Thursday, May 25, 2017

जाने अरीठा/रीठा से हमारे शरीर को कितने फायदे

आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसा फल जिस के बारे में आप सबने सुना तो होगा पर उसके अनेको गुणों से अनभिज्ञ है. जीहाँ अरीठा या रीठा एक ऐसा फल जिसके सेवन से आपकी सेहत में बहुत लाभ पहुचता है.

अरीठे के वृक्ष भारतवर्ष में अधिकतर सभी जगह होते हैं। यह वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसके पत्ते गूलर से भी बड़े होते हैं। अरीठे के वृक्ष को साधारण समझना केवल भ्रम है। अरीठे को पीसकर नहाते समय सिर पर डाल लेने से साबुन की आवश्यकता ही नहीं रहती है।

कहाँ – कहाँ इस्तेमाल होता है अरीठा

अरीठा या रीठा के फल में सैपोनिन, शर्करा और पेक्टिन नामक कफनाशक पदार्थ पाया जाता है। इसके बीज में 30 प्रतिशत चर्बी होती है। जिसका उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है। यह त्रिदोषनाशक और ग्रहों को दूर भगाता है। रीठा का उपयोग उल्टी लाने , दस्तावर, हानिकारक कीटाणु और कफनाशक, गर्भाशय विशेषकर अफीम का जहर दूर करने में किया जाता है। इसका विशेष प्रयोग कफवात रोगों में किया जाता है।

अरीठा के अनेको फायदे

अरीठे के इस्तेमाल से हम अनेको बिमारियों से अपने शरीर को बचा सकतें है

बवासीर (अर्श) : रीठा के पीसे हुए छिलके को दूध में मिलाकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली नमक तथा छाछ के साथ लेने से बवासीर के रोग में आराम आता है।

रीठा के छिलके : रीठा के छिलके को जलाकर उसके 10 ग्राम भस्म (राख) में 10 ग्राम सफेद कत्था मिलाकर पीस लें। इस आधे से 1 ग्राम चूर्ण को रोजाना सुबह पानी के साथ लेने से बवासीर के रोग में आराम आता है।

संग्रहणी : 4 ग्राम रीठा को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर गर्म करें। जब तक झाग न उठ जायें। तब तक गर्म करते रहें। उसके बाद इसे हल्का गर्म-गर्म पीने से संग्रहणी अतिसार (बार-बार दस्त आना) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

माहवारी सम्बंधी परेशानियां : रीठे का छिलका निकालकर उसे धूप में सुखा लें। फिर उसमें रीठा का 2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ सेवन करते हैं। यह माहवारी सम्बंधी रोगों की सबसे बड़ी कारगर दवा है।

कान में मैल जमना : रीठे के पानी को किसी छोटी सी पिचकारी या सिरिंज (वह चीज जिससे किसी चीज को कान में डाला जाये) में भरकर कान में डाल दें। इससे कान के अंदर मैल या जो कुछ भी होगा वह मुलायम हो जायेगा फिर किसी रूई की मदद से इसे निकाल लें।

जुकाम : रीठे के छिलके और कायफल को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सूंघने से जुकाम दूर हो जाता है।

नजला, नया जुकाम : 10-10 ग्राम रीठा का छिलका, कश्मीरी पत्ता और धनिया को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को नाक से सूंघने से जुकाम में लाभ होता है।

उपदंश (सिफलिश) : रीठे का छिलका पिसा हुआ पानी में मिलाकर चने के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। 1 गोली दही में लपेटकर सुबह के समय खायें। थोड़ी दही ऊपर से खाने से उपदंश रोग में लाभ मिलता है। परहेज में नमक और गर्म चीजें न खायें।

मुर्च्छा (बेहोशी) : पानी में रीठे को पीसकर 2-3 बूंदे पानी नाक में डालने से बेहोश रोगी जल्द ही होश में आ जाता है।

गठिया रोग : गठिया के दर्द को दूर करने के लिए रीठा का लेप करने से लाभ मिलता है।

रतौंधी : रीठे को पानी के साथ पीसकर रोजाना 2 से 3 बार आंखों में लगाने से रतौंधी (रात मे न दिखाई देना) रोग में लाभ होता है।

रात में न दिखाई देना: रीठे के छिलके को पीसकर पानी में मिलाकर सुबह सूरज उगने से पहले नाक में डालने से रतौंधी (रात में न दिखाई देना) का रोग दूर हो जाता है।

उल्टी कराने वाली औषधियां : 3.50 मिलीलीटर से 7 मिलीलीटर तक रीठे का चूर्ण रोगी को पिलाने से उल्टी होना शुरू हो जाती है।

दस्त : 1 रीठे को आधा लीटर पानी में पकाकर ठंडा करके फिर उस पानी को आधे कप की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पीने से दस्त आना बंद हो जाता है।

दर्द :अरीठा या रीठा का चूर्ण नाक से सूंघने से आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द खत्म हो जाता है।

बच्चों के विभिन्न रोग : रीठे के छिलके को पीसकर इसका चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद में मिलाकर बच्चे को पिलायें। इससे दस्त के साथ कफ (बलगम) बाहर निकल जाएगा और डब्बा रोग (पसली का चलना) समाप्त हो जायेगा। मूंग के बराबर मात्रा में अभ्रक दूध में घोलकर पिला दें। इससे कफ (बलगम) शीतांग होना, दूध न पीना, मसूढ़े जकड़ जाना आदि रोग दूर हो जाएंगें। इससे पसलियों का दर्द भी दूर हो जायेगा। पसलियों में सरसों का तेल, हींग और लहसुन पकाकर मालिश कर लें। पर छाती मे मालिश न करें।

गंजापन : अगर सिर में गंज (किसी स्थान से बाल उड़ गये हो) तो रीठे के पत्तों से सिर को धोयें और करंज का तेल, नींबू का रस और कड़वे कैथ के बीजों का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

गले का दर्द : रीठे के छिलके को पीसकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शहद में मिलाकर सुबह-शाम रोगी को चटाने से गले का दर्द दूर हो जाता है।

गले के रोग : 10 ग्राम रीठे के छिलके को पीसकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुबह और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शाम को पान के साथ या शहद में मिलाकर रोजाना लेने से गले के रोगों में आराम मिलता है।

आधे सिर का दर्द : रीठे के फल को 1-2 कालीमिर्च के साथ घिसकर नाक में 4-5 बूंद टपकाने से आधे सिर का दर्द जल्द ही खत्म हो जाता है।

नाक का दर्द : रात को रीठे की छाल को पानी में डालकर रख दें और सुबह उसको मसलकर कपड़े द्वारा छानकर इसके पानी की 1-1 बूंद नाक में डालने पर आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।

सिर का दर्द : रीठा का चूर्ण नाक से सूंघने से आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द खत्म हो जाता है।

आंखों के रोग : आंखों के रोगों में रीठे के फल को पानी में उबालकर इस पानी को पलकों के नीचे रखने से लाभ होता है।

दांतों के रोग : रीठे के बीजों को तवे पर भून-पीसकर इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई फिटकरी मिलाकर दांतों पर मालिश करने से दांतों के हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं।

अनन्त वायु : मासिकस्राव के बाद वायु का प्रकोप होने से स्त्रियों का मस्तिष्क शून्य (सुन्न) हो जाता है। आंखों के आगे अंधकार छा जाता है। दांत आपस में मिल जाते हैं। इस समय रीठे को पानी में घिसकर झाग (फेन) बनाकर आंखों में अंजन (काजल की तरह) लगाने से तुरन्त वायु (गैस) का असर दूर होकर स्त्री स्वस्थ हो जाती है।

रूसी : रीठा से बालों को धोने से बाल चमकदार, काले, घने तथा मुलायम होते हैं और बालों की फारस (रूसी) दूर होती है। रीठा के पानी से सिर को धोने से रूसी दूर हो जाती है।

बालों का मुलायम होना : 100 ग्राम कपूर कचरी, 100 ग्राम नागरमोथा और 40-40 ग्राम कपूर तथा रीठे के फल की गिरी, 250 ग्राम शिकाकाई, 200 ग्राम आंवला। सभी को एक साथ लेकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में पानी मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को बालों पर लगायें। इसके पश्चात बालों को गर्म पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अंदर की जूं-लींके मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं। रीठा, आंवला, शिकाकाई को मिलाने के बाद बाल धोने से बाल सिल्की, चमकदार, रूसी-रहित और घने हो जाते हैं।

श्वास या दमा का रोग : श्वास कास (दमा) में कफ निकालने के लिए रीठे का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1.20 ग्राम देते हैं। इससे उल्टी होकर कफ निकल जाता है।

