Wednesday, May 17, 2017

वायरल सच: क्या मोमो खाने से आंत का कैंसर होता है?

Last Updated: Friday, 16 June 2017 8:21 PM

नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर हर रोज कई फोटो, मैसेज और वीडियो वायरल होती हैं. इन वायरल फोटो, मैसेज और वीडियो के जरिए कई चौंकाने वाले दावे भी किए जाते हैं. ऐसा ही दावा सोशल मीडिया पर किया जा रहा है. ये दावा जम्मू में बीजेपी एमएलसी रमेश अरोरा कर रहे हैं.


क्या है तेजी वायरल हो रहा दावा ?
जम्मू में बीजेपी के नेता रमेश अरोरा ने दावा किया है कि मोमो में अजीनोमोटो मिलाया जाता है जो लोगों को आंत के कैंसर का मरीज बना सकता है. एबीपी न्यूज़ ने रमेश अरोरा से बात की तो उन्होंने अपना दावा दोहराया कि मोमो से कैंसर होता है.

क्यों ऐसा दावा कर रहे हैं रमेश अरोरा?
रमेश अरोरा ने बताया, ”मोमो में मैदा रहता है, मैदा और अजीनोमोटो का कॉम्बिनेशन खतरनाक होता है. रिसर्च में साबित हुआ है कि इसके कई खतरे रहते हैं. उसके असर से शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचता, इससे कैंसर की संभावना तक रहती है. यूएसए के फिजिशियन ने इसे साइलेंट किलर बताया है.
अल्कोहल, निकोटिन, ड्रग से भी ज्यादा खतरनाक बताया है. बच्चों को लगता है कि नॉर्मल कोर्स में खा रहे हैं.”

क्या है रमेश अरोरा के दावे का सच?
मोमो में अजीनोमोटो डाला जाता है या नहीं इस बात की पड़ताल के लिए एबीपी न्यूज़ ने दिल्ली में मोमो बेचने वालों से संपर्क किया. मोमो बेचने वालों ने बताया कि हां मोमो में अजीनोमोटो का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उसके बिना तो स्वाद ही नहीं आता. अजीनोमोटो नहीं डालने से स्वाद बिगड़ जाता है, अजीनोमोटो स्वाद बनाए रखता है.

क्या है अजीनोमोटो?
अजीनोमोटो का कैमिकल का नाम अजीनोमोटो नहीं MSG है, MSG यानि mono sodium glumate. ये प्रोटीन का हिस्सा है जिसे अमीनो एसिड कहते हैं. अजीनोमोटो इसको सबसे ज्यादा बनाता है इसलिए इसे इसी नाम से जानते हैं.

अजीनोमोटो को लेकर क्या कहते हैं डॉक्टर?
इसका फाइनल सच जानने के लिए एबीपी न्यूज़ ने गंगाराम अस्पताल में गैस्ट्रो विभाग के डॉक्टर नरेश बंसल से संपर्क किया. डॉक्टर नरेश बंसल ने हमने सवाल किया कि क्या अजीनोमोटो से शरीर को नुकसान होता है.

डॉ. बंसल ने बताया, ”इसमें सोडियम होता है, बहुत से लोगों को पता नहीं होता. हार्ट पेशेंट और बीपी पेशेंट को कम नमक की सलाह दी जाती है. इससे लंग फेलियर वाले मरीजों को भी नुकसान है. इससे माइग्रेन की टेंडेसी उभरती है, इसलिए माइग्रेन या सिरदर्द की शिकायत हो तो नहीं खाना चाहिए. डॉ नरेंद्र बंसल ने हमें बताया कि अजीनोमोटो का लगातार सेवन पेट की समस्या पैदा कर सकता है. यानि अगर आप मोमो जैसी चीजें खाते हैं तो गैस और एसिडिटी की समस्या हो सकती है. अल्सर की शिकायत वाले मरीजों के लिए ये ज्यादा खतरनाक है.”

अजीनोमोटो को लेकर क्या कहते हैं फूड एडल्टरेशन एक्सपर्ट?
डॉक्टर हमें मोमो जैसी चीजें खाने से होने वाले नुकसान के बारे में तो बता रहे थे लेकिन अब तक हमें मोमो से आंत के कैंसर पर सटीक जवाब नहीं मिला था. इसलिए हम पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए फूड एडल्टरेशन एक्सपर्ट यानि खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता के जानकार अशोक कंचन के पास पहुंचे.

अशोक कंचन ने बताया कि भारत और अमेरिका में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. पैकेज प्रोडक्ट में लिखना जरूरी है कि इसमें MSG है. 12 महीने से छोटे बच्चों को ना देने को कहा जाता है. इसके कैमिकल को लेकर विवाद रहा है. विवाद की वजह से यूरोप में इसके इस्तेमाल पर रोक है.

फूड एक्सपर्ट ने तो ये बताया ही कि पैकेज के ऊपर इसके इस्तेमाल के बारे में जानकारी देना जरूरी है. वहीं FSSAI के नियमों के अनुसार भी किसी भी चीज में अजीनोमोटो का इस्तेमाल किए जाने पर ये बताना अनिवार्य है कि उसमें अजीनोमोटो है और ये भी कि कितना अजीनोमोटो है. ऐसा ना करना नियमों का उल्लंघन माना जाता है.

क्या अजीनोमोटो खाने से कैंसर हो सकता है?
अशोक कंचन ने बताया कि इस पर स्टडी देखी हैं. अभी तक कैंसर का कोई प्रमाण नहीं है. जी मचलाना, सिर दर्द जैसे साइड इफेक्ट हो जाते हैं. जिसको एलर्जी है उन्हें नहीं खाना चाहिए. कई बार साइड इफेक्ट हो जाते हैं इसलिए संभलकर खाना चाहिए.

ABP न्यूज की पड़ताल में सामने आया

  • अजीनोमोटो एक जापानी कंपनी का नाम है
  • अजीनोमोटो MSG यानि मोनो सोडियम ग्लूटामेट नाम का केमिकल बनाती है
  • MSG प्रोटीन का हिस्सा है जिसे अमीनो एसिड कहते हैं
  • MSG के प्रयोग से साइड इफेक्ट हो सकता है
  • MSG के प्रयोग से कैंसर हो अब तक कोई रिसर्च सामने नहीं आई है

इसलिए हमारी पड़ताल में मोमो से आंत के कैंसर वाला दावा झूठा साबित हुआ है.





 लेकिन

अगर Momos के दीवाने हैं तो हो सकती हैं ये परेशानियां

 

सेहत : मैदे और सब्जियों से बने मोमोज बहुत स्वाद होते हैं। बच्चों से लेकर बड़ों तक कई लोगों को यह बहुत पसंद होते हैं। मोमोज बनाने के लिए मैदे की लोई बनाकर उसमें सब्जियों को बारीक काट कर भरा जाता है और इसे स्टीम देकर या फ्राई करके पकाया जाता है। मैदे में फाइबर नहीं होता, इसे सफेद और चमकदार बनाने के लिए बेंजोइल परऑक्साइड से ब्लीच किया जाता है जो शरीर को बहुत नुकसान देता है क्योंकि मोमोज में भी मैदे का ही इस्तेमाल होता है इसलिए इसको खाने के कई दुष्प्रभाव होते हैं। आइए जानिए इसके सेवन से और कौन सी समस्याएं हो सकती हैं।

- मैदे में हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है इसलिए मोमोज खाने से शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है जिससे डायबिटीज होने का खतरा हो जाता है।

- इसमें फाइबर नहीं होता जिससे इसे खाने से कब्ज हो जाती है और सिर दर्द और गैस जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

मोमोज खाने से खून में ग्लूकोज जमने लगता है जिससे गठिया और दिल संबंधी बीमारियां हो जाती है।

- जो लोग रोजाना मोमोज या मैदे से बनी चीजें खाते हैं उनकी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है जिससे वह हमेशा बीमार रहते हैं।

मोमोज को जब पकाया जाता है तो मैदे में से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है। इससे शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

- मोमोज एक Low Cost रोड साइड स्नैक्स है जिसमें प्रोफिट भी उस ही अनुपात में काफी कम हो जाता है तो उस प्रोफिट को बढ़ाने के लिए मोमोज की व इसमें प्रयोग कि​ जाने वाली सब्जियों की क्वालिटी से समझोता करते हैं!

