता है।

करंजबीज पाउडर को आधा-आधा चम्मच की मात्रा में    सुबह –शाम गुन-गुने पानी के साथ सेवन करने से Diabetes में लाभ मिलता है।

तेजपत्ता के सेहत से जुड़े फायदे व नुकसान | Tej Patta Health benefits side effects in hindi

तेजपत्ता का एक लम्बा इतिहास रहा है. प्राचीन रोम तथा मिस्र में इसकी सहायता से लोग अपने महान और आदरणीय लोगों को पहनाने के लिये मुकुट बनाया करते थे. ये महान लोग मुख्यतः राजा, योद्धा अथवा बड़े ज्ञानी होते थे. भारत में तेज़ पत्ते का प्रयोग खाने में मसाले के रूप में तथा आयुर्वेदिक औशधि के रूप में भी होता है. सूखे हुए अच्छे तेज़ पत्ते का प्रयोग खाने को सुगन्धित बनाने के लिए होता है. इसके प्रयोग के पहले पत्ते को तोड़ दिया जाता है. ऐसे व्यंजन जिसे बनने में एक लम्बा समय लगता है, तेज़ पत्ते का प्रयोग किया जाता है. एक बार व्यंजन तैयार हो जाने पर परोसने के पहले तेज़ पत्ते को निकाल दिया जाता है. तेज़ पत्ते से आने वाली सुगंध इसके स्वाद से अधिक महत्वपूर्ण होती है.

तेजपत्ता के सेहत से जुड़े फायदे व नुकसान

Tej Patta health benefits side effects in hindi

तेज़ पत्ता पाया जाने वाला क्षेत्र (Tej patta plant)

तेज़ पत्ता एशिया के कई क्षेत्रों में पाया जाता है. इसके लिए गर्म जलवायु वाली जगह उत्तम है, अतः एशिया के मेडिटरेनीयन क्षेत्रों में इसकी बहुलता देखी जाती है. भौगोलिक रूप से इसे ‘मेडिटरेनीयन बे लीफ’ कहा जाता है. तेज़ पत्ते का पेड़ सदाबहार होता है, जिसकी ऊंचाई अधिकतम 12 मीटर की होती है. मूल रूप से तैयार एक तेज़ पत्ते का आकार 5 सेमी चौड़ा तथा 10 सेमी तक लम्बा होता है. इस पेड़ के अलावा कई और पेड़ है, जिनसे तेज़ पत्ता प्राप्त किया जाता है. स्थान के अनुसार इसे ‘कैलिफ़ोर्नियन बे लीफ’, ‘इन्डोनेशियाई बे लीफ’, ‘वेस्ट इंडियन बे लीफ़’, ‘इंडियन बे लीफ’ आदि कहा जाता है.

तेज़ पत्ते से स्वास्थ सम्बन्धी लाभ (Tej patta health benefits)

तेज़ पत्ते के कई स्वस्थ सम्बंधित लाभ है. प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग लीवर, आंत और किडनी के इलाज में होता रहा है. कई बार इसका इस्तेमाल मधुमक्खि के काट लेने पर ज़ख्म के स्थान पर किया जाता है. इन दिनों कई लोग इसका इस्तेमाल कई छोटी बड़ी रोगों के निवारण के लिए कर रहे हैं.

सर्दी और बुखार से राहत : सर्दी अथवा बुखार होने पर तेज पत्ते को पानी के साथ उबाल लीजिये. इसके बाद इस उबले हुए पानी से एक साफ़ कपडा भिंगो कर रोगी के सर तथा छाती को सेंकने से उसे सर्दी- खांसी और छाती इन्फेक्शन से राहत मिलता है.

दर्द निवारण के लिए : तेज पत्ते के तेल का इस्तेमाल दर्द वाली जगह पर किया जा सकता है. इसके तेल में दर्द निवारक गुण है. इसके तेल के इस्तेमाल से सूजन, आमवती तथा अर्थराइटिक दर्द से आराम मिलता है.