दमा: रीठे के महीन चूर्ण का नस्य देने से भी श्वास रोग (दमा) में आराम मिलता है।

बालों को काला करना : 250-250 ग्राम रीठा और सूखा आंवला पिसा हुआ और 25-25 ग्राम शिकाकाई की फली, मेंहदी की सूखी पत्तियां तथा नागरमोथा को मिलाकर एक साथ पीस लें। शैम्पू तैयार है। इसका एक बड़ा चम्मच पानी में उबालकर इससे सिर को धोयें। इससे सफेद बालों में कालापन आ जाएगा।

पायरिया : 250 ग्राम रीठा के छिलके को भूनकर और बारीक पीसकर मंजन बना लें। रोजाना चौथाई चम्मच रीठे की राख में 5 बूंद सरसों का तेल मिलाकर मंजन करें। इससे लगातार 2 महीने तक मंजन करने से पायरिया रोग ठीक हो जाता है

फोड़ा : सिर के फोड़े पर रीठा का लेप करने से उसकी सूजन और दर्द ठीक हो जाता है।

दाद : 50 ग्राम रीठा की छाल, सड़ा हुआ गोला, नारियल, सड़ी गली सुपारी और 100 मिलीलीटर तिल का तेल और 400 मिलीलीटर पानी के साथ घोलकर और पानी में ही मिलाकर हल्की आग पर पकाने के लिए रख दें। जब पानी जल जाये और केवल तेल बाकी रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। इस तेल को लगाने से छाजन, दाद, खुजली, चकते, फोड़े-फुन्सी आदि सारे त्वचा के रोग दूर हो जाते हैं।

गुल्यवायु हिस्टीरिया : 4 या 5 रीठा को पीसकर 1 कप पानी में खूब मसल लें, फिर उससे निकले झाग को एक साफ कपड़े में भिगोकर रोगी को सुंघाने से हिस्टीरिया रोग की बेहोशी दूर हो जाती है।

कामला (पीलिया रोग) : 15 ग्राम रीठे का छिलका और 10 ग्राम गावजवां को रात में 250 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। सुबह उठकर ऊपर का पानी पी जाएं। 7 दिनों तक यह पानी पीने से भयंकर पीलिया रोग (पीलिया) पीलिया मिट जाता है।

पीलिया रोग : रीठा के छिलके को पीसकर रात को पानी में भिगोयें। सुबह ये पानी नाक में रोजाना 3 बार 2-2 बूंद टपकाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

कुष्ठ (कोढ़) : रीठा को पीसकर कुष्ठ रोगी (कोढ़ के रोगी) के जख्मों पर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाते हैं।

खाज-खुजली : कण्डू और खाज-खुजली होने पर रीठा का लेप करने से लाभ होता है।

सिर का दर्द : पानी में रीठे की छाल को काफी देर तक घिसें और झाग आने पर उसी पानी को गर्म करके सुहाता हुआ 2 या 3 बूंद नाक के नथुनों में डालने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

नाक के नथुनों का दर्द :पानी में रीठे का छिलका घिसकर 2 बूंद नाक के नथुनों में डालने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

अफीम का विष : पानी में रीठे को इतना उबालें कि भाप आने लगे, फिर इस पानी को आधे कप की मात्रा में रोगी को पिलाने से अफीम का जहर उतर जाता है।

बिच्छू का विष : रीठा के फल की मज्जा (फल के बीच का भाग) को तम्बाकू की तरह हुक्के में रखकर पीने से बिच्छू का जहर खत्म हो जाता है।

बिच्छू का विष : रीठे के फल की गिरी को पीसकर उसमें बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर 1-2 ग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को 5-5 मिनट के बाद पानी के साथ 15 मिनट में ही 3 गोली लेने से बिच्छू का जहर खत्म हो जाता है।

बिच्छू का विष :  रीठे के फल को पीसकर आंख में अंजन (काजल) की तरह लगाने से तथा दंषित (काटे हुए स्थान) पर लगाने से भी बिच्छू के जहर में लाभ होता है।

विषैले कीट : रीठे की गिरी को सिरके में पीसकर विषैले कीटों (कीड़ों) के काटने के स्थान पर लगाने से राहत मिलती है।

मिर्गी (अपस्मार) : रीठा के चूर्ण को रोगी को सुंघाने से मिर्गी नष्ट हो जाती है। रीठा के बीज, गुठली और छिलके समेत रीठे को पीसकर मिर्गी के रोगियों को रोजाना सुंघाने से मिर्गी रोग ठीक हो जाता है।

सिर का दर्द : 1 ग्राम रीठा का चूर्ण और 2-3 ग्राम त्रिकुटा चूर्ण को 50 मिलीलीटर पानी में डालकर रखें। सुबह के समय पानी को छानकर अलग शीशी में भर लें। इस पानी की 4-5 बूंदे सुबह के समय खाली पेट रोजाना नाक में डालने से भीतर जमा हुआ कफ (बलगम) बाहर निकल जाता है। नासा रन्ध्र फूल जाते हैं तथा सिर दर्द में भी तुरन्त लाभ मिलता है।

खूनी बवासीर : रीठे के फल में से बीज निकालकर फल के शेष भाग को तवे पर भूनकर कोयला बना लें, फिर इसमें इतना ही पपड़िया कत्था मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर कपडे़ से छान लें। इसमें से 125 मिलीग्राम औषधि सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ 7 दिनों तक सेवन करें। परहेज में नमक और खटाई नहीं खानी चाहिए।

 अतिसार : रीठा की साढ़े 4 ग्राम गिरी को पानी में मसलें, जब इसमें झाग (फेन) पैदा हो जाये तो इस पानी को विसूचिका (हैजा) और अतिसार (दस्त) के रोगी के पिलाने से लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन व कष्ट) : 25 ग्राम रीठे को रातभर 1 लीटर पानी में भिगोकर उसका छना हुआ पानी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने मे परेशानी) में लाभ मिलता हैं।

मासिक-धर्म : नष्टार्तव (मासिकस्राव बंद होना, रजोरोध) : रजोरोध में इसके फल की छाल या गिरी को बारीक पीसकर शहद में मिलाकर बत्ती बनाकर योनि में रखने से रुका हुआ मासिक-धर्म शुरू हो जाता है।

दर्द : रीठा की गिरी के लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूर्ण को शर्बत या पानी के साथ लेने से शूल (दर्द) खत्म हो जाता है।

वीर्य वृद्धि : रीठे की गिरी को पीसकर इसमें बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम 1 कप दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।

विष : रीठे के फल को पानी में पकाकर, थोड़ी मात्रा में लेने से उल्टी के द्वारा जहर बाहर निकल जाता है।

अगर आपके आस पास अरीठे का पेड़ नहीं है, या आपको पता नहीं की अरीठा कहाँ से मिलेगा तो आपको घबराने की जरुरत नहीं है आप अपने आस पास की किसी भी पंसारी की दुकान से यह अरीठा/रीठा असानी से प्राप्त कर सकतें है और यह बहुत मेहंगा नहीं बल्कि बहुत ही सस्ता होता है|

गर्मियों के मौसम में क्या खाए और क्या ना खाए

बदलते मौसम के अनुसार हमारे शरीर में भी स्वाभाविक परिवर्तन होते हैं जिस की वजह से कई बार हमारी तबियत  पर इस का असर पड़ता है| जैसे की अब गर्मियों का मौसम शुरू हो गया है. इस मौसम में थोड़ी सी भी लापरवाही आपको कई बीमारियों का शिकार बना सकती है. तो हमे ऐसे मौसम में अपने सेहत का काफी ध्यान रखना चाहिए, ऐसे मौसम में हमें अपने खानपान का पूरा ध्यान रखना चाहिए खासतौर पर ऐसा खान न होना चाहिए जो कि शरीर को अंदर से ठंडा रखने में मदद करे| इसलिये इस मौसम में ऐसी सब्ज़ियों, फल और पेय पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करे जिनमें ज़्यादा मात्रा में पोषक तत्व और पानी मौजूद हों.

गर्मियों के मौसम में क्या ना खाए

गर्मियों के मौसम सूरज की ताप इतनी तेज होती है की वह शरीर को अंदर तक झुलसा देती है

• गर्मियों के मौसम में हमे तले हुआ खाने का प्रयोग नहीं करना चाहिए 

• ज्यादा मसालें वाले भोजन नहीं करना चाहिए 

• गर्मियों में जितना कम तेल का इस्तेमाल करें उतना अच्छा है, 

• देसी धी, वनस्पति धी, रिफ़ाइन्ड, सरसों का तेल, ऑलिव ओइल गर्म होते है इनका प्रयोग कम से कम करे.

• बर्गर, पिज्जा, तन्दूरी चिकन जैसे जंक फुड का सेवन ना ही करें तो बहतर.

