Monday, May 15, 2017

पत्ता गोभी के पत्तों को पैरों और छाती पर लगाकर सोने के फायदे जानकर उड़ जाएंगे आपके होश

पत्ता गोभी को बंद गोभी के नाम से भी जाना जाता है। फूल गोभी, ब्राकोली, ब्रसेल्ज़ स्प्राउट और पत्ता गोभी ये सभी सब्जियां एक ही प्रजाति में आती है। पत्ता गोभी को कच्चा सलाद के तौर पर भी खाया जाता हैं। ये हमारे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता होता है। क्‍योंकि इसमें भरपूर मात्रा में न्यूट्रियेंट्स और प्रोटीन होता है और साथ में फाइबर की मात्रा बहुत ज्‍यादा पाई जाती है, यह डाइटिंग करने वालों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। अगर आप अच्छी सेहत के साथ साथ आकर्षक लुक पाना चाहते हैं तो अपनी डाइट में पत्ता गोभी ज़रूर शामिल करे। पत्ता गोभी हमारे शरीर से बिमारीयों को दूर करने में मदद करता है।


 1. हमेशा सिर में दर्द होना –

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव के कारण हर समय सिर में दर्द होना आम बात है। लेकिन पत्ता गोभी आपको इस सिरदर्द से निजात दिला सकता है अगर आप पत्ता गोभी के पत्तों को रात भर अपने सिर पर रख कर किसी चीज से ढ़ककर सो जाएं तो आपका दर्द गायब हो जाएगा।

 2. घाव पर सूजन होना –

अगर आपको जोड़ों पर चोट लगी है और वहां सुजन हो रही हो तो पत्ता गोभी के पत्ते आपके लिए रामबाण उपाय है। सुजन वाली जगह पर अगर आप पत्ता गोभी के फ्रेश पत्ते को लपेट का उसे बैंडेज की तरह बांध लें तो आपका सूजन खत्‍म हो जाएगा।


3. थायरॉयड ग्रंथि –

थायरॉयड ग्रंथि जो कि गले के निचले भाग में होती है। ये ग्रंथि पाचन तन्त्र के लिए हार्मोन्स पैदा करने का काम करती है। अगर ये ग्रंथि सही से काम नहीं कर रहा या और कोई भी परेशानी है तो उसके लिए आप पत्ता गोभी के पत्तों को रात में गर्दन पर लपेट लें और उसे किसी चीज से डक लें।


4. स्तनपान से दर्द –

कई बार महिलाओं को स्तनपान की वजह से काफी दर्द महसूस होता है। इस दर्द का निवारक भी पत्ता गोभी ही है। इसके फ्रेश पत्तो को अपने स्तन से लगा कर रखे जब तक के दर्द ठीक नहीं हो जाता

गर्मियों में नाक से खून क्यों आता है? इससे बचने के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार


नाक से खून आना अच्छा नहीं होता कुछ लोगो को हमेशा नाक से खून आने / नकसीर की शिकायत रहती है। अगर आपको नाक से खून कभी नहीं आता तो उसका इसका मतलब यह नहीं की आपको कभी यह परेशानी नहीं हो सकती। यह आपके रोज़ के कामो में परेशानी पैदा करती है। नाक से खून आने के कई कारण हो सकते हैं। हमेशा कोई वजह से ही नाक के रोग, नाक से खून नहीं आता बल्कि बार बार खून आने के कुछ कारण होते हैं!

गर्मियों में ही क्यों? (Why summers)

कुछ लोगों को लगता है की सर्दियों में ही नाक से खून आता है और यह कुछ हद तक सही भी है। लेकिन गर्मी के कारण भी नाक से खून आता है। गर्मियों में खून आने के कई कारण होते हैं। यह महीना गर्म और सुखा होता है दोनों ही वजह से यह परेशानी होती है। नमी की कमी की वजह से नाक सूखने लगती है जिस वजह से खून आने लगता है और ज्यादा गर्मी के कारण भी यह तकलीफ हो जाती है। लेकिन आप कई ऐसे उपचार घर में कर सकते हैं जिनसे आप नाक से खून आना नकसीर (nakseer ka gharelu ilaj) रोक सकते है।


नकसीर का उपचार (Home remedies for naak se khoon ana)

आप मौसम तो नहीं बदल सकते लेकिन इस मौसम की वजह से नाक से खून बहने की परेशानी से जरूर बच सकते हैं। आप अपनी नाक को कुछ तरीकों से नमी दे सकते हैं। नकसीर का इलाज, नहाते वक़्त लंबी सांस लें नाक को ठन्डे पानी से धोएं। ज्यादा धुप में ना निकलें। घर में ठंडक रखने की कोशिश करें या एयर कंडीशनर (A.C.) लगाएं।


अगर आप फिर भी खून आना नहीं रोक पाएं तो ,कुछ घरेलू उपचार जिससे आपको आराम मिलेगा

  • विनेगर (सिरका) इस वक़्त आपका सच्चा दोस्त साबित होगा। सफ़ेद विनेगर की कुछ बुँदे रुई पर लगाकर सूँघे खून आना बंद हो जाएगा।
  • नकसीर के उपाय, बर्फ के टुकड़े से नाक पर सिकाई करें। इससे जो नाक से खून बह रहा है वो जल्दी ही गाड़ा होकर बेहना बंद हो जाता है।
  • नकसीर के उपाय, आप नाक को ठन्डे पानी से धोएं लेकिन नाक के अंदर पानी ना डालें। पानी की धार नाक पर डालें आराम मिलेगा।
  • विटामिन सी से खून बहना बहुत जल्दी बंद हो जाता है। हमारे शरीर में विटामिन सी का सही मात्रा में होना बहुत ज़रूरी है। यह भी हो सकता है की  विटामिन सी की मात्रा सही होने के बाद भी नाक से खून आए। लेकिन फिर भी विटामिन सी सही मात्रा में शरीर में होना चाहिए।
  • बेकिंग सोडा को पानी के साथ मिलाकर नाक में स्प्रे करें इससे बहुत जल्दी आराम मिलेगा।
  • अगर आप नाक से लगातार खून बहने से परेशान हैं तो जितना हो सके भाँप लेते रहें।
  • जब नाक से खून निकले तो गर्दन को पीछे की तरफ झुका कर रखें जब तक खून निकलना बंद ना हो।

खानपान (Diet)