मधुमेह नाशिनी जामुन के अन्य लाभ

जामुन बरसात में होने वाला फल है। इसमें थोड़ा खारापन व रुखापन रहता है, जिससे जीभ में ऐंठन हो जाती है। इसलिए यह कम मात्रा में खाया जाता है। बड़े जामुन स्वादिष्ट, भारी, रूचिकर व संकुचित करने वाले होते हैं। और छोटे जामुन ग्राही, रुखी और पित्त, कफ रक्तविकार और जलन का शमन करने वाले होते हैं।। इसकी गुठली मल बांधने वाली और मधुमेह रोगनाशक होती है। इसमें प्रोटिन, विटामिन ए, बी, सी, वसा खनिज द्रव्य व पौष्टिक तत्व होते हैं। इसमें पोषक तत्वों की प्रचुरता तो है ही, साथ ही यह सेहत से जुड़े कई फायदों का भी सबब है। जामुन में 251 kJ ऊर्जा, 14 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.6 फाइबर, 0.23 ग्राम फैट्स व 0.995 ग्राम कई प्रकार के विटामिन, कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम आदि मौजूद हैं।जामुन का सेवन डायबिटीज के रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद है।

सेहत से जुड़े जामुन के फायदे

इसमें ग्लाइकेमिक इंडेक्स कम होता है जिससे रक्त में शुगर का स्तर नियंत्रित होता है। साथ ही, डायबिटीज के मरीजों को बार-बार प्यास लगने वा अधिक बार युरीन पास होने की समस्या में भी मददगार है। इस फल में विभिन्न प्रकार के मिनिरल जैसे कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम और विटामिन सी अच्छी मात्रा में है। इसकी वजह से यह हड्डियों के लिए फायदेमंद तो है ही, साथ ही शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है।एन‌िमिक लोगों के लिए जामुन का सेवन संजीवनी बूटी की तरह ही है। अन्नामलाई विश्वविद्यालय के शोध की मानें तो इसके नियमित सेवन से रक्त में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ जाता है। जामुन में पोटैशियम की मात्रा अधिक है। 100 ग्राम जामुन के सेवन से शरीर को 55 मिलीग्राम पोटैशियम मिलता है। इससे दिल का दौरा, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक आदि का रिस्क कम होता है। जामुन का फल ही नहीं बल्कि इसकी पत्तियों के भी काफी फायदे हैं। आयुर्वेद में इसकी पत्तियों का पाचन ठीक रखने और मुंह से जुड़ी समस्याओं में काफी इस्तेमाल किया जाता है।

जामुन का सिरका

कब्ज और उदर रोग में जामुन का सिरका उपयोग करें। जामुन का सिरका गुणकारी और स्वादिष्ट होता है, इसे घर पर ही आसानी से बनाया जा सकता है और कई दिनों तक उपयोग में लाया जा सकता है।सिरका बनाने की विधि- काले पके हुए जामुन साफ धोकर पोंछ लें। इन्हें मिट्टी के बर्तन में नमक मिलाकर मुँह साफ कपड़े से बाँधकर धूप में रख दें। एक सप्ताह धूप में रखने के पश्चात इसको साफ कपड़े से छानकर रस को काँच की बोतलों में भरकर रख लें। यह सिरका तैयार है।मूली, प्याज, गाजर, शलजम, मिर्च आदि के टुकड़े भी इस सिरके में डालकर इसका उपयोग सलाद पर आसानी से किया जा सकता है। जामुन साफ धोकर उपयोग में लें।यथासंभव भोजन के बाद ही जामुन का उपयोग करें। जामुन खाने के एक घंटे बाद तक दूध न पिएँ। जामुन पत्तों की भस्म को मंजन के रूप में उपयोग करने से दाँत और मसूड़े मजबूत होते हैं।

जामुन की गुठली

जामुन का गूदा पानी में घोलकर या शरबत बनाकर पीने से उल्टी, दस्त, जी-मिचलाना, खूनी दस्त और खूनी बावासीर में लाभ देता है।जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह फांकने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।नए जूते पहनने पर पांव में छाला या घाव हो जाए तो इस पर जामुन की गुठली घिसकर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में घोट-पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है।जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है।जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है।पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें।गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

जामुन के पत्ते

जामुन का फल ही नहीं इसके वृक्ष की जड से लेकर पत्ती तक उपयोगी है। इसका फल साल में कुछ दिन उपलब्ध रहता है। मधुमेह के रोगियों के लिए तो जामुन उपयोगी है इसकी गुठली का चूर्ण बनाकर खाने से भी मधुमेह में लाभ होता है।नेशनशल इंट्रीगेडिग मेडिकल एसोशियेशन के पूर्व पदाधिकारी डा.सुरेन्द्र रघुवंशी ने बताया कि जामुन के पत्ते खाने से भी मधुमेह रोगियों को लाभ मिलता है। प्राचीनकाल में अधिकतर जामुन के वृक्ष तालाब और बावडियों के पास इसलिए लगाये जाते थे की इसकी जडें काफी गहराई तक चली जाती हैं और वह तालाब के पानी को शुद्ध रखती हैं।श्री रघुवंशी ने कहा कि गांव में कुआं बनाते समय नींव में जामुन की लकडी डाली जाती थी। जामुन की लकडी जल को शुद्ध करने का काम करती है और जल को खराब नहीं होने देती। जामुन का वृक्ष आंधी में भी नहीं गिरता इसलिए बाग के चारों ओर इसके वृक्ष लगाये जाते हैं। आमतौर पर जामुन के पेड में बीमारी कम से कम लगती हैं। जामुन के वृक्ष की उम्र सैकडों साल बतायी गयी है।

जामुन की छाल

वैसे तो जामुन के पंचांग का प्रयोग औषध रूप में होता है किन्तु फल फूलादि तो जब ऋतु में इसके वृक्ष फलते हैं, तभी प्राप्‍त होते हैं किन्तु छाल (वल्कल), पत्ते और जड़ तो सदैव प्राप्‍त होते हैं । उनमें जामुन की छाल कहां कहां औषध रूप में कार्य में आती है, वह जानना अतिआवश्यक है।सामान्यतया जामुन की छाल का क्वाथ बच्चों के आम व रक्तातिसार में देते हैं। जामुन की छाल के क्वाथ से मसूड़ों के रक्तस्राव (पायोरिया) क्षत व जिह्वा विदारण में कुल्ले गरारे कराते हैं, इससे अच्छा लाभ होता है। सभी कण्ठ के रोगों में इसकी छाल के क्वाथ के गरारों से लाभ होता है।जामुन की छाल में स्तम्भन का विशेष गुण है । इसी कारण इसका क्वाथ निर्बल बच्चों और निस्तेज स्त्रियों के अतिसार को दूर करता है।छाल का क्वाथ जामुन की नरम-नरम अन्तर-छाल दो तोले जौकुट करके ३२ तोले जल में उबालें। जब वह आठ तोले रह जाये तो मलकर छान लें। उसको तीन भागों में बांट लें। इसे तीन बार दिन में पिलायें और प्रत्येक बार धनिया जीरा का चूर्ण दो-दो माशे क्वाथ के साथ देते रहें। इस प्रकार तीन-चार दिन करने से अतिसार बन्द हो जाता है।सगर्भा अतिसार यदि गर्भवती स्त्री को अतिसार हो तो जामुन और आम की ताजी छाल दो तोले ले लें और १६ गुणा जल में क्वाथ करें। चतुर्थांश रहने पर उसे मल छानकर तीन भाग कर लें और तीन-चार घण्टे के अन्तर से प्रतिबार दो-दो माशे धनिया और जीरे का चूर्ण साथ देने से सगर्भा स्त्री के अतिसार (दस्त) तीन चार दिन में सर्वथा बन्द हो जाते हैं।मसूड़ों की सूजन जामुन की छाल का क्वाथ वा फाण्ट बनायें और उससे दिन में दो बार कुल्ले करते रहने से मसूड़ों का शोथ और पीड़ा दूर हो जाती है और हिलते हुए दान्त भी दृढ़ होकर जम जाते हैं । क्वाथ की मात्रा दो तोले से चार तोले तक शक्ति के अनुसार देनी चाहिये।रक्तप्रदर श्वेतप्रदर नया हो, गरम-गरम और जल के समान स्राव होता हो तो जामुन की छाल का क्वाथ दिन में दो बार पांच-सात दिन देने से प्रदर रोग शान्त हो जाता है । क्वाथ में थोड़ा-थोड़ा मधु मिलाकर देने से अधिक लाभ होता है, किन्तु स्त्री-पुरुष दोनों को कई मास तक ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिये । यह इस रोग का सबसे बड़ा पथ्य है।अशुद्ध पारा वा रसकपूर के खाने से किसी का मुख आ जाए तो जामुन की छाल के क्वाथ से कुल्ले करने से ठीक हो जाता है । मुख के अन्दर की सूजन, लार बहना, जखम और पीड़ा !