• शहद गर्म होता है इस लिए शहद का सेवन कम से कम करें.

• चाय-कॉफ़ी कम पिए इसका सेवन करने से बॉडी में पानी की मात्रा कम हो जाती है.

• मिक्स फ्रूट नहीं खाने, हर एक फल को पचने में अलग–अलग समय लगता है इसलिए मिक्स फ्रूट का सेवन ना करे.

गर्मियों के मौसम में कोन से फल खाने चाहिए

गर्मियों के मौसम में कई तरहं के फल आते है जिनका सेवन कर आप अपने शारीर को बहुत लाभ पहुँचा सकते है.

तरबूज का सेवन – गर्मियों में तरबूज का सेवन करे यह आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करने का एक अच्छा स्रोत है। यह एक ऐसा फल है, जिसमें एंटीऑक्सीडेंट्स और पानी की मात्रा सबसे अधिक होती है।
खरबूजे का सेवन – खरबूजे का भी सेवन कर सकते है। खरबूजे में विटामिन ए, बी, सी तथा सोडियम और पोटेशियम जैसे खनिज होते हैं। यह शरीर की सारी गर्मी सोख लेता है।
आम का सेवन – आम सबको बहुत पसंद आता है और गर्मियों में खूब मिलता है. इसे भरपूर मात्रा में विटामिन सी और आयरन पाया जाता है. ये गर्भवती महिलाओं के लिए भी बहुत अच्छा है.
कीवी फल का सेवन –  कीवी में विटामिन बी1, बी2, बी3, विटामिन सी और विटामिन के मिलता है. ये हृदय, दांत, किडनी और ब्रेन के लिए बहुत अच्छा है. ये हड्ड‍ियों के लिए भी बहुत अच्छा है.
खुबानी का सेवन – खुबानी यानी एप्रीकॉट में बीटा-कैराटीन होता है, जिसमें एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं. ये कैंसर और हृदय रोगों की रोकथाम के लिए बहुत अच्छा होता है.
योगर्ट का सेवन – योगर्ट में प्रोटीन की मात्रा अध‍िक और वसा कम होता है. ये वजन घटाने में भी बहुत मददगार है. ये पाचन तंत्र को भी बहुत मजबूत बनाता है.

अन्य खाने योग्य पदार्थ

सलाद का सेवन – खाने में सलाद का प्रयोग ज़्यादा करना चाहिए. सलाद में 95 प्रतिशत मात्रा में जल होता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक और वसा बिल्कुल कम होता है. सलाद में खीरा, ककरी और प्याज आदि का प्रयोग लाभदायक हो सकता है.

प्याज़ का सेवन – इसका सेवन गर्मियों में विशेष रूप से लाभदायक माना जाता है. प्याज़ के नियमित सेवन से लू नहीं लगती है. साथ ही गर्मी से जुड़ी कई अन्य बीमारियां भी दूर रहती हैं.

पुदीने का सेवन – गर्मी के मौसम में डेली दही में पुदीना डाल कर खाना चाहिए. इससे शरीर को ठंडक मिलती है. यह पाचन को भी दुरुस्त रखता है.

खीरे का सेवन – गर्मियों में खीरा खाना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है. इसमें विटामिन ए, बी1, बी6, सी, डी पोटैशियम, फॉस्फोरस, आयरन आदि पाए जाते हैं. यह कब्ज़ से मुक्ति दिलाता है. खीरा पानी का बहुत अच्छा स्रोत होता है, इसमें 96% पानी होता है.

गुलकंद का सेवन – गर्मियों में गुलकंद खाने से शरीर को ठंडक मिलती है. यह शरीर को डीहाइड्रेशन से बचाता है और त्वचा को भी तरोताज़ा रखता है. यह पेट को भी ठंडक पहुंचाता है. गुलकंद में विटामिन सी, ई और बी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं.

गर्मियों के मौसम में क्या पीना चाहिए

गर्मियों के गर्मियों के मौसम में में फलों के साथ-साथ कई एसी पैय चीजे है जिनके सेवन से आप गर्मियों में अपने शारीर को राहत पंहुचा सकते है

पानी का सेवन – गर्मियों के मौसम में आप जितना हो सके उतना पानी पिए, सुबह उठकर 2 गिलास पानी पिए और घर से बहार जाने से पहले पानी आवस्य पिए.

नींबू पानी का सेवन – यह गर्मी के मौसन का देसी टानिक है| शरीर में विटामिन सी की मात्रा कम हो जाने पर एनीमिया,जोड़ों का दर्द,दांतों के रोग,पायरिया,खासी और दमा जैसी दिक्कते हो सकती हैं|  नींबू में भरपूर  विटामिन सी होता है|  अत; इन बीमारियों से दूरी बनाए रखने में यह उपाय सफल रहता है| पेट में खराबी होना,कब्ज,दस्त होना में नींबू के रस में थौड़ी सी हींग,काली मिर्च,अजवाइन ,नमक,जीरा मिलाकर पीने से काफी राहत मिलती है|

पुदीने का सेवन – गर्मी में अक्सर बच्चों को लू लग जाती है. ऐसी स्थिति में पुदीने को पीसकर स्वाद अनुसार नमक,चीनी जीरा मिलाकर पुदीने का शरबत बनाके पीने से बहुत फायदा मिलता है. इस मौसम में रोज़ाना पुदीने का सेवन लाभदायक होता है.

नारियल के पानी का सेवन – गर्मियों में नारियल पानी पीते रहने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती है. शरीर में पानी की कमी हो जाने पर, डायरिया हो जाने पर, उल्टी होने पर या दस्त होने पर नारियल का पानी पीना फायदेमंद रहता है. इससे पानी की कमी तो पूरी होती ही है साथ ही ज़रूरी लवणों की मात्रा भी संतुलित बनी रहती है.

तरबूज के रस का सेवन – तरबूज के रस से एसीडीटी का निवारण होता है|  यह दिल के रोगों डायबीटीज व् केंसर रोग से शरीर की रक्षा करता है

छाछ/मट्ठा का सेवन – गर्मी के दिनों में छाछ का प्रयोग हितकारी है| आयुर्वेद शास्त्र में  छाछ के लाभ बताए गए हैं|  भोजन के बाद आधा गिलास छाछ पीने से फायदा होता है| छाछ में पुदीना ,काला नमक,जीरा मिलाकर पीने से एसीडीटी की समस्या से निजात मिलती है| गर्मी की वजह से अगर तुरंत शरीर को ठंडक पहुंचानी है तो मठ्ठा पियें

सत्तू का सेवन – इसे भुने हुए चने , जोऊं और गेहूं पीस कर बनाया जाता है. सत्तू पेट की गर्मी शांत करता है. कुछ लोग इसमें शक्कर मिला कर तो कुछ लोग नमक और मसाले मिला कर खाते और पीते हैं. यह गर्मियों के मौसम में काफी फायदेमंद होता है. गर्मियों में प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल सेहत के लिए जितना नुकसानदायक होता है, उतना ही चने के सत्तू का शर्बत लाभदायक होता है.

आम पना का सेवन – गर्मियों में आम का पन्ना पीना चाहिए. यह कच्चे आम का शर्बत होता है, जो आपको लू से बचाता है. कच्चे आम को पानी में उबालकर उसका गूदा निकाल कर बनाया जाता है गर्मियों में रोज़ाना दो गिलास आम का पना पीने से पाचन सही रहता है. इसके अलावा इससे कब्ज़ और पेट की समस्याएं भी दूर रहती हैं.