नाक से खून आने के कारण कई लोग लगातार नाक से खून बहने के कारण बहुत तकलीफ का सामना करते हैं क्योंकि उनके शरीर में विटामिन और पोषक तत्वों की कमी रहती है। इससे बचने के लिए आपको अपने खान पान का ख्याल रखना होगा।

  • अपने खाने में आयरन ज्यादा मात्रा में लें क्योंकि यह हमारे शरीर में खून बढ़ाने में सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है। यही हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन को सही रखता है। पालक, किशमिश, रेड मीट, चिकन, सोयाबीन अपने खाने में शामिल रखें यह खून बढ़ाने में सहायक है।
  • जिसमे विटामिन सी भरपूर मात्रा में हो ऐसी चीजें ज्यादा खाएं जैसे जामफल, संतरे, नीबू, पपीता।

मौसम बदलने के साथ ही लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं घेर लेती हैं। इन्हें ठीक करने के कई उपाय भी मौजूद हैं। परन्तु किसी समस्या का हल निकालने से पहले उस समस्या के होने की जड़ तक पहुंचना काफी ज़रूरी है। आपने कई लोगों और बच्चों की नाक से गर्मियों के मौसम के दौरान खून निकलते हुए देखा होगा। क्या आपने कभी इस बात को जानने की चेष्टा की है कि ऐसा क्यों होता है ? आये गर्मियों में नाक से खून निकलने के कारणों के बारे में जानते हैं। इसके बाद हम इन्हें ठीक करने वाले घरेलू नुस्खों के बारे में भी बात करेंगे।

गर्मियों में नाक से खून निकलने के कारण (Reasons of nose bleeding in summer)

गर्मियों के दौरान वातावरण काफी रूखा हो जाता है। इस रूखी हवा की समस्या से गर्मियों में लोगों की नाक से खून निकलने की स्थिति उत्पन्न होती है। कई लोगों की नाक के अन्दर की रक्त धमनियां काफी कमज़ोर होती हैं। अतः गर्मियों के मौसम में हवा के दबाव में जब बदलाव आता है तो उनकी नाक से खून निकलने की समस्या उत्पन्न होती है।


गर्मियों में नाक से खून निकलना रोकने के नुस्खे (Remedies to cure nose bleeding in summer)

साबुत गेहूं की ब्रेड (Whole wheat bread)

कई बार सही खानपान से आपको कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से आसानी से छुटकारा प्राप्त हो जाता है। जी हाँ, साबुत अनाज का ब्रेड नाक से खून निकलने की समस्या को दूर करने में आपकी काफी सहायता करता है। गर्मियों में नाक से खून निकलने की समस्या से जड़ से छुटकारा प्राप्त करने के लिए साबुत अनाज की ब्रेड का सेवन करें। आप इसका सेवन नाश्ते तथा रात के खाने में करके नाक से खून निकलने की समस्या से दूर रह सकते हैं।

हरी सब्जियां (Green vegetables se nakseer ka gharelu ilaj)

हरी सब्जियों में एक व्यक्ति के स्वास्थ्य में निखार लाने वाले कई गुण पाए जाते हैं। अगर आप नाक से खून निकलने की समस्या से परेशान हैं तो यह एक बेहतरीन उपाय सिद्ध हो सकता है। अपने भोजन में रोजाना हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करने से आप नाक से खून निकलने की समस्या से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं।

संतरे कासेवन (Consuming orange)

संतरा एक ऐसा फल है जो विटामिन सी (vitamin C) से पूरी तरह युक्त होता है। अगर आपका बच्चा विटामिन सी की कमी से जूझ रहा है तो आज ही उसे संतरे का सेवन करवाएं। आप सोच रहे होंगे कि चूँकि संतरा ठण्ड के मौसम में पाया जाने वाला फल है, अतः यह गर्मियों में उपलब्ध नहीं हो पाएगा। परन्तु आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज के दौर में हर फल हर मौसम में पाया जाता है और कोई भी फल किसी खास मौसम में पाए जाने का मोहताज नहीं रहा। अतः जब भी आपको नाक से खून निकलने की समस्या सताए तो बाज़ार जाएं और संतरा खरीदकर इसका सेवन अवश्य करें।

पानी पियें (Drink water)

गर्मियों में नाक से खून निकलने की समस्या का एक कारण शरीर में पानी की कमी होना भी हो सकता है। लोग कई बार गर्मियों में पानी पीना भूल जाते हैं, और इसके फलस्वरूप वे कई बार नाक से खून निकलने की समस्या के शिकार होते हैं। इस समस्या का एक बेहतरीन इलाज यही है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें, जिससे आपके शरीर में पानी की कमी कभी ना हो। आज ही इस विधि का प्रयोग करें और खुद ही अपनी आँखों से देखें कि किस तरह यह विधि गर्मियों में आपकी नाक से खून निकलने की समस्या को दूर करने में कारगर सिद्ध होती है।

कई बार लोगों की नाक से अचानक खून बहने लगता है। इसे चिकित्सा जगत में नकसीर फूटना कहते हैं। ये समस्या अक्सर बच्चों में देखी जाती है। बहुत गर्मी या चोट लगने पर नाक से खून बहना आम बात है। कभी-कभी ये समस्या संक्रमण के कारण होती है। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि कैंसर के शुरूआती लक्षण नाक से खून बहना भी होता है, लेकिन ज्यादातर लोग इसको नजरअंदाज कर जाते हैं। नाक से खून दो प्रकार से आता है, एंटीरियर नोजब्लीड या पोस्टीरियर नोजब्लीड। इसमें पोस्टीरियर नोजब्लीड जानलेवा होता है।

कब जाएं अस्पताल?

