Wednesday, May 24, 2017

उबाल कर खाए इन 10 सब्जियों को, मिलेंगी दुगनी ताकत

आज हम आपको इस लेख में उन सब्जियों के बारे में बता रहे है जिन्हें उबालने पर उनके पौष्टिक गुणों में वृद्धि होती है.

1. गाजर (Carrot)

गाजर प्लेन पानी में मुठ्ठी भर गाजर काट कर डालें. इसमें एक चुटकी नमक और थोड़ी सी काली मिर्च मिक्स करें. फिर इसे उबाल कर खाएं, यह आपकी आंखों के लिये काफी पौष्टिक होगी.

2. चुकन्‍दर (Beet root)

चुकंदर खून की कमी और पीरियड्स की समस्या को दूर रखने के लिये दिन में एक चुकंदर उबाल कर खाना चाहिये. चुकंदर को 3 मिनट से ज्यादा नहीं उबालना चाहिये.

3. आलू (Potato)

आलू जब भी आप आलू खाएं तो उसे उबाल कर ही खाएं क्योंकि उसमें कम कैलोरीज़ होती हैं.

4. बींस (Beans)

बींस को कम से कम 6 मिनट तक उबालें. फिर उसमें चुटकी भर नमक और काली मिर्च मिलाएं. उबली हुई बींस मधुमेह के लिये अच्छी होती है.

5. पालक (Palak)

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हरी पत्तेदार सब्जियों को उबाल कर खाया जाए तो उसकी ताकत दोगुनी बढ़ जाती है. खास तौर पर मेथी और पालक की सब्जियां.

6. स्‍वीट कार्न (Sweet Corn)

स्वीट कार्न को उबालने में काफी पानी और समय लगता है. पर इस को हम बिना उबाले खा भी नहीं सकते. स्वीट कार्न में पोषण और ढेर सारे रेशे होते हैं जो कि कब्ज को दूर रखता है.

7. शकरकंद (Sweet Potato)

शकरकंद में काफी सारा कार्ब होता है जो कि शरीर के लिये बेहद जरुरी है. अगर आप डाइटिंग पर हैं तो शकरकंद खाएं.

8. फूल गोभी (Cauliflower)

भाप में पकी हुई फूल गोभी काफी पौष्टिक मानी जाती है. ऐसा करने पर इसमें मौजूदा न्‍यूट्र्रियन्‍ट्स और विटामिन्स नष्ट नहीं हो पाते.

9. पत्‍ता गोभी (Cabbage)

पत्ता गोभी जब उबाल कर खाई जाती है, तो उसका टेस्ट और भी ज्यादा बढ़ जाता है. उबालने के लिये जिस पानी का उपयोग किया गया हो, उसा प्रयोग कर लेना चाहिये क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा पोषण होता है.

10. ब्रॉकली (Broccoli)

ब्रॉकली को उबाल कर खाने में ज्यादा टेस्ट मालूम पड़ता है. अगर आपको यह डिश सादी ही खानी हो तो उबालते समय इसमें थोड़ा सा ऑलिव ऑयल मिला लें

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गर्मीयों में घड़े का पानी दूर करेंगा पेट के रोग

 

पुराने जमाने में जब हमारे घरों में फ्रिज नहीं हुआ करती थी, तब गर्मियों में गले की प्‍यास बुझाने के लिये हम मटके या सुराही के पानी का सेवन किया करते थे। लेकिन आज के इस मॉर्डन जमाने में जहां लोंगो के घरों में बड़ी-बड़ी फ्रिज आ चुकी हैं, वहां उन्‍होंने मटके के पानी का सेवन करना बंद कर दिया है। पर क्‍या आप जानते हैं कि जो लोग मटके का पानी पीते हैं वह कभी बीमार नहीं पड़ते। कहा गया है कि मटके या घड़े का पानी वास्‍तव में अमृत के समान है क्‍योंकि इसका पानी सेहत के लिहाज से बहुत फायदेमंद है। अगर आपको यकीन नहीं हो रहा है तो अभी पढ़ें इस आर्टिकल को…

कैसे ठंडा रहता है पानी  मिट्टी के बने मटके में बहुत ही छोटे-छोटे छेद होते हैं, जो कि नंगी आंखों से नहीं देखे जा सकते। पानी का ठंडा होना वाष्पीकरण की क्रिया पर निर्भर करता है। जितना ज्यादा वाष्पीकरण होगा, उतना ही ज्यादा पानी भी ठंडा होगा। इन छोटे छेदों द्वारा मटके का पानी बाहर निकलता रहता है। गर्मी के कारण पानी वेपर बन कर उड़ जाता है। वेपर बनने के लिए गर्मी यह मटके के पानी से लेता है। इस पूरी प्रक्रिया में मटके का तापमान कम हो जाता है और पानी ठंडा रहता है। पानी को मौसम अनुसार ठंडा रखे  मिट्टी के बर्तन में पृथ्वी के गुण आ जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मटका, पानी को जलवायु के आधार पर ठंडा रखता है,‍ जिससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होता।गले के लिये फयदेमंद  फ्रिज का पानी ज्‍यादा ठंडा होने के कारण गले को नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं घडे का पानी गले पर नर्म प्रभाव छोड़ता है। यदि आप धूप से आ कर मटके का पानी पीते हैं तो आप कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। प्रतिरक्षा प्रणाली बढ़ती है  जब आप प्‍लास्‍टिक के बोतल में पानी भर कर कई घंटों तक रखते हैं तब उसमें प्‍लास्‍टिक के गुण आ जाते हैं। ऐसे ही जब मिट्टी के मटके में पानी रखा जाता है, तो उसमें मिट्टी के गुण बढ जाते हैं, जिससे कि प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिलता है!

पेट की एसिडिटी मिटाए 
घड़े के पानी में मिट्टी के क्षारीय गुण विद्यमान होते है। क्षारीय पानी की अम्लता के साथ प्रभावित होकर, उचित पीएच संतुलन प्रदान करता है। इस पानी को पीने से एसिडिटी नहीं होती और पेट दर्द से छुटकारा भी मिलता है।

गभर्वती महिलाओं के लिये अमृत 
गर्भवती महिलाओं को फ्रिज का पानी छोड़ कर मटके का ही पानी पीना चाहिये। इनमें रखा पानी न सिर्फ उनकी सेहत के लिए अच्‍छा होता है, बल्कि पानी एक सौंधापन भी लिये हुए होता है। जिसको पीने से महिलाओं का मन अच्‍छा होता है।

पेट की गैस से छुटकारा 
गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पीते है, इसकी तासीर गर्म होती है। यह वात भी बढाता है। मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता, इसका पानी संतुष्टि देता है।

ऐसे रखें पानी को ठंडा
मटके को एक मज़बूत मेज़ पर खिड़की के पास रखें। हवा से पानी ठंडा होता है। गर्मी के महीनों में मटके के चारों ओर गीला कपड़ा लगाकर रखें ताकि पानी जल्दी ठंडा हो सके।

नाक की एलर्जी : कैसे बचें ?


आज क्यों होती है यह अलर्जी और क्या हैं इससे बचने के उपाय ? आइए जानते हैं इसके सभी पहलुओं कोः

आजकल कई तरह की एलर्जी देखने में आती हैं। इनमें से जो एलर्जी सबसे ज्यादा परेशानी पैदा करती हैं, वे आंख और नाक की एलर्जी हैं। जब किसी इंसान का ‘इम्यून सिस्टम’ यानी प्रतिरोधक तंत्र वातावरण में मौजूद लगभग नुकसानरहित पदार्थों के संपर्क में आता है तो एलर्जी संबंधी समस्या होती है। शहरी वातावरण में तो इस तरह की समस्याएं और भी ज्यादा हैं।

नाक की एलर्जी से पीड़ित लोगों की नाक के पूरे रास्ते में अलर्जिक सूजन पाई जाती है। ऐसा धूल और पराग कणों जैसे एलर्जी पैदा करने वाली चीजों के संपर्क में आने की वजह से होता है।

नाक की एलर्जी के प्रकार

नाक की एलर्जी मुख्य तौर पर दो तरह की होती है। पहली मौसमी, जो साल में किसी खास वक्त के दौरान ही होती है और दूसरी बारहमासी, जो पूरे साल चलती है। दोनों तरह की एलर्जी के लक्षण एक जैसे होते हैं।

– मौसमी एलर्जी को आमतौर पर घास-फूस का बुखार भी कहा जाता है। साल में किसी खास समय के दौरान ही यह होता है। घास और शैवाल के पराग कण जो मौसमी होते हैं, इस तरह की एलर्जी की आम वजहें हैं।

– नाक की बारहमासी एलर्जी के लक्षण मौसम के साथ नहीं बदलते। इसकी वजह यह होती है कि जिन चीजों के प्रति आप अलर्जिक होते हैं, वे पूरे साल रहती हैं।

जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, उन्हें लगातार कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए और इसकी अवधि को जितना हो सके, उतना बढ़ाना चाहिए। तीन से चार महीने का अभ्यास आपको एलर्जी से मुक्ति दिला सकता है।

इनमें शामिल हैं: कॉकरोच, पालतू जानवरों की रूसी और छछूंदर के बीजाणु। इसके अलावा घरों में पाए जाने वाले बेहद छोटे-छोटे परजीवियों से भी एलर्जी हो सकती है। घर की साफ-सफाई करने वाला हर शख्स जानता है कि धूल का कोई मौसम नहीं होता। अच्छी बात यह है कि एलर्जी पैदा करने वाले इन कारणों से बचकर आप हमेशा रहने वाली नाक की एलर्जी को नियंत्रित कर सकते हैं।
कारण
– एलर्जी की प्रवृत्ति आपको आनुवंशिक रूप से यानि कि अपने परिवार या वंश से मिल सकती है।

– किसी खास पदार्थ के साथ लंबे वक्त तक संपर्क में रहने से भी हो सकती है।

– नाक की एलर्जी को बढ़ाने वाले कारकों में शामिल हैं: सिगरेट के धुएं के संपर्क में आना, जन्म के समय बच्चे का वजन बहुत कम होना, बच्चों को बोतल से ज्यादा दूध पिलाना, बच्चों का जन्म उस मौसम में होना, जब वातावरण में पराग कण ज्यादा होते हैं।
बचाव
मौसमी एलर्जी से बचाव :
जिन चीजों से आपकी एलर्जी बढ़ जाती है, उन सभी को आप खत्म तो नहीं कर सकते, लेकिन कुछ कदम उठाकर आप इसके लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। साथ ही, एलर्जी पैदा करने वाले उन तत्वों से बचाव भी संभव है।

– बरसात के मौसम, बादलों वाले मौसम और हवा रहित दिनों में पराग कणों का स्तर कम होता है। गर्म, शुष्क और हवा वाला मौसम वायुजनित पराग कणों और एलर्जी के लक्षणों को बढ़ा सकता है। इसलिए ऐसे दिनों में बाहर कम आएं-जाएं और खिड़कियों को बंद करके रखें।

– अपने बगीचे या आंगन को सही तरीके से रखें। लॉन की घास को दो इंच से ज्यादा न बढ़ने दें। चमकदार और रंगीन फूल सबसे अच्छे होते हैं, क्योंकि वे ऐसे पराग कण पैदा करते हैं, जिनसे एलर्जी नहीं होती।

बारहमासी एलर्जी से बचावः

पूरे साल के दौरान अगर आप एलर्जी से पीड़ित रहते हैं, तो इसका दोष आपके घर या ऑफिस को दिया जा सकता है। एलर्जी के लक्षणों को कम करने के लिए सबसे बढ़िया तरीका है कि आप अपने घर और ऑफिस को साफ-सुथरा रखें।

इसके लिए हफ्ते में एक बार घर और ऑफिस की धूल झाड़ना अच्छा कदम है, लेकिन एलर्जी से पीड़ित लोगों के लिए यह काफी नहीं है। हो सकता है कि साफ सुथरी जगह होने के बावजूद वहां से एलर्जी पैदा करने वाले तत्व साफ न हुए हों। नाक की एलर्जी से पीड़ित लोगों के लिए घर को एक बेहतर जगह बनाने के लिए कुछ अतिरिक्त कदम उठाए जाने की जरूरत है।

– कालीन और गद्देदार फर्नीचर की साफ-सफाई पर खास ध्यान दें।

– ऐसे गद्दों और तकियों के कवर का इस्तेमाल करें जिन पर एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों का असर न होता हो।

– हर हफ्ते अपने बिस्तर को धोएं। इससे चादरों और तकियों के कवर पर आने वाले एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों से छुटकारा मिलेगा। अच्छा तो यह होगा कि इन्हें गर्म पानी में धोया जाए और फिर इन्हें गर्म ड्रायर में सुखाया जाए।

– जब आप बाहर जाते हैं तो पराग कण आपके जूतों से चिपक जाते हैं। इसलिए बाहर से आने से पहले पैरों को पोंछ लें या जूतों को बाहर ही उतार दें।

– अपने दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें, खासकर उन दिनों में जब पराग कण ज्यादा होते हैं।

एलर्जी का इलाज

नाक की एलर्जी का इलाज करने के लिए तीन तरीके हैं:

1 सबसे अच्छा तरीका है बचाव। जिन वजहों से आपको एलर्जी के लक्षण बढ़ते हैं, उनसे आपको दूर रहना चाहिए।

2 दवा जिनका उपयोग आप लक्षणों को रोकने और इलाज के लिए करते हैं।

3 इम्यूनोथेरपी- इसमें मरीज को इंजेक्शन दिए जाते हैं, जिनसे एलर्जी करने वाले तत्वों के प्रति उसकी संवेदनशीलता में कमी आ जाती है।

नाक की एलर्जी को आपको नजरंदाज नहीं करना चाहिए। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो इससे साइनस, गला, कान और पेट की समस्याएं हो सकती हैं।

ऐसी स्थितियों के लिए इलाज की मुख्य पद्धति के अलावा वैकल्पिक तरीके भी इस्तेमाल किए जाते हैं। जहां तक योग की बात है, तो सदगुरु कहते हैं कि कपालभाति का रोजाना अभ्यास करने से एलर्जी के मरीजों को काफी फायदा होता है।

एलर्जी में रामबाण है कपालभाति

“मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने अपने साइनस का इलाज करने की कोशिश में अपने पूरे सिस्टम को बिगाड़ दिया है। इसके लिए आपको बस एक या दो महीने तक लगातार कपालभाति का अभ्यास करना है, आपका साइनस पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। अगर आप इसे सही तरीके से करते हैं, तो कपालभाति से सर्दी-जुकाम से संबंधित हर रोग में आराम मिलेगा।

जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, उन्हें लगातार कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए और इसकी अवधि को जितना हो सके, उतना बढ़ाना चाहिए। तीन से चार महीने का अभ्यास आपको एलर्जी से मुक्ति दिला सकता है। कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को इससे फायदा ही हुआ है।

10 से 12 काली मिर्च कूट लें। इन्हें दो चम्मच शहद में रात भर भिगोकर रखें। सुबह उठकर इसे खा लें और काली मिर्च को चबा लें। शहद में हल्दी मिला ली जाए तो वह भी अच्छा है। अगर आप सभी डेरी पदार्थों से बचकर रहते हैं तो अपने आप ही बलगम कम होता जाएगा।

जिन लोगों को कोई आराम नहीं मिला, उन्हें चाहिए कि जिन चीजों से उन्हें एलर्जी होती है, उनसे कुछ समय के लिए बचकर रहें और कुछ समय तक क्रिया करना जारी रखें, जिससे यह ठीक से काम करने लगे। एलर्जी की वजह से हो सकता है कि उनकी क्रिया बहुत ज्यादा प्रभावशाली न हो। अगर नाक का रास्ता पूरी तरह नहीं खुला है और बलगम की ज्यादा मात्रा है तो क्रिया पूरी तरह से प्रभावशाली नहीं भी हो सकती है। अगर सही तरीके से इसका अभ्यास किया जाए, तो आपको अपने आप ही एलर्जी से छुटकारा मिल सकता है। सर्दी का मौसम फिर आपको परेशान नहीं करेगा। सर्दी ही नहीं, गर्मी से भी आपको ज्यादा परेशानी नहीं होगी। जब आपके भीतर ही एयर कंडिशन हो तो गर्मी और सर्दी आपको बहुत ज्यादा परेशान नहीं करेगी।

नाक के रास्तों को साफ रखना और सही तरीके से सांस लेना एक बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। आधुनिक समाज के लोग इसे भूल गए हैं। उन्हें लगता है कि कैसे भी जाए, बस हवा अंदर चली जाए, इतना ही काफी है। ऐसा नहीं है। साफ नासिका छिद्र और श्वसन के स्वस्थ तरीके का बड़ा महत्व है। अगर कपालभाति का भरपूर अभ्यास किया जाए तो अतिरिक्त बलगम यानी कफ भी खत्म हो जाएगा। शुरू में आप कपालभाति 50 बार करें। इसके बाद धीरे-धीरे रोजाना 10 से 15 बार इसे बढ़ाते जाएं। चाहें तो इसकी संख्या एक हजार तक भी बढ़ा सकते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो 500, 1000 या 1500 कपालभाति भी करते हैं। अभ्यास करते रहने से एक ऐसा वक्त भी आएगा, जब कोई अतिरिक्त बलगम नहीं होगा और आपका नासिका छिद्र हमेशा साफ रहेगा।” – सदगुरु

कुछ घरेलू नुस्खे

जिन लोगों को सर्दी के रोग हैं और हर सुबह उन्हें अपनी नाक बंद मिलती है, उन्हें नीम, काली मिर्च, शहद और हल्दी का सेवन करना चाहिए। इससे उन्हें काफी फायदा होगा।

– इसके लिए नीम की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट से एक छोटी सी गोली बना लें, इसे शहद में डुबोएं और हर सुबह खाली पेट इसे निगल लें। अगले एक घंटे तक कुछ न खाएं, ताकि नीम का आपके शरीर पर असर हो सके। यह तरीका हर तरह की एलर्जी में फायदा पहुंचाता है, चाहे वह त्वचा की एलर्जी हो, भोजन की एलर्जी हो या किसी और चीज की। इस अभ्यास को हमेशा करते रहना चाहिए। इससे नुकसान कुछ नहीं है। नीम के अंदर जबर्दस्त औषधीय गुण हैं। कड़वाहट ज्यादा महसूस होती है तो नीम की मुलायम नई पत्तियों का इस्तेमाल कर लें, नहीं तो कोई भी हरी और ताजी पत्ती ठीक है।

– 10 से 12 काली मिर्च कूट लें। इन्हें दो चम्मच शहद में रात भर भिगोकर रखें। सुबह उठकर इसे खा लें और काली मिर्च को चबा लें। शहद में हल्दी मिला ली जाए तो वह भी अच्छा है। अगर आप सभी डेरी पदार्थों से बचकर रहते हैं तो अपने आप ही बलगम कम होता जाएगा।

सिर्फ ठंडक ही नहीं, पोषण भी देता है बेल

गर्मियों में बेल का शरबत न सिर्फ आपको भीतर तक ठंडक और ताजगी से भर देता है बल्कि सेहत से जुड़ी कई समस्याओं को भी दूर करता है।


इसमें 31.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.3 ग्राम फैट्स, 1.8 ग्राम प्रोटीन, विटामिन ए,बी,सी, थाइमाइन, राइबोफ्लोबिन, 85 मिलीग्राम कैल्शियम, 600 मिलीग्राम पोटैनिशयम, 2.9 ग्राम फाबिर, 61.5 ग्राम फाइबर और 137 के कैलोरी ऊर्जा है।

हालांकि गर्भावस्था में इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है।

जानिए, गर्मियों में बेल के शरबत से मिलने वाले सेहत से जुड़े सात बड़े फायदों के बारे में। 

1-डायरिया, हैजा और चर्मरोगों में फायदेमंद

बेल में मौजूद तत्व-टैनिन डायरिया और हैजा के उपचार में मददगार है। बेल के पाउडर का इस्तेमाल आयुर्वेद में इन रोगों से बताव में मददहार है। वहीं कच्चे बेल का पल्प विटिलिगो के इलाज में भी मददगार हो सकता है।

2-गैस्ट्रिक अल्सर में फायदेमंद

बेल में कुछ फेनोलिक तत्व हैं जिनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स गैस्ट्रिक अल्सर ठीक करने में मददगार हैं। इतना ही नहीं, इसके सेवन से पेट में एसिड का संतुलन भी बना रहता है।

3-संक्रमण से दूर रखता है

कई शोधों में प्रमाणित हो चुका है कि बेल में कई तरह के एंटीमाइक्रोबियल गुण हैं जो शरीर को संक्रमण से मुक्त रखने में मददगार हैं।

4-कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण

बेल के पत्तों में मौजूद अर्क का का सेवन कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में मददगार हो सकता है। आयुर्वेद में इसकी मदद से कॉलेस्ट्रॉल कम किया जाता है।

5-श्वास संबंधी रोगों में फायदेमंद

आयुर्वेद में बेल से निकलने वाले तेल का इस्तेमाल दमा और श्वास से जुड़े रोगों के उपचार में किया जाता है।

6-दिल के लिए फायदेमंद

बेली के रस को घी के साथ मिलाकर थोड़ी मात्रा में नियमित रूप से लेने पर दिल से जुड़े रोगों से बचा जा सकता है। बेल के शरबत के सेवन से स्ट्रोक के खतरे से बचाव संभव हो सकता है।

7-डायबिटीज में फायदेमंद

बेल में लेक्साटिव का स्तर अधिक होता है जो शरीर में ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करते हैं। यह शरीर में इन्सुलिन बनाने में मददगार है जिससे डायबिटीज मे आराम मिलता है। स्त्रोत : अमर उजाला

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बेल : औषधीय गुणों का मेल 

बीके निर्मला अग्रवाल

आयुर्वेद में बेल को स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद फल माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार पका हुआ बेल मधुर, रुचिकर, पाचक तथा शीतल फल है। बेलफल बेहद पौष्टिक और कई बीमारियों की अचूक औषधि है। इसका गूदा खुशबूदार और पौष्टिक होता है। 

बेल के फल के 100 ग्राम गूदे का रासायनिक विश्लेषण इस प्रकार है- नमी 61.5 प्रतिशत, वसा 3 प्रश, प्रोटीन 1.8 प्रश, फाइबर 2.9 प्रश, कार्बोहाइड्रेट 31.8 प्रश, कैल्शियम 85 मिलीग्राम, फॉस्फोरस 50 मिलीग्राम, आयरन 2.6 मिलीग्राम, विटामिन 'सी' 2 मिलीग्राम। इनके अतिरिक्त बेल में 137 कैलोरी ऊर्जा तथा कुछ मात्रा में विटामिन 'बी' भी पाया जाता है।

आयुर्वेद में बेल को स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद फल माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार पका हुआ बेल मधुर, रुचिकर, पाचक तथा शीतल फल है। कच्चा बेलफल रुखा, पाचक, गर्म, वात-कफ, शूलनाशक व आंतों के रोगों में उपयोगी होता है। बेल का फल ऊपर से बेहद कठोर होता है। इसे नारियल की तरह फोड़ना पड़ता है। अंदर पीले रंग का गूदा होता है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में बीज होते हैं। गूदा लसादार तथा चिकना होता है, लेकिन खाने में हल्की मिठास लिए होता है। ताजे फल का सेवन किया जा सकता है और इसके गूदे को बीज हटाकर, सुखाकर, उसका चूर्ण बनाकर भी सेवन किया जा सकता है। 

उदर विकारों में बेल का फल रामबाण दवा है। वैसे भी अधिकांश रोगों की जड़ उदर विकार ही है। बेल के फल के नियमित सेवन से कब्ज जड़ से समाप्त हो जाती है। कब्ज के रोगियों को इसके शर्बत का नियमित सेवन करना चाहिए। बेल का पका हुआ फल उदर की स्वच्छता के अलावा आँतों को साफ कर उन्हें ताकत देता है।

मधुमेह रोगियों के लिए बेलफल बहुत लाभदायक है। बेल की पत्तियों को पीसकर उसके रस का दिन में दो बार सेवन करने से डायबिटीज की बीमारी में काफी राहत मिलती है।

रक्त अल्पता में पके हुए सूखे बेल की गिरी का चूर्ण बनाकर गर्म दूध में मिश्री के साथ एक चम्मच पावडर प्रतिदिन देने से शरीर में नए रक्त का निर्माण होकर स्वास्थ्य लाभ होता है।

गर्मियों में प्रायः अतिसार की वजह से पतले दस्त होने लगते हैं, ऐसी स्थिति में कच्चे बेल को आग में भून कर उसका गूदा, रोगी को खिलाने से फौरन लाभ मिलता है। 

गर्मियों में लू लगने पर बेल के ताजे पत्तों को पीसकर मेहंदी की तरह पैर के तलुओं में भली प्रकार मलें। इसके अलावा सिर, हाथ, छाती पर भी इसकी मालिश करें। मिश्री डालकर बेल का शर्बत भी पिलाएं तुरंत राहत मिलती है। स्त्रोत : वेब दुनिया डॉट कॉम


पाचन-तंत्र की तकलीफों से बचाता है बेल

बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं।

इसके वृक्ष लगभग पूरे भारत में विशेषतः हिमालय के सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। मध्य तथा दक्षिण भारतीय जंगलों में भी बेल के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। बेल का वृक्ष कंटीला होता है, जिसकी ऊंचाई 20 से 30 फुट तक होती है। इसके पत्ते संयुक्त−त्रिपत्रक तथा गंधयुक्त होते हैं। बाजार में प्रायः दो प्रकार के बेल उपलब्ध होते हैं छोटे जंगली तथा बड़े उगाए हुए। दोनों के गुण समान होते हैं। जंगली फल कुछ छोटा होता है, जबकि उगाए हुए फल अपेक्षाकृत कुछ बड़े होते हैं।

ग्राही पदार्थ मूलतः बेल के गूदे में पाए जाते हैं। ये पदार्थ हैं−क्यूसिलेज, पेक्टिक, शर्करा, टैनिन्स आदि। मार्मेलोसिन नामक रसायन जो स्वल्प मात्रा में ही विरेचक होता है इसका मूल रेचक संघटक है। इसके अलावा इसमें उड़नशील तेल भी पाया जाता है। इसके पत्ते, जड़ तथा तने की छाल भी औषधीय गुणों से युक्त होते हैं।

औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है, वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा, तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है। चूर्ण को शरबत आदि की अपेक्षा प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि चूर्ण अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी होता है। दशमूलारिष्ट आदि में इसकी जड़ की छाल का प्रयोग किया जाता है।

बेल का सर्वाधिक प्रयोग पाचन संस्थान संबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। पुरानी पेचिश तथा दस्तों में यह फल बहुत लाभकारी है। इसके कच्चे फल का प्रयोग अग्निमंदता, जलन, गैस, बदहजमी आदि के उपचार में किया जाता है।

बेल में म्यूसिलेज इतना अधिक होता है कि डायरिया के बाद यह तुरन्त घावों को भर देता है। जिससे मल संचित नहीं हो पाता और आतें कमजोर नहीं होतीं। बेल चाहे कच्चा हो या पक्का आंतों के लिए लाभदायक होता है। इससे आंतों की कार्यक्षमता बढ़ती है तथा भूख सुधरती है। पुरानी पेचिश के साथ−साथ यह अल्सरेटिव, कोलाइटिस जैसे जीर्ण असाध्य रोगों के इलाज में भी उपयोगी होता है। पेक्टिव बेल के गूदे का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह अपने से बीस गुना अधिक जल में एक कोलाइटल घोल के रूप में मिल जाता है जो चिपाचिपा तथा अम्ल प्रधान होता है। यह घोल आतों पर अधिशोषक (एड्सारबेंट) तथा रक्षक के रूप में कार्य करता है। बड़ी आंत में पाए जाने वाले जीवाणुओं को मारने की क्षमता भी इसमें होती हैं।

ताजे कच्चे फल का स्वरस आधा से एक चम्मच दिन में एक बार, सुखाए कच्चे बेल के कतलों के जल का निष्कर्ष एक से दो चम्मच दो बार, बेल का चूर्ण दो से चार ग्राम। ये सभी संग्रहणी व रक्त स्राव सहित अतिसार में बहुत लाभदायक होते हैं।

पुरानी पेचिश तथा कब्जियत में पके फल का शर्बत या 10 ग्राम बेल, 100 ग्राम गाय के दूध में उबाल कर ठंडा करके देते हैं। संग्रहणी जब खून के साथ बहुत वेगपूर्ण हो तो कच्चे फल के लगभग पांच ग्राम चूर्ण को एक चम्मच शहद के साथ दो−चार बार देते हैं। हैजा होने पर बेल पर शरबत या चूर्ण गर्म पानी के साथ देते हैं। आषाढ़ या श्रावण मास में निकाले गये पत्तों के रस को काली मिर्च के साथ देने से रोगी को पुराने कब्ज में आराम पहुंचता है। इसके अलावा पके हुए फल का गूदा मिसरी के साथ देने से कब्ज में लाभ मिलता है।

दांत निकलते समय जब बच्चों को दस्त लगते हैं, तब बेल का 10 ग्राम चूर्ण आधा पाव पानी में पकाकर शेष बीस ग्राम को पांच ग्राम शहद में मिलाकर दो−तीन बार देते हैं। इससे उन्हें दांत निकलने की तकलीफ से आराम मिलता है।

कच्चे बेल का गूदा गुड़ के साथ पकाकर या शहद मिलाकर देने से रक्तातिसार तथा खूनी बवासीर में लाभ पहुंचता है। इन स्थितियों में जहां तक हो सके, पके फल का प्रयोग नहीं करें, क्योंकि ग्राही क्षमता अधिक होने के कारण हानि भी हो सकती है।

बेल की कोमल पत्तियों को सुबह−सुबह चबाकर खाने और फिर ठंडा पानी पीने से शूल तथा मानसिक रोगों में शांति मिलती है। आंखों के रोगों में इसके पत्तों का रस, उन्माद अनिद्रा में जड़ का चूर्ण तथा हृदय की अनियमितता में फल का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

प्रायः सर्वसुलभ होने के कारण बेल के फल में मिलावट कम होती है। परन्तु कभी−कभी इसमें ग्रार्सीनिया मेंगोस्टना तथा कैच के फल मिला दिए जाते हैं, परन्तु फल को काटकर इसे पहचाना जा सकता है। अनुप्रस्थ काटने पर बेल दस−पन्द्रह भागों में बंटा सा दिखाई देता है, जिसके प्रत्येक भाग में 6 से 10 बीज होते हैं!

Tuesday, May 23, 2017

हेल्थ टिप्स: ये काम करेंगे तो चुस्त-दुरुस्त रहेगा आपका दिमाग

आइए जानते हैं कि दिमाग को कैसे रख सकते हैं स्वस्थ:


शरीर की कसरत के लिए तो हम जिम चलें जाते हैं लेकिन दिमाग के लिए फिलहाल ऐसा कोई जिम मौजूद नहीं है, जहां जाकर हम अपनी दिमाग की सेहत का ख्याल रख सकें.

जैसे हम काम करके थक जाते हैं, वैसे ही हमारा दिमाग लगातार सक्रिय रहने के कारण थक जाता है. जैसे मांसपेशियों का व्‍यायाम शरीर को मजबूत बनाता है, वैसे ही दिमाग को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी कई एक्सरसाइज़ हैं जो इसकी कार्यक्षमता को बढ़ा देती हैं.

आइए जानते हैं कि दिमाग को कैसे रख सकते हैं स्वस्थ:

1) अपनी याद्दाशत का परीक्षण करते रहें. "टू डू" लिस्ट बनाएं. टू डू लिस्‍ट मतलब दिन भर के कामों की एक सूची. फिर इस लिस्ट को याद करने की कोशिश करें. देखिए, कितनी बातें आपको याद रहती हैं. और हां, "नॉट टू डू" की भी लिस्‍ट बनाएं. मतलब वो बातें, जिसके लिए खुद को रोज फटकार लगाते हैं कि कल से ऐसा नहीं करेंगे. जैसेकि सुबह देर से उठना या दिन में दस कप चाय पीना.

2) म्यूजिक सीखें: नया म्यूजिक सीखने की कोशिश करें. संगीत न सिर्फ मस्तिष्‍क के तंतुओं को सक्रिय करता है, बल्कि यह हीलिंग का भी काम करता है. शरीर के साथ मस्तिष्‍क की भी उम्र बढ़ती है. ऐसे में कुछ नया सीखना मस्तिष्‍क को सक्रिय रखने के लिए काफी उपयोगी है.

3) गणित पढ़ें: हिसाब-किताब का सारा बोझ कैलकुलेटर पर ही न डालें. कुछ दिमाग को भी करने दें. मन में हिसाब जोड़ें. पेन्सिल, कागज या कंप्यूटर के बिना समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करें. चलते हुए जोड़ने या घटाने वाले सवाल हल करें. इससे दिमाग की अच्छी कसरत होती है.

4) खाना पकाना सीखें: किसी नए पकवान की रेसिपी पता करें. पाक कला में हमारी कई इंद्रियों का उपयोग होता है. जैसे: गंध, स्पर्श, दृष्टि और स्वाद, जो मस्तिष्क के विभिन्न भागों को शामिल करते हैं.

5) नई भाषा सीखने की कोशिश करें. अपनी डिक्शनरी में रोज पांच नए शब्‍द जोड़ें.

6) शब्दों से अपने दिमाग में तस्वीरें बनाएं. जैसे चिडि़या या पतंग या हिमालय कहने पर दिमाग में क्‍या तस्‍वीर उभरती हैं. आंखें बंद करके दृश्‍य की कल्‍पना करें. कल्‍पना कर सकने ने की क्षमता एक मजबूत और सक्षम दिमाग की निशानी है.

7) नक्शा याद करें: जब भी आप किसी नई जगह से लौटें तो घर आने के बाद उस नई जगह का नक्शा अपने दिमाग में बनाने की कोशिश करें

8) अपने स्वाद को समझने का प्रयास करें. जब भी कोई डिश खाएं तो उसमें इस्तेमाल किये गए मसालों को जानने की कोशिश करें.

9) मस्तिष्‍क हमेशा दिमाग का काम करने से ही तेज नहीं होता. हाथ का काम भी मस्तिष्‍क को ज्‍यादा ऊर्जावान बनाता है, जैसे सिलाई, कढ़ाई, बागवानी, बुनाई और पेंटिंग.10. नया खेल सीखें. योग करें. गोल्फ या टेनिस जैसे खेल खेलें, जिनमें शरीर और मन दोनों सक्रिय रहता है.

कैल्शियम की कमी के लक्षण, कारण और कैल्शियम के फायदे


कैल्शियम की कमी हमें कई तरह की बीमारियों से रुबरु कराती है। हड्डियों को स्वस्य्क रखने में सहायक और रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिये आवश्यक कैल्शियम स्त्री-पुरुष, बच्चे बुढ़े जवान हर किसी के लिए एक जरूरत है। आपके घर में भी ऐसा कोई सदस्य होगा जो हड्डियों और जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है उसे कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ दीजिए। इससे हड्डियां उसकी मजबूत रहेगी।

कैल्शियम युक्त भोज्य पदार्थ खाने से न केवल शरीर की हड्डियां मजबूत रहती हैं बल्कि दांतों को भी शक्ति मिलती है। यही नहीं, रक्त न जमे इसकी शक्ति भी कैल्शियम से मिलती है तथा ह्रदय की गति भी संतुलित रहती है।

कैल्शियम के स्रोत

कैल्शियम के प्रमुख स्रोत में दूध, पनीर, दही और अंडे शामिल है। इसके अतिरिक्त फल और सब्जियों में विशेष मात्रा में कैल्शियम पाए जाते हैं। फलों में कैल्शियम जैसे; अमरूद, सीताफल, अनार, नासपाती, अंगूर, केला, खरबूजा, जामुन,  आम, संतरा, अनानास पपीता, लीची, सेब और शहतूत में कैल्शियम पाए जाते हैं। जबकि सब्जियों में कैल्शियम जैसे; चुकंदर, नींबू, पालक, बथुआ, बैगन,टिंडा, तुरई, लहसुन, गाजर, भिंडी, टमाटर, पुदीना, हरा धनिया, करेला ककड़ी, अरबी, मूली और पत्तागोभी में कैल्शियम पाए जाते हैं। यही नहीं, बादाम, पिस्ता, मुनक्का, खजूर जैसे सूखे मेवे और मूग, मोठ, चना, राजमा, सोयाबीन जैसे आनाज में भी कैल्शियम पाए जाते हैं।

कैल्शियम की कमी के लक्षण

कैल्शियम की कमी के लक्षण आपकी कमजोर हड्डियों से लगाई जा सकती है। कैल्शि यम की कमी की वजह से न केवल मांसपेशियों में अकड़न और दर्द होता है बल्कि थकावट भी जल्दी आ जाती है। कमजोर दांत, कमजोर नाखून, झुकी हुई कमर, बालों का टूटना या झड़ना कैल्शियम की कमी के लक्षण माने जा सकते हैं। यही नहीं, नींद ना आना, डर लगना और दिमागी टेंशन रहना कैल्शिीयम की कमी की एक वजह हो सकती है।

कैल्शियम की कमी के कारण

कैल्शियम की कमी के कारण को यदि आप जानना चाहें तो उसका उत्तर आपके अहार में मिलेगा। माना गया है कि जिसके अहार में कैल्शियम युक्त भोजन नहीं होता वह कम नींद के शिकार होते हैं। महिलाओं को अधिक मासिक धर्म होना या नवजात शिशुओं में स्तनपात का अभाव ये कुछ ऐसे कारण हैं जिसकी वजह कैल्शियम की कमी को माना जाता है। यदि आप सूरज से कई दिनों तक दूर रहेंगे तो आपके शरीर को कैल्शियम नहीं मिलेगा और आपकी हड्डियां कमजोर हो जाएंगी। इसके अलावा जो लोग शारीरिक श्रम में विश्वास नहीं करते उन्हें भी कैल्शियम की कमी का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, शकरयुक्त पदार्थों का सेवन करने वाले भी कैल्शियम की कमी के शिकार हो जाते हैं।

कैल्शियम के फायदे

1.शरीर में कैल्शियम होने पर बच्चों में रिकेट्स नहीं होते।

2. स्त्रियों में मासिक चक्र तथा प्रसव के दौरान इसका फायदा होता है।

3. गर्भावस्था में बढ़ते शिशु के लिए कैल्शियम की आवश्यकता बढ़ जाती है।

4. स्तनपान कराने वाली माताओं को भी अपने आहार में कैल्शियम को शामिल करना चाहिए।

5. हड्डियों और दांतों के लिए कैल्शियम रामबांण की तरह है। मुख्य रुप से उन बच्चों के लिए जिनकी हड्डियां नाजूक हैं। इसलिए हड्डियों को मजबूत करने के लिए अपने अहार में कैल्शियम को शामिल करें।

6. शोध में यह भी पाया गया है कि कैल्शियम युक्त भोजन लेने से कैंसरयुक्त बीमारी को कम किया जा सकता है।

7. डायबटीज में भी कैल्शियम फायदेमंद है।

कैल्शियम की दवा

आजकल लोग कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए कैल्शियम की गोली लेते हैं। यही नहीं, कैल्शियम ग्लूकोनेट के इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। लेकिन कुछ साल पहले जर्मनी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग कैल्शियम के लिए अलग से दवा लेते हैं उन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा ज्यादा होता है। माना यह भी जाता है कि जिनके खाने में कैल्शियम की अधिकता होती है वह ह्र्दय और किडनी के रोग के शिकार हो जाते हैं।

महिलाओं में कैल्शियम की कमी

कैल्शियम ऐसा पोषक तत्व होता है, जिसकी आवश्कता हर उम्र के लोगों को है भले ही वो बूढा हो या बच्चा, स्त्री हो या पुरुष। अगर हम शुरुआत में बात करते हैं तो एक बच्चें के दांत, हड्डियों का मजबूत होना, शरीर का आकार बनना इसके लिए सबसे बड़ा योगदान कैल्शियम का है। वहीं बड़ी उम्र में हड्डियों के फ्रैक्चर से बचाव और आस्टियोपोरोसिस का हमारे शरीर में न होने देना इसके किए कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा हमारे शरीर में होनी चाहिए। वही अगर हम बात महिलाओं के बारे में करते हैं, तो हमारे देश में अधिकाश महिलाओं में 35 साल की उम्र के बाद कैल्शियम की कमी आने लगती है। अब बात यह उठती है कि महिलाओं में यह कमी क्यों आ जाती है, इसके लक्षण क्या होते हैं, इससे हम कैसे बच सकते हैं आज हम आप को इस बारे में बताते हैं।

हम अक्सर देखते हैं कि महिलाओं को कैल्शियम की कमी हो जाती है, क्योंकि लड़कियों और महिलाओं को कई तरह की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है जैसे- मासिक धर्म, गर्भधारण, ब्रेस्टफीडिंग और बाद में मेनोपॉज। ऐसे समय में कैल्शियम की ज्यादा आवश्कता होती है। हमारे शरीर में प्रत्येक कोशिका को कैल्शियम की आवश्कता होती है, क्योंकि हर रोज हमारे शरीर में त्वचा, बाल और मल के जरिये कुछ कैल्शियम हमारे शरीर से बाहर निकल जाते हैं। अत: कैल्शियम का संतुलन बनाये रखने के लिए इसकी हर रोज पूर्ति होनी चाहिए। जब हमारे शरीर को पूरी तरह से कैल्शियम नहीं मिलता, तब यह हड्डियों से कैल्शियम लेने लगता है । जिससे हमारी हड्डियां कमजोर होने लगती है और चोट लगने पर फ्रैक्चर हो जाती है।

महिलाओं में कैल्शियम शरीर के लिए मददगार
1. कैल्शियम एक ऐसा पोष्टिक तत्व होता है जो हमारे दांत और हमारे शरीर को मजबूत बनाता है।
2. कैल्शियम सही मात्रा में लेने से यह नर्वस सिस्टम के सन्देश मस्तिष्क तक पहुचांने में सहायक है जैसे, जब हम किसी गर्म चीज को छुते हैंं मस्तिष्क द्वारा हमें तुरंत इसका एहसास हो जाता है।
3. जब हमारे शरीर में कैल्शियम की मात्रा सही हो तो हमारे घाव, चोट और खरोच जल्दी से ठीक हो जाते हैं।
4. कैल्शियम मांसपेशियों के कई काम आता है जैसे- लिखना, टहलना, बैठना आदि।
5. तंदरुस्त दिल के लिए बहुत ही जरूरी होता है कैल्शियम।

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के लक्षण
महिलाओं के शरीर में कैल्शियम की मात्रा 1000 से 1200 तक होनी चाहिए। इससे कम होने पर उनके शरीर में कैल्शियम की कमी आ जाती है। अगर आप सही तरीके से अपना ध्यान नहीं रखते, तो आपको बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जब भी हमारे शरीर में कैल्शियम की कमी आती है, तो उसके लक्षण इस प्रकार से होते हैं जैसे :-

1. शरीर के विकास का रुक जाना।
2. दांतों का समय से पहले ही टूट जाना।
3. ब्लडप्रेशर का बढ़ना।
4. शरीर के अंगो में कपंन का शुरू होना या फिर अंगों में दर्द का होना।
5. दांतों का पीला होना।
6. थोड़ा सा काम करने पर थकान का महसूस होना।
7. मस्तिष्क का सही तरीके से काम नहीं करना।
8. हाथों –पैरों में झनझनाहट होना।
9. हड्डियों का कमज़ोर होना साथ ही बार-बार फ्रेक्चर होना।
10. कैल्शियम की कमी को नजरअंदाज करने पर ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा हो सकता है।

कैल्शियम की कमी को दूर करने वाली चीज़े
अगर हम हर रोज अपने खाने में उन चीजो को लेंं, जिसमेंं कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, तो हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।

1. सब्जियां :- टमाटर, ककड़ी, मूली, मेथी, करेला, चुकन्दर, हरी पत्तेदार सब्जियां, अरबी के पत्ते, पालक आदि।
2. फल :- नारियल, संतरा, अनानास, आम आदि।
3. डेयरी उत्पाद :- दूध व दूध से बनी चीज़े जैसे- दही, पनीर, आदि।
4. सूखे मेवे :- बादाम, अखरोट, व तिल में भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।

खुराक के रूप में कैल्शियम नुकसानदेह

एक अध्ययन से पता चला है कि कैल्शियम को अतिरिक्त खुराक (दवा) के तौर पर लेना आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि यह धमनियों में प्लेक (धमनियों का जाम होना) का कारण बन सकता है, जिससे हृदय को नुकसान पहुंच सकता है। मैरिलैंड के जान हॉपकिंस विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन बाल्टीमोर में सहायक प्रोफेसर इरिन मिचोस की माने तो शरीर में पूरक खुराक के रूप में अतिरिक्त कैल्शियम का सेवन दिल और नाड़ी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ लेने से दिल पर इसका कोई असर नहीं होता बल्कि यह फायदा पहुंचाता है।

गर्मियों में सिर्फ बाथ नहीं, सॉल्ट वॉटर बाथ लें और फर्क खुद देख लें

सॉल्ट वॉटर बाथ थेरेपी मानसिक तनाव को भी कम करता है.

जिस तरह एक चुटकी नमक आपके खाने का स्वाद बढ़ा देता है, उसी तरह नहाने के पानी में एक चुटकी नमक आपको सेहतमंद बनाता है. यह गर्मियों में होने वाली खुजली और किसी भी तरह के त्वचा के संक्रमण से भी बचाता है. इसे सॉल्‍ट वॉटर बाथ थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है. यह मानसिक तनाव को भी कम करता है.

दिन- भर में आप ना जाने कितने लोगों से मिलते हैं या फिर कितने तरह के वातावरण में रहते हैं. हर कोई अलग होता कोई सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है तो कोई नकारात्मक ऊर्जा से. हर कोई आपको प्रभावित करता है. दिन भर की थकान के बाद रात में नमक के पानी का स्नान न सिर्फ आपके शरीर की पूरी तरह से सफाई करता है बल्कि यह आपकी नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर कर देता है और हानिकारक तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है.

आइए जानते हैं साल्ट वॉटर बाथ थेरेपी के कुछ फायदे.

नहाने के पानी में एक चुटकी नमक है फायदेमंद.

सॉल्‍ट वॉटर बाथ थेरेपी की विधि
सॉल्‍ट वॉटर बाथ थेरेपी से पहले ये जरूरी है कि आप इसकी विधि के बारे में जान लें वरना आपकी त्वचा मुलायम और चमकदार होने की जगह रूखी और बेजान भी हो सकती है.

गर्म पानी का इस्तेमाल करें
इस थेरेपी के लिए जरूरी है कि आप बाथटब में गर्म पानी का इस्तेमाल करें. ध्यान रखें की पानी ज्यादा गर्म न हो. जितना आप बर्दाश्त कर पाएं, उतना ही गर्म पानी रखें. ज्यादा गर्म पानी में त्वचा अपना प्राकृतिक मॉइश्चर खो देती है.

एक ग्लास पानी पिएं
नहाने से पहले एक ग्लास सामान्य पानी पिएं. ऐसा करने से आप खुद को डी-हाईड्रेट महसूस नहीं करेंगे.

प्राकृतिक नमक का इस्तेमाल करें.

प्राकृतिक नमक का करें प्रयोग
इसके लिए आपको प्राकृतिक नमक का इस्तेमाल करना है. जो नमक आप रोज के खाने में उपयाग करते करते हैं, भूलकर भी उसका इस्तेमाल न करें. इसके लिए अशुद्धीकृत नमक, हिमालयी क्रिस्टल नमक या फिर अनप्रोसेस्‍ड नमक का ही उपयोग करें. रोज खाने उपयोग किया जाने वाला नमक आपकी त्वचा से जरूरी मिनरल छीन सकता है.

पानी में मिलाएं तेल की कुछ बूंदे
नहाने के पानी में अपनी पसंद अनुसार किसी ऑयल की कुछ बूंदें मिलाएं. अगर आप लेवेंडर ऑयल का इस्तेमाल करें तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि इसकी भीनी-भीनी खुशबू न सिर्फ आपको रिलेक्स करती है बल्कि आपकी त्वचा को सांस लेने में भी मदद करती है, जिससे आप तरोताजा महसूस करते हैं.

20-30 मिनट के लिए इस पानी से भरे बाथटब में शांति से बैठ जाएं. कुछ ही देर में आपका दिमाग भी शांत हो जाएगा और आप शांति का अनुभव करेंगे. बाथटब से निकलकर एक बार सामान्य पानी से नहा लें.

सॉल्‍ट वॉटर बाथ थेरेपी के फायदे
हर रोज 20-30 मिनट के इस स्नान के फायदे कुछ दिनों में आप खुद महसूस करेंगे. इसके कुछ फायदों के बारे में हम आपको बताते हैं.

त्वचा की मृत कोशिकाएं साफ करता है.

ऑस्टियो आर्थराइटिस के दर्द के कम करता है
ऑस्टियो आर्थराइटिस हड्डियों से संबंधित बीमारी है. सॉल्‍ट वॉटर बाथ थेरेपी ऑस्टियो आर्थराइटिस के इलाज में कारगर है. हर रोज नमक के पानी में नहाने से हड्डियों और नसों की सूजन को कम करने में मदद मिलती है.

त्वचा संक्रमण से बचाता है
गर्मियों में पसीने की वजह से संक्रमण की समस्या होने की संभावना अधिक होती है. इसलिए जब भी आप ऑफिस या कॉलेज से घर जाएं तो इस पानी से स्नान करें.

मांसपेशियों के दर्द से राहत
नमक गर्म होता है और जब हम नमक के पानी से नहाते हैं तो शरीर की सिकाई भी हो जाती है. ऐसे में अगर ऑफिस में बैठे-बैठे आपके पैरों व मांसपेशियों में काफी दर्द रहने लगा है तो रोजाना एक समय नमक के पानी से नहाने से जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द से राहत मिलती है.

बाथ टब में बिताएं कुछ मिनट.

मानसिक स्वास्थ्य का रखे ख्याल
यह थेरेपी एक अच्छा स्‍ट्रेस बस्‍टर है और यह आपकी मानसिक शांति को बढ़ाता है. यह थेरेपी शरीर के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी है. इसके बाद आप खुद को ज्यादा शांत, खुश और रिलैक्‍स महसूस करेंगे. दिन भर की थकान के बाद नमक के पानी से नहाने से आप तरोताजा महसूस करते हैं.

कई बीमारियों से दिलाए मुक्ति
नमक एक अच्छा प्राकृतिक एक्सफोलिएटर है. इससे आपका मानसिक स्वस्थ्य तो अच्छा रहता ही है, साथ ही शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है, जिससे कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है.