खस के शरबत का सेवन – गर्मी में खस का शरबत बहुत ठंडक देने वाला होता है| इसके शरबत से दिमाग को ठंडक मिलती है| इसका शरबत बनाने के लिये खस को धोकर  सुखालें| इसके बाद इसे पानी में उबालें|  और स्वाद अनुसार शकर मिलाएं| ठंडा होने पर छानकर बोतल में भर लें|

ठंडाई का सेवन – गर्मी में ठंडाई  काफी लाभ दायक होती है| इसे बनाने के लिये खस खस और बादाम रात को भिगो दें|सुबह इन्हें मिक्सर में पीसकर ठन्डे दूध में मिलाएं| स्वाद अनुसार शकर मिलाकर पीएं|  गर्मी से मुक्ति मिलेगी|

गन्ने के रस का सेवन – गर्मी में गन्ने का रस सेहत के लिये बहुत अच्छा होता है| इसमें विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं| इसे पीने से ताजगी बनी रहती है| लू नहीं लगती है| बुखार होने पर गन्ने का रस पीने से बुखार जल्दी उतर जाता है| एसीडीटी की वजह  से होने वाली जलन में गन्ने का रस राहत पहुंचाता है| गन्ने के रस में नीम्बू मिलाकर पीने से पीलिया जल्दी ठीक होता है|  गन्ने के रस में बर्फ मिलाना  ठीक नहीं है|

अब इस गर्मी से डर किसका अपनाए ये हेल्थी उपाए फ़ूड आइटम्स और पायें गर्मी में भी ठंडक का एहसास और कहें गर्मी को बाय – बाय

ये 8 बीज मोटापे की ऐसी छुट्टी करेंगे की जीवन में पलट कर कभी मोटापा नही आएगा

क्या आप भी सोचते है कि आजकल मोटापा एक प्रमुख समस्या है और वजन कम करना आसान नही काफी मुश्किल काम है समान रूप में वजन कम करने के लिए सख्त वर्कआउट (workouts) की तो जरूरत होती ही है साथ में कुछ अतिरिक्त पाउंड वजन कम करने के लिए आहार पर भी योजना बद्ध तरीके से काम करना पड़ता है अगर वजन कम करना आपका लक्ष्य है तो आपको मजबूत इच्छा शक्ति की आवश्यकता है आज हम आपको कुछ ऐसे 8 अद्भुत बीजों  के बारे में बताने जा रहे है जो वास्तव में अद्भुत रूप से आपके लिए मददगार है, मोटापा तो निश्चित रूप से जायेगा और जीवन में कभी पलट कर नही आएगा, आइये जाने इन 8 अद्भुत बीजो के बारे में।

1- चिया बीज (Chia seeds) बहुत कम कैलोरी (Low calorie) के साथ पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। इसमे लोहा,ओमेगा -3 फैटी एसिड,पोटेशियम और मैग्नीशियम से भरे होते हैं। अगर आप मोटापे की वजह से कम भोजन के शौकीन हो गये है तो चिया बीज आपके लिए उपयुक्त रहेगा वजन कम करने के लिए चिया बीज को सुपर बीज की श्रेणी में रखा गया है चूँकि चिया बीज पानी की बड़ी मात्रा को अवशोषित करने की क्षमता रखता है जिस कारण वह एक जेल पदार्थ बन जाता है और जब आप इसे खाते है तो पेट में जाने के बाद ये विस्तार (expand ) करने लगता है।

2-अलसी का बीज : अलसी बीज में ओमेगा -3 फैटी एसिड होता है जो शरीर की इंसुलिन के स्तर को भी नियंत्रण करता है साथ में वसा को जलाने का काम भी करता है तथा फीटोएस्ट्रोजन्स भी उपस्थित होता है जो शरीर में हार्मोनल असंतुलन से बचाने का काम बखूबी तो करता ही है साथ में बेमतलब का वजन को बढ़ावा देने वाले कारणों को भी रोकता है चूँकि अलसी के बीज में फाइबर, आयरन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होते है जिसकी वजह से आपको अधिक खाने की जरूरत नही होती और कम मात्रा में खाने पर भी आप की भूख को बहुत जल्दी शांत करती है।

3-क्विनोआ के बीज (Quinoa seeds) : इस बीज, एक दाने के समान सेवन किया जाता है, जो, प्रोटीन और फाइबर में उच्च है. इस लस मुक्त कार्बोहाइड्रेट का एक कप शामिल 8 प्रोटीन के ग्राम और लौह और मैग्नेशियम का अच्छा स्रोत है (Quinoa) चावल के लिए एक बहुत बढ़िया विकल्प नहीं है, फ्राइज़ में इस्तेमाल किया जा सकता, एक मल्टीग्रेन नाश्ते के लिए दलिया को जोड़ा जा सकता है या वेजी बर्गर बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है क्विनोआ बीज देखने में अनाज की तरह ही लगता है लेकिन दोनों में काफी अंतर है। क्विनोआ के बीज में अमीनो एसिड,मैग्नीशियम, प्रोटीन, फाइबर और जिंक होता है इसके अलावा इसमे अन्य बीजो की तुलना कार्बोहाइड्रेट थोड़ा अधिक मात्रा में होता है क्विनोआ बीज का इस्तेमाल लोग अधिक ऊर्जा के लिए करते है पर आपके लिए चिंता की कोई बात नही है क्योकि यह अधिक ऊर्जा बिना मोटापे दिए प्रदान करता है अब आपको वजन कम करने के लिए बस करना इतना है कि इन बीजो को स्वादिष्ट बना कर रोजाना अपने भोजन में शामिल करना है आप इन बीजो की मदद से बिना पोषण की कमी के तेजी से वजन कम कर पाएंगे ये मूल में दक्षिण अमेरिकी की उत्पत्ति है।

4- सूरजमुखी  का बीज (Sunflower seeds) : सूरजमुखी के बीज प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर में जहर से लड़ने और सूजन को रोकने का काम प्राकृतिक रूप से करते है सूरजमुखी के बीज को आप स्नैक्स के रूप में भी खा सकते है यकीन करिए ये सूरजमुखी बीज आश्चर्यजनक लाभ से भरे हुए हैं ये विटामिन बी,विटामिन ई और मैग्नीशियम से समृद्ध होते है जो कोर्टिसोल (cortisol) हार्मोन को कम कर अतिरिक्त वजन बढने से रोकने के साथ-साथ चिंता का स्तर भी कम करने में सक्षम होते है सूरजमुखी के बीजों को खाने से हार्ट अटैक का खतरा कम होता है, कोलेस्ट्रॉल घटता है, त्वचा में निखार आता है तथा बालों की भी ग्रोथ होती है इनके बीजों में विटामिन सी होता है जो कि दिल की बीमारी को दूर रखने में मदद करता है। साथ ही इसमें मौजूद विटामिन ई कोलेस्ट्रॉल को खून की धमनियों में जमने से रोक कर हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा टालता है एक चौथाई कप सूरजमुखी बीज 90 प्रतिशत तक का डेली विटामिन ई प्रदान करता है यदि आप चाहे तो सूरजमुखी का लाभ कच्चे तेल के रूप में भी लेकर कर सकते है.

5- कददू के बीज (Pumpkin seed) : कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए कद्दू के बीज फायदेमंद होते है। स्टेरॉल्स और फिटोस्टेरॉल नामक तत्व से भरपूर कद्दू के बीज शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करते है कद्दू के बीज मांसपेशियों के गठन और संतुलित रक्त शर्करा स्तर के जल को बढ़ावा देता है कद्दू के बीज जिंक और प्रोटीन बीज में सबसे होते है। कद्दू के बीज पाचन प्रणाली को स्वस्थ बनाए रखने अपनी सहायता देते है। शरीर में एसिडिटी को बेअसर करता है कद्दू बीज में कैल्शियम और मैग्नीशियम उपस्थित जो आपके शरीर में आई सूजन को समाप्त सकते है।

6- तिल का बीज (Sesame seeds) : अपने बर्गर ब्रेड या अन्य मल्टीग्रेन ब्रेड पर कुछ बीज देखे होंगे आपकी जानकारी के लिए बता दे ये तिल के बीज होते है तिल बीज उत्कृष्ट फाइबर युक्त होते है इसमे विटामिन विशेष रूप से ई, मैग्नीशियम, जिंक और कैल्शियम उच्च मात्रा में होता है। इसमे मौजूद सभी खनिज शरीर के चयापचय को बनाए रखता है। इसमे शामिल फाइबर आपके पाचन तंत्र को बेहतर और मजबूत बनाने में आपकी मदद करता है साथ में इसको अपने भोजन में शामिल कर आप उसका स्वाद भी बदल सकते है। जोड़ों के दर्द के लिये एक चाय के चम्मच भर तिल बीजों को रातभर पानी के गिलास में भिगो दें। सुबह इसे पी लें या हर सुबह एक चम्मच तिल बीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के चूर्ण के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।

7- भांग का बीज (Hemp seed) : आमतौर पर भांग को नशे से जोड़कर देखा जाता है लेकिन इसका बीज सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। यह पूर्ण प्रोटीन पाने के कुछ शाकाहारी स्रोतों में से एक है क्योंकि इसमें सभी 20 अमीनो एसिड पाए जाते हैं। जो कैलोरी को जलाने वाली मांसपेशियों के विकास के लिए अहम हैं। कसरत के बाद भांग के कुछ बीजों का जूस या शेक के साथ सेवन किया जा सकता है भांग अर्थात गांजा का बीज मूड बदलने का विशिष्ट गुण होता है। मूड बदलने के अलावा भांग का बीज अतिरिक्त कैलोरी को जलाने में काफी मदद करता है। भांग के बीज में प्रोटीन ओमेगा -3 फैटी एसिड मैग्नीशियम और लोहे उपस्थित होते है। इन बीजों की मदद से शरीर में आई सूजन को भी नियंत्रित में किया जा सकता है।