बुखार से राहत : तेज पत्ते के असाव से पसीना आता है. यदि किसी को बुखार हो तो रोगी को इसका जल दिया जा सकता है. इससे पसीना आता है और रोगी का बुखार उतरने लगता है.

पाचन में सहायक : तेज़ पत्ते के सेवन से पाचन तंत्र विकारों का इलाज हो सकता है. खाने में इसके इस्तेमाल से पेट फूलने से राहत मिलती है.

डायबिटीज 2 में राहत : तेज़ पत्ते का स्वाद कड़वा होता है. इसमें एक तरह का एंटी ओक्सिडेंट पाया जाता है, जो शरीर में इन्सुलिन की मात्रा बढाने तथा ग्लूकोज़ लेवल को नियमित रखने के लिए खूब आवश्यक होता है. डायबिटीज के मरीजों को दवा लेने के बाद इससे बने चाय का सेवन बहुत फायदा पहुंचाता है.

विटामिन ए का अच्छा स्त्रोत : तेज़ पता विटामिन ए का बहुत अच्छा स्त्रोत है. इससे आँख का रेटिना स्वस्थ रहता है और आँख कई बीमारियों से बच जाती है. क्योंकि इसमें एंटी ओक्सीडेंट पाया जाता है अतः इसका सेवन त्वचा को क्षति से बचाता है और त्वचा स्वस्थ रहती है.

तंत्रिका तंत्र के नियमन में सहायक : इसमें बी काम्प्लेक्स ग्रुप के लगभग सभी विटामिन मसलन नियासिन पायरीडॉक्साईन, पैन्टोथेनिक अम्ल, राइबोफ्लेविन आदि मौजूद है. अतः इससे बने हर्बल चाय के सेवन से तंत्रिका तंत्र को सुचारू रूप से चलने में मदद मिलती है.

इम्युनिटी में सहायक : फ्रेश तेज़ पत्ते में विटामिन सी मौजूद होता है. ये विटामिन सी मानव शरीर से जीवाणुओं को नष्ट करता है. साथ ही इसमें बहुत अच्छे मात्रा में लौह तत्व पाया जाता है. इन लौह तत्वों से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण होता है और इम्युनिटी बनी रहती है.

रक्त दाब का नियंत्रण : तेज़ पत्ते में पोटैशियम पाया जाता है. ये तत्व मानव शरीर रक्त प्रवाह के नियमन में सहायक है. अतः इससे बने चाय के सेवन से रक्त चाप के नियमन और नियंत्रण में सहायता मिलती है.

ह्रदय स्वास्थ : इसमें कैफफ़िक अम्ल, सैलीसिलेट आदि तत्व पाए जाते हैं. ये सभी तत्व ह्रदय स्वास्थ को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसमे पाए जाने वाले रूटीन ह्रदय के कैपिलरी वाल को स्वस्थ रखता है. साथ ही केफिक अम्ल शरीर से अनावश्यक कोलेस्ट्रॉल को हटाने में मदद करता है.

वजन घटाने में सहायक : इसका सेवन शरीर में मेटाबोलिक दर को बढ़ा देता है. बीएमआर का स्तर बढ़ने से मोटापे को घटाने में सहायता मिलती है.

तेज़ पत्ते में पाए जाने वाले आवश्यक तत्व (Tej patta nutrition)

तेज पत्ते का इस्तेमाल मुख्यतः उसे सुखाकर किया जाता है. इस पत्ते में गहरी खुशबू तथा इसका स्वाद कड़वा होता है.

इसमें ‘यूकेलिप्टोल’ नामक आवश्यक तैलीय पदार्थ पाया जाता है. एक अध्ययन के अनुसार ये तत्व रसोईघर से कीड़े तथा तिलचट्टों को दूर रखने के लिए अतिउत्तम है.तेज़ पत्ते के तेल में लगभग 81 विभिन्न तत्व पाए जाते हैं, जो किसी न किसी तरह से स्वास्थ को लाभ पहुंचाता है.पोलीफिनोल नाम का एक सक्रीय तत्व इस पत्ते में बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है.इसमें पाया जाने वाला इन विट्रो नामक तत्व जल में घुलनशील पदार्थ है.