अगर बच्‍चों को चोट लगने पर नाक से खून बहने लगे तो बिल्कुल देर ना करें। उसे जल्द से जल्द अस्पताल ले जाएं। कभी एक्‍सीडेंट होने पर अगर नाक से खून आने लगे तो लापरवाही न बरतें। दिमाग पर चोट लगने की वजह से भी नाक से खून बहने लगता है।

सांस की बीमारी के लक्षण और उपचार


कई बार आप लोगों ने देखा होगा कोई बीमारी ना होते हुए भी सांस फूलने लगती है ये कोई जरुरी नहीं है की सांस केवल मोटे व्यक्ति की ही फूले ऐसा किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है फिर चाहे वो पतला इंसान ही क्यों न हो . इसके पीछे का जो कारण है वो आज आपको बताते हैं अक्‍सर ऐसा होता है कि बिना किसी बीमारी के भी काम करते हुए सांस फूलने लगती है या सीढ़ियां चढ़ने से सांस फूल जाती है। कई लोग सोचते हैं कि मोटे लोगों की सांस जल्दी फूलती है, लेकिन ऐसा नहीं है। कई बार पतले लोगों की सांस भी थोड़ा चलने पर ही फूलने लगती है। दिल्ली मुम्बई और Industrial area में सांस फूलने की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है।

सांस की बीमारी होने के कारण (Due to respiratory illness)

सांस फूलना या सांस ठीक से न लेने का अहसास होना एलर्जी, संक्रमण, सूजन, चोट या मेटाबोलिक स्थितियों की वजह से हो सकता है। सांस तब फूलती है जब मस्तिष्क से मिलने वाला संकेत फेफड़ों को सांस की रफ्तार बढ़ाने का निर्देश देता है। फेफड़ों से संबंधित पूरी प्रणाली को प्रभावित करने वाली स्थितियों की वजह से भी सांसों की समस्या आती है। फेफड़ों और ब्रोंकाइल ट्यूब्स में सूजन होना सांस फूलने के आम कारण हैं। इसी तरह सिगरेट पीने या अन्य टाक्सिंस की वजह से श्वसन क्षेत्र (रेस्पिरेट्री ट्रैक) में लगी चोट के कारण भी सांस लेने में दिक्कत आती है। दिल की बीमारियों और खून में ऑक्सीजन का स्तर कम होने से भी सांस फूलती है।इस वजह से 2 बीमारियां आमतौर पैर हो जाती है 1.दमा 2. ब्रोंकाइटिस

दमा (Asthma)

जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।

दमा रोग का लक्षण (Symptoms of asthma):-

दमा रोग में रोगी को सांस लेने तथा छोड़ने में काफी जोर लगाना पड़ता है। जब फेफड़ों की नलियों (जो वायु का बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों) में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़े वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर पचा नहीं पाते हैं। जिसके कारण रोगी व्यक्ति को पूर्ण श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ देने को मजबूर होना पड़ता है। इस अवस्था को दमा या श्वास रोग कहा जाता है। दमा रोग की स्थिति तब अधिक बिगड़ जाती है जब रोगी को श्वास लेने में बहुत दिक्कत आती है क्योंकि वह सांस के द्वारा जब वायु को अन्दर ले जाता है तो प्राय: प्रश्वास (सांस के अन्दर लेना) में कठिनाई होती है तथा नि:श्वास (सांस को बाहर छोड़ना) लम्बे समय के लिए होती है। दमा रोग से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।

जब दमा रोग से पीड़ित रोगी का रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो उसे दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है। जब दौरा अधिक क्रियाशील होता है तो शरीर में ऑक्सीजन के अभाव के कारण रोगी का चेहरा नीला पड़ जाता है। यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है।

जब दमा रोग से पीड़ित रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी खांसी होती है और ऐंठनदार खांसी होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी चाहे कितना भी बलगम निकालने के लिए कोशिश करे लेकिन फिर भी बलगम बाहर नहीं निकलता है। दमा रोग प्राकृतिक चिकित्सा से पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

दमा रोग होने का कारण (Reaons to Asthma):-

औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने से दमा रोग हो जाता है।खान-पान के गलत तरीके से दमा रोग हो सकता है।मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा रोग हो सकता है।खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा रोग हो सकता है।नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा रोग हो सकता है।नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने से दमा रोग हो सकता है।भूख से अधिक भोजन खाने से दमा रोग हो सकता है।मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से दमा रोग हो सकता है।फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी तथा स्नायुमण्डल में कमजोरी हो जाने के कारण दमा रोग हो जाता है।मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण दमा रोग हो सकता है।धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूजनक पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा रोग हो सकता है।मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से दमा रोग हो सकता है।धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है।

दमा रोग के लक्षण (Asthma Symptoms):-

दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है।सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार(Asthma patient ‘s natural healing remedies):-

दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नींबू तथा शहद को पानी में मिलाकर पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 1 सप्ताह तक फलों का रस या हरी सब्जियों का रस तथा सूप पीकर उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। इसके बाद साधारण भोजन करना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को नारियल पानी, सफेद पेठे का रस, पत्ता गोभी का रस, चुकन्दर का रस, अंगूर का रस, दूब घास का रस पीना बहुत अधिक लाभदायक रहता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी यदि मेथी को भिगोकर खायें तथा इसके पानी में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिएं तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।तुलसी तथा अदरक का रस शहद मिलाकर पीने से दमा रोग में बहुत लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच त्रिफला को नींबू पानी में मिलाकर सेवन करने से दमा रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता हैं।

1 कप गर्म पानी में शहद डालकर प्रतिदिन दिन में 3 बार पीने से दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी ही भोजन करके सो जाना चाहिए तथा रात को सोने से पहले गर्म पानी को पीकर सोना चाहिए तथा अजवायन के पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी छाती पर तथा अपनी रीढ़ की हड्डी पर सरसों के तेल में कपूर डालकर मालिश करनी चाहिए तथा इसके बाद भापस्नान करना चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी हैं जिनको करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभांति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तानमन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।दमा रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में नमक तथा चीनी का सेवन बंद कर देना चाहिए।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रीढ़ की हड्डी को सीधे रखकर खुली और साफ स्वच्छ वायु में 7 से 8 बार गहरी सांस लेनी चाहिए और छोड़नी चाहिए तथा कुछ दूर सुबह के समय में टहलना चाहिए।दमा रोग से पीड़ित रोगी को चिंता और मानसिक रोगों से बचना चाहिए क्योंकि ये रोग दमा के दौरे को और तेज कर देते हैं।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ रखना चाहिए तथा कभी कब्ज नहीं होने देना चाहिए।दमा रोग से पीड़ित रोगी को धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ नहीं रहना चाहिए तथा धूम्रपान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस रोग का प्रकोप और अधिक बढ़ सकता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी और उसके बाद गुनगुने जल का एनिमा लेना चाहिए। फिर लगभग 10 मिनट के बाद सुनहरी बोतल का सूर्यतप्त जल लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन पीना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया को प्रतिदिन नियमपूर्वक करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 2-3 बार सुबह के समय में कुल्ला-दातुन करना चाहिए। इसके बाद लगभग डेढ़ लीटर गुनगुने पानी में 15 ग्राम सेंधानमक मिलाकर धीरे-धीरे पीकर फिर गले में उंगुली डालकर उल्टी कर देनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने रोग के होने के कारणों को सबसे पहले दूर करना चाहिए और इसके बाद इस रोग को बढ़ाने वाली चीजों से परहेज करना चहिए। फिर इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी घबराना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दौरे की तीव्रता (तेजी) बढ़ सकती है।दमा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को कम से कम 10 मिनट तक कुर्सी पर बैठाना चाहिए क्योंकि आराम करने से फेफड़े ठंडे हो जाते हैं। इसके बाद रोगी को होंठों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हवा खींचनी चाहिए और धीरे-धीरे सांस लेनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए।दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी की मालिश करवानी चाहिए तथा इसके साथ-साथ कमर पर गर्म सिंकाई करवानी चाहिए। इसके बाद रोगी को अपनी छाती पर न्यूट्रल लपेट करवाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में दमा रोग ठीक हो जाता है।