8- अनार के बीज (Pomegranate seeds) : अनार के कई फायदे हैं। अनार हृदय रोगों, तनाव और यौन जीवन के लिए बेहतर माना जाता है। अनार के रसदार बीजों में कैलोरी नहीं होती है। अनार के बीज एंटी ऑक्सिडेंट्स से भरपूर होते हैं। अनार में शामिल विटामिन सी चर्बी को कम करने में मदद करता है। अगर आप भी वजन कम करना चाहते हैं तो अनार के दाने आपकी इसमें मदद कर सकते हैं।

➡ इन बीजों को सेवन करने का तरीका :
इन 8 बीजों को सेवन करने का सबसे अच्छा तरीका है इनको आप भून (Roasted) कर खाएं क्योंकि यह सबसे अच्छा तरीका है और आपको इनका स्वाद भी बहुत लज़ीज़ लगेगा जिससे आप आसानी से खाँ पाएंगे।

सौंफ के स्वास्थ्य लाभ, मात्रा, दुष्प्रभाव और प्रयोग विधि

सौंफ़

सौंफ (Saunf) भारत की एक प्रसिद्ध खाद्य योजक है जिसका प्रयोग न केवल भोजन में हालाँकि औषधि के रूप में भी किया जाता है। आयुर्वेद में इसके कई विशेष गुणों का वर्णन किया गया है। सौंफ को इंग्लिश में फेंनेल सीड (Fennel Seeds) कहा जाता है और यह Foeniculum Vulgare पौधे के यह बीज होते है। सौंफ़ सुगन्धित और स्वादिष्ट सूखे बीज होते हैं। यह शानदार स्वाद प्रदान करता है और अक्सर भारतीय खाना पकाने में उपयोग किया जाता है।

सौंफ़ का स्वाद

सौंफ़ का स्वाद में मधुर, कटु और तिक्त होता है। भारत में सामान्यतः लोग भोजन के बाद सोंफ के बीज चबाते हैं क्योंकि यह भोजन को पचाने में मदद करता है और पेट में गैस के गठन को रोकता है। यह एक सुगंधित जड़ी बूटी है, जिसे मुंह को ताज़ा रखने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यह मसूड़ों और दांत के विकारों में भी राहत देता है।

सौंफ़ के लाभ

सौंफ़ में कई स्वास्थ्य को लाभ पहुँचाने वाले पोषक तत्व, खनिज और विटामिन होते हैं। सौंफ़ का बीज का उपयोग अपचन, अतिसार, शूल और श्वसन संबंधी बीमारियों के उपचार में किया जाता है। यह आंख की समस्याओं और मासिक धर्म संबंधी विकारों में भी फायदेमंद है।

सौंफ वजन घटाने में मदद करता है

सौंफ वजन घटाने में मदद करता है। सौंफ़ बीज वसा के चयापचय (Fat Metabolism) पर कार्य करता है। इसको बढ़ा देता है और संचित हुई वसा को कम करने में सहायता करता है।

हालांकि यदि सौंफ का प्रयोग कम मात्रा में किया जाये तो यह भूख बढ़ा सकता है और एक पाचक औषधि के रूप में कार्य करता है। पर सौंफ की चाय के ऊपर किये गए कुच्छ खोज अध्ययनों द्वारा इसके भूख कम करने के गुण का भी पता लगा है।

दरअसल, यह आपकी भूख को प्राकृतिक रूप में रखता है जैसा कि यह होना चाहिए और आपको भूख पर अच्छा नियंत्रण प्राप्त करने में मदद करता है।

यदि आप को भूख कम लगती है, तो यह गैस्ट्रिक स्राव को व्यवस्थित करने और जिगर कार्यों को सुधारने में मदद करता है और अंततः आपकी भूख को सामान्य बनाता है। यह अति गैस्ट्रिक स्राव को भी बेअसर करता है और पेट का तेजाब कम करने में मदद करता है।

यदि आप को भूख ज्यादा लगती हो और भोजन में लालसा अधिक हो, तो यह भूख को सामान्य करने में भी मदद कर सकती है और भोजन के स्वाभाविक नियंत्रण में सुधार कर सकती है। बहुत से लोगों ने सौंफ़ के बीज का उपयोग करने के बाद भोजन लालसा पर अच्छा नियंत्रण हो जाने की सूचना दी है। पर यह भी देखा गया है की उनकी सौंफ खाने के प्रति लालसा बढ जाती है।

उम्र बढ़ने और कैंसर को रोकता है

सौंफ़ में कुएर्स्टिन (quercetin) और कैम्प्फेरोल  (kaempferol) जैसे एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। ये एंटी ऑक्सीडेंट शरीर में जहरीले कणों को हटाते हैं और कैंसर, अन्य रोगों और उम्र बढ़ने को रोकते हैं। शरीर की त्वचा एक व्यक्ति की उम्र बताती है। सौंफ़ बीज में उपस्थित एंटी ऑक्सीडेंट त्वचा को साफ़ और युवा रखने में मदद करते हैं।

सौंफ़ बीज में उपस्थित फाइबर बृहदान्त्र के कैंसर से सुरक्षा करते हैं। सौंफ के तेल को अन्य मालिश वाले तेल में मिला कर मालिश करने से त्वचा का रंग निखरता है और झुर्रियों से बचाव होता है।

सौंफ बीज को पानी में भिगोकर, फिर शहद और दलिये के साथ मिलाकर पेस्ट बनाया जाता है, जो की त्वचा की उम्र बढ़ने से रोकने के लिए एक बहुत अच्छा फेस पैक है। यह चेहरे की त्वचा को साफ़, दृढ़ और ताज़ा करने के लिए एक बहुत ही प्रभावी स्क्रब है।

पाचन में मदद करता है

सौंफ़ बीज आहार फाइबर का एक समृद्ध स्रोत है। हमारे शरीर को पेट के बेहतर कार्य के लिए अघुलनशील फाइबर की आवश्यकता होती है। यह कब्ज नहीं होने देता और यदि कब्ज हुई हो, तो यह कब्ज के इलाज के लिए भी एक उत्तम औषधि है।

फाइबर पित्त लवण से बंधते हैं और इसे प्रणाली में अवशोषित होने से रोकते हैं। कोलेस्ट्रॉल द्वारा निर्मित पित्त लवण शरीर के लिए हानिकारक होते हैं और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाते हैं। सौंफ़ का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखने में मदद मिल सकती है। यह एक वमन विरोधी, पेट साफ़ करने वाली और यकृत विकार दूर करने वाली जड़ी बूटी है।

खनिज, विटामिन और तेल का अच्छा स्रोत

यह लोहा, कॉपर, पोटेशियम, मैंगनीज, जिंक, मैग्नीशियम और सेलेनियम का अच्छा स्रोत है। मानव शरीर के उचित कामकाज के लिए इन सभी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

सौंफ़ विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन सी और बी-कॉम्प्लेक्स विटामिनों का भंडार है। यह सभी विटामिन इन बीजों में संकेन्द्रित रूप में होते हैं। इसमें आवश्यक तेल होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभप्रद हैं। यह तेल वायुनाशी गुण के होते हैं और पेट के बेहतर कामकाज में मदद करते हैं। सौंफ़ का तेल मांसपेशियों के दर्द में राहत देता है। इसलिए, विशेष रूप से आयुर्वेद में इसका उपयोग मालिश मिश्रणों में किया जाता है। यह नसों को शान्त करता है और मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देता है।

शीतलक के रूप में कार्य करता है

सौंफ़ के बीज में गुण होते हैं, जो शरीर को ठंडक पहुँचाते हैं। आम तौर पर लोग झुलसा देने वाली गर्मी के दौरान गर्मी से राहत पाने के लिए सौंफ बीज पेय का सेवन करते हैं।

सौंफ का औषधीय उपयोग

सौंफ को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह विशेषकर पाचन संबंधित रोगों के उपचार ले लाभदायक है।

सामान्य जुखाम

सौंफ़ ठंड को समाप्त करती है। सौंफ़ के बीज में अल्फा-पिनन (alpha-pinene) और क्रेओसॉल (creosol) होते हैं, जो सीने की जकडन को काम करता है, और खांसी ठीक करता है।

ब्रोंकाइटिस और अस्थमा

उबले हुए सौंफ बीज और पत्तियों को सूंघने से अस्थमा और ब्रोंकाइटिस में राहत मिलती है।

गले में खराश

सौंफ़ बीज ग्रसनीशोथ और गले में खराश या साइनस की समस्याओं के लिए अच्छे होते है।

स्तन का दूध बढ़ाता है

सौंफ़ बीज स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध के उत्पादन में सुधार करने में मदद करता है।