इसके अतिरिक्त प्रति सौ ग्राम तेज़ पत्ते में उपस्थित आवशयक तत्वों की मात्रा इस प्रकार है-

ऊर्जा 313 किलो कैलोरी 

कार्बो हाइड्रेट 74.97 ग्राम 

प्रोटीन 7.61 मिलीग्राम 

फैट 8.36 मिलीग्राम 

कोलेस्ट्रोल 0 मिलीग्राम 

फोलेट 180 एमसीजी

नियासिन 2.005 मिलीग्राम 

पायरीडॉक्सिन 1.740 मिलीग्राम 

विटामिन ए 6185 आई यू 

विटामिन सी 46.5 मिलीग्राम 

सोडियम 23 मिलीग्राम 

पोटैशियम 529 मिलीग्राम 

कैल्शियम 834 मिलीग्राम 

आयरन 43 मिलीग्राम 

मैंगनीज 8.167 मिलीग्राम 

फॉस्फोरस 113 मिलीग्राम 

जिंक 3.70 मिलीग्राम

तेज़ पत्ते के पेड़ का औषधीय रूप (Tej patta tree for medicinal use)

हरा या सूखा किसी भी तरह का तेज़ पत्ता औषधीय रूप तथा रसोई घर दोनों में ही बहुत अच्छे से प्रयोग किया जाता है. इसके फल से प्राप्त तेल का इस्तेमाल मुख्यतः साबुन बनाने में किया जाता है. इसके पत्ते से प्राप्त तेल का इस्तेमाल कई तरह के रोग निवारण तथा खाना बनाने के लिए किया जाता है.

तेज़ पत्ते का रसोई में प्रयोग (Tej patta uses in kitchen)

यद्यपि गहरे हरे रंग के तेज़ पत्ते का इस्तेमाल भी रसोई के लिए किया जा सकता है, किन्तु इसे कुछ दिन रख देने से इसका कडवापन कम होता जाता है. यदि खाना बनाते समय इसका इस्तेमाल किया गया है, तो परोसने के पहले इसे खाने से निकाल देना चाहिए. नीचे इसके प्रयोग के कुछ विशेष वर्णन दिए जा रहे हैं.

इसका इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जा सकता है. मसाले में इसके प्रयोग से सब्ज़ियाँ या अन्य व्यंजन बहुत ही शानदार सुगंध से भर जाते है.विभिन्न तरह के व्यंजनों मसलन सीफ़ूड, पोल्ट्री, मांस, पुलाव आदि में इसका विशेष रूप से प्रयोग होता है.ब्रेड सौस, टोमेटो सौस आदि बनाने के लिए भी इसका प्रयोग होता है.‘कोर्ट बुलियन’ नामक एक पेय बनाने के लिए भी इसका प्रयोग होता है. ‘कोर्ट बुलियन’ दरअसल वाइट वाइन, प्याज, अजवायन, पानी आदि मिलाकर बनाया जाता है.इन सबके अलावा कई मीठे व्यंजन जैसे स्वीटब्रेड, क्रीम आदि बनाने के लिए भी इसका प्रयोग होता है.

तेज पत्ते से नुकसान (Tej patta side effects)

यद्यपि तेज़पत्ते का इस्तेमाल बहुत लाभकारी होता है किन्तु अवश्यकता से अधिक इसके सेवन से कुछ परेशानियाँ ज़रूर होने लगती हैं.

तेजपत्ते का अत्यधिक सेवन करने से डायरिया अथवा वोमिटिंग होने की सम्भावना होती है.गर्भावस्था में हर्बल चाय में इसे प्रयोग में लाने के पहले एक बार डॉक्टर से मशविरा लेना बहुत ज़रूरी होता है.   