अलसी मोटापा घटाने में व अन्य औषधीय गुण तथा विभिन्न बीमारियों में उपयोग व फायदे

अक्सर लोग फ्लैक्स सीड्स को कॉलेस्ट्रॉल कम करने के लिए खाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं फ्लैक्स सीड्स यानि अलसी के बीज को वजन कम करने के लिए खाया जा सकता है. चलिए जानते हैं फ्लैक्स सीड्स को खाने से कैसे वजन कम किया जा सकता है.



इस तरह फ्लैक्स सीड्स से घटता है वजन-


फ्लैक्स सीड्स को पीस कर खाया जाता है क्योंकि उन्हें बिना पीसे खाना बहुत मुश्किल होता है. अगर फ्लैक्स सीड्स को पीसा ना जाए तो इन्हें डायजेस्ट भी नहीं किया जा सकता. तो चलिए जानते हैं फ्लैक्स सीड्स से कैसे घटता है वजन.


फाइबर- फ्लैक्स सीड्स में फाइबर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है. ये लंबे समय तक फाइबर की कमी नहीं होने देता. ये ओवरईटिंग से बचाता है. ऐसे में वजन कम होना स्वाभाविक है.


आमेगा 3 एसिड- फ्लैक्स सीड्स में पाया जाने वाला आमेगा 3 एसिड पेट को शांत करता है और क्रेविंग को खत्म करता है. इतना ही नहीं, इससे बढ़ती भूख शांत होती है. साथ ही ये ब्लड से बैड फैट को एब्जॉर्व करता है.


एंटीऑक्सीडेंट्स- फ्लैक्स सीड्स में लिग्नैन (Lignan) नामक एंटीऑक्सीडेंट्स पाया जाता है जिसका सीधा सा संबंध वेट लॉस से है. ये बॉडी से फैट बर्न करता है और न्यूट्रिशनल सपोर्ट करता है.


लो कार्ब- फ्लैक्स से लो एनर्जी यूज होती है. ये शुगर और स्टार्च लो होता है. इसमें कम कैलोरी होती है. यहां तक की फ्लैक्स में पाए जाने वाला कार्बोहाइड्रेट फाइबर ही है.


प्रोटीन- फ्लैक्स सीड्स में 20 पर्सेंट प्रोटीन होता है जो कि वजन कम करने में मदद करता है. इसके सेवन से आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगती.


फ्लैक्स सीड्स के अन्य फायदे-


  • • कॉलेस्ट्रॉल फ्री फ्लैक्स सीड्स हार्ट के लिए तो अच्छा होता है. इसमें मौजूद फाइबर कंटेट डायजेशन के लिए भी अच्छा होता है और ये कब्ज से भी बचाता है.

  • • फ्लैक्स सीड्स में प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फास्फोरस, ओमेगा 3 एल्फा लिनोलेनिक एसिड भी होता है.

  •  • रोजाना फ्लैक्स सीड्स खाने से स्किन अच्छी होती है. ये कैंसर से बचाता है और वजन भी कम करता है.

  • • ये महिलाओं की हेल्थ के लिए बहुत अच्छा है. इसके खाने से महिलाओं के हार्मोंस का बैंलेस बना रहता है.

  • • फ्लैक्स सीड्स मीनोपोज के सिम्ट‍म्स को कम करता है.
  • जिन महिलाओं को अनियमित पीरियड्स की समस्या है उन्हें भी फ्लैक्स सीड्स खाना चाहिए.

  • • स्ट्रेस और हार्मोंस के इंबैलेंस की वजह से होने वाले हेयर फॉल से निजात मिलती है और बाल हेल्दी रहते हैं.
  • ये हाइपरटेंशन को भी कम करता है.

  • • ये बैड कॉलेस्ट्रॉल को गुड कॉलेस्ट्रॉल में बदल देता है.

Source: abpnews

जटिल समस्या के लिए अचूक औषधि है अलसी 

अलसी असरकारी ऊर्जा, स्फूर्ति व जीवटता प्रदान करता है। अलसी, तीसी, अतसी, कॉमन फ्लेक्स और वानस्पतिक लिनभयूसिटेटिसिमनम नाम से विख्यात तिलहन अलसी के पौधे बागों और खेतों में खरपतवार के रूप में तो उगते ही हैं, इसकी खेती भी की जाती है। इसका पौधा दो से चार फुट तक ऊंचा, जड़ चार से आठ इंच तक लंबी, पत्ते एक से तीन इंच लंबे, फूल नीले रंग के गोल, आधा से एक इंच व्यास के होते हैं। इसके बीज और बीजों का तेल औषधि के रूप में उपयोगी है। अलसी रस में मधुर, पाक में कटु (चरपरी), पित्तनाशक, वीर्यनाशक, वात एवं कफ वर्घक व खांसी मिटाने वाली है। इसके बीज चिकनाई व मृदुता उत्पादक, बलवर्घक, शूल शामक और मूत्रल हैं। इसका तेल विरेचक (दस्तावर) और व्रण पूरक होता है।

अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। एंटी फ्लोजेस्टिन नामक इसका प्लास्टर डॉक्टर भी उपयोग में लेते हैं। चरक संहिता में इसे जीवाणु नाशक माना गया है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।

इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।

तनाव के क्षणों में शांत व स्थिर बनाए रखने में सहायक है। कैंसर रोधी हार्मोन्स की सक्रियता बढ़ाता है। अलसी इस धरती का सबसे शक्तिशाली पौधा है।

कुछ शोध से ये बात सामने आई कि इससे दिल की बीमारी, कैंसर, स्ट्रोक और मधुमेह का खतरा कम हो जाता है। इस छोटे से बीच से होने वाले फायदों की फेहरिस्त काफी लंबी है,​​ जिसका इस्तेमाल सदियों से लोग करते आए हैं। इसके रेशे पाचन को सुगम बनाते हैं, इस कारण वजन नियंत्रण करने में अलसी सहायक है। रक्त में शर्करा तथा कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है। जोड़ों का कड़ापन कम करता है।

प्राकृतिक रेचक गुण होने से पेट साफ रखता है। हृदय संबंधी रोगों के खतरे को कम करता है। उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करता है। त्वचा को स्वस्थ रखता है एवं सूखापन दूर कर एग्जिमा आदि से बचाता है। बालों व नाखून की वृद्धि कर उन्हें स्वस्थ व चमकदार बनाता है।

 इसका नियमित सेवन रजोनिवृत्ति संबंधी परेशानियों से राहत प्रदान करता है। मासिक धर्म के दौरान ऐंठन को कम कर गर्भाशय को स्वस्थ रखता है। अलसी का सेवन त्वचा पर बढ़ती उम्र के असर को कम करता है। अलसी का सेवन भोजन के पहले या भोजन के साथ करने से पेट भरने का एहसास होकर भूख कम लगती है। प्राकृतिक रेचक गुण होने से पेट साफ रख कब्ज से मुक्ति दिलाता है।

अलसी कैसे काम करती है

अलसी आधुनिक युग में स्त्रियों की यौन-इच्छा, कामोत्तेजना, चरम-आनंद विकार, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की महान औषधि है। स्त्रियों की सभी लैंगिक समस्याओं के सारे उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। (व्हाई वी लव और ऐनाटॉमी ऑफ लव) की महान लेखिका, शोधकर्ता और चिंतक हेलन फिशर भी अलसी को प्रेम, काम-पिपासा और लैंगिक संसर्ग के लिए आवश्यक सभी रसायनों जैसे डोपामीन, नाइट्रिक ऑक्साइड, नोरइपिनेफ्रीन, ऑक्सिटोसिन, सीरोटोनिन, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स का प्रमुख घटक मानती है।


सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे। अलसी आपकी देह को ऊर्जावान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा। अलसी में ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन, लिगनेन, सेलेनियम, जिंक और मेगनीशियम होते हैं जो स्त्री हार्मोन्स, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स (आकर्षण के हार्मोन) के निर्माण के मूलभूत घटक हैं। टेस्टोस्टिरोन आपकी कामेच्छा को चरम स्तर पर रखता है।

अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट और लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे कामोत्तेजना बढ़ती है। इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करती हैं जिससे मस्तिष्क और जननेन्द्रियों के बीच सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, दिव्य सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर शिव और उमा की रति-क्रीड़ा का उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है। 