दमा रोग से पीड़ित रोगी के लिए कुछ सावधानियां:-दमा रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी की अवस्था और खराब हो सकती है।इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में लेसदार पदार्थ तथा मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।रोगी व्यक्ति को धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए क्योंकि धुल तथा धुंए से यह रोग और भी बढ़ जाता है।रोगी व्यक्ति को मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगड़ों से बचना चाहिए।इस रोग से पीड़ित रोगी को शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ दमा रोग की तीव्रता को बढ़ा देते हैं।

2.ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)

जीर्ण जुकाम को ब्रोंकाइटिस भी कहते हैं। इस रोग के कारण रोगी की श्वास नली में जलन होने लगती है तथा कभी-कभी तेज बुखार भी हो जाता है जो 104 डिग्री तक हो जाता है। यह रोग संक्रमण के कारण होता है जो फेफड़ों में जाने वाली सांस की नली में होता है। यह पुराना ब्रोंकाइटिस और तेज ब्रोंकाइटिस 2 प्रकार का होता है।  इस रोग से पीड़ित रोगी को सूखी खांसी, स्वरभंग, श्वास कष्ट, छाती के बगल में दर्द, गाढ़ा-गाढ़ा कफ निकलना और गले में घर्र-घर्र करने की आवाज आती है।

तेज ब्रोंकाइटिस (Sharp bronchitis) –

इस रोग के कारण रोगी को सर्दियों में अधिक खांसी और गर्मियों में कम खांसी होती रहती है लेकिन जब यह पुरानी हो जाती है तो खांसी गर्मी हो या सर्दी दोनों ही मौसमों में एक सी बनी रहती है।

तेज ब्रोंकाइटिस के लक्षण (Symptoms of bronchitis fast):-

तेज ब्रोंकाइटिस रोग में रोगी की सांस फूल जाती है और उसे खांसी बराबर बनी रहती है तथा बुखार जैसे लक्षण भी बन जाते हैं। रोगी व्यक्ति को बैचेनी सी होने लगती है तथा भूख कम लगने लगती है।

तेज ब्रोंकाइटिस के कारण (Faster due to bronchitis):-

 जब फेफड़ों में से होकर जाने वाली सांस नली के अन्दर से वायरस (संक्रमण) फैलता है तो वहां की सतह फूल जाती है, सांस की नली जिसके कारण पतली हो जाती है। फिर गले में श्लेष्मा जमा होकर खांसी बढ़ने लगती है और यह रोग हो जाता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस (Chronic bronchitis)

पुराना ब्रोंकाइटिस रोग रोगी को बार-बार उभरता रहता है तथा यह रोग रोगी के फेफड़ों को धीरे-धीरे गला देता है और तेज ब्रोंकाइटिस में रोगी को तेज दर्द उठ सकता है। इसमें सांस की नली में संक्रमण के कारण मोटी सी दीवार बन जाती हैं जो हवा को रोक देती है। इससे फ्लू होने का भी खतरा होता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस का लक्षण (Symptoms of chronic bronchitis):-

इस रोग के लक्षणों में सुबह उठने पर तेज खांसी के साथ बलगम का आना शुरू हो जाता है। शुरू में तो यह सामान्य ही लगता है। पर जब रोगी की सांस उखडने लगती है तो यह गंभीर हो जाती है जिसमें एम्फाइसीमम का भी खतरा हो सकता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण रोगी के चेहरे का रंग नीला हो जाता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस होने का कारण (The cause of (COPD) chronic obstructive pulmonary disease) :-रोग होने का सबसे प्रमुख कारण धूम्रपान को माना जाता है। धूम्रपान के कारण वह खुद तो रोगी होता ही है साथ जो आस-पास में व्यक्ति होते हैं उनको भी यह रोग होने का खतरा होता है।

तेज ब्रोंकाइटिस तथा पुराना ब्रोंकाइटिस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार (Sharp bronchitis and chronic bronchitis treatment of the disease Natural Medicine)/Treatment of COPD:

 जब किसी व्यक्ति को तेज ब्रोंकाइटिस रोग हो जाता है तो उसे 1-2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा फिर फलों का रस पीना चाहिए तथा इसके साथ में दिन में 2 बार एनिमा तथा छाती पर गर्म गीली पट्टी लगानी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

गहरी कांच की नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 6 बार सेवन करने तथा गहरी कांच की नीली बोतल के सूर्यतप्त जल में कपड़े को भिगोकर पट्टी गले पर लपेटने से तेज ब्रोंकाइटिस रोग जल्द ही ठीक हो जाता है।

पुराना ब्रोंकाइटिस रोग कभी-कभी बहुत जल्दी ठीक नहीं होता है लेकिन इस रोग को ठीक करने के लिए नमकीन तथा खारीय आहार का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए तथा शारीरिक शक्ति के अनुसार उचित व्यायाम करना चाहिए। इसके परिणाम स्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।पुराने ब्रोंकाइटिस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को 2-3 दिनों तक फलों के रस पर रहना चाहिए और अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद सादा भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति यदि नियमित रूप से प्रतिदिन उपचार करता है तो उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के क्षारधर्मी आहार (नमकीन, खारा, तीखा तथा चरपरा) है जिनका सेवन करने से ब्रोंकाइटिस रोग ठीक हो जाता है। क्षारधर्मी आहार (नमकीन, खारा, तीखा तथा चरपरा) इस प्रकार हैं-आलू, साग-सब्जी, सूखे मेवे, चोकर समेत आटे की रोटी, खट्ठा मट्ठा और सलाद आदि।पुराने ब्रोंकाइटिस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म पानी पिलाकर तथा उसके सिर पर ठण्डे पानी से भीगी तौलिया रखकर उसके पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए। उसके बाद रोगी को उदरस्नान कराना चाहिए और उसके शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए। इसके बाद रोगी के शरीर में गर्मी लाने के लिए कम्बल ओढ़कर रोगी को पूर्ण रूप से आराम कराना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया कम से कम 2 बार करनी चाहिए।जब इस रोग की अवस्था गंभीर हो जाए तो रोगी की छाती पर भापस्नान देना चाहिए और इसके बाद रोगी के दोनों कंधों पर कपड़े भी डालने चाहिए!