शिशुओं में सौंफ बीज

सौंफ़ बीज पेट और आंतों के विकारों में राहत देने में मदद करता है। शिशुओं में सौंफ़ का तेल उदरशूल से मुक्त करता है।

साँप का काटना

साँप के काटने में सौंफ का पाउडर पुल्टिस की तरह प्रयोग किया जाता है।

तापघात

तापघात (Heat stroke) के मामले में, रात भर पानी में मुट्ठी भर सौंफ को भिगो दें। सुबह नमक की एक चुटकी के साथ इस पानी को लें।

सौंफ़ तेल मालिश

सौंफ़ तेल को मसाज तेल मिश्रण में प्रयोग करने से शरीर का  शोधन करने में मदद मिलती है। इस मालिश के कारण, शरीर में विषैले पदार्थ कम हो जाते हैं जो की गठिया, प्रतिरोधक क्षमता विकार और एलर्जी जैसी स्थितियों को पैदा करते हैं।

आयुर्वेद में सौंफ

आयुर्वेद के अनुसार, औषधि के रूप में सौंफ का उपयोग सभी तीनों दोषों त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) को कम कर देता है। इसका स्वाद मीठा, कसैला और कड़वा होते है।

शरीर पर सौंफ का शीतलन प्रभाव पड़ता है। इसके पत्ते मुख में मीठा और कड़वा स्वाद देते हैं। आयुर्वेद सौंफ को न पकाने की सलाह देता है। पकाने से सौंफ के गुण मर जाते है, इसलिए इसे भिगोकर प्रयोग करें। यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।

सौंफ का पानी

नीचे दी गयी विधि से सौंफ के पानी को बनाये जा सकता है:

पांच चम्मच सौंफ के बीज एक कप पानी में दो घंटे के लिए भिगो दें।सौंफ़ के बीज को निचोड़ें और आगे के उपयोग के लिए सौंफ़ के पानी को अलग रखें।सौंफ़ के बीज को बारीक पीस लें।निचुड़े हुए पानी को इस में मिला दें और तीन घंटे के लिए रख दें ताकि सभी सक्रिय घटक पानी में अवशोषित हो जाएँ।मिश्रण को फिर से निचोड़ लें और सौंफ़ के पानी को अलग करें।सौंफ़ के बीज के पेय को फ्रिज में ठंडा करें और इसे ठंडा ही पीने के लिए दें।यदि आवश्यक हो तो शर्करा मिलायें।

सौंफ की चाय

सौंफ की चाय का सेवन करने से गले की खराश और जठरांत्र संबंधी परेशानियों में राहत मिलती है। सौंफ की चाय नियमित रूप से पीने से शरीर का शोधन करने में मदद मिलती है।

नीचे दी गयी विधि से सौंफ की चाय को बनाया जा सकता है।

सौंफ़ के बीज को मोटा मोटा कूट लें।पानी उबाल लें और सौंफ़ पाउडर को मिला दें।पात्र पर एक ढक्कन रखें और आंच बंद करें।5 मिनट के बाद सौंफ़ की चाय छान लें।शहद या गुड़ को मिलायें और गर्म पीयें।

सौंफ़ मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)

सौंफ़ की सामान्य औषधीय मात्रा  व खुराक इस प्रकार है:

सौंफ मात्रा

बच्चे 500 मिलीग्राम से 2 ग्राम

वयस्क3 से 6 ग्राम

गर्भस्थ1 से 2 ग्राम

वृद्ध (वृद्धावस्था) 2 से 3 ग्राम दिन में दो बार

सौंफ़ का पानी

शिशु 1 से 5 मिलीलीटर

बच्चे 5 से 10 मिलीलीटर

वयस्क 10 से 20 मिलीलीटर

गर्भस्थ 5  से 10 मिलीलीटर

वृद्ध (वृद्धावस्था) 5 से 10 मिलीलीटर दिन में दो बार

सौंफ की चाय

शिशु 1 से 5 मिलीलीटर

बच्चे 20 से 50 मिलीलीटर

वयस्क 50 से 100 मिलीलीटर

गर्भस्थ 20 से 50 मिलीलीटर

वृद्ध (वृद्धावस्था) 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो बार

सेवन विधि

दवा लेने का उचित समय (कब लें?)

खाना खाने के बाद लें

दिन में कितनी बार लें?

2 बार – सुबह और शाम 

अनुपान (किस के साथ लें?)

चबा कर खाए, या गुनगुने पानी के साथ 

उपचार की अवधि (कितने समय तक लें)?

कम से कम 3 महीने या चिकित्सक की सलाह लें

सौंफ़ प्रति दिन 15 ग्राम से कम लेना सुरक्षित माना जाता है।

सौंफ के दुष्प्रभाव (Side Effects)

कम मात्रा में सौंफ़ का उपयोग खाना पकाने में सुरक्षित है। कई घरेलू उपचारों में सौंफ़ के बीज का उपयोग किया जाता है, लेकिन कोई शोध उपलब्ध नहीं है, जो यह सिद्ध करे कि सौंफ बीज औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किये जाने पर वयस्क या बच्चों के लिए सुरक्षित है।

लोगों को इसे लेने से पहले अपने चिकित्सक से पूछ लेना चाहिए क्योंकि दवाइयों के रूप में इसका उपयोग करने से कुछ लोगों को एलर्जी हो सकती है।

सौंफ़ की एलर्जी

अजवाइन और गाजर के प्रति संवेदनशील लोगों को सौंफ़ बीज से एलर्जी हो सकती है।सौंफ का उपयोग लोगों की त्वचा को अतिरिक्त संवेदनशील बना सकता है।

सावधानियां

यदि कोई व्यक्ति ऐसे रोग से पीड़ित है जिसमें एस्ट्रोजेन के प्रभाव से स्थिति ज्यादा खराब हो जाए, तो सौंफ़ को नहीं लेना चाहिए, उदहारण के लिए स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर आदि।कुछ लोगों को सौंफ़ का उपयोग करने से त्वचा की एलर्जी की प्रतिक्रिया होती है।

सौंफ़ तेल की सुरक्षा प्रोफ़ाइल

वैज्ञानिक अनुसंधान ने यह साबित कर दिया है कि स्तनपान करने वाले शिशुओं के पेट दर्द में सौंफ का तेल सुरक्षित रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी खुराक दिन में दो बार एक हफ्ते तक होनी चाहिए। सौंफ़ के तेल का उपयोग साबुन, टूथपेस्ट और माउथ फ्रेशनर बनाने में भी किया जाता है।

लौंग / लवंग - लौंग के फायदे और घरेलू उपचार

लौंग / लवंग / CLOVE / CARYOPHYLLUS AROMATICUS : परिचय 

लौंग भारतीय रसोई घर का एक अभिन्न मसाला जिसे कौन नहीं जनता ? भारत में सभी घरो में लौंग का इस्तेमाल मसाले के रूप में  या घरेलु उपचार के रूप में प्रयोग किया जाता है | परम्परागत चिकित्सा पद्धति एवं घरेलु नुस्खो में लौंग का इस्तेमाल पुरातन समय से होता आरहा है | लौंग का उत्पादन उष्णकटिबंधीय  इलाको में  बहुतायत से होता है , वस्तुत: यह मलैका का देशज पौधा है जो अब उष्णकटिबंधीय इलाको में भी उगाया जाता है | यह जंजीबार, जंगबार, मालाबार, पेम्बा, सुमात्रा, ब्राजील, जमैका , वेस्ट इंडीज आदि में होता है | इसका 90 % उत्पादन जंजीबार में होता है | भारत में भी केरल राज्य में इसकी खेती की जाती है |


लौंग का पौधा 30 से 40 फीट लम्बा और सीधे तने का सदाबहार वृक्ष है | लौंग के पत्ते अडूसे के पत्तो की तरह ही होते है जो चमकीले, सुगन्धित, और हरितवर्णी होते है | इसकी शाखाओं के अग्रिम भाग पर नीले और लाल रंग के पुष्प गुच्छों में लगते है | जिनमे से तेज सुगंध आती है, शुरुआत में इन पुष्प कलियों का रंग पिला होता है जो धीरे - धीरे हरी होने लगती एवं पूरी खिलने पर ये लाल रंग की हो जाती है तब इनको तोडा जाता है | इन्ही कलियों को सुखाने के बाद लौंग कहा जाता है |

लौंग का रासायनिक संगठन 

लौंग में उड़नशील तेल, टेनिन, केरोफाईनील , गौंद और कुछ मात्रा में भुजिनल तत्व पाए जाते है |