तेज पत्ते की सेवन विधि (How to eat Tej patta)

इस पत्ते को पानी के साथ उबाल कर उस उबले हुए पानी का इस्तेमाल कई तरह के औषधीय रूप में किया जाता है.इसका इस्तेमाल हर्बल चाय बनाने में होता है.इसके फल तथा पत्तों से आवश्यक तेल प्राप्त होता है. जिसका इस्तेमाल सरदर्द, जोड़ों का दर्द, आर्थराइटिस, सूजन आदि से राहत पाने के लिए किया जाता है.तेज़ पत्ते का कैप्सूल्स भी बाज़ार में उपलब्ध हो गया है, जिसके लगातार सेवन से स्वास्थ बेहतर सकता है.

Monday, June 12, 2017

अगर आप भी दूध पीते है तो यह पोस्ट आपके लिए है - दूध पीने के सही नियम | Rajiv Dixit

आज की  यह पोस्ट स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी के द्वारा बताये गए , दूध पिने के सही नियमो का संकलन है |
 राजीव दीक्षित को किसी सज्जन ने एक सभा में पूछा की "आयुर्वेदाचार्य वाग्भट जी ने कहा है  की खाना खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए क्योकि इससे जठराग्नि शांत होती है और इससे कई उदर रोग पनप सकते है तो दूध , मट्ठा ( छाछ ) ,फलो का रस आदि में भी तो पानी होता है  तो क्या इन्हें भी खाने के बाद नहीं पीना चाहिए |"


अब पढ़िए राजीव दीक्षित जी ने इसका क्या उत्तर दिया और दूध पिने के क्या नियम बताये |

राजीव जी के शब्दों में " यह प्रश्न आपने बहुत अच्छा पूछा मैं भी सोच रहा था की कोई यह प्रश्न उठाये तो मैं इसका सही व्यख्यान दूँ | यह सही है की दूध , छाछ , दही , जूस आदि में 95% पानी होता है लेकिन वाग्भट जी ने इसका बहुर ही सुन्दर एक्स्प्लानेसन (व्याख्या ) दिया है | वो कहते है की पानी को जो गुण है वो अपना कुछ नहीं , पानी को जिस पात्र में रखा है या जिस में पानी को मिलाया है उसी का गुण वो धारण कर लेता है |
आपने एक पुराना गाना भी सुना होगा - पानी रे पानी तेरा रंग कैसा जिस में मिला दो उस जैसा | तो आपने पानी को मिलाया दही में तो अब वह पानी का गुण नहीं अब वह दही का गुण धारण करेगा , किसी फल के जूस में आपने पानी मिलाया तो वह जूस का गुण धारण कर लेगा अर्थात फल के गुण पानी में आ जायेंगे और पानी है दूध में तो दूध के सारे गुण वो धारण कर लेगा | इस लिए खाना खाने के साथ या बाद में मट्ठा पिने की खुली छुट है जी भर के पियो | दूध भी पेट भर कर पियो | बस पीना नहीं है तो वो है सादा पानी | क्योकि अकेला पानी अग्नि को शांत करता है |

बिच में ही किसी ने पूछा की राजीव भाई आइसक्रीम खाने के बाद हम चाय या कॉफ़ी पी सकते है ?

 राजीव दीक्षित जी ने कहा की " सवा सत्यानाश इसका उत्तर बताऊंगा परसों | कभी भी आप गरम खाना खाते है जैसे गरम दूध पिया , गरम चाय पी , गरम कॉफ़ी पिया तो पेट फिर वही काम पे लग जाता है अब वह काम क्या है ? पहले ज्यादा गरम खाने को पेट अपने तापमान पर लाता है | पेट का तापमान वही है जो आपके मुंह का तापमान है अर्थात 38 से 39 डिग्री है , अगर आपके गरम खाने या चाय का तापमान 55 या 60 के आस - पास है तो पेट पहले उसे 38 डिग्री तक लायेगा फिर अचानक आपने कोई ठंडा खाना खा लिया तो अब पेट सोचेगा की गरम को ठंडा करू या ठन्डे को गरम | अब इससे कई प्रकार की समस्याएँ हो जाएँगी और शरीर में सर्द और गर्म वाली शिकायत हो जाएगी रोगों से जकड जाओगे | इसलिये कभी भी ठंडी आइसक्रीम के बाद गरम चाय या कॉफ़ी का सेवन न करे |

अब वापिस पहले प्रश्न पर आते है - इन्होने बहुत ही अच्छा प्रशन पूछा है की वाग्भट जी ने कहा है की दूध को शाम के समय ही पीना है और दूध में या चाय में पानी होता है तो क्या ये सही है ?