इस रोग के साथ में रोगी को सूखी खांसी हो तो उसे दिन में कई बार गर्म पानी पीना चाहिए और गरम पानी की भाप को नाक तथा मुंह द्वारा खींचना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।नींबू के रस को पानी में मिलाकर अधिक मात्रा में पीना चाहिए तथा रोगी व्यक्ति को खुली हवा में टहलना चाहिए और सप्ताह में कम से कम 2 बार एप्सम साल्टबाथ (पानी में नमक मिलाकर उस पानी से स्नान करना) लेना चाहिए। इसके फलस्वरूप पुराना ब्रोंकाइटिस रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी पर मालिश करनी चाहिए तथा इसके साथ-साथ कमर पर सिंकाई करनी चाहिए इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक आराम मिलता है और उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।रोगी को प्रतिदिन अपनी छाती पर गर्म पट्टी लगाने से बहुत आराम मिलता है।इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्राणायाम क्रिया करनी चाहिए। इससे श्वसन-तंत्र के ऊपरी भाग को बल मिलता है और ये साफ रहते हैं। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

ब्रोंकाइटिस रोग से पीड़ित रोगी के लिए कुछ सावधानियां (Bronchitis patient some precautions) :-

इस रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ध्रूमपान करने से इस रोग की अवस्था और गंभीर हो सकती है।इस रोग से पीड़ित रोगी को लेसदार पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे बलगम बनता है।

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ॐ मंत्र का वैज्ञानिक रहस्य और लाभ


ॐ मंत्र से तो हम सभी परिचित हैं, लेकिन क्या इसके लाभ भी जानते हैं? मुझे इस लेख को प्रारम्भ करने की अनुमति दीजिए। यह अकेला ऐसा मंत्र है जिसका उच्चारण एक मूक भी कर सकता है। सचमुच ये हैरान कर देने वाली बात है। आप इसे अपनी जीभ हिलाये बिना ॐ का उच्चारण करने का प्रयास करिए। ॐ के तीन तत्व अ, उ और म हैं, जिन्हें वेद से लिया गया है। यह तीन वर्ण परम ब्रह्म को दर्शाते हैं।

यदि आप ध्वनि की प्रकृति पर ध्यान दें तो आपको पता चलेगा कि यह तभी उत्पन्न होती है जब कोई दो वस्तुएँ आपस में टकराती हैं। उदाहरण के लिए – धनुष और प्रत्यंचा, ढोलक और हाथ, दो मुख ग्रंथियाँ, तट से समुद्र की लहर, पत्तियों से हवा, सड़क पर गाड़ी के पहिए इत्यादि। संक्षेप में कहा जाए तो हमारे आप पास की सभी ध्वनियाँ दृश्य और अदृश्य वस्तुओं द्वारा उत्पन्न की जाती हैं, उनके आपस में लड़ने या एक साथ कम्पन करने से वायु के कणों की तरंगें उत्पन्न जिनसे ध्वनि का जन्म होता है।

ॐ का रहस्य

परन्तु ॐ मंत्र की ध्वनि इससे अलग है, यह स्वयं उत्पन्न होती है। ॐ मंत्र की ध्वनि ही पहली ध्वनि है और इसी में सभी ध्वनियाँ निहित हैं।

ॐ मंत्र के उच्चारण से चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं। भले ही आप ॐ मंत्र का अर्थ नहीं जानते हैं या आपकी शब्द में आस्था नहीं है लेकिन तब भी आप इसके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

ॐ के उच्चारण से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वही इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय प्रथम ध्वनि थी। ॐ की ध्वनि को प्रणव भी कहते हैं, क्योंकि यह जीवन और श्वास की गति को बनाए रखती है।

विज्ञान ने भी ॐ के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया है। यह धीमी, सामान्य और पूरी साँस छोड़ने में सहायता करती है। यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और नियंत्रित करता है। साथ ही यह हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करने में भी लाभप्रद है।

ॐ मंत्र के उच्चारण के लाभ

ॐ का ओ; अ और उ से मिलकर बनता है। यह ध्वनि वक्ष पिंजर _ Thoracic Cage को कंपित करती है, जो हमारे फेफड़े में भरी हवा के साथ सम्पर्क में आता है जिससे ऐलवीलस की मेम्ब्रेन की कंपन करने लगती है। यह प्रक्रिया फेफड़े की कोशिकाओं _ Pulmonary Cells को उत्तेजित करती है, जिससे फेफड़े में श्वास उचित मात्रा में आती जाती रहती है। नई रिसर्च से यह भी सामने आया है कि यह कंपन अंत: स्रावी ग्रंथियों _ Endocrine Glands को प्रभावित करता है, जिससे चिकित्सा में इसका अद्भुत महत्व है। अउ की ध्वनि से विशेषकर पेट के अंगों और वक्ष पिंजर को आंतरिक मसाज _ Internal Massage मिलता है, जबकि म के कंपन से हमारे कपाल की नसों में कंपन होता है।

ॐ मंत्र के चिकित्सीय लाभ

ॐ हमारे जीवन को स्वस्थ बनाने का सबसे उत्तम मार्ग है।

1. नियमित ॐ का मनन करने से पूरे शरीर को विश्राम मिलता है और हार्मोन तंत्र नियंत्रित होता है
2. ॐ के अतिरिक्त चिंता और क्रोध पर नियंत्रण पाने का इससे सरल मार्ग दूसरा नहीं है
3. ॐ का उच्चारण प्रदूषित वातावरण में यह पूरे शरीर को विष मुक्त करता है
4. ॐ का मनन हृदय और रक्त संचार प्रणाली को सुदृढ़ करता है
5. ॐ के उच्चारण से यौवन और चेहरे पर कांति आती है
6. ॐ के जप से पाचन तंत्र सुदृढ़ होता है
7. थकान के बाद ॐ का मनन आपको नई ऊर्जा से भर देता है
8. अनिद्रा रोग से छुटकारा पाने में ॐ का बहुत महत्व है। सोते समय इसका नियमित मनन करें।
9. थोड़े से प्रयास में ॐ की शक्ति आपके फेफड़ों और श्वसन तंत्र को सुदृढ़ बनाना है।