लौंग के आयुर्वेदिक गुण-धर्म 

लौंग में अनेक आयुर्वेदिक गुण-धर्म होते है | लौंग का रस कटु और तिक्त होता है , यह स्निग्ध, तीक्षण और लघु गुणों से युक्त होता है , इसका वीर्य शीत एवं विपाक कटु होता है | लौंग आँखों के लिए अच्छी, शीतल, पाचक, रुचिकारक, बल्य , कफशामक, दर्द नाशक, उतेजना और एंटीसेप्टिक गुणों से युक्त होती है |


लौंग के घरेलु प्रयोग और फायदे 

1. दांत दर्द में लौंग का उपयोग 

आजकल सभी दंतमंजन में लौंग का प्रयोग प्राथमिकता से किया जा रहा है क्योंकि इसमें पाए जाने वाले तत्व दांतों के लिए लाभदायक होते है | जब कभी आप के दांतों में दर्द हो तो बस एक लौंग अपने मुंह में रख कर चबा ले दर्द में तुरंत राहत मिलेगी क्योंकि लौंग में एनाल्जेसिक और एंटी इन्फ्लेमेट्री गुण होते है जो दांतों के दर्द और मसूड़ों में होने वाली सुजन को कम करते है | दांतों के दर्द में आप लौंग का तेल भी इस्तेमाल कर सकते है , जिस भी दांत में दर्द है उसपर लौंग के तेल से फोया भिगोकर लगा ले तुरंत आराम मिलेगा |

2.  सिर दर्द में लौंग के फायदे 

सिरदर्द होने पर 5 - 7 लौंग को पिसकर माथे पर लेप करे जल्द ही आराम मिलेगा | सिरदर्द में आप लौंग का तेल भी इस्तेमाल कर सकते है , लौंग के तेल को माथे पर लगाये और तुरंत आराम पाए | नारियल तेल  या तिल तेल में कुछ बुँदे लौंग के तेल की मिलाले और इससे सिर पर हलके हाथो से मालिश करे , जल्द ही सिरदर्द से छुटकारा मिलेगा |

3. श्वास या कफज विकारों में लौंग के फायदे 

श्वास रोग में लौंग को भुन कर चूसने से अस्थमा में राहत मिलती है , इससे जल्द ही कफ छूटने लगता है और गला खुल जाता है | अस्थमा में आप लौंग का काढ़ा बना कर भी इस्तेमाल कर सकते है , काढ़ा बनाने के लिए 7-8 लौंग को दरदरा कूट ले और एक कप पानी में उबाल ले जब पानी आधा रह जावे तब इसमें ठंडा करने के पश्चात शहद डाल कर सेवन करे | यह उपाय अस्थमा में राहत प्रदान करता है एवं अन्य कफज विकारो में भी लाभ देता है |

4. जी मचलाने में लौंग का प्रयोग 

लौंग अति सुगन्धित द्रव्य है , इसलिए इसका इस्तेमाल उबकाई या उल्टी को रोकने में भी कर सकते है | अगर आप का जी मचलाता हो तो लौंग के तेल को सूंघने से आराम मिलेगा | उबकाई को रोकने के लिए 2-3 लौंग को चबाये इससे आपकी उबकाई रुक जावेगी | उल्टी को रोकने के लिए लौंग का चूर्ण बना ले और इसमें शहद मिला कर सेवन करे उल्टी होना बंद हो जावेगी |

5. त्वचा विकारों में लौंग के फायदे 

त्वचा पर फंगल इन्फेक्शन , मुंहासे, फोड़ा - फुंसी से निजात पाने के लिए लौंग के तेल को किसी अन्य तेल में मिलाकर इस्तेमाल करे , तिल तेल या नारियल तेल में कुछ बुँदे लौंग के तेल की मिलाकर इसे संक्रमित त्वचा पर लगावे , त्वचा के सभी फंगल इन्फेक्शन से राहत मिलेगी एवं जल्दी ही रोग का नाश होगा |

6. तनाव में करे लौंग का इस्तेमाल 

तनाव आज  हर किसी के जीवन में है | इसका सीधा सा उपाय है लौंग क्योंकि लौंग में कई तनावरोधी तत्व पाए जाते है जो आपको तनाव से मुक्त करते है | नित्य 2 लौंग खाने से व्यक्ति तनाव से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है | 

7. जोड़ो के दर्द और संधिवात में लौंग के फायदे 

लौंग अच्छी वातहर और दर्द निवारक औषधि है | जोड़ो के दर्द से राहत पाने के लिए एरंड  तेल में लौंग का तेल मिलाकर घुटनों पर या प्रभावित जोड़ो पर 10 से 15 मिनट मालिश करे , इसके दर्द निवारक गुण आपके जॉइंट्स पेन को कम करेंगे एवं मांसपेशियों की सुजन को भी कम करेंगे |

लौंग के अन्य फायदे 

अधिक प्यास लगने की समस्या में लौंग और मिश्री को सामान मात्रा में पिस कर खाने से बार - बार प्यास लगने की समस्या से निजात मिलती है |अम्लपित की समस्या में खाना खाने के बाद नित्य 1 से 2 लौंग खाने से अम्लपित की समस्या में आराम मिलता है |अपच होने पर खाना खाने के बाद 2-3 लौंग को पानी में उबाल कर गरम - गरम पानी को पीले | अपच की समस्या से निजात मिलेगा |नमक के साथ लौंग को चबाने से गले में स्थित कफ बाहर निकलता है एवं खांसी एवं गले के दर्द से राहत मिलती है |कान दर्द में लौंग के तेल के साथ तिल का तेल मिलकर कान में डालने से , कान दर्द में तुरंत आराम मिलता है |आँखों में गुहेरी निकलने पर लौंग को पिस कर आँख के पास लगाने से गुहेरी जल्दी ही बैठ जाती है |पेटदर्द में लौंग का प्रयोग काफी फायदा देता है | पेटदर्द में लौंग को पीसकर इसकी फंकी लेने से पेटदर्द में आराम मिलता है |खसरे में दो - तीन लौंग को पिसकर शहद के साथ सेवन करने से खसरे में लाभ मिलता है |सुखी खांसी में लौंग को आग में भुन कर, शहद के साथ लेने से खांसी चली जाती है |मुंह में दुर्गन्ध आती हो तो लौंग को नित्य चूसने से मुंह से दुर्गन्ध आने की समस्या नहीं रहेगी एवं यह दांतों और मसुडो के लिए भी फायदेमंद होगी |

गर्म पानी पीने से लाभ बहुत है, लेकिन ध्यान दें ।

हमारे शरीर का 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना है। प्रतिदिन शरीर को 6 से 10 गिलास पानी की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता का एक बड़ा भाग खाद्य पदार्थों के रूप में शरीर ग्रहण करता है। शेष पानी मनुष्य पीता है। इसके साथ ही कहते है कि गर्म पानी पीना शरीर के लिए बहुत फायदे करता है। ये सच है मगर क्या आपको पता है आप जो पानी पीते हैं वो अगर ज्यादा गर्म है तो आपके लिए घातक भी साबित हो सकता है।


अंदरुनी अंगों को नुकसान

एक इंसान को दिन में 6-10 गिलास पानी पीने की सलाह दी जाती है, यह शरीर को संतुलित रखता है। मगर जब आप इससे ज्यादा पानी पीते है तो यह आपके अंदरुनी अंगो को नुकसान पहुंचाने लगती है। 

होठों का जलना
गर्म पानी पीते हुए अक्सर लोगों के होंठ जल जाते हैं। इसलिए हमेशा पानी का छोटा घूंट लेकर पिए। ताकि वह आपके होंठ न जले। 
 
आंतरिक अंग घायल
गर्म पानी पीने से शरीर के आंतरिक अंग जल सकते है, क्योंकि गर्म पानी का तापमान आपके शरीर के अंग से बिलकुल अलग होता है।

प्यास लगने पर ही पानी पीना
पानी पीने के फायदे को देखते हुए लोग जरुरत से ज्यादा पानी पीने लगते हैं। मगर ऐसा नहीं करना चाहिए जब आपको प्यास लगे तभी पानी पीना चाहिए। क्योंकि बिना प्यास के पानी पीने की वजह से आपके दिमाग की नसों में सूजन आ सकता है।

सोते हुए न पीए पानी
सोते हुए गर्म पानी नहीं पीना चाहिए। इसकी वजह से आपकी रात की निंद खराब होती है, और आपको बार-बार उठकर रेस्टरुम जाना पड़ता है।

किडनी खराब
किडनी शरीर के विषाक्त पदार्थों को निकालने का काम करती है। मगर ज़रूरत से ज़्यादा पानी पीने से किडनी खराब हो जाती है, क्योंकि किडनी पर पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।

बाय-पास सर्जरी में मनाही
जिन लोगों की बाय-पास सर्जरी हुई होती है, उनमें से कुछ मामलों में भी डॉक्टर्स मरीजों को पानी कम पीने की सलाह देते हैं।

पाचन की समस्या
जरूरत से ज्यादा पानी पीने से हमारे शरीर में मौजूद वह पाचन रस काम करना बंद कर देता है, जिससे खाना पचता है। इस वजह से खाना देर से पचने लगता है और कई बार खाना पूरी तरह से डाइजेस्ट भी नहीं हो पाता है।

सार यह है कि गर्म पानी पीना चाहिए, परन्तु ये ध्यान रहे कि वह ज्यादा गर्म न हो, गुनगुना करके पिएं और सुबह बासी मुंह ही पिएं !