देखिये वाग्भट जी के शब्द कोष में चाय या काफी का जिक्र नहीं है क्यों की वाग्भट जी 3500 साल पहले हुए और चाय या काफी तो सिर्फ 250 साल पुरानी है | लेकिन हाँ उन्होंने काढ़े का जिक्र किया है, वो ये कहते है की जो काढ़ा आपके वातको कम करे , आपके कफ को कम करे और आपके पित्त को कम करे एसा कोई भी काढ़ा दूध के साथ मिला कर सेवन कर सकते है |

अत: जब भी आप दूध पिए तो इसे गुनगुना कर के अधिक गरम दूध भी न पीवे, रात के खाने के बाद आप दूध ग्रहण कर सकते है इससे कोई समस्या नहीं होगी बल्कि रात में खाना खाने के बाद दूध पिने से नींद भी अच्छी आती है और सुबह पेट भी अच्छी तरह से साफ़ होता है - हाँ याद रखे रात के समय कभी भी छाछ या दही का इस्तेमाल न करे | दोपहर के खाने के साथ आप मट्ठा ले सकते है यह आपकी जठराग्नि को शांत नहीं करेगा , बल्कि आपकी पाचन क्रिया को सही करेगा | सुबह के नाश्ते में आप दही का प्रयोग करे जो आपको कई रोगों से बचाता है | नियमित दही सेवन से पेट का कैंसर , अल्सर , गैस  और अन्य उदर रोगों से बचाता है |

धन्यवाद |

ब्राह्मी / Brahmi : ब्राह्मी के स्वास्थ्य लाभ - Brahmi Benefits in Hindi

ब्राह्मी / Brahmi

परिचय :

भारत में प्राय सजल भूमि में पाई जाने वाली एक भुसर्पी वनस्पति है जो सम्पूर्ण भारत में तराई वाली जगहों पर सदाबहार रूप में देखि जा सकती है | ब्राहमी प्राय प्रयाप्त जल वाली जगहों पर ही पाई जाती है - हिमालय के तराई क्षेत्रों में , U.P और बिहार के जलमग्न इलाको में आप इसे बारह महीनों हरी -  भरी देख सकते है | जलमग्न जगहों पर अधिक होने के कारण इसे जल निम्ब भी कहते है | 

Brahmi

ब्राह्मी के पत्र, पुष्प एवं फल:

ब्राह्मी का क्षुप बारह मास हरा रहता है , यह जमीन पर फैलने वाली वनस्पति है , जो मांसल और  चिकनी पतियों से अच्छादित रहती है | ब्राह्मी कांड बहुत कोमल होता है , जिस पर छोटे - छोटे रोम और गांठे होती है | कांड की इन गांठो से जड़े निकलती है जो बिलकुल पतली होती है एवं जमीन रूपी रहती है |

इसकी पतियाँ गोल एवं  वृकाकृति में होती है जो 1 इंच से 2  इंच लम्बी एवं 10 mm चौड़ी होती है | ब्राहमी की पतियों पर सात सिरायें स्पष्ट रूप से देखि जा सकती है | 

ब्राह्मी के पुष्प बसंत ऋतू में लगते है जो आकार में छोटे एवं रंग में नीले , सफ़ेद और हलके गुलाबी हो सकते है | ब्राह्मी के पुष्प इसके पत्रकोनो से निकलते है जिनसे आगे जाकर फल लगते है जो आगे से पतले और नुकीले होते है , इन्ही फलो के ग्रीष्म ऋतू में पकने पर  बीज मिलते है जो आकार में छोटे एवं चपटे होते है | 

ब्राह्मी का रासायनिक संगठन :

ब्राह्मी में हैद्रोकोटलीन, एशियाटिकोसाइड, वेलेरिन, फैटी एसिड और एस्कोर्विक एसिड प्रचुर मात्रा में पाए जाते है | इसलिए ब्राह्मी का सम्पूर्ण क्षुप औषध उपयोगी होता है |