ॐ मंत्र के मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में लाभ

1. ॐ की शक्ति आपको दुनिया का सामना करने की शक्ति देती है।
2. ॐ का नियमित मनन करने से आप क्रोध और हताशा से बचे रहते हैं।
3. ॐ की गूंज आपको स्वयं को नियंत्रित करने में सक्षम बनाती है। आप स्वयं में नया उत्साह महसूस करते हैं।
4. ॐ की ध्वनि से आपके पारस्परिक सम्बंध सुधरते हैं। आपके व्यक्तित्व में आने वाला बदलाव लोगों को आकर्षित करता है और लोग आपसे ईष्या करना छोड़ देते हैं।
5. आप अपने जीवन के उद्देश्य और उसकी प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं और आपके चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है।
6. नई उमंग और स्फूर्ति आती है। आप में सजगता और सर्तकता बढ़ती है।

ॐ मंत्र के मनन के अन्य लाभ

1. ॐ मंत्र आपको सांसरिकता से अलगकर करके आपको स्वयं से जोड़ता है।
2. अवसाद के समय ॐ मंत्र का जाप करने से आपको मन की शांति मिलती है और शक्ति संचार होता है। इससे आप शुद्ध हो जाते हैं, साथ साथ आपमें सर्वव्यापी प्रकाश और चेतना का संचार होता है।
3. जो लोग ॐ का उच्चारण करते हैं उनकी वाणी मधुर होती है। आप टहलते हुए भी ॐ मंत्र का जाप कर सकते हैं। आप ॐ मंत्र को गा और गुनागुना भी सकते हैं।
4. ॐ मंत्र गुनगुनाने से आप मन शांत और एकाग्र रहता है, जो आध्यत्मिक रूप से आपको स्वयं से जोड़ता है।
5. जो लोग प्रतिदिन ॐ मंत्र का मेडिटेशन करते हैं, उनके चेहरे और आंखों में अनोखी चमक होती है।

ॐ मंत्र का जाप श्वास छो‌ड़ते समय किया जाता है, जिससे यह धीमी, सामान्य और सम्पूर्ण होती है। अउ ध्वनि का प्रसार मृत वायु को कम स्थान देता है, और धीमे सांस लेने के कई लाभ होते है, जिन्हें आप योगियों से जान सकते हैं।

जानिए ओम (ॐ) शब्द के शारीरिक लाभ

ओ३म् ॐ शब्द का अर्थ

इलाज से पहले दवा के बारे में जानना जरूरी है। दरअसल ॐ शब्द, अ, उ और म अक्षर से मि‍लकर बना है। जिनमें “अ” का अर्थ है उत्पन्न होना, “उ” का तात्पर्य है  उठना तथा उड़ना अर्थात् विकास एवं “म” का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् “ब्रह्मलीन” हो जाना। इसका असर भी मानसिक स्तर पर आप महसूस कर सकतें हैं।

ॐ और थायरॉयड

ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।

ॐ और घबराहट

अगर आपको घबराहट महसूस होती है तो आप आंखें बंद करके 5 बार गहरी सांसे लेते हुए ॐ का उच्चारण करें। ओम का उच्चारण आपके मन और आत्मा को बिल्कुल शांत कर देता है, जिससे घबराहट अपने आप ही चली जाती है।

ॐ और तनाव

मानसिक रोगों के लिए तो ओम का उच्चारण करना कमाल का असर करता है। कुछ समय तक लगातार ओम का उच्चारण करने पर आप पाएंगे कि आपका तनाव बिलकुल ख़त्म हो चुका है।

ॐ और खून का प्रवाह

ओम का उच्चारण करना आपके रक्त संचार को सही करता है एवं संतुलन बनाए रखता है। इस तरह से आपको उच्च व निम्न रक्तचाप संबंधी समस्याएं नहीं होती। ॐ का उच्चारण हार्ट को चुस्त-दुरूस्त रखता है और खून का प्रवाह अच्छा करता है।

ॐ और पाचन

ॐ शब्द के उच्चारण से पाचन शक्ति बढ़िया होती है। ओम की शक्ति केवल मानसिक रोगों को ठीक करने तक ही सीमित नहीं है। यह आंतरिक परेशानियों खास तौर से पाचन क्रिया पर सकारात्मक असर डालता है, और पाचन तंत्र को सुचारु बनाए रखता है।

ॐ और स्फूर्ति

ॐ शब्द शरीर में युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार करता है। जी हां आलस्य को दूर कर ओम का उच्चारण मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से आपको ताजगी देता है और स्फूर्ति का संचार करता है। इस तरह से आप चुस्त-दुरुस्त भी रह सकते हैं।

ॐ और थकान

थकान को मिटाने के लिए इससे अच्छा उपाय कोई नहीं। अगर आप किसी भी प्रकार के काम से थकान महसूस कर रहे हैं, तो आपके लिए ओम का उच्चारण दवा का काम करेगा। बस कुछ देर आंखें बंद करके किजिए ओम का उच्चारण और आप महसूस करेंगे थकान से आजादी।

ॐ और नींद

अगर आपको नींद नहीं आने की समस्या से परेशान हैं तो ओम का उच्चारण शुरू कीजिए इससे कुछ समय में ही दूर हो जाती है। इसलिए बेड पर जाते ही इंसान को ॐ का उच्चारण करना चाहिए।

ॐ और फेफड़े

ॐ के उच्चारण से फेफड़े दुरूस्त होते हैं। प्रतिदिन ओम का उच्चारण करना उन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद है, जो सांस संबंधी तकलीफों से परेशान होते हैं। इससे आपके फेफड़े स्वस्थ व मजबूत होंगे और आप भी।

ॐ और रीढ़ की हड्डी

ॐ ओम का उच्चारण करने से उत्पन्न कंपन शरीर के आंतरिक अंगों को स्वस्थ रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह रीढ़ की हड्डी को भी मजबूत बनाता है, और तंत्रिका तंत्र को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए सहायक होता है|

ॐ और नयी सेल

अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है|कुछ ही महीनो में पुरे शरीर में चमत्कारिक बदलाव होने लगते है हर पेशी /सेल नयी तरीके से जाग उठते है|