रिसर्च और वैज्ञानिक आयुर्वेद और घरेलू नुस्खों के रहस्य को जानने और मानने लगे हैं। अलसी के बीज के चमत्कारों का हाल ही में खुलासा हुआ है कि इनमें 27 प्रकार के कैंसररोधी तत्व खोजे जा चुके हैं। अलसी में पाए जाने वाले ये तत्व कैंसररोधी हार्मोन्स को प्रभावी बनाते हैं, विशेषकर पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर व महिलाओं में स्तन कैंसर की रोकथाम में अलसी का सेवन कारगर है। दूसरा महत्वपूर्ण खुलासा यह है कि अलसी के बीज सेवन से महिलाओं में सेक्स करने की इच्छा तीव्रतर होती है। यह गनोरिया, नेफ्राइटिस, अस्थमा, सिस्टाइटिस, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, बवासीर, एक्जिमा के उपचार में उपयोगी है। 

सेवन का तरीका

अलसी को धीमी आँच पर हल्का भून लें। फिर मिक्सर में पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भरकर रख लें। रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच पावडर पानी के साथ लें। इसे अधिक मात्रा में पीस कर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह खराब होने लगती है। इसलिए थोड़ा-थोड़ा ही पीस कर रखें।

अलसी सेवन के दौरान पानी खूब पीना चाहिए। इसमें फायबर अधिक होता है, जो पानी ज्यादा माँगता है।हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये, 30 ग्राम आदर्श मात्रा है।

अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये.

डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें।कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।

अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है।पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है।

अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।


अलसी के लाभ

आपका हर्बल चिकित्सक आपकी सारी सेक्स सम्बंधी समस्याएं अलसी खिला कर ही दुरुस्त कर देगा क्योंकि अलसी आधुनिक युग में स्तंभनदोष के साथ साथ शीघ्रस्खलन, दुर्बल कामेच्छा, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की भी महान औषधि है।

सेक्स संबन्धी समस्याओं के अन्य सभी उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। बस 30 ग्राम रोज लेनी है।सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।

अलसी में ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोन कैंसर से बचाने का गुण पाया जाता है। इसमें पाया जाने वाला लिगनन कैंसर से बचाता है। यह हार्मोन के प्रति संवेदनशील होता है और ब्रेस्ट कैंसर के ड्रग टामॉक्सीफेन पर असर नहीं डालता है।

अलसी आपकी देह को ऊर्जावान, बलवान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, जिंक और मेगनीशियम आपके शरीर में पर्याप्त टेस्टोस्टिरोन हार्मोन और उत्कृष्ट श्रेणी के फेरोमोन ( आकर्षण के हार्मोन) स्रावित होंगे। टेस्टोस्टिरोन से आपकी कामेच्छा चरम स्तर पर होगी। आपके साथी से आपका प्रेम, अनुराग और परस्पर आकर्षण बढ़ेगा। आपका मनभावन व्यक्तित्व, मादक मुस्कान और शटबंध उदर देख कर आपके साथी की कामाग्नि भी भड़क उठेगी।

अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन एवं लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे शक्तिशाली स्तंभन तो होता ही है साथ ही उत्कृष्ट और गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है।

इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करते हैं जिससे सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

ओमेगा-3 फैट के अलावा सेलेनियम और जिंक प्रोस्टेट के रखरखाव, स्खलन पर नियंत्रण, टेस्टोस्टिरोन और शुक्राणुओं के निर्माण के लिए बहुत आवश्यक हैं। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार अलसी लिंग की लंबाई और मोटाई भी बढ़ाती है।अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।पुरूष को कामदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी।

अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है। अर्थात स्त्री-पुरुष की समस्त लैंगिक समस्याओं का एक-सूत्रीय समाधान है।इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, जबर्दस्त अश्वतुल्य स्तंभन होता है, जब तक मन न भरे सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर एक आध्यात्मिक उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है। 

तेल तड़का छोड़ कर, नित घूमन को जाय।

मधुमेह का नाश हो, जो जन अलसी खाय।।

नित भोजन के संग में, मुट्ठी अलसी खाय।

अपच मिटे, भोजन पचे, कब्जियत मिट जाये।।

घी खाये मांस बढ़े, अलसी खाये खोपड़ी।

दूध पिये शक्ति बढ़े, भुला दे सबकी हेकड़ी।।

धातुवर्धक, बल-कारक, जो प्रिय पूछो मोय।

अलसी समान त्रिलोक में, और न औषध कोय।।

जो नित अलसी खात है, प्रात पियत है पानी।

कबहुं न मिलिहैं वैद्यराज से, कबहुँ न जाई जवानी।।

अलसी तोला तीन जो, दूध मिला कर खाय।

रक्त धातु दोनों बढ़े, नामर्दी मिट जाय।।

अलसी खाने के फायदे और नुकसान

सेक्स समस्या के लिए अचूक औषधि है अलसी  - अलसी में पाए जाने वाले ये तत्व कैंसररोधी हार्मोन्स को प्रभावी बनाते हैं, विशेषकर पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर व महिलाओं में स्तन कैंसर की रोकथाम में अलसी का सेवन कारगर है।

अस्थमा वालों के लिए लाजवाब - सर्दी, खांसी, जुकाम में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। अस्थमा में यह चाय विशेष उपयोगी है। अस्थमा वालों के लिए एक और नुस्खा भी है।अलसी का सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद है।

इसमें ओमे-3 एसिड पाया जाता है, जो कि दिल के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। एक चम्मच अलसी में 1.8 ग्राम ओमेगा-3 पाया जाता है। इसके प्रयोग से जुड़ें फायदों और नुकसान भी है।कैंसर से बचाव - एक अध्ययन से यह बात साबित हो चुकी है कि अलसी के सेवन से ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोन कैंसर से बचाव करता है। इसमें पाया जाने वाला लिगनन हार्माेन के प्रति संवेदनशील होता है।

हृदय से जुड़ी बीमारियां - अलसी में पाया जाने वाला ओमेगा-3 जलन को कम करता है और हृदय गति को सामान्य रखने में मददगार होता है। ओमेगा-3 युक्त भोजन से धमनियां सख्त नहीं होती है। साथ ही यह व्हाइट ब्लड सेल्स को ब्लड धमनियों की आंतरिक परत पर चिपका देता है।

मधुमेह को नियंत्रित रखता है - अलसी का सेवन मधुमेह के स्तर को नियंत्रित रखता है। अमेरिका में डायबिटीज से ग्रस्त लोगों पर रिसर्च से यह सामने आया है कि अलसी में मौजूद लिगनन को लेने से ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है।

कफ पिघलाने में मददगार - अलसी के बीजों का मिक्सी में तैयार किया गया दरदरा चूर्ण 15 ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री 20 ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए 300 ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। इस रस को तीन घंटे बाद छानकर पिएं। इससे गले व श्वास नली में जमा कफ पिघल कर बाहर निकल जाएगा।

पेट की समस्याएं - अलसी या कोई भी फ्लैक्सीड्स अधिक मात्रा में खाना आपको नुकसान पहुंचा सकता है। इसी तरह अलसी में मौजूद लैक्सेटिव दस्त, सीने में जलन और बदहजमी जैसी पेट की समस्याएं भी बना सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप प्रतिदिन 30 ग्राम अलसी से ज्यादा सेवन न करें।

घाव भरने में देरी - यदि आप अलसी का सेवन करते हैं और आपको कोई चोट लग जाती है तो अलसी में पाया जाने वाला ओमेगा -3 खून जमने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। ऐसे में आपके कोई चोट लगने पर खून बहना रुक नहीं नहीं पाता।

गैस की समस्या बढ़ जाती है - अलसी में फाइबर ज्यादा मात्रा में पाये जाने के कारण कई बार यह पेट में गैस या ऐंठन जैसी समस्या होने का भी कारण होती है। कई बार इसे बिना तरल पदार्थ के लेने से कब्ज की भी समस्या हो जाती है।

एलर्जी का कारण - अलसी का अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक प्रतिकूल प्रभाव का कारण भी बन सकता है। इसके कारण पेट दर्द, मितली आना और उल्टी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं, अलसी को खाने से सांस लेने में समस्या और लो ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है।

सेक्स संबन्धी समस्याओं के उपचारों में सर्वश्रेष्ठ है अलसी
हर्बल चिकित्सक में सेक्स सम्बंधी सारी समस्याएं अलसी दुरुस्त कर देगा क्योंकि अलसी आधुनिक युग में स्तंभनदोष के साथ साथ शीघ्रस्खलन, दुर्बल कामेच्छा, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की भी महान औषधि है।