ब्राह्मी के पर्याय विभिन्न भाषाओँ में 

संस्कृत - ब्राह्मी ( ब्रह्म की प्राप्ति में सहायक होने के कारण ), सुरमा, ब्रह्मचारिणी, सौम्यलता |

हिंदी - ब्राह्मी, कोट्याली, बिर्हमी, ब्रह्ममंदुकी, खुलखुड़ी  |

गुजरती - विधाब्राह्मी, बरमी |

मराठी - ब्राह्मी |

बंगाली - ब्रह्मिशाक , उधाबिनीं |

अंग्रेजी - Indian Penny Wort , Thickleaved Pennywort |

लेटिन - Hydrocotyle Ariatica |

ब्राह्मी के गुण एवं रोगप्रभाव / Brahmi ke gun or Rogprabhav

ब्राह्मी का रस तिक्त होता है , यह लघु गुण एवं शीत वीर्य की होती है | पचने पर ब्राह्मी मधुर विपाक देती है | आयुर्वेद में ब्राह्मी रसायन का काम करती है | यह कफपित्तशामक , मेध्य, उन्माद, अपस्मार आदि मानसिक व्याधियों में कारगर परिणाम देती है | शरीर के बुखार, खांसी, पीलिया, मधुमेह , रक्त अशुद्धि एवं सफ़ेद दाग जैसी  व्याधियों में उपयोगी होती है | ब्राह्मी मुख्य रूप से मानसिक विकारो में काफी फायदेमंद होती है , यह बुद्धि को जागृत करती है एवं मनुष्य को बुद्धिवान बनती है 

ब्राह्मी के स्वास्थ्य लाभ या फायदे / Brahmi Health Benifits in Hindi

1. ब्राह्मी में एकाग्रता बढ़ाने में ब्राह्मी के फायदे /Brahmi

ब्राह्मी मानसिक विकारो में बेहतर औषधि है | जिन बच्चो का मन पढाई में नहीं लगता उनको ब्राह्मी का सेवन करना चाहिए | रोज रात को एक गिलास दूध में 5 ग्राम ब्राह्मी का चूर्ण मिलाकर बच्चो को पिलाने से उनकी स्मृति बढती है एवं बच्चे में एकाग्रता का विकास होता है |

2. मानसिक शक्ति को बढाने में ब्राह्मी के लाभ /Brahmi

ब्राह्मी एंटीओक्सिडेंट प्रचुर मात्रा में होते है | इसलिए नियमित ब्राह्मी का सेवन करने से मानसिक शक्ति का विकास होता है | जो लोग ज्यादा मानसिक श्रम करते है और वे अपनी मानसिक थकान को भागना चाहते है तो उन्हें भी ब्राह्मी का इस्तेमाल नियमित तौर पर टॉनिक के रूप में करना चाहिए | क्योकि मानसिक शक्ति को बढ़ाने की ब्राह्मी एक उत्तम औषधि है |

3. मिर्गी के रोग में ब्राह्मी 

अपस्मार के रोगी को ब्राह्मी का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ दिन में तीन समय देने से लाभ होता है | मिर्गी के रोगी को ब्राह्मी की जड़ का रस निकाल कर भी प्रयोग में दे सकते है |

4. पागलपन में ब्राह्मी 

पागलपन ( उन्माद ) के रोगी को ब्राह्मी के रस में कुठ का चूर्ण और शहद मिलाकर चटाने से पागलपन में लाभ होता है | 
उन्माद के रोग में ब्राह्मी की पतियों का रस , बालवच , कुठ और शंखपुष्पी को मिलाकर देशी गाय के घी के साथ देने से पागलपन दूर होता है | इसके अलावा ब्राह्मी के बीजो को कालीमिर्च के दानो के साथ पिस कर लेने से भी उन्माद के रोग में लाभ मिलता है |

5. उच्च रक्तचाप में ब्राह्मी के फायदे 

हाई ब्लड प्रेस्सर के रोगी को ब्राह्मी की पतियों का रस शहद के साथ मिलाकर चाटने से राहत मिलती है | 