ॐ और साहस

जीवन जीने की शक्ति और दुनिया की चुनौतियों का सामना करने का अपूर्व साहस मिलता है
आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ शब्द का उच्चारण  जरुर करेंगे। साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है|

ॐ मंत्र का जाप

इसलिए आज से ही ॐ मंत्र का जाप प्रारम्भ करके इसके लाभ प्राप्त करिए।

आरम्भ करने के लिए इन टिप्स को फ़ॉलो करें –

1. शांत स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठिए।
2. आंखें बंद करके शरीर और नसों में ढीला छोड़िए।
3. कुछ लम्बी सांसें लीजिए।
4. ॐ मंत्र का जाप करिए और इसके कंपन महसूस कीजिए।
5. आराम महसूस होने तक ॐ मंत्र का जाप करते रहिए।
6. चित्त के पूरी तरह शांत होने पर अपनी आंखें खोलिए।

ॐ मंत्र का जाप वह सीढ़ी है जो आपको समाधि और आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर ले जाती है।

एक कहावत मशहूर है की मौत को छोड़ कर हर मर्ज की दवा है कलौंजी


कलयुग में धरती पर संजीवनी है कलौंजी, अनगिनत रोगों को चुटकियों में ठीक करती है।

जानें कैसे करें इसका सेवन?

• कलौंजी के बीजों का सीधा सेवन किया जा सकता है।एक छोटा चम्मच कलौंजी को शहद में मिश्रित करके इसका सेवन करें।
• पानी में कलौंजी उबालकर छान लें और इसे पिएँ।
• दूध में कलौंजी उबालें। ठंडा होने दें फिर इस मिश्रण को पिएँ।
• कलौंजी को ग्राइंड करें व पानी तथा दूध के साथ इसका सेवन करें।
• कलौंजी को ब्रैड, पनीर तथा पेस्ट्रियों पर छिड़क कर इसका सेवन करें।

1. टाइप-2 डायबिटीज:

प्रतिदिन 2 ग्राम कलौंजी के सेवन के परिणामस्वरूप तेज हो रहा ग्लूकोज कम होता है। इंसुलिन रैजिस्टैंस घटती है,बीटा सैल की कार्यप्रणाली में वृद्धि होती है तथा ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन में कमी आती है।

2. मिर्गी:

2007 में हुए एक अध्ययन के अनुसार मिर्गी से पीड़ित बच्चों में कलौंजी के सत्व का सेवन दौरे को कम करता है।

3. उच्च रक्तचाप:

100 या 200 मि.ग्रा. कलौंजी के सत्व के दिन में दो बार सेवन से हाइपरटैंशन के मरीजों में ब्लड प्रैशर कम होता है।
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) में एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से रक्तचाप सामान्य बना रहता है। तथा 28 मि.ली. जैतुन का तेल और एक चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर पूर शरीर पर मालिश आधे घंटे तक धूप में रहने से रक्तचाप में लाभ मिलता है। यह क्रिया हर तीसरे दिन एक महीने तक करना चाहिए।

4. गंजापन:

जली हुई कलौंजी को हेयर ऑइल में मिलाकर नियमित रूप से सिर पर मालिश करने से गंजापन दूर होकर बाल उग आते हैं।

5. त्वचा के विकार:

कलौंजी के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर त्वचा पर मालिश करने से त्वचा के विकार नष्ट होते हैं।

6. लकवा:

कलौंजी का तेल एक चौथाई चम्मच की मात्रा में एक कप दूध के साथ कुछ महीने तक प्रतिदिन पीने और रोगग्रस्त अंगों पर कलौंजी के तेल से मालिश करने से लकवा रोग ठीक होता है।

7. कान की सूजन, बहरापन:

कलौंजी का तेल कान में डालने से कान की सूजन दूर होती है। इससे बहरापन में भी लाभ होता है।

8. सर्दी-जुकाम:

कलौंजी के बीजों को सेंककर और कपड़े में लपेटकर सूंघने से और कलौंजी का तेल और जैतून का तेल बराबर की मात्रा में नाक में टपकाने से सर्दी-जुकाम समाप्त होता है। आधा कप पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल व चौथाई चम्मच जैतून का तेल मिलाकर इतना उबालें कि पानी खत्म हो जाए और केवल तेल ही रह जाए। इसके बाद इसे छानकर 2 बूंद नाक में डालें। इससे सर्दी-जुकाम ठीक होता है। यह पुराने जुकाम भी लाभकारी होता है।

9. कलौंजी को पानी में उबालकर इसका सत्व पीने से अस्थमा में काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है।

10. छींके:

कलौंजी और सूखे चने को एक साथ अच्छी तरह मसलकर किसी कपड़े में बांधकर सूंघने से छींके आनी बंद हो जाती है।

11. पेट के कीडे़:

दस ग्राम कलौंजी को पीसकर 3 चम्मच शहद के साथ रात सोते समय कुछ दिन तक नियमित रूप से सेवन करने से पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।

12. प्रसव की पीड़ा:

कलौंजी का काढ़ा बनाकर सेवन करने से प्रसव की पीड़ा दूर होती है।

13. पोलियों का रोग:

आधे कप गर्म पानी में एक चम्मच शहद व आधे चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय लें। इससे पोलियों का रोग ठीक होता है।

14. मुँहासे:

सिरके में कलौंजी को पीसकर रात को सोते समय पूरे चेहरे पर लगाएं और सुबह पानी से चेहरे को साफ करने से मुंहासे कुछ दिनों में ही ठीक हो जाते हैं।

15. स्फूर्ति:

स्फूर्ति (रीवायटल) के लिए नांरगी के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सेवन करने से आलस्य और थकान दूर होती है।

16. गठिया:

कलौंजी को रीठा के पत्तों के साथ काढ़ा बनाकर पीने से गठिया रोग समाप्त होता है।

17. जोड़ों का दर्द:

एक चम्मच सिरका, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है।

18. आँखों के सभी रोग:

आँखों की लाली, मोतियाबिन्द, आँखों से पानी का आना, आँखों की रोशनी कम होना आदि। इस तरह के आँखों के रोगों में एक कप गाजर का रस, आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में 2बार सेवन करें। इससे आँखों के सभी रोग ठीक होते हैं। आँखों के चारों और तथा पलकों पर कलौंजी का तेल रात को सोते समय लगाएं। इससे आँखों के रोग समाप्त होते हैं। रोगी को अचार, बैंगन, अंडा व मछली नहीं खाना चाहिए।

19. स्नायुविक व मानसिक तनाव:

एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल डालकर रात को सोते समय पीने से स्नायुविक व मानसिक तनाव दूर होता है।

20. गांठ:

कलौंजी के तेल को गांठो पर लगाने और एक चम्मच कलौंजी का तेल गर्म दूध में डालकर पीने से गांठ नष्ट होती हैं​!