सेक्स संबन्धी समस्याओं के अन्य सभी उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। बस 30 ग्राम रोज लेनी है।अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन एवं लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे शक्तिशाली स्तंभन तो होता ही है साथ ही उत्कृष्ट और गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है। इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करते हैं जिससे सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है।

नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ओमेगा-3 फैट के अलावा सेलेनियम और जिंक प्रोस्टेट के रखरखाव, स्खलन पर नियंत्रण, टेस्टोस्टिरोन और शुक्राणुओं के निर्माण के लिए बहुत आवश्यक हैं।

कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार अलसी लिंग की लंबाई और मोटाई भी बढ़ाती है।अलसी के सेवन से प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, जबर्दस्त अश्वतुल्य स्तंभन होता है, जब तक मन न भरे सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर एक आध्यात्मिक उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है।

अलसी बांझपन, पुरूषहीनता, शीघ्रस्खलन व स्थम्भन दोष में बहुत लाभदायक है।महिलाओं में योनि शुष्कता की समस्या आम होती है। यह समस्या साधारणतः रजोनिवृत्ति के समय शुरू होती है। इस समस्या के कारण शारीरिक संबंध स्थापित करने में दर्द होता है या पूर्ण संतुष्टि नहीं मिल पाती है। वैसे तो इसके लिए बाजार में कई तरह के लेपमिल जाते हैं। लेकिन प्राकृतिक उपचार करना ही सबसे सुरक्षित उपाय होता है। अलसी का बीज योनि शुष्कता की समस्या से निजात दिलाने में बहुत मदद करती है।

अलसी का बीज फाइटोएस्ट्रोजेन और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स का मूल स्रोत होता है। जिसके कारण यह शरीर में एस्ट्रोजेन के स्तर को बढ़ाने और योनि के शुष्कता को कम करने में बहुत मदद करती है।अलसी के नियमित सेवन से स्त्रियों के स्तनों में वृद्धि होती है। गर्भवती स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए भी इसे खाने की सलाह दी जाती है। साथ ही अलसी के बीज महिलाओं में सेक्स के प्रति दिलचस्प‍ी जाग्रत करते हैं। 

यौनांगों में जलन और योनि संकुचन जैसी बीमारियों के लिए तो इसे अचूक औषधि माना गया है। इसके अलावा मासिक धर्म से संबंधित परेशानियों में भी इसके द्वारा इलाज किया जाता है।

अलसी के लगातार सेवन से चेहरे पर भी कांति आती है।

संक्षेप में हम कह सकते है कि अलसी महिलाओं में सेक्स की इच्छा जगाती है, अलसी सेक्स संबन्धी समस्याओं में सर्वश्रेष्ठ है, अलसी सेक्स संबन्धी समस्याओं के उपचारों में सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है, अलसी शीघ्र पतन को दूर करने सावधिक असरदार है, गुप्त रोगो क़ी चमत्कारी दवा है भी अलसी है, सेक्स संबन्धी समस्याओं के उपचारों अलसी से अंत में अलसी सेक्स की हर समस्या का अंत करने में सहायक है।

जी हाँ दुनिया का सबसे बड़ा डॉक्टर है केला !!! जानिए क्यों ?

क्या कभी आपने सोचा है बंदरों में इतनी लंबी-लंबी छलांग लगाने की ताकत कहां से आती है ?


और इनके पसंदीदा भोजन केला ही क्यों है जी हां असली राज तो बंदरों को ही पता है इसीलिए तो है केला उनकी पसंदीदा भोजन है |

केला में हर बीमारी को खत्म करने की क्षमता है. केला खाने के फायदे से अनजान होंगे आप. इसलिए हम आपको केले के बारे में जो कुछ बता रहे हैं उसे जानकर आज से हीं आप हर रोज केला खाना शुरु कर देंगे.

तो दोस्तों आइए हम भी जानते हैं कि केला क्यों है सबसे बड़ा डॉक्टर |

सिर्फ 2 केला हमें लगातार 90 मिनट तक ऊर्जा दे सकता है, अगर आपने ध्यान दिया हो खिलाड़ी ब्रेक में केला जरूर खाते हैं यह शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है वह ऊर्जा स्तर को बनाए रखता है |

केले में प्राप्त पोटैशियम रक्त संचार को ठीक रखता है, इसमें पाए जाने वाला विटामिन B6 याददास्त और दिमाग तेज रखता है |
केला आपकी प्रतिरोधक क्षमता को भी बढाता है, और आपको संक्रमण से दूर रखता है | आप ये बात तो जानते हीं होंगे कि हमारे शरीर में होने वाली ज्यादातर बीमारियां पेट से शुरू होती है. केला गैस की समस्या को दूर करता है और पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है |

जी हां केला. केला खाने से कई बीमारियां खत्म हो सकती है.

आइए जानते हैं केला खाने के फायदे और किन बीमारियों से बचाव कर सकता है ये केला.

दोस्तों हमेशा हमारी कोशिश ये होनी चाहिए कि हमारे शरीर में बीमारियां पैदा ही ना हो. इसके लिए आवश्यकता है कि हम इलाज करवाने से बेहतर उसके रोकथाम के उपाय करें.

ध्यान दें तो बीमारियां सिर्फ दो ही कारणों से होती हैं

1. शरीर में खून की कमी के कारण और 2. पेट में गैस, कब्ज और अपच के कारण

दोस्तों शायद आपको पता हो कि अगर आपके शरीर में खून की कमी होगी, तो निश्चित रूप से कब्ज और गैस की समस्या उत्पन्न होगी.

और अगर पेट में गैस की समस्या रहेगी तो शरीर में खून की कमी भी होने लगती है. केला खून में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है. इसके नित्य सेवन से पेट में गैस और कब्ज की समस्या से निजात मिलता है. ध्यान दें कि शरीर की सारी बीमारियों का जड़ हमारा पेट होता है. चाहे सांस की बीमारी हो, फेफड़े, दिल और दिमाग की बीमारी हो या फिर किडनी, आहारनाल, हड्डियों या फिर गठिया की हीं बीमारियां क्यों ना हो, हड्डियों  होने से शरीर में खून का बनना कम होने लगता है.

खून में ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होने लगती है. इसका परिणाम ये होता है कि हमारी सांसे, फेफड़े और ह्रदय आदि में कमी आने लगती है. और ये अंग ढीले पड़ने लगते हैं. इतना ही नहीं इन अंगों के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से धीरे-धीरे कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ने लग जाता है. इसके बाद तनाव, टेंशन, रक्तचाप इत्यादि की समस्या भी शुरू होने लगती है. और हमें डॉक्टरों के पास भागते रहना पड़ता है.

ध्यान रखें कि पका हुआ केला ज्यादा फायदेमंद होता है.

केला जितना पका होगा, आपके खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा उतनी ही ज्यादा बढेगी. कच्चे या अधपके केले के सेवन के भी फायदे हैं. इन्हें खाने से पेट में कब्ज और गैस से आराम मिलता है. कच्चे केले की सब्जी भी बनाकर आप खा सकते हैं. इसलिए आगे इस बात का ध्यान रखें कि जब कभी भी आपको पेट में गैस और कब्ज की शिकायत हो तो दवा खाने से पहले 4-5 केले खा लें. इससे आपकी भूख तो शांत हो हीं जाएगी. साथ हीं शरीर में खून भी बनेगा. कब्ज और गैस की समस्या से निजात भी मिलेगा.

ध्यान रखें कि आपका पेट सही रहे, खाना सही तरीके से पचता रहे, गैस और कब्ज की समस्या ना हो तो शरीर में खून की मात्रा सामान्य रहेगी और अगर खून की मात्रा सही रहेगी तो खून में उपस्थित हिमोग्लोबिन, ऑक्सीजन को शरीर की हर सेल में सही मात्रा में पहुंचाते रहेंगे.

अगर आपका फेफड़ा स्वस्थ रहेगा तो आप सांस की बीमारियों से दूर रह पाएंगे. खून की मात्रा सामान्य रहने से हृदय और किडनी जैसे अंग स्वस्थ रहेंगे. खून की मात्रा सामान्य रहने से आपकी हड्डियों को कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम और आयरन सही मात्रा में मिलता रहेगा.

दोस्तों, सारी बीमारियों को आप खुद से दूर रख सकते हैं.

बस आवश्यकता है अपने आहार में नियमित रूप से केले को शामिल करने की.  ये प्रकृति का दिया हुआ हमारे लिए एक अनमोल वरदान है.