6. सुजन में ब्राह्मी 

सुजन या दर्द में ब्राह्मी की पतियों पिस कर प्रभावित अंग पर मलने से सुजन उतर जाती है | गठिया या संधिवात से पीड़ित भी ब्राह्मी की पतियों का इस्तेमाल अपने प्रभावित अंग पर कर सकते है | ब्राह्मी के पतियों में सुजन और दर्द को दूर करने के गुण विद्यमान होते है |

7. श्वास और कफज खांसी में ब्राह्मी 

ब्राह्मी कफपित्त शामक गुणों से युक्त होती है | कफज रोगों में ब्राह्मी की चाय बना कर पीना स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक होता है | श्वास और खांसी में ब्राह्मी के रस के साथ कालीमिर्च और शहद मिलाकर सेवन करने से कफज व्याधियों में फायदा पंहुचता है |

8. दांतों के दर्द में ब्राह्मी 

दांतों में तेज दर्द की शिकायत पर ब्राह्मी के चूर्ण को एक कप गरम पानी में डालकर कुल्ला करने से दांतों के दर्द में तुरंत राहत मिलती है | 

9. वीर्यशोधक ब्राह्मी 

ब्राह्मी , शंखपुष्पी , कालीमिर्च , ब्रह्दंड और खैरटी - इन सभी को बराबर की मात्रा में ले और पीसकर चूर्ण बनाले | इस चूर्ण का इस्तेमाल सुबह के समय 3 ग्राम की मात्रा में करने से वीर्य शुद्ध होता है एवं अन्य वीर्य सम्बन्धी रोगों में भी लाभ मिलता है |

10. मूत्रकृछ में ब्राह्मी 

पेशाब करने में कष्ट होने पर ब्राह्मी के 2 चम्मच रस में एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्रकृछ में लाभ मिलता है |

11. बलवर्द्धक ब्राह्मी 

ब्राह्मी एक बलवर्द्धक रसायन है | ब्राह्मी के  सेवन से शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है एवं किसी बीमारी वस् शरीर में आई कमजोरी को भी दूर करती है | 

ब्राह्मी का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिय क्योकि अधिक मात्रा में इसका सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है | आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में ब्राह्मी के पञ्चांग का इस्तेमाल किया जाता है | ब्राह्मी के चूर्ण की मात्रा 1 से 2 ग्राम तक ले सकते है एवं इसके स्वरस का सेवन 5 ml से 10 ml तक कर सकते है | लेकिन मात्रा निर्धारण से पहले अपने शरीर की प्रकृति और बल का ख्याल जरुर कर लेना चाहिए

Sunday, June 11, 2017

अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाना है तो करें ये जरुरी काम

एचडीएल यानी अच्छा कोलेस्ट्रॉल। जितना ज्यादा एचडीएल, उतना ही स्वस्थ दिल। इसका कम होना मोटापे व हृदय रोगों की आशंका को बढ़ा देता है। एचडीएल में सुधार करना है तो स्वस्थ जीवनशैली पर जोर देना जरूरी है।पैदल चलें

पैदल चलना, जॉगिंग करना या साइकिल चलाना कोई भी ऐसा व्यायाम करें, जिससे आपकी हृदयगति तेज हो। एक दिन में व्यायाम के लिए 45 मिनट का समय निकालें। कैसा व्यायाम करते हैं, उसके साथ यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि कितनी देर व्यायाम करते हैं।

वजन रखें नियंत्रित
अगर वजन अधिक है तो वजन कम करने पर जोर दें। खासकर पेट के निचले हिस्से में जमा वसा को कम करने पर ध्यान दें। महिलाओं में 80 सेमी. और पुरुषों में 90 सेमी. से अधिक कमर का होना संकेत है कि वजन कम करना जरूरी है।

धूम्रपान न करें
धूम्रपान का सेवन शरीर में एलडीएल यानी हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। एचडीएल काफी कम है तो धूम्रपान छोड़ना जरूरी होगा। तंबाकू उत्पादों का सेवन न करना एचडीएल के स्तर में सुधार करता है।