21. मलेरिया का बुखार:

पिसी हुई कलौंजी आधा चम्मच और एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से मलेरिया का बुखार ठीक होता है।

22. स्वप्नदोष:

यदि रात को नींद में वीर्य अपने आप निकल जाता हो तो एक कप सेब के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। इससे स्वप्नदोष दूर होता है। प्रतिदिन कलौंजी के तेल की चार बूंद एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोते समय सिर में लगाने स्वप्न दोष का रोग ठीक होता है। उपचार करते समय नींबू का सेवन न करें।

23. कब्ज:

चीनी 5 ग्राम, सोनामुखी 4 ग्राम, 1 गिलास हल्का गर्म दूध और आधा चम्मच कलौंजी का तेल। इन सभी को एक साथ मिलाकर रात को सोते समय पीने से कब्ज नष्ट होती है।

24. खून की कमी:

एक कप पानी में 50 ग्राम हरा पुदीना उबाल लें और इस पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय सेवन करें। इससे 21 दिनों में खून की कमी दूर होती है। रोगी को खाने में खट्टी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।

25. पेट दर्द:

किसी भी कारण से पेट दर्द हो एक गिलास नींबू पानी में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीएं। उपचार करते समय रोगी को बेसन की चीजे नहीं खानी चाहिए। या चुटकी भर नमक और आधे चम्मच कलौंजी के तेल को आधा गिलास हल्का गर्मपानी मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक होता है। या फिर 1 गिलास मौसमी के रस में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पेट का दर्द समाप्त होता है।

26. सिर दर्द:

कलौंजी के तेल को ललाट से कानों तक अच्छी तरह मलनें और आधा चम्मच कलौंजी के तेल को 1 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सिर दर्द ठीक होता है। कलौंजी खाने के साथ सिर पर कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर मालिश करें। इससे सिर दर्द में आराम मिलता है और सिर से सम्बंधित अन्य रोगों भी दूर होते हैं। कलौंजी के बीजों को गर्म करके पीस लें और कपड़े में बांधकर सूंघें। इससे सिर का दर्द दूर होता है। कलौंजी और काला जीरा बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीस लें और माथे पर लेप करें। इससे सर्दी के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर होता है।

27. उल्टी:

आधा चम्मच कलौंजी का तेल और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उल्टी बंद होती है।

28. हार्निया:

तीन चम्मच करेले का रस और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात को सोते समय पीने से हार्निया रोग ठीक होता है।

29. मिर्गी के दौरें:

एक कप गर्म पानी में 2 चम्मच शहद और आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से मिर्गी के दौरें ठीक होते हैं। मिर्गी के रोगी को ठंडी चीजे जैसे- अमरूद, केला, सीताफल आदि नहीं देना चाहिए।

30. पीलिया:

एक कप दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर प्रतिदिन 2 बार सुबह खाली पेट और रात को सोते समय 1 सप्ताह तक लेने से पीलिया रोग समाप्त होता है। पीलिया से पीड़ित रोगी को खाने में मसालेदार व खट्टी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।

31. कैंसर का रोग:

एक गिलास अंगूर के रस में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर दिन में 3 बार पीने से कैंसर का रोग ठीक होता है। इससे आंतों का कैंसर, ब्लड कैंसर व गले का कैंसर आदि में भी लाभ मिलता है। इस रोग में रोगी को औषधि देने के साथ ही एक किलो जौ के आटे में 2 किलो गेहूं का आटा मिलाकर इसकी रोटी, दलिया बनाकर रोगी को देना चाहिए। इस रोग में आलू, अरबी और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए। कैंसर के रोगी को कलौंजी डालकर हलवा बनाकर खाना चाहिए।

32. दांत:

कलौंजी का तेल और लौंग का तेल 1-1 बूंद मिलाकर दांत व मसूढ़ों पर लगाने से दर्द ठीक होता है। आग में सेंधानमक जलाकर बारीक पीस लें और इसमें 2-4 बूंदे कलौंजी का तेल डालकर दांत साफ करें। इससे साफ व स्वस्थ रहते हैं।
दांतों में कीड़े लगना व खोखलापन: रात को सोते समय कलौंजी के तेल में रुई को भिगोकर खोखले दांतों में रखने से कीड़े नष्ट होते हैं।

33. नींद:

रात में सोने से पहले आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है।

34. मासिकधर्म:

कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मासिकधर्म शुरू होता है। इससे गर्भपात होने की संभावना नहीं रहती है। जिन माताओं बहनों को मासिकधर्म कष्ट से आता है उनके लिए कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मासिकस्राव का कष्ट दूर होता है और बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है। कलौंजी का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर चाटने से ऋतुस्राव की पीड़ा नष्ट होती है।
मासिकधर्म की अनियमितता में लगभग आधा से डेढ़ ग्राम की मात्रा में कलौंजी के चूर्ण का सेवन करने से मासिकधर्म नियमित समय पर आने लगता है। यदि मासिकस्राव बंद हो गया हो और पेट में दर्द रहता हो तो एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है। कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से मासिकस्राव शुरू होता है।

35. गर्भवती महिलाओं को वर्जित:

गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे गर्भपात हो सकता है।

36. स्तनों का आकार:

कलौंजी आधे से एक ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से स्तनों का आकार बढ़ता है और स्तन सुडौल बनता है।

37. स्तनों में दूध:

कलौंजी को आधे से 1 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से स्तनों में दूध बढ़ता है।

38. स्त्रियों के चेहरे व हाथ-पैरों की सूजन:

कलौंजी पीसकर लेप करने से हाथ पैरों की सूजन दूर होती है।

39. बाल लम्बे व घने:

50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें और इस पानी से बालों को धोएं इससे बाल लम्बे व घने होते हैं।

40. बेरी-बेरी रोग:

बेरी-बेरी रोग में कलौंजी को पीसकर हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है।

41. भूख का अधिक लगना:

50 ग्राम कलौंजी को सिरके में रात को भिगो दें और सूबह पीसकर शहद में मिलाकर 4-5 ग्राम की मात्रा सेवन करें। इससे भूख का अधिक लगना कम होता है।

42. नपुंसकता:

कलौंजी