अनिद्रा (Insomnia) का आयुर्वेद द्वारा उपचार

अनिद्रा (Insomnia In Hindi)

निद्रा शरीर की सबसे प्रधान आवश्यकता है. नींद आने पर ही शरीर का हर कार्य सुनियंत्रित रहता है. आज के समय में जितनी तकनीकी प्रगति मनुष्य ना कर ली है, उसके बदले में अपनी नींद गवाकर बहुत बड़ी कीमत भी चुकाई है. आज का इंसान ईंट और सेमेंट से बनी दीवारों में घिरकर रह गया है और धूप, शुद्ध जल, शुद्ध हवा के लिए बस तरस कर ही रह गया है. अब उसे पक्षियों की चहचहाहट नही सुनाई देती अपितु गाड़ियों के हॉर्न, पेट्रोल का धुआँ यही नवीन मनुष्य की किस्मत में रह गया है!

प्रकृति से इतना दूर हो जाने से सीधा प्रभाव मनुष्य की नींद पर पड़ता है. इसके अलावा भोजन और दिनचर्या का भी असर मनुष्य की नींद पर प्रमुख तौर पर देखने को मिलता है.
हर व्यक्ति की निद्रा की आवश्यकता अलग-अलग होती है. कुछ लोग सिर्फ़ 6 घंटे की नींद से तरो-ताज़ा महसूस करते हैं जबकि कइयों में यह आवश्यकता 10 घंटे तक भी जाती है. पर औसतन मनुष्य 6-8 घंटे तक ही सोते हैं. अनिद्रा के कारण काम करते वक़्त तनाव बढ़ जाता है अत्यंत दुष्कर स्थिति की तरह प्रतीत होता है.

अनिद्रा के कारण (Causes Of Insomnia In Hindi)

अनिद्रा के अनेक कारण हैं. परंतु मुख्य कारण मानसिक परेशानी है. किसी भी प्रकार की दर्द, असुविधाजनक मौसीम और वातावरण. अधिक परिश्रम और अत्यंत तनाव व्यक्ति, पेट में गड़बड़ी, क़ब्ज़, अनियमित खानपान की वजह से भी यह शिकायत बढ़ जाती है.

वे सब कारण जिनसे व्यक्ति का वात अनियंत्रित हो जाता है, उससे अनिद्रा की समस्या उत्पन्न होती है. ग़लत खानपान एवं अनियमित जीवनचर्या के कारण वात और पित्त का प्रकोप निद्रा को प्रभावित कर देता है. अत्यधिक चाय और कॉफी लेने से भी वात में गड़बड़ उत्पन्न होती है. मानसिक तनाव से वात में भारी असंतुलन उत्पन्न होता है. व्यक्ति को नींद आने में दिक्कत महसूस होती है तथा बिस्तर पर करवटें बदलने में ही उसकी रात्रि व्यतीत हो जाती है.
पित्त की विकृति से उत्पन्न अनिद्रा में सोने के पश्चात व्यक्ति बार-बार उठ जाता है. डर, घबराहट, धड़कन का बढ़ना, पसीना आना, ये सब लक्षण नींद के टूटने पर महसूस किए जाते हैं. यह भी हो सकता है व्यक्ति की नींद सुबह जल्दी ही टूट जावे और उठने के बाद फिर से उसे नींद नही आती हालाँकि यह लगता है जैसे निद्रा पूरी नही हुई और सोने के पश्चात जो ताज़गी मिलती है वह व्यक्ति को अनुभव नही हो पाती.

वास्तव में अनिद्रा का रोग तीनों दोषों में विकृति के कारण हो सकता है.
आयुर्वेद के अनुसार तर्पक कफ, साधक पित्त और प्राण वात में अभिवृद्धि अथवा असंतुलन उत्पन्न होने से अनिद्रा रोग व्यक्ति को ग्रसित कर लेता है. प्राण वात के कुपित होने से मस्तिष्क की तंत्रिकाएँ अतिसंवेदनशील हो जाती है. इस कारण अनिद्रा का रोग किसी भी कारण से उत्पन्न हो जाता है.

अनिद्रा में कारगर कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ ( Ayurvedic Herbs Useful In Insomnia In Hindi)

.

ब्राहमी: यह औषधि अनिद्रा में अत्यंत लाभ देती है. रात्रि के समय चूर्ण के रूप में अथवा उबाल कर इसका कादा पीने से या फिर किसी भी रूप में ब्राहमी का सेवन इस रोग में बहुत लाभकारी है. इसके अलावा यह दिमाग़ की कार्यशक्ति को बढ़ाती है.
बच: यह औषधि मस्तिष्क की विभिन्न समस्यायों के इलाज में प्रयोग होती है. अप्स्मार, सिरदर्द, अनिद्रा इत्यादि सभी रोगों के निदान को करने वाली इस औषधि का प्रयोग बहुत सी दवाइयों में किया जाता है.
अश्वगंधा: यह जीवनी शक्ति को बढ़ाने के लिए अत्यंत कारगर है. इसके उपयोग से मन और इन्द्रियों के बीच अच्छा तालमेल बनता है. आयुर्वेद के अनुसार यह तालमेल अच्छी नींद के लिए अत्यंत आवश्यक है. रात्रि सोने से पूर्व दूध अथवा शर्करा और घृत के साथ आधा चम्मच अश्वगंधा चूर्ण का सेवन करना अत्यंत हितकर है.
जटामानसी: इस औषधि द्वारा मस्तिष्क में प्राकृतिक तंत्रिकासंचारक के स्तर को प्राकृतिक रूप से संतुलित करने में सहायता करता है. इसका उपयोग  उपशामक(sedative), अवसाद-नाशक(anti-depressant), अपस्मार- रोधक(anti-epileptic), एवं हृदय-वर्धक (heart-tonic) के रूप में किया जाता है. यह औषधि ना केवल तनाव की स्थिति में मस्तिष्क को शांत कर निद्रा लाने में सहायक है अपितु थकान से ग्रस्त मान में उर्जा का संचार भी करती है. इससे शरीर के सभी अंगों में कार्यशीलता में वृद्धि और संतुलन का निर्माण होता है. इस औषधि को चूर्ण के रूप में सेवन किया जा सकता है. इसका एक-चौथाई चम्मच सोने से 4-5 घंटे पूर्व 1 गिलास पानी में भिगोकर रखें. रात्रि को पानी छान कर पीने से अनिद्रा में लाभ मिलता है.
तगार: यह मस्तिष्क की तंत्रिकाओं (nerves) को बल प्रदान करने वाली औषधि है और रक्त, जोड़, आँतों और शरीर के विभिन्न कोषों (tissues) में से जीव विष (toxins) का निकास करने में सहायक सिद्ध होती है.

अनिद्रा में हितकारी कुछ आयुर्वेदिक प्रयोग ( Ayurvedic Treatments Useful In Insomnia In Hindi)

पिप्पली मूल चूर्ण: इस चूर्ण का 1.5 ग्राम सोने से पूर्व लेना चाहिए.
स्वामक्षक भस्म: 1 ग्राम स्वामक्षक भस्म पानी के साथ सोने से पूर्व लेने से अनिद्रा में लाभ मिलता है.
वातकुलान्तक: 125 मिलीग्राम रोज़ शहद के साथ लेना हितकर है.
निद्रोदय रस: 125 मिलीग्राम रोज़ शहद के साथ सेवन करें.

पंचकर्म प्रणाली द्वारा अनिद्रा का उपचार (Treatment Of Insomnia Through Panchkarma Techniques In Hindi)

पंचकर्म प्रणाली द्वारा शिरोबस्ती, शिरोधरा, नास्यम.
अभ्यनगम: इस क्रिया में पूरे शरीर की मालिश वात-रोधक औषधि सिद्ध तेलों द्वारा की जाती है. तिल तेल, नारायण तेल अथवा बाल तेल का प्रयोग से शरीर में शांति उपार्जित होती है तथा ब्राहमी के तेल से सिर मेी की गयी मालिश अत्यंत गुणकारी है.
पाद अभ्यन्गम: पैरों के तले को क्षीरबल के तेल से मालिश करने से पुर श्रीर सहित मस्तिष्क की नसों में विश्रान्ति उत्पन्न होती है.

योगाभ्यास एवं प्राणायाम ( Yogasana And Pranayama In Treatment Of Insomnia In Hindi)

नियमित रूप से मौलिक योग आसनों के अभ्यास के बाद यदि शवासन किया जाए तो इससे अनिद्रा के रोग से सहज ही छुटकारा मिल जाता है. और योग आसन करने के पश्चात यदि नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास 20-30 मिनट रोज़ हो तो शीघ्र ही अनिद्रा तो निवृत्त होती ही है, इसके साथ हो साथ पूरे तंत्रिका तंत्र  (nervous system) में ताक़त आ जाती है.
प्रकृति के साथ अधिक समय बिताएँ. रोज़ ऐसा करने से मस्तिष्क में प्रकृति के साथ तालमेल बैठने से व्यक्ति अच्छी निद्रा का अनुभव कर सकता है.
योग निद्रा प्रतिदिन करने से भी मस्तिष्क संबंधी सभी रोग निवृत्त हो जाते हैं और निद्रा की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है.