Wednesday, May 24, 2017

पंचकर्म - अपनी गाड़ी की तरह अपने शरीर की सर्विसिंग भी करवाए


बाइक या कार का उपयोग आप सभी करते है तो आपको ये भी पता होगा की अपनी कार को अच्छी तरह से मेन्टेन रखने के लिए हम हर महीने या एक निश्चित दुरी तय करने के बाद  उसकी किसी सर्विस सेण्टर से सर्विस करवाते है ताकि गाडी के कल-पुर्जे अच्छी तरह काम करते रहे | आप ने ध्यान दिया हो तो गाड़ी के सर्विस करने के बाद वह चलने में और बेहतर हो जाती है | लेकिन अगर इसके विपरीत हम गाडी को खरीदने के बाद एक बार भी सर्विसिंग न करवाए तो क्या उस मशीन का उपयोग हम लम्बे समय तक कर सकते है ? आपका उतर होगा नहीं | क्योकि मशीनरी में बैगर तेल या सर्विसिंग के उसके कल - पुर्जे काम करना बंद कर देते है या वे ख़राब हो जाते है |

हमारा शरीर भी यांत्रिक मशीन के तरह काम करता है, सिर्फ फर्क इतना है की यह सजीव है और अपनी हीलिंग अपने - आप करता रहता है लेकिन जीवित रहने के लिए हम खान - पान करते है और वर्तमान समय में खाना या वातावरण कितना शुद्ध है ये सभी को पता है | आजकल जो हम खाते है उनमे से 90 % पद्धार्थो में केमिकल या अन्य विजातीय तत्व मिले हुए होते है , जब हम इनका उपयोग करते है तो ये हमारे शारीर में इकट्ठा होते रहते है और कालांतर में जाकर निश्चित ही किसी रोग का कारन बनते है | अब प्रश्न आता है की इनसे बचे कैसे तो इनसे बचना तो मुस्किल है लेकिन इन तत्वों को शारीर से बहार निकालना हमारे लिए आसान है और जिस पद्धति से इनको बहार निकाला जा सकता है वह है - आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा पद्धति | 


आइए अब जानते है पंचकर्म के बारे में 

पंचकर्म दो शब्दों से मिलकर बना है - पञ्च + कर्म | यंहा पञ्च मतलब - पांच और कर्म से तात्पर है - कार्य |

आयुर्वेद में -  "क्रियते अनेन इति कर्म:" क्रिया या कर्म को चिकित्सा भी कहते है | 

पंचकर्म में पांच कर्म किये जाते है जो इस प्रकार है -

1. वमन    -    उल्टी करवाना 

2. विरेचन -    दस्त करवाना 

3. अनुवासन - मेडिकेटिड घी से एनिमा दिया जाता है 

4. निरुह -      औषध क्वाथ से एनिमा 

5 नश्य      -    नाक के द्वारा औषधि 

कैसे करते है पंचकर्मा 

पंचकर्म तीन चरणों में किया जाता है - 

1. पूर्व कर्म - पाचन / स्नेहन / स्वेदन 

2. प्रधान कर्म - पांचो कर्म 

3. पश्चात कर्म - संसर्जन कर्म / रसायन कर्म / शमन 

पूर्व कर्म :

जिस प्रकार मलिन वस्त्र पर रंग नहीं चढ़ता , रंग चढाने के लिए पहले उसे साफ़ करना पड़ता है उसी प्रकार पंचकर्म करने से पूर्व शारीर को सुध किया जाता है ताकि पंचकर्म का पूर्ण लाभ हो | पूर्वकर्म में निम्न लिखित कर्म किये जाते है |

पाचन - सबसे पहले पाचन क्रिया ठीक की जाती है क्योकि पाचन ठीक होगा तो ही पंचकर्म ठीक तरीके से होगा

स्नेहन - स्नेहन दो प्रकार से किया जाता है |

 A. बाह्य स्नेहन - इसमें औषद तेल से शारीर की मालिस की जाती है |

 B. अभ्यंतर स्नेहन - इसमें मेडिकेटिड घी ये तेल रोगी को पिलाया जाता है |

स्वेदन - इसमें औषधियों की भाप से शारीर में पशीना लाया जाता है जिससे की शरीर में इकठ्ठा हुए मल छूटकर कोष्ठों ( अमाशय ) में एकत्रित हो जावे |

प्रधान कर्म :

वमन - इस कर्म में निपुण चिकित्सक की देख - रख में औषधियों के द्वारा वमन ( उलटी ) करवाई जाती है | जिससे की अमाशय में इकट्ठी हुई गंदगिया वमन के द्वारा शारीर से बहार निकल जावे |

विरेचन - निपुण चिकित्सक की देख-रेख में औषधियों के द्वारा रोगी को दस्त लगवाये जाते है , जिसके कारन गुदा मार्ग में स्थित दोष शारीर से बहार निकलते है |

अनुवाशन - इस कर्म में शारीर में औषधी घी या तेल से एनिमा लगाया जाता है | इसका कार्य शारीर को उर्जा देना और गंदगी को शारीर से बहार निकलना होता है

निरुह बस्ती - इसमें भी शारीर में एनिमा दिया जाता है जो औषधी काढ़े रूप में होता है और इसका कार्य भी शारीर में स्थित दोषों को बाहर निकालना है |

नश्य - साइनस, एलर्जी आदि रोगों में नाक के द्वारा औषधि दी जाती है | यह औषधि घी , तेल या अन्य किसी रूप में हो सकती है |

पश्चात कर्म :

प्रधान कर्म के बाद किया जाने वाला कार्य पश्चात कर्म कहलाता है |

संसर्जन कर्म - पूर्वकर्म और प्रधान कर्म के बाद शारीर शुद्ध हो जाता है उसे बनाए रखने के लिए संसर्जन कर्म किया जाता है |

रसायन कर्म - इस कर्म में व्यक्ति को Rejuvanation अर्थात शारीर की कायाकल्प करने के लिए , व्यक्ति की प्रकृति और रोग के अनुशार रसायन का सेवन करवाया जाता है |

शमन कर्म - इसमें रोगी के रोग का पूर्ण रूप से रोग का शमन कर के उसे सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार कर दिया जाता है |

पंचकर्म क्यों जरुरी है ?

जिस प्रकार एक गंदे कपड़े पर अगर हम रंग चढ़ाना चाहेंगे तो रंग सही तरीके से नही चढ़ेगा लेकिन जब उसी कपड़े को धोकर साफ़ करने के बाद रंग चढ़ावे तो रंग भली प्रकार चढ़ेगा | यही सिद्धांत हमारे शारीर पर लागु होता है | क्योकि दवा का असर उस समय होता है जब हमारा शरीर उसे स्वीकार करे अगर शरीर में पहले से ही गंदगी ( विकृत दोष ) पड़ी है तो दवा अपना असर नहीं करेगी | आयुर्वेद के ऋषि मुनिओ ने इसे पहचान लिया और उन्होंने दवा से पहले शरीर के शोधन को प्राथमिकता दी | यही शोधन चिकित्सा अब पंचकर्म कहलाती है | अत: रोग के शमुल नाश के लिए पहले शारीर का शोधन जरुरी होता है और आयुर्वेद में रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए पंचकर्म पद्धति अपनाइ जाती है | पंचकर्म को कोई भी करवा सकता है इसके लिए उसे रोगी होना जरुरी नहीं क्योकि यह शोधन पद्धति है इसलिए हर कोई इसे अपना सकता है | 


यह पंचकर्म का संक्षिप्त परिचय है | सम्पूर्ण विश्व आज पंचकर्म के चमत्कारिक लाभों के कारण इसके पीछे भाग रहा है और हम इससे अनभिज्ञ है | इसलिए आप सभी से निवेदन है की इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करे ताकि अन्य लोगो को भी आयुर्वेद और इसकी चिकित्सा पद्धतियों के बारे में जानकारी मिले और वे इससे लाभान्वित हो सके |

धन्यवाद