अच्छी वसा पर ध्यान दें
ट्रांस फैटी एसिड को पूरी तरह ना कहें। हाइड्रोजेनेटेड वनस्पति तेल भी कम खाएं। बाजार में बिकने वाले बिस्कुट व बेकरी प्रोडक्ट, पीनट बटर और बाजार में बिकने वाली तली चीजों में इसका इस्तेमाल होता है। इसकी जगह मोनोसेचुरेटेड फैट्स खाएं। इसमें सरसों का तेल, जैतून का तेल, मूंगफली का तेल, एवोकाडो व कैनोला ऑयल आदि को शामिल किया जाता है। घर में खाना बनाते समय इन तेलों को कुछ समय पर बदलते रहें। हफ्ते में दो या तीन बार मछली खाना ओमेगा-3 फैट्स के स्तर को बढ़ा देता है। बादाम, अखरोट, पिस्ता के अलावा सीताफल, तरबूज, मेथी, अलसी आदि के बीज खाना भी अच्छा रहता है।


फाइबर खाएं
ओट्स व चोकर समेत अन्य साबुत अनाज, सेब, अंगूर, खट्टे फल, सब्जियां, बींस और मेथी दाने में भरपूर फाइबर होता है। अच्छे नतीजों के लिए एक दिन में दो से तीन चीजों को अवश्य शामिल करें।

सोयाबीन भी कर सकते हैं शामिल
हालांकि इस संबंध में अभी भी बहस जारी है और शोध कार्य चल रहे हैं, लेकिन कुछ शोधों के अनुसार एक दिन में 25 ग्राम सोया प्रोटीन लेना एचडीएल के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है।

डेयरी प्रोडक्ट्स भी लें
कई बार वजन कम करने की प्रक्रिया में डॉक्टर पूरी तरह डेयरी उत्पादों को खाने के लिए मना करते हैं। ऐसा दूध में उच्च वसा की मौजूदगी के कारण होता है। पर शोध कहते हैं कि गाय के दूध में मौजूद कुछ तत्व हानिकर कोलेस्ट्रॉल एलडीएल व ट्रीग्लिसराइड्स को कम करने में मदद करते हैं। स्किम्ड मिल्क और टोंड दूध लेना अच्छे विकल्प हैं।

जो अलसी खाए वो गाए जवानी ज़िंदाबाद, और बुढ़ापा बाए-बाए

अलसी – एक चमत्कारी आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक दैविक भोजन।


गुणधर्म –

अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसका बीज सुनहरे रंग का तथा अत्यंत चिकना होता है। फर्नीचर के वार्निश में इसके तेल का आज भी प्रयोग होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी वातनाशक, पित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है। मूत्रल प्रभाव एवं व्रणरोपण, रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, ऋतुस्राव नियामक, चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाला होता है। यकृत, आमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करता है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करता है। सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करता है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, काॅपर, लोहा, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।

जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है। शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो ॐ-3 और ॐ-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।

अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है।

ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।

आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।

अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।

अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।

चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।

माइन्ड का Sim card है अलसी यहां सिम का मतलब सेरीनिटी, इमेजिनेशन और मेमोरी तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन, क्रियेटिविटी, अलर्टनेट, रीडिंग राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी और डिवाइन है।

त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।


लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।

जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। ­­ आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।

कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।

अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।

मीनोपोज़ (माहवारी सम्बंधित) की तकलीफों पर पॉज़ लगा देती है अलसी।

पुरुषरोग में सस्टेन्ड रिलीज़ वियाग्रा है अलसी। जो अलसी खाये वो गाये जवानी ज़िंदाबाद बुढ़ापा बाय बाय।

पुरूष को कामदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी।

बॉडी बिल्डिंग के लिये नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।

जोड़ की तकलीफों का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया विकल्प है अलसी।

क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है अलसी।

1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है .

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।

अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।

इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।

बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।

अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।

इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।

डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)