घरेलू नुस्खे द्वारा अनिद्रा का शमन  (Ayurvedic Home Remedies Useful In Treatment Of  Insomnia In Hindi)

1 गिलास हरी एलाईची वाले गर्म दूध का सेवन सोने से पहले अत्यंत सहायक है.1 चम्मच मुलेठी का पाउडर 1 गिलास दूध के साथ प्रातः काल सेवन करना चाहिए.3 ग्राम पुदीने के पत्ते लेकर 1 कप पानी में 15-20 मिनट तक उबालें. रात्रि को सोने से पहले एक चम्मच शहद के साथ कुनकुने होने पर सेवन करें.सोने से पहले नारियल या सरसों तेल से पैरों और पिंडलियों में मालिश करना अत्यंत लाभकर है.1 चम्मच ब्राहमी और अश्वगंधा का पाउडर 2 कप पानी आधा रह जाने तक उबालें. रोज़ सुबह इसका सेवन करना लाभदायक है.कटे हुए केले पर पीसा हुआ ज़ीरा डाल कर प्रति रात्रि शयन से पूर्व खाना भी नींद लाने में सहायक है.

पथ्य/ अपथ्य तथा जीवनचर्या में कुछ लाभदायक सुधार (Diet Recommended In Ayurveda For Treatment Of Insomnia In Hindi)

ताज़े फलों और सब्जियों का सेवन, छिलकासहित पिसे हुए अन्न, छिलका सहित दालें, दुग्ध एवं मीठे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए.क्रीम की ड्रेसिंग वेल सलाद का सेवन करें.
गाय के दूध से निर्मित माखन का उपयोग करें.शराब, कॅफीन युक्त पदार्थ और शीत कार्बोननटेड पेय का सेवन ना करें.कंप्यूटर, मोबाइल और टी वी का प्रयोग कम से सोने से 2 घंटे पूर्व ना करें.रात्रि का खाना सोने से कम से कम 3 घंटे पहले हो जाना चाहिए.तिल तेल से मालिश और गर्म पानी से स्नान अनिद्रा दूर करने में सहायक हैं.

शहद को इस तरह से खाना हो सकता है जानलेवा ! जानबूझकर गलती ना करें …


शहद और जानलेवा, इसे खाने से नुकसान भी हो सकता है, ये बात सुनने में अटपटी है ना, हैल्‍थ एक्‍सपर्ट मानते हैं कि शहद को खाना तब नुकसान पहुंचा सकता है जब आप इसे गलत तरीके से ले रहे हों ।

New Delhi, May 14: कभी दूध में मिलाकर, तो कभी नींबू पानी के साथ, हम शहद के मजे लेते रहे हैं । लेकिन न्‍यूट्रीशनिस्‍ट की मानें तो शहद का ज्‍यादा इस्‍तेमाल आपको नुकसान पहुंचा सकता है । दादी – नानी के नुस्‍खों में टॉप पर रहने वाला शहद आपके शरीर के लिए जानलेवा कैसे हो सकता है । यही सोच रहे हैं ना आप । तो चलिए हम आपको बताते हैं शहद के साइड इफेक्‍ट्स ।

शहद खाने से आपकी बॉडी में कैलोरी की मात्रा बढ़ती है । अगर आप ये सोचकर रोज नींबू पानी में शहद मिलाकर पी रहे हैं कि इससे आपका वजन कम होगा तो आपकी ये सोच गलत साबित हो सकती है । शहद पॉलेन नाम के फूल से भी बनता है । अगर आपको पॉलेन से एलर्जी है तो इससे बना शहद आपके लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है । आपको सांस लेने में दिक्‍कत, चेहरे पर लाल चकत्‍ते पड़ना, खाना निगलने में दिक्‍कत जैसे लक्षण उभर सकते हैं । कई बार एलर्जी का उपचार ना हो सके तो ये जानलेवा भी हो जाती है ।

शहद में पाया जाने वाले तत्‍व अंदर से गर्मी देते हैं । अगर आप शहद ज्‍यादा मात्रा में खा लें तो आपको पसीना आने लगता है और आप रेसटलेस फील करते हैं । जिससे आप कमजोरी के शिकार भी हो सकते हैं । शहद में मौजूद जीवाणु की वजह से बच्‍चों के शरीर में फूड प्‍वॉइजनिंग की शिकायत हो सकती है । लो इम्‍यूनिटी के चलते बच्‍चों पर इसका बुरा असर पड़ता है । इसे बेटुलिजम कहते हैं । फूड प्‍वाइंजनिंग का समय पर पता ना चल पाए तो इससे शरीर में पानी की बेहद कमी हो सकती है जो जानलेवा भी हो सकती है ।

शहद के ज्‍यादा सेवन से आपका इनेमल खत्‍म हो सकता है । चूंकि शहद एसिडिक प्रवृत्ति का होता है इसलिए इसका ज्‍यादा सेवन आपके फूड पाइप, पेट और आंतों तक पर असर डाल सकता है। शहद स्‍वाद में बेहद मीठा होता है , इसे लेने से आपके शरीर का इंसुलिन लेवल बढ़ जाता है । डायबिटिक लोगों के लिए शहद जानलेवा हो सकता है। इसे खाने से उनका शुगर लेवल बढ़ जाता है । गर्म तासीर का होने के चलते ज्‍यादा शहद खाना आपके पेट में दर्द और ऐंठन की समस्‍या दे सकता है । इतना ही नहीं कई बार ऐसा होने से आपको लूज मोशन भी हो सकते हैं ।

Tuesday, May 16, 2017

घुटने की समस्या या दर्द के १० मुख्य कारण!


Knee Pain in Hindi

घुटना हमारे शरीर का सबसे बड़ा और सबसे जटिल जोड़है | ऐसा प्रायः देखा गया है की बढती हुई उम्र के साथ अक्सर लोग घुटने के दर्द से ग्रस्त हो जाते हैं | कभी कभी घुटने में दर्द के साथ सूजन भी रहती है.

जब यह दर्द अधिक हो जाये तो छोटे मोटे रोज मर्रा के काम भी मुश्किल हो सकते हैं, जैसे की हल्का वजन उठाना, सीडियां चड़ना, या थोड़े दूर पैदल चलना. हो सकता है की पहले आपको सिर्फ एक ही पैर में दर्द हो, परन्तु थोड़े समय के बाद दोनों घुटनों में दर्द होने लगे |

घुटने में अनेक कारणों से ऐसा दर्द हो सकता है. अगर सही समय में जांच हो जाये तो ये संभव है की उचित उपचार से या तो आप पूरी तरह दर्द से निजात पा सकते हैं, नहीं तो कम से कम रोग को आगे बढने से रोका तो जा ही सकता है.

इस तरह की जांच कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ ही सही तरह से कर सकता है. अगर आप ऐसे किसी भी दर्द से कुछ हफ़्तों या उससे भी अधिक अवधि से पीड़ित हों, तो बिना और समय गवाएं बिना एक अच्छे डॉक्टर से जांच अवश्य कराएं.

१.      रुमेटोइड आर्थरिटिस (Rheumatoid Arthritis)

  

रुमेटोइड आर्थरिटिस जिसे संधिशोथ भी कहते हैं एक ऐसा रोग है जिसमें हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद हमारे शरीर को नुक्सान पहुचाने लगती है | इस तरह यह रोग जोड़ों के ऊपर बनी एक झिल्ली जैसी परत (Synovium Tissue) को भी नुकसान पहुंचा सकता है. अक्सर यह रोग पहले छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है, विशेष रूप से उँगलियाँ, हाथ, पैर की उंगलियों और अपने पैरों के जोड़. आगे चल कर बड़े जोड़ जैसे कलाई, कोहनी, कंधे, घुटने और कूल्हों भी ख़राब हो सकते हैं. घुटने का जोड़ ख़राब होने पर उसमें दर्द और सूजन होना जैसे लक्षण दिखने लगते हैं. संधिशोथ का उपचार अन्य तरह के आर्थराइटिस रोगों से अलग होता है, इसलिए यह जरुरी है की पहले जांच करवाई जाए की दर्द किसलिए हो रहा है.

