Saturday, May 20, 2017

अस्थमा (दमा) के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार के बारे में जानें!

अस्थमा (Asthma) कहे या हिन्दी में दमा ये श्वसन तंत्र की बीमारी है जिसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि श्वसन मार्ग में सूजन आ जाने के कारण वह संकुचित हो जाती है। इस कारण छोटी-छोटी सांस लेनी पड़ती है, छाती मे कसाव जैसा महसूस होता है, सांस फूलने लगती है और बार-बार खांसी आती है।


इस बीमारी के होने का विशेष उम्र बंधन नहीं होता है। किसी भी उम्र में कभी भी ये बीमारी हो सकती है। दमा की बीमारी को दो भागो किया जा सकता है- विशिष्ट (specific) और गैर विशिष्ट ( non-specific)। विशिष्ट प्रकार के दमा के रोग में सांस में समस्या एलर्जी के कारण होता है जबकि गैर विशिष्ट में एक्सरसाइज़, मौसम के प्रभाव या आनुवांशिक प्रवृत्ति (genetic predisposition) के कारण होता है। आम तौर पर अगर परिवार में आनुवांशिकता के तौर पर अस्थमा की बीमारी है तो इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। अस्थमा कभी भी ठीक नहीं हो सकता है लेकिन कई प्रकार के ट्रीटमेंट के द्वारा इसके लक्षणों को नियंत्रण में लाया जा सकता है या बेहतर रहने की कोशिश की जा सकती है।

कारण-

अस्थमा का एटैक आने के बहुत सारे कारणों में वायु का प्रदूषण भी एक कारण है। अस्थमा के एटैक के दौरान वायु मार्ग के आसपास के मसल्स में कसाव और वायु मार्ग में सूजन आ जाता है। जिसके कारण हवा का आवागमन अच्छी तरह से हो नहीं पाती है। दमा के रोगी को साँस लेने से ज़्यादा साँस छोड़ने में मुश्किल होती है।एलर्जी के कारण श्वसनी में बलगम पैदा हो जाता है जो कष्ट को और भी बढ़ा देता है।एलर्जी के अलावा भी दमा होने के बहुत से कारणों में से कुछ इस प्रकार है-

• घर के धूल भरा वातावरण

• घर के पालतू जानवर

• बाहर का वायु प्रदूषण

• सुगंधित सौन्दर्य (perfumed cosmetics) प्रसाधन

• सर्दी, फ्लू, ब्रोंकाइटिस (bronchitis) और साइनसाइटिस (sinusitis) का संक्रमण

• ध्रूमपान

• अधिक मात्रा में शराब पीना

• व्यक्ति विशेष का कुछ विशेष खाद्द-पदार्थों से एलर्जी

• महिलाओं में हार्मोनल बदलाव

• कुछ विशेष प्रकार के दवाएं

• सर्दी के मौसम में ज़्यादा ठंड

एलर्जी के बिना भी दमा का रोग शुरू हो सकता हैं-

• तनाव या भय के कारण

• अतिरिक्त मात्रा में प्रोसेस्ड या जंक फूड खाने के कारण

• ज़्यादा नमक खाने के कारण

• आनुवांशिकता (heredity) के कारण आदि।

लक्षण-
दमा के लक्षण की बारे में बात करते ही पहली बात जो मन में आती है, वह है साँस लेने में कठिनाई। दमा का रोग या तो अचानक शुरू होता है या खाँसी, छींक या सर्दी जैसे एलर्जी वाले लक्षणों से शुरू होता है।

• साँस लेने में कठिनाई होती है

• सीने में जकड़न जैसा महसूस होता है

• दमा का रोगी जब साँस लेता है तब एक घरघराहट जैसा आवाज होती है

• साँस तेज लेते हुए पसीना आने लगता है

• बेचैनी-जैसी महसूस होती है

• सिर भारी-भारी जैसा लगता है

• जोर-जोर से साँस लेने के कारण थकावट महसूस होती है

• स्थिति बिगड़ जाने पर उल्टी भी हो सकती है आदि।

घरेलु उपचार-

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि दमा का कोई इलाज नहीं होता है। लेकिन दवा या कुछ घरेलु उपायों के द्वारा इसके कष्ट को कम किया जा सकता है-

1. एक लीटर पानी में दो बड़ा चम्मच मेथी के दाने डालकर आधा घंटे तक उबालें, उसके बाद इसको छान लें। दो बड़े चम्मच अदरक का पेस्ट एक छलनी में डालकर उस रस निकाल कर मेथी के पानी में डालें। उसके बाद एक चम्मच शुद्ध शहद इस मिश्रण में डालकर अच्छी तरह से मिला लें। दमा के रोगी को यह मिश्रण प्रतिदिन सुबह पीना चाहिए। पढ़े- वायरल फीवर से राहत पाने के छह घरेलु उपचार

2. दो छोटे चम्मच आंवला का पावडर एक कटोरी में ले और उसमें एक छोटा चम्मच शहद डालकर अच्छी तरह से मिला लें। हर रोज सुबह इस मिश्रण का सेवन करें।

3. एक कटोरी में शहद लें और उसको सूंघने से दमा के रोगी को साँस लेने में आसानी होती है।

4. ज़रूरत के अनुसार सरसों के तेल में कपूर डालकर अच्छी तरह से गर्म करें। उसको एक कटोरी में डालें। फिर वह मिश्रण थोड़ा-सा ठंडा हो जाने के बाद सीने और पीठ में मालिश करें। दिन में कई बार से इस तेल से मालिश करने पर दमा के लक्षणों से कुछ हद तक आराम मिलता है।

5. लहसुन फेफड़ो के कंजेस्शन को कम  करने में बहुत मदद करता है। दस-पंद्रह लहसुन का फाँक दूध में डालकर कुछ देर तक उबालें। उसके बाद एक गिलास में डालकर गुनगुना गर्म ही पीने की कोशिश करें। इस दूध का सेवन दिन में एक बार करना चाहिए।

6. गरमागरम कॉफी पीने से भी दमा के रोगी को आराम मिलता है। क्योंकि यह श्वसनी के मार्ग को साफ करके साँस लेने की प्रक्रिया को आसान करता है।

7. एक कटोरी में एक छोटा चम्मच अदरक का रस, अनार का रस और शहद डालकर अच्छी तरह से मिला लें। उसके बाद एक बड़ा चम्मच इस मिश्रण का सेवन दिन में चार से पाँच बार करने से दमा के लक्षणों से राहत मिलती है।

साधरणतः जाड़े के मौसम में ठंड के कारण दमा का रोग भयंकर रूप धारण करता है। इसलिए इस समय इन घरेलु उपचारों के सहायता से दमा रोग के कष्ट को तो कुछ हद तक काबु में किया जा सकता है, साथ ही कुछ बातों पर ध्यान से दमा रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है-

• इन्हेलर (inhaler) को अपने पास रखें

• घर को हमेशा साफ रखें ताकि धूल से एलर्जी की संभावना न हो

• क्रिसमस के समय क्रिसमस के सजावट को ज़्यादा दिन तक न रखें जिससे कि धूल न जमें

• योग-व्यायाम और ध्यान (meditation) के द्वारा खुद को शांत रखें

• मुँह से साँस न लें क्योंकि मुँह से साँस लेने पर ठंड भीतर चला जाता है जो रोग को बढ़ाने में मदद करता है।

विरुद्ध आहार (Incompatible Foods) : क्या-क्या साथ में न खाए ?

आहार हमारे जीवन का आधार हैं लेकिन खान-पान की लापरवाही के कारण कई बार हमें स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बहुत से ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनका मेल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता हैं। लेकिन शायद हम इस बात से अंजान हैं। इन चीजों को साथ खाना अपचन और अन्य प्रकार की बिमारियों का कारक बन सकता हैं।

आयुर्वेद में सदियों पहले इस विषय पर गहन अध्ययन हुआ है और आचार्य वाग्भट ने विरुद्ध आहार अध्याय में इस विषय में विस्तृत जानकारी दी हैं। विरुद्ध आहार पर कितनी गहन चर्चा उस समय हुई होंगी यह केवल इस बात से आपको पता चलेगा की आचार्य वाग्भट ने केवल विरुद्ध आहार के ही 18 प्रकार बताये थे। इनकी संक्षिप्त जानकारी निचे दी गयी हैं :


देश (Place) - सूखे प्रदेश में अधिक सूखा आहार लेना।

काल (Time) - ठंडी के दिनों में ठंडा या गर्मी के दिनों में गर्म तासीर वाला आहार लेना।

अग्नि (Digestion) - बीमार होने पर जब पाचन शक्ति कमजोर है तब भारी आहार लेना।

मात्रा (Quantity) - शहद और घी समान मात्रा में साथ में लेना।

सात्म्य (Wholesome) - गर्म और तीखे के आदि व्यक्ति ने अचानक मीठा और ठंडा आहार लेना।

दोष (Doshas) - अपने दोष के विपरीत आहार लेना।

संस्कार (Preparation) - शहद को गर्म कर लेना।

वीर्य (Potency) - ठंडी तैसर वाले आहार को गर्म आहार के साथ लेना।

कोष्ठ (Capacity) - क्षमता से अधिक आहार लेना।

अवस्था (State) - कड़ी मेहनत के बाद वात बढ़ाने वाला सूखा आहार या नींद से उठने के बाद कफ बढ़ाने वाला आहार लेना।

क्रम (Sequence) - शौच जाने के पहले या भूक न होते हुए भी आहार लेना, गर्म चाय के बाद सीधे ठंडा पानी पीना।

परिहार - भोजन के बाद गर्म चाय लेना।

उपचार (Treatment) - घी लेने के बाद ठंडा पानी पीना।

पाक (Cooking) - ठीक से खाना न बनाना या ख़राब तेल में खाना बनाना।

संयोग (Combination) - दूध के साथ खट्टी चीजे या खट्टे फल खाना।

ह्रदय (liking) - पसंद न आनेवाला आहार लेना।

संपाद (Richness) - कच्चे या ज्यादा पके फल खाना

विधि (Rules) - सार्वजनिक स्थान पर आहार लेना। आज के ज़माने को देखते हुए, आयुर्वेद के इस महान ज्ञान का उपयोग कर कुछ ऐसे ही विरद्ध आहार की जानकारी हम निचे दे रहे हैं :

मछली और दही : मछली की तासीर काफी गर्म और दही की तासीर बेहद ठंडी होती हैं। इसलिए इन दोनों को साथ खाना हानिकारक हो सकता हैं। इनके साथ सेवन करने से गैस, एलर्जी और त्वचा से संबंधित समस्या निर्माण हो सकती हैं। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।

मीठे और खट्टे फल : आहार विशेषज्ञों की राय है की मीठे और खट्टे फल को साथ नहीं खाना चाहिए। इन्हे साथ खाने से फलों की पौष्टिकता कम हो जाती हैं। खट्टे फल मीठे फलों से निकलने वाली शुगर में रूकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में रुकावट हो जाती हैं। इसलिए संतरा और केला जैसे फल एक साथ नहीं खाना चाहिए। फ्रूट सलाद बनाते समय भी इसका ख्याल रखना चाहिए। बेहतर है की एक समय में एक ही फल को खाया जाये।

भोजन के साथ फल : फलों को पचने में सिर्फ दो घंटे लगते है जबकि भोजन को पूर्णतः पचने में 4 घंटे तक लग सकते हैं। इसके अलावा कार्बोहायड्रेट को पचाने वाला Saliva Enzyme, Alkaline स्तिथि में काम करता हैं, जबकि निम्बू, संतरा, अननस जैसे फल Acidic होते हैं। दोनों को साथ खाने से कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन धीमा हो जाता हैं। इससे कब्ज, जुलाब, एसिडिटी इत्यादि हो सकता हैं।

दही और फल : फल और दही में अलग-अलग तरह के एंजाइम होते है जो एक दूसरे को काम नहीं करने देते हैं। इसलिए दोनों को साथ नहीं खाना चाहिए। फ्रूट रायता आप कभी-कभर ले सकते है पर नियमित नहीं लेना चाहिए। दही पचने में कठिन होता है और साथ में इससे पित्त और कफ दोष बढ़ते है इसलिए इसे दोपहर के समय ही लेना चाहिए और रात के समय नहीं लेना चाहिए।

ग्रीन टी और दूध : ग्रीन टी में फ्लेवोनोइड्स होते है जो आपके दिल के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। जब ग्रीन टी में दूध मिलाया जाता है तब दूध प्रोटीन के साथ मिलकर कैसिइन तैयार हो जाता है और ग्रीन टी की पौष्टिकता कम हो जाती हैं। 

दूध के साथ फल : दूध के साथ फल लेने से दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के एंजाइम को बेअसर करता हैं जिससे शरीर को पोषण नहीं मिल पाता। संतरा और अननस जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिलकुल नहीं लेना चाहिए।

केला और दूध : अधिकतर लोग केला और दूध को हमारे सेहत के लिए अच्छा मानते है और वजन बढ़ाने के लिए इसे खाने की राय भी देते हैं। आहार विशेषज्ञों की माने तो जिन लोगो को कफ की शिकायत रहती है उन्होंने इसे बिलकुल नहीं खाना चाहिए क्योंकि की इन दोनों को खाने से कफ जल्दी बढ़ जाता हैं।

खाना और चाय : कई बार लोग घर पर या होटल में खाने के बाद या पहले चाय लेते हैं। लोगों का मानना है की इससे खाना अच्छे से पचता हैं। असल में खाना के तुरंत पहले या बाद में चाय, कॉफ़ी या कोल्ड ड्रिंक्स लेने से इनमे मौजूद कैफीन आहार पदार्थों के पोषक तत्वों का नाश कर देता हैं।

घी और शहद : उलटे गुणों और मिजाज के खाद्य पदार्थ ज्यादा समय तक साथ में खाये जाये तो नुक्सान पंहुचा सकते हैं। घी और शहद साथ में लम्बे समय तक साथ लेना जहर के समान हैं। इसी प्रकार दो चिकने पदार्थ बराबर मात्रा में मिलाकर लेना हानिकारक हैं।

दूध और नमकीन : दूध एक एनिमल प्रोटीन है और इसके साथ ज्यादा चीजे मिलने से प्रतिक्रिया हो सकती है। दूध में मिनरल और विटामिन के अलावा लैक्टोस शुगर होता हैं। दूध के साथ नमक लेने से मिल्क प्रोटीन जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता हैं। इन्हे साथ में लेने से त्वचा रोग हो जाते हैं।

पनीर और अंडा : पनीर और अंडा दोनों प्रोटीन से भरपूर होते हैं। इसलिए सामान्य तौर पर प्रोटीन के साथ प्रोटीन लेने से मना किया जाता हैं। दोनों में उपस्तिथ प्रोटीन को पचाना मुश्किल होता हैं और इसमें ऊर्जा की भी अधिक जरुरत पड़ती हैं।

दही और दूध : दूध और दही दोनों की तासीर अलग हैं। दही एक खमीर चीज हैं और दही को दूध में मिलाने से दूध खराब हो जाता हैं।

अन्य / Others : कुछ आहार को साथ में खाने के अलावा अकेले भी अगर सही तरह से न खाया जाये या गलत संस्कार किया जाये तो भी शरीर पर विपरीत परिणाम होते हैं। जैसे की -अगर आलू को बेहद ज्यादा तला जाये तो उसमे Acrylamide या कैंसर कारक तत्व निर्माण होता है। इसलिए बाजार में मिलनेवाले चिप्स बिलकुल नहीं खाना चाहिए। शहद को गर्म कर खाना भी शरीर के लिए नुकसानदेह है। बाजार में मिलनेवाले कुछ तैयार शहद को गर्म कर पैक किया जाता है। तेल को बार-बार गर्म कर उपयोग करने से उनमे कैंसर कारक तत्व निर्माण होते है। इसलिए बाजार में एक ही तेल को बार-बार उपयोग कर मिलनेवाले फास्टफूड आहार जैसे की कचोरी, समोसा इत्यादि का सेवन करना गलत हैं। गर्म चाय या कॉफ़ी पिने के तुरंत बाद ठंडा पानी नहीं पिन चाहिए। हमेशा ताजा और गर्म आहार लेना चाहिए। बचा हुआ भोजन फ्रिज में अगले दिन दोबारा गर्म कर खाने से भी शरीर पर प्रतिकूल परिणाम होता हैं। बाजार में मिलनेवाले रेडी मिक्स सब्जियां नहीं खानी चाहिए। तेज धुप से चलकर आने के तुरंत बाद, शारीरिक परिश्रम करने के तुरंत बाद और भोजन करने के तुरंत बाद पानी नहीं पिन चाहिए। थोड़े अवकाश के बाद ही पानी पीना चाहिए।रात के समय सत्तू नहीं खाना चाहिए। 

पृथ्वी पर कई तरह के आहार पदार्थ है और हर आहार का अपना महत्त्व हैं। अगर हम योग्य समय पर सही तरह से आहार लेते है तो आसानी से अपने आप को स्वस्थ और सदृढ़ रख सकते हैं। विरुद्ध आहार के सेवन बल, बुद्धि, वीर्य और आयु का नाश होता हैं, नपुंसकता, वंधत्व, त्वचारोग, पागलपन, बवासीर, सोरायसिस, एसिडिटी, सफ़ेद दाग और ज्ञानेन्द्रिय की विकृति जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।

यह स्वास्थ्य जानकारी वैद्य राजेश सिंह ने मुंबई से हमें ईमेल द्वारा भेजी हैं। आशा है यह स्वास्थ्य जानकारी
आपको पसंद आयी होंगी और इसे आप शेयर अवश्य करेंगे।

विरूद्ध आहार, जानिए क्या-क्या साथ नहीं खाना चाहिए

आयुर्वेद (Ayurved) में अच्छे खाने का अर्थ है जिसमें घी हो, हल्का और आसानी से पचने वाला हो, थोड़ा गर्म हो। ऐसा खाना पाचन तंत्र को सही रखता है, पेट साफ रखता है, शरीर का पोषण करता है और आसानी से पच जाता है।


आयुर्वेद में हर खाने वाली चीज की तासीर को महत्वपूर्ण माना गया है। अर्थात कुछ चीजों की तासीर गर्म है और कुछ की ठंडी, ऐसे में ऐसे दो चीजों को एक साथ खाना जिनकी तासीर विपरीत है हानिकारक होता है। जैसे दूध ठंडा होता है और मछली (Fish) गर्म इसलिए इन्हें एक साथ नहीं लेना चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार बहुत से चीज़ें जिनको एक साथ खाने से हम बीमार पढ़ सकते हैं उनका हमें परहेज करना चाहिए और क्यों? जानते हैं: दूध के साथ दही, दूध और दही की तासीर अलग-अलग है। इसलिए इन्हें एक साथ नहीं लेना चाहिए। आज हम आपको कुछ इसी तरह के खाद्य पदार्थों की जानकारी  दे रहे हैं जिनको एक साथ नहीं खाना चाहिये जैसे :-

चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए। दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज (Skin Disease)  है।

सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा (Medicine) खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।

दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही , नमक, इमली, खरबूजा, बेल, नारियल, मूली, तोरई, तिल , तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।

दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।

गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।

ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।

शहद (Honey) के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।

खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं।

घी के साथ बराबर मात्रा में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।

तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।

चावल के साथ सिरका कभी नहीं।

चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।

खरबूज के साथ दूध (Milk) , दही, लहसून और मूली कभी नहीं।

कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-

खरबूजे के साथ चीनी
इमली के साथ गुड
गाजर और मेथी का साग
बथुआ और दही का रायता
मकई के साथ मट्ठा
अमरुद के साथ सौंफ
तरबूज के साथ गुड
मूली और मूली के पत्ते
अनाज या दाल के साथ दूध या दही
आम के साथ गाय का दूध
चावल के साथ दही
खजूर के साथ दूध
चावल के साथ नारियल की गिरी
केले के साथ इलायची

Friday, May 19, 2017

कैंसर से भी बचाता है मक्‍का, ये हैं 10 बड़े गुण!

1. बहुत फायदेमंद है कॉर्न

कॉर्न यानी मक्‍का एक ऐसा हेल्‍दी आहार है जिसे आप ब्रेकफास्‍ट, लंच और डिनर के अलावा स्‍नैक्‍स के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं। शरीर में जमा अतिरिक्‍त फैट यानी कोस्‍लेस्‍ट्रॉल को कम करने का सबसे असरदार तरीका है कॉर्न का सेवन। इसका सेवन करके आप न केवल वजन कम कर सकते हैं बल्कि दूसरी बीमारियों को भी दूर कर सकते हैं। आइए इसके गुणों के बारे में जानते हैं। 

2. कम करे कोलेस्ट्रॉल

कॉर्न यानी मक्‍के में में विटामिन सी, बायोफ्लेविनॉइड्स, कैरोटेनॉइड और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह कोलेस्ट्रॉल को कम करके, धमनियों को ब्लॉक होने से रोकता है। इसमे मौजूद फाइबर कोलेस्‍ट्रॉल को नियंत्रित करने में सहायक है।

3.कैंसर से बचाये

मक्‍के में पाए जाने वाले एंटी-ऑक्सीडेंट्स और फ्लेवेनॉइड तत्‍वों के कारण यह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के खतरे को कम करता है। इसके अलावा यह फ्री रेडिकल से होने वाले नुकसान से बचाता है। कॉर्न में मौजूद फेरूलिक एसिड, ब्रेस्ट और लीवर के ट्यूमर के आकार को कम करने में भी मदद करता है। 

4.हड्डियां होती हैं मजबूत

हड्डियों को मजबूत करने के लिए आप दूध और विटामिन डी का सेवन करते हैं। लेकिन क्या आप जानत हैं, कि कॉर्न में मौजूद जिंक, फास्फोरस, मैग्नीशियम और आयरन हड्डियों को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसके अलावा यह गठिया की संभावना को भी कम करता है।

5. त्‍वचा को निखारे

त्‍वचा को निखारने के लिए आप बहुत सारे जतन करते हैं, लेकिन क्‍या आप जानते हैं मक्‍का खाने से भी त्‍वचा में निखार आता है। दरअसल कॉर्न में विटामिन ए और सी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, इसके साथ ही एंटी-ऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल से बचाव कर चेहरे को झुर्रियों से मुक्त रखता है, इससे आपकी त्‍वचा खूबसूरत होती है।

6. आंखों के लिए फायदेमंद

आंखें अनमोल हैं और इनको स्‍वस्‍थ रखना बहुत जरूरी है। कॉर्न में बीटा-कैरोटीन, विटामिन ए होता है, जो आंखों के लिए बहुत फायदेमंद है। यह आंखों की समस्याओं को कम कर, देखने की क्षमता को भी बेहतर बनाता है। इसके अलावा बढ़ती उम्र में होने वाली रतौंधी और मैक्युलर डी-जनरेशन की संभावना को भी कम करता है। 

7. ऊर्जावान बनाये

अगर आपको आलस आता है और शरीर में एनर्जी नहीं रहती है तो आप कॉर्न का सेवन कीजिए। कॉर्न में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होता है, जो शरीर में उर्जा का संचार करता है। इसे खाने के बाद पेट जल्दी भर जाता है और आप देर तक एनर्जेटिक महसूस कर सकते हैं।

8. पेट की समस्‍या से राहत

वर्तमान में अनहेल्‍दी खाने से कब्‍ज के साथ दूसरी पेट की समस्‍यायें होना सामान्‍य है। कॉर्न में मौजूद फाइबर्स, कब्ज से राहत दिलाता है। यह मलाशय या कोलन में जमे खाद्य पदार्थों को निकालने भी सहायता करता है जिससे कब्‍ज की तकलीफ भी कम हो जाती है।

9. एनीमिया का उपचार

कॉर्न आयरन से भरपूर होता है और आपके शरीर में आयरन की कमी को दूर करता है। इसके कारण एनीमिया से बचाव होता है। एनीमिया के इलाज के लिए कॉर्न फायदेमंद साबित होता है।

10. गर्भवती महिलाओं के लिए

गर्भवती महिलाओं को खानपान में हिदायत बरतने की विशेष सलाह दी जाती है। ऐसे में मक्‍का उनके लिए बहुत हेल्‍दी माना जाता है, क्‍योंकि कॉर्न में विटामिन बी 9 और फोलिक एसिड होता है।

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सरवाइकल स्पॉन्डिलोसिस (Cervical-Spondylosis), कारण, लक्षण व घरेलू उपचार

सरवाइकल स्पाॉन्डिलाइसिस (Cervical Spondylosis) या सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस गर्दन के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरी और सर्विकल वर्टेब के बीच के कुशनों (इसे इंटरवर्टेबल डिस्क के नाम से भी जाना जाता है) में कैल्शियम का डी-जेनरेशन, बहिक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है। लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर या लैपटॉप पर बैठे रहना, बेसिक या मोबाइल फोन पर गर्दन झुकाकर देर तक बात करना और फास्ट-फूड्स व जंक-फूड्स का सेवन, इस मर्ज के होने के कुछ प्रमुख कारण हैं।


सरवाइकल स्पान्डिलाइसिस है क्या ? (What is Cervical Spandilais)

हमारे शरीर का आधार मेरुदण्ड अर्थात रीढ़ की हड्डी है जो तैतीस हड्डियां जिन्हे वर्टिब्रा या कशेरुका कहते हैं उससे जुड़कर बनी होती हैं | रीढ़ की हड्डी में कशेरुकाओं के आपसी जोड़ को इंटरवर्टिबल डिस्क कहते हैं जिससे रीढ़ की हड्डी में गति, हिलना – डुलना सम्भव हो जाता है | रीढ़ की हड्डी के अंदर से शरीर की सबसे महत्वपूर्ण नाड़ी सुषुम्ना नाड़ी या स्पाइनल कार्ड मस्तिष्क से लेकर नीचे तक जाती है और प्रत्येक वर्टिब्रा या कशेरुका से इसकी शाखाएं निकलती है जो शरीर के विभिन्न अंगों का नियंत्रण करती है| इस रोग की पुष्टि के लिए सरवाइकल स्पाइन लैट्रल व्यू का एक्सरे कराया जाता है यदि एक्सरे रिपोर्ट में सरवाइकल कशेरुकाओं के मध्य जगह कम हो जाती है जिससे सरवाइकल केनाल के आमने सामने का व्यास कम हो जाता है इससे इस रोग की पुष्टि हो जाती है अन्य आधुनिक जांचों में कांस्ट्रस्ट माइलोग्राम या एम. आर. आई. आदि है | गर्दन के क्षेत्र में रीढ़ की हड्डी की सात वर्टिब्रा या कशेरुका होती है इसे सरवाइकल रीजन वर्टिब्रा कहते हैं जब किसी भी कारण से सरवाइकल रीजन अर्थात गर्दन के क्षेत्र की कशेरुकाओं में विकृति आती हैं और उससे सुषुम्ना नाड़ी या उसकी शाखाएं दबने लगती हैं तो इसे सरवाइकल स्पान्डिलाइसिस कहते हैं |

सरवाइकल स्पान्डिलाइसिस रोग के लक्षण (Cervical disease symptoms Spandilaisis)

चक्कर आना (dizziness):-कुछ मरीजो को चक्कर आने की तकलीफ पैदा हो जाती है | ऐसे मरीजो को किसी भी तरह की शारीरिक position मे चक्कर आने लगते है | बैठकर उठते हुये अथवा सामने की ओर नीचे की तरफ झुकते हुये, सिर के दाये बाये या ऊपर नीचे घुमाते हुये, लेटने पर या लेट कर ऊठने पर , सोते समय करवट बदलने पर बैठे हुये या कोई काम करते हुये शरीर को इधर उधर झुकाते हुये , कहने का तात्पर्य यह कि किस position मे चक्कर आने लगे कुछ बताया नही जा स्कता है |

यह चक्कर की स्तिथि दो तीन सेक्न्ड से लेकर कई कई मिनट अथवा कई कई घन्टे तक बनी रहती है |मरीज को ऐसा लगता है कि धरती हिल रही है अथवा पलन्ग हिल रहा है अथवा वह हवा मे उड़ रहा है अथवा वह लुन्ज पुन्ज जैसी हालत मे पड़ा हुआ है | चक्कर की intensity level का पता नही चलता है |

दर्द होना (Pain) :
बहुत से रोगियो को दर्द होता है | यह दर्द हलका भी हो सकता है और बहुत तेज किस्म का भी | सिर के एक छोटे से हिस्से मे दर्द हो सकता है और यह दर्द पूरे शरीर मे भी फैल स्कता है |

★बहुत से रोगियो को गरदन के पीछे किसी भी स्थान मे एक छोटे से हिस्से मे दर्द की अनुभूति होती है और वही तक सीमित होकर रह जाती है और इससे अधिक नही बढती है |
कुछ रोगियो को गरदन के एक तरफ के हिस्से मे दर्द होता है और इस दर्द का फैलाव गरदन के दाहिनी तरफ के हिस्से की मान्सपेशियो तक जाता है |दर्द के साथ गरदन की माश्पेशियो मे अकड़न और जकड़्न हो जाती है | इससे गरदन का movement बहुत तकलीफ के साथ होता है |

कुछ रोगियो को दर्द गर्दन की तरफ या गर्दन से लेकर सीने की मांसपेशियों तथा CHEST MUSCLES तक होने लगता है | किसी किसी को दर्द chest की तरफ न होकर पीठ की तरफ होता है और पीठ की मान्शपेशियो मे दरद और अकड़न तथा जकड़न एकल या मिश्रित रूप मे हो जाती है | ऐसा दर्द कभी कभी गरदन से लेकर पूरी पीठ मे होने लगता है |

किसी किसी कि गरदन मे दर्द न होकर दर्द कमर मे होने लगता है |इसे metastatic pain कहते है या remote pain कहते है |इस तरह का LUMBER REGION pain कभी कभी सरवाइकल के दर्द के कारण होने लगता है |

किसी किसी को दर्द नीचे की ओर न जाकर सिर के ऊपरी हिस्से अथवा नाक की जड़ यानी साइनस की तरफ होने लगता है | यह दर्द ऐसा लगता है जैसे सिर दर्द हो गया है |

किसी किसी रोगी को चेहरे की मान्श्पेशियो मे दर्द होने लगता है | यह दर्द neuralgic pain की तरह का होने लगता है |मान्स पेशियो मे अकड़न और जकड़न (Stiffness and tightness in muscles):-
किसी किसी रोगी को सिर और गर्दन घुमाने मे मांसपेशियों की अकड़न और जकड़न होती है जिसके कारण गरदन के movement मे बाधा पैदा होती है | यह अकड़न और जकड़न पूरी पीठ और सीने मे जब पहुच जाती है तो सारा शरीर movement less होने लगता है |

सुन्न पन होना sensation of NUMBNESS :- बहुत से रोगियो के हाथ की उन्गलिया और ऊपर के हाथ सुन्न होने लगते है | एक य सभी उनगलिया इससे प्रभावित होती है |

इस तरह का सुन्पन सिर और गरदन मे भी होता है |इन जगहो पर सुई चुभोने से भी कुछ दर्द नही होता है |

अजीब तरह के अनुभूति (sensation) :-
बहुत से मरीजो मे अजीब तरह के अनुभूतिया होती है |इन अनुभूतियो मे किसी किसी को लगता है कि उसके सिर पर बर्फ जमा हो गयी है |किसी को महसूस होता है कि उसके सिर पर टोपी लगी हुई है | किसी को लगता है कि उसका सिर किसी खान्चे मे रख कर दबाया जा रहा है |

सम्मिलित तकलीफे MIXED SENSATIONS :-
कुछ मरीज ऐसे होते है जिनको एक तरह की अनुभूति नही होती बल्कि कई तरह के sensations मालूम होते है | किसी किसी रोगी को दर्द के साथ अकड़न और एठन होती है |किसी को एठन के साथ सिर पर भारी बोझ लादने जैसा महसूस होता है |किसी किसी को दर्द के साथ सुन्न पन होने की शिकायत होती है |

(सरवाइकल स्पान्डिलाइसिस) गर्दन के दर्द को प्राकृतिक चिकित्सा से ठीक करने के लिए उपचार (Cervical Spandilaisis to recover from the natural medicine neck pain treatment)–

गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सबसे पहले रोगी के गलत खान-पान के तरीकों को दूर करना चाहिए और फिर रोगी का उपचार करना चाहिए।इस रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा पौष्टिक भोजन करना चाहिए। रोगी को अपने भोजन में विटामिन `डी` लोहा, फास्फोरस तथा कैल्शियम का बहुत अधिक प्रयोग करना चाहिए ताकि हडि्डयों का विकास सही तरीके से हो सके और हडि्डयों में कोई रोग पैदा न हो सके।शरीर में विटामिन `डी` लोहा, फास्फोरस तथा कैल्शियम मात्रा को बनाये रखने के लिए व्यक्ति को अपने भोजन में गाजर, नीबू, आंवला, मेथी, टमाटर, मूली आदि सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए। फलों में रोगी को संतरा, सेब, अंगूर, पपीता, मौसमी तथा चीकू का सेवन अधिक करना चाहिए।गर्दन में दर्द से पीड़ित व्यक्ति को चोकरयुक्त रोटी व अंकुरित खाना देने से बहुत जल्दी लाभ होता है।गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के ही एक भाग जल चिकित्सा का सहारा लिया जा सकता है। इस उपचार के द्वारा रोगी को स्टीमबाथ (भापस्नान) कराया जाता है और उसकी गर्दन पर गरम-पट्टी का सेंक करते है तथा इसके बाद रोगी को रीढ़ स्नान कराया जाता है जिसके फलस्वरूप रोगी की गर्दन का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस प्रकार से उपचार करने से रोगी के शरीर में रक्त-संचालन (खून का प्रवाह) बढ़ जाता है और रोमकूपों द्वारा विजातीय पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिसके फलस्वरूप रोगी की गर्दन का दर्द तथा अकड़न होना दूर हो जाती है।गर्दन के दर्द तथा अकड़न को दूर करने के लिए सूर्य किरणों द्वारा बनाए गए लाल व नारंगी जल का उपयोग करने से रोगी को बहुत अधिक फायदा होता है। सूर्य की किरणों में हडि्डयों को मजबूत करने के लिए विटामिन `डी` होता है। सूर्य की किरणों से शरीर में विटामिन `डी` को लेने के लिए रोगी को पेट के बल खुले स्थान पर जहां पर सूर्य की किरणें पड़ रही हो उस स्थान पर लेटना चाहिए। ताकि सूर्य की किरणें सीधी उसकी गर्दन व रीढ़ की हड्डी पर पड़े। इस क्रिया को करते समय सिर पर कोई कपड़ा रख लेना चाहिए ताकि सिर पर छाया रहें।गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी की गर्दन पर सरसों या तिल के तेल की मालिश करनी चाहिए। मालिश करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि मालिश हमेशा हल्के हाथों से करनी चाहिए। मालिश यदि सूर्य की रोशनी के सामने करें तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
ठंडी या गर्म सिकाई :-

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइसिस (Cervical Spondylosis) की समस्‍या से पीड़ि‍त व्‍यक्ति गर्दन के आस-पास की मांसपेशियों में दर्द, कठोर और दर्दनाक महसूस करता है। लेकिन कोल्‍ड और हीट पैड का इस्‍तेमाल कर वह सूजन को कम, मांसपेशियों को आराम और दर्द से कुछ राहत प्राप्‍त कर सकता है।सरसों के तैल में लहसुन जला कर रख लें । सुबह- शाम मालिश करें । गर्दन पर ।गर्म पानी में नमक मिलाकर सिकाई करें । रेत की सिकाई या ईट की सिकाई की जा सकती है ।

गाय का घी है फायदेमंद:- आयुर्वेद के अनुसार, गाय के घी में जोड़ों को लुब्रिकेट करने के गुण होते हैं। इसके अलावा, यह सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस (Cervical Spondylosis)के लिए जिम्मेदार वात तत्‍व को शांत करने के लिए भी जाना जाता है। साथ ही कब्‍ज इस समस्‍या को बढ़ाने वाले कारकों में से एक माना जाता है और गाय का घी नियमित रूप से मुलायम दस्‍त पारित करने में मदद करता हैं।

इसलिए गाय का घी सरवाइकल स्पोंडिलोसिस (Cervical Spondylosis) के लिए सबसे अच्‍छे घरेलू उपचारों में से एक माना जाता है।योगासन :- कुछ योग मुद्राएं जैसे लोट्स पोज (पद्मासन), स्टिक पोज (यष्टिकासन), पाम ट्री पोज (ताड़ासन) सर्वाइकल स्‍पोंडिलोसिस के दर्द को कम करने में बहुत मददगार होती हैं। इसलिए सरवाइकल स्‍पोंडिलोसिस ((Cervical Spondylosis) के दर्द और गर्दन के तनाव को कम करने के लिए इसे नियमित रूप से अपनी दिनचर्या में शामिल करें।यौगिक उपचार :- सम्पूर्ण विश्व में अपने राष्ट्र को गौरव प्रदान करने वाली योग विद्या की कुछ क्रियाएँ सरवाइकल स्पान्डिलाइसिस के रोगी के लिए नवजीवन दायनी है | इस समस्या के निदान के लिए प्रतिदिन भुजंगासन, धनुरासन, नौकासन, शलभासन प्रत्येक आसन ३०-३० सेकेण्ड तक दो – दो बार करना चाहिए फिर बैठकर ग्रीवा शक्ति विकासक की क्रिया २-२ बार, स्कंध शक्ति विकासक, कर पृष्ठ शक्ति विकासक व करतल शक्ति विकासक की क्रियाएँ १-१ मिनट तक प्रारम्भ में करना चाहिए बाद में उष्ट्रासन, चक्रासन जैसे आसन करना चाहिए | आसनों का अभ्यास करते हुए श्वांस सामान्य रखें और आसनों द्वारा चिकित्सा किसी अनुभवी व दक्ष चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए तत्पश्चात १० मिनट तक शरीर को शिथिल छोड़कर शवासन का अभ्यास लाभप्रद है | पेड़ू पर २० मिनट मिटटी की पट्टी व १० मिनट तक कंधे गर्दन व पीठ में स्थानिक वास्प स्नान करने से इस दुखदाई रोग में पहले दिन ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है और लम्बे समय से दुःख, कष्ट तकलीफ उठा रहा रोगी ४ से ८ हफ़्तों के कुल उपचार से स्पान्डिलाइसिस से पूरी तरह छुटकारा प्राप्त हो जाता हैं |

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Thursday, May 18, 2017

जैसा ब्लड ग्रुप, वैसा डायट प्लान

ख़ूबसूरत नज़र आने के लिए आप जिस तरह पर्सनैलिटी के अनुसार आउटफिट और एक्सेसरीज़ का चुनाव करते हैं. ठीक उसी तरह ब्लड ग्रुप के अनुसार डायट प्लान फॉलो करके भी आप हेल्दी और फिट रह सकते हैं. सेहतमंद ज़िंदगी के लिए ब्लड ग्रुप के अनुसार कैसा हो डायट प्लान? आइए, जानते हैं.ब्लड ग्रुप के अनुसार शरीर की ज़रूरतें भी अलग-अलग होती हैं. ऐसे में यदि अपने ब्लड ग्रुप को ध्यान में रखते हुए कोई डायट प्लान फॉलो करते हैं, तो आप न स़िर्फ फिट एंड हेल्दी रह सकते हैं, बल्कि एसिडिटी, कॉन्सटिपेशन जैसी कई समस्याओं से मुक्ति भी पा सकते हैं. साथ ही वज़न भी आसानी से घटा सकते हैं.


ए ब्लड ग्रुप

ए ब्लड ग्रुपवालों का शाकाहारी होना सेहत की दृष्टि से फ़ायदेमंद होता है, क्योंकि ए ब्लड ग्रुपवालों की पाचन शक्ति बाक़ी ब्लड ग्रुपवालों की अपेक्षा कमज़ोर होती है. ऐसे में वे नॉन-वेज या कोई भी हैवी फूड पचा नहीं पाते, जिससे इन्हें पेट संबंधी समस्या, जैसे एसिडिटी का सामना करना पड़ता है.

क्या खाएं? 
– ए ब्लड ग्रुपवालों का ख़ून अन्य ब्लड ग्रुप से अधिक गाढ़ा होता है. इसलिए सब्ज़ी और फलों का सेवन इनके लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद है.

– प्रोटीन की आपूर्ति के लिए सोया रोटी, सोया ब्रेड, बीन्स आदि का सेवन इन्हें तंदुरुस्त रखता है.
किससे करें परहेज़?
– चूंकि आपका पाचन तंत्र कमज़ोर है, इसलिए मीट की बजाय मछली का सेवन करें.
– पपीता, आम और संतरा जैसे फलों का सेवन कम से कम करने की कोशिश करें.
वेट लॉस टिप 
अगर आप वज़न कम करना चाहते हैं, तो अपने डायट रूटीन में ज़्यादा से ज़्यादा हरी सब्ज़ियां और सोया से बनी चीज़ें शामिल करें. मीट, डेयरी प्रोडक्ट्स, राजमा जैसे फैट वाले आहार से परहेज़ करें, वरना आपका वज़न बढ़ सकता है.


बी ब्लड ग्रुप

बी ब्लड ग्रुपवाले बेहद लकी होते हैं, क्योंकि इन्हें स्वादिष्ट चीज़ों से परहेज़ की ज़रूरत नहीं होती. साथ ही ये खाने में वेरायटी का मज़ा भी ले सकते हैं. बी ब्लड ग्रुपवालों को संतुलित आहार स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाए रखता है.
क्या खाएं? 
– फलों का सेवन आपके लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकता है.
– आप डेयरी प्रोडक्ट्स और फिश खा सकती हैं, मगर इनका सेवन संतुलित मात्रा में करें.
किससे करें परहेज़?
– कॉर्न, चना, मसूर और अरहर की दाल का सेवन कम करें. ये आपके लिए नुक़सानदायक हो सकते हैं.
– गेहूं या टमाटर का अधिक सेवन भी आपके लिए हानिकारक साबित हो सकता है.
वेट लॉस टिप 
वज़न कम करने के लिए कॉर्न, मूंगफली, चिकन, गेंहू और तिल का सेवन करने से बचें और अपने डायट प्लान में अंडा, ग्रीन टी, मीट और हरी सब्ज़ियां सबसे ऊपर रखें.


ए.बी. ब्लड ग्रुप

एबी ब्लड ग्रुपवालों में ए और बी दोनों ब्लड ग्रुपवालों के लक्षण होते हैं. मगर इनका ब्लड ग्रुप ए की तरह शाकाहारी होना ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है. ब्लड ग्रुप बी की तरह ये नॉन-वेज का अधिक सेवन नहीं कर सकते, क्योंकि मीट खाने से इन्हें अपच की शिकायत हो सकती है.
क्या खाएं? 
– शाकाहारी खाना खाएं.
– फलों का सेवन भी कर सकते हैं.
– आप फिश भी खा सकते हैं.
किससे करें परहेज़?
– चिकन से परहेज़ करें, पेट में एसिड की मात्रा कम होने से ये अच्छी तरह पच नहीं पाता, जिससे अपच की शिकायत हो सकती है.
– कॉर्न भी न खाएं. ये भी आपके लिए तकलीफ़देह हो सकता है.
वेट लॉस टिप 
अगर आप वज़न कंट्रोल में रखना चाहती हैं, तो सोया पनीर, सीफूड, अनन्नास आदि खाएं. रेड मीट और राजमा से परहेज़ करें.


ओ ब्लड ग्रुप

ओ ब्लड ग्रुपवालों के पेट में एसिड की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण ये आसानी से नॉन-वेज फूड पचा लेते हैं. चूंकि ओ ब्लड ग्रुपवालों में थायरॉइड हार्मोन की मात्रा कम होती है, इसलिए इन्हें ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिए, जिससे थायरॉइड का स्राव कम हो, जैसे- पत्तागोभी, फूलगोभी आदि.
क्या खाएं? 
– आप ख़ूब सारे फल और सब्ज़ियों का सेवन कर सकते हैं.
– अगर आप नॉन-वेज खाने के शौक़ीन हैं, तो रेड मीट से लेकर चिकन और फिश भी खा सकते हैं.
किससे करें परहेज़?
– दूध या दूध से बने कोई भी पदार्थ खाने से बचें.
– ड्रायफ्रूट्स का अधिक सेवन आपके लिए फ़ायदेमंद नहीं है.
वेट लॉस टिप 
वज़न कम करना हो, तो ब्रेड, चावल और फली यानी बीजवाली सब्ज़ियां न खाएं. पालक और ब्रोकोली वज़न घटाने में सहायक हो सकते हैं.

आप सोएं रात भर, शरीर की गंदगी को साफ करेगा ये ड्रिंक, सोने से पहले बस 1 ग्‍लास

शरीर को सफाई की आवशकता होती है। शरीर के कई अंग विषैले तत्वों को सोख लेते है, और यह जब हद से ज्‍यादा बढ़ जातेे हैंं तो शरीर के कई हिस्से काम करना बंद कर देते है जिससे कई बीमारियाँ लग जाती है। एक स्वस्थ जिंदगी का सबसे बड़ा राज यह है कि अपने शरीर से विषैले तत्वों को निकाला जाए जिसे हम Detoxification कहते है। इसलिए अब तक आप अपने शरीर के साथ जो बुरा करते आए हैं, उन्हें सुधार लें।

1. एंटी-ऑक्सीडेंट की आदत डालें डीटाक्सीफाइ का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप ज्यादा से ज्यादा फल और हरी सब्जियां खाएं। इससे लीवर एंजाइम सक्रिय होंगे और शरीर में मौजूद नुकसानदायक पदार्थो को बाहर निकालने में मदद करेंगे।

2. ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का चयन करें कीटनाशक दवाइयों और विषैले तत्वों के खतरे से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि ऑर्गेनिक फूड का सहारा लिया जाए।

3. हर्बल चाय का सेवन करें पाचन तंत्र की समस्या से निजात पाने के लिए ग्रीन टी या कैमोमाइल टी का सेवन करें। इससे नींद भी अच्छी आएगी। ये चाय शरीर में रक्त संचार को भी बढ़ाता है, जो शरीर से विषैले तत्वों को हटाने में मददगार होते हैं।

4. खुद का एंटी-ऑक्सीडेंट बनाएं ज्यादा से ज्यादा लहसुन और अंडे खाएं। ये सल्फ्यूरिक तत्वों से भरपूर होते हैं। ये तत्व शरीर में ग्लूथाथीओन नामक एंटी-ऑक्सीडेंट के निर्माण में सहायक होते हैं। ये शरीर में मौजूद रसायन और भारी धातु सहित अन्य विषैले तत्वों को भी बाहर निकाल देते हैं।

5. लेमन जूस पीएं एक ग्लास लेमन जूस पीने से न सिर्फ शरीर शुद्ध होता है, बल्कि इससे शरीर में क्षार की मात्रा भी बढ़ती है। यह एक सर्वश्रेष्ठ डीटाक्स ड्रिंक है। इसलिए ताजे लेमन जूस पीने पर ज्यादा ध्यान दें।

6. चीनी को कहें ना अगर आप अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को बढ़ाना चाहते हैं और इसे विषैले तत्वों से दूर रखना चाहते हैं, तो चीनी सेवन की मात्रा घटा दीजिए। हर तरह के मीठे से जहां तक हो सके दूरी बनाइए।

7. ज्यादा पानी पीएं हर दिन करीब 8-12 ग्लास पानी पीएं। इससे शरीर में मौजूद विषैले तत्व मूत्र और पसीने के रास्ते से बाहर निकल जाएंगे।
8. हल्का खाना खाएं लगातार हल्का आहार लें और करीब एक महीने तक शराब से दूर रहें। इस विधि से न सिर्फ आपकी ऊर्जा बढ़ेगी, बल्कि इससे आपके वजन के साथ-साथ कोलेस्ट्रोल और ब्लड सूगर का स्तर भी कम होगा।

9. मसाज करवाएं अपने शरीर का अच्छे से मसाज करवाएं। इससे भी विषैले तत्वों से निजात मिलेगा।
हर दिन 45 मिनट व्यायाम करें अपने दिन की शुरुआत ब्रिस्क वॉकिंग, रनिंग, जॉगिंग या साइकलिंग से करें। इससे शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी लाभ पहुंचेगा।

10. गहरी सांस लें गहरी सांस लें। इससे स्वास्थ्य बेहतर होने के साथ-साथ पूरे शरीर में ऑक्सीजन का भी अच्छे से संचार होगा।

11. नाक की करें सफाई हम एक ऐसे वातावरण में रहते हैं, जो धूल और प्रदुषण से भरे पड़े हैं। इससे आपको एलर्जी हो सकती है। इससे बचने के लिए अपने नाक को नियमित रूप से धोएं। ऐसा करने पर वायु प्रदुषक से छुटकारा मिलेगा और नींद भी अच्छी आएगी।
योग करें योग न सिर्फ डीटाक्सीफाइ में मददगार होता है, बल्कि इससे दिमाग को भी फायदा पहुंचता है। हर सुबह आप कुछ साधारण योग करके भी अपने शरीर के विषैले तत्वों से छुटकारा पा सकते हैं।

12. जूस पीएं ताजे फलों और सब्जियों के जूस पीने की मात्रा को बढ़ाएं।

13. आराम भी करें आलस्य और सुस्ती से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि आप पर्याप्त नींद लें। इस बात को सुनिश्चित करें कि आप हर दिन 8 घंटे की नींद लेते हों।

14. एक्स्फोलीएट अपने त्वचा से विषैले तत्व निकालने के लिए स्किन एक्स्फोलीएट करें। इससे शरीर का रक्त संचार भी बेहतर होगा।

15. कुछ आदतों को छोड़ें अगर आप सिगरेट और शराब का अधिक सेवन करते हैं, तो यह आदत छोड़ दें। यहां तक की थोड़ा सिगरेट पीना भी शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। इसके अलावा, अगर आप शराब पीते हैं, तो इसे जहां तक हो सके, कम से कम पीएं।

सिर्फ 6 घंटो में शरीर का डेटॉक्स ड्रिंक कर देगा गंदगी का सफाया :
आवश्यक समग्री :
1/3 कप पानी
1 अदरक
1 खीरा
1 गुथी धनिया
½ नीम्बू

बनाने की विधि : पहले धनिये को कद्दूकस कर लीजिये तांकि यह एक चमच रह जाए। खीरे को टुकड़ों में काट लीजिये। सारी समग्री को एकसाथ ब्लेंडर में डाल कर मिक्स कर लीजिये। यह एक झागदार मिश्रण में तब्दील हो जाएगा। रोजाना सोने से पहले इस ड्रिंक का सेवन आपको विषैले तत्वों से मुक्त कर देगा। कुछ ही दिनों में आपको फायदा हो जायेगा।