२.     ऑस्टियोआर्थराइटिस

ऑस्टियोआर्थराइटिस गठिया का सबसे आम रूप है, जो दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रभावित करता है। यह तब होता है जब हड्डियों के सिरों पर सुरक्षात्मक कार्टिलेज परत समय के साथ घिस जाती है. आगे चलकर यह रोग जोड़ों की हड्डियों को भी प्रभावती करता है. ऑस्टियोआर्थराइटिस एक ऐसा रोग है जिसे सही समय रहते उपचार के द्वारा नियंत्रित तो किया जा सकता है परन्तु पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है. ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण घुटने में दर्द और सूजन की समस्या आम है. यहाँ पर यह देखना आवश्यक है की रुमेटोइडआर्थरिटिस रोग की ही तरह लक्षण मिलते जुलते हैं, परन्तु रोग अलग है और उपचार भी अलग.

३.     बर्सितिस

बर्सा श्लेष तरल पदार्थसे भरी एक पतली थैली होती है जो जोड़ों के विभिन्न ऊतकों के बीच घर्षण को कम करने में मदद करता है. हमारे घुटने के जोड़ में ऐसे लगभग ११ बरसा होते हैं. घुटने में तेज झटका, घुटने के बल गिरना, या लम्बे समय तक घुटने पर दबाव पड़ने से बरसा में इन्फेक्शन हो सकता है और उसमें सूजन आ जाती है. बर्सितिस का पूरी तरह से उपचार संभव है.

४.    नी कैप का उखड़ना

नी केप या जिसे पटेल्ला हड्डी भी कहते हैं, हमारे घुटने के ऊपर एक छोटी से सुरक्षात्मक हड्डी होती है. कभी घुटने के बल गिरने पर या खेल के दौरान अचानक दिशा बदलने पर यह हड्डी अपने स्थान से हट सकती है. इससे घुटने में तेज दर्द, सूजन और घुटने को सीधा करने में दर्द होना जैसे लक्षण देखे जाते हैं. एक सामान्य व्यक्ति को पता नहीं हो सकता है की ऐसा दर्द नी केप के अपनी जगह से हटने के कारण हो रहा है या किसी और कारण से. इसलिए एक आर्थोपेडिकविशेषज्ञ की सलाह लेना जरुरी है. वैसे उखड गयी नी केप एक गंभीर स्थिति नहीं है और यह पांच से छह हफ़्तों में खुद ठीक हो जाती है.

५.    मिनिस्कस टियर (Meniscus Tear)

हमारे घुटने में दो मिनिस्कस कार्टिलेज होते हैं. एक घुटने एक अन्दर की ओर और एक घुटने के जोड़ के बाहर की तरफ. यह हमारे घुटने को स्थिरता देते हैं और घुटने में होने वाली आर्टिकुलर कार्टिलेज पर पड़ने वाले दवाब को कम करते हैं. अगर मिनिस्कस कार्टिलेज में कोई चोट लग जाए तो घुटने का जोड़ अस्थिर हो जाता है और अधिक दवाब से दर्द और सूजन दोनों हो सकती है. इसके अलावा अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो बड़ा हुआ दवाब अन्य उतकों जैसे आर्टिकुलर कार्टिलेज को भी प्रभावित कर सकता है.

६.     टेन्डीनिटिस (Tendinitis)

यह टेंडन की सूजन के कारण होता है।टेंडन ऊतक हड्डी को पेशी से जोड़ता है। इस अवस्था में रोगी घुटने के सामने गंभीर दर्द महसूस करता है जिससे सीडियां चड़ना, घूमना और अन्य गतिविधियां में मुश्किल हो सकती है.

७.    ए सी एल (ACL)चोट

ए सी एल (एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट) घुटने के सामान्य कार्य के लिए महत्वपूर्ण उतक है. अचानक घुटने के मुड़ने से, या खेल के दौरान चोट लगने पर ACL में खिचाव आ सकता है, या यह आंशिक अथवा पूरी तरह से फट सकता है. ACL की चोट लगने पर आपको घुटने में दर्द, सूजन के अलावा चलने में अस्थिरता का अहसास हो सकता है, जैसे की चलते चलते अचानक घुटने का स्लिप होना.

८.     रन्नर्स नी (Runners Knee)

रन्नर्स नी दौड़ने वाले खिलाडियों में एक आम समस्या है. खास तौर पर उन खेलों में जिनमें खिलाडी को घुटना अक्सर मोड़ना पड़ता है, जैसे बाइकिंग, कूदना या दौड़ना. यह रोग घुटने में बार बार गिरने के कारण हो सकता है, घुटने के अधिक इस्तेमाल, या ऐसे व्यायाम जिनमें घुटने पर अधिक दवाब पड़ता है.

९.     अस्थि-भंग

घुटने की हड्डियां जैसे पटेला (नी कैप)खेल या वाहन दुर्घटनाओं या गिरनेके दौरान टूट सकती हैं. नी कैप का टूटना एक गंभीर ओर्थपेडीक चोट है, जिसके लिए शल्य चिकित्सा की आवश्यकता भी हो सकती हैं. जोड़ की हडियों में होने वाले फ्रैक्चर से बाद में अन्य रोग जैसे आर्थराइटिस होने का खतरा भी हो जाता है. एक व्यक्ति जिसकी हड्डियाँ ऑस्टियोपोरोसिस के कारण कमजोर हो गयी हों, उसमें एक साधारण से गिरने पर भी हड्डियाँ टूट सकती हैं.

१०. बोन ट्यूमर

जोड़ों में होने वाले दर्द और सूजन का एक कारण हड्डियों में होने वाला ट्यूमर भी हो सकता है. इस रोग से हड्डियाँ कमजोर होकर फ्रैक्चर भी हो सकती हैं. यह रोग एक प्रकार के कैंसर रोग से भी मिलता जुलता है जिसे ओस्टियोसार्कोमा कहा जाता है.

घुटने के पुराने दर्द के लक्षण

कब ये समझें की आपका घुटने का दर्द कभी कभार होने वाला साधारण दर्द नहीं परन्तु ऐसा दर्द है जिसके लिए आपको एक ओर्थपेडीक विशेषज्ञ को दिखना आवश्यक है?

१. आपके घुटने का दर्द कम ज्यादा हो सकता है, परतु रहता हमेशा है.

२. यह दर्द कभी दबा हुआ या कभी काफी तेज हो सकता है.

३. घुमने फिरने में तेज और चुभने वाला दर्द होता है.

४. साधारण चलने में भी कठिनाई का अहसास

५. घुटने में दर्द के साथ साथ सूजन का दिखना

उपचार के विकल्प

निदान घुटने के दर्द के कारणों पर निर्भर करता है. जैसे की ऊपर बताया गया है, घुटने का दर्द अनेक कारण से हो सकता हैं, और रोग के अनुसार इसका उपचार भी अलग अलग हो सकता है.

आपके आर्थोपेडिक चिकित्सक आपको रोग के अनुसार चिकित्सा का परामर्श दे सकते हैं, जैसे की

१. फिजियोथेरेपी

२. दवा

३. सर्जरी

४. इंजेक्शन

दर्द से तात्कालिक आराम के लिए कुछ सरल उपाय

अगर आप ये जाना चाहते हैं की क्या आपका घुटने का दर्द अपने आप ही ठीक हो सकता है, तो चिकित्सक को दिखने से पहले आप ये कुछ उपाय घर में ही प्रयोग कर सकते हैं.

१. घुटने को आराम दें और कोई भी ऐसा कार्य न करें जिससे घुटने पर दवाब बड़े.

२. अगर आपके घुटने में सूजन हो तो, हर 2-3 घंटे में 15 मिनट के लिए अपने घुटने पर बर्फ की पट्टी लगायें.

३. सूजन को कम करने के लिए आप एक पट्टी से अपने घुटने को बाँध सकते हैं.

४. सोते समय अपने घुटने के नीचे एक तकिया रखें जिससे आपके घुटने को आराम मिले.

५. दर्द और सूजन को कम करने के लिए चिकित्सक के परामर्श से साधारण (NSAID) या दर्द निवारक दवा ले सकते हैं.

क्या आपको ये जानकारी अच्छी लगी?

अगर हाँ तो अपने कमेन्ट से हमें बताएं. अपना सुझाव भी दें की आपको किस बारे में और अधिक जानकारी चाहिये. आप हमारा नीचे दिया हुआ फेसबुक (Facebook) पेज भी लाइक (Like) कर सकते हैं, जिसके माध्यम से आपको बहुत काम की और नयी जानकारी मिल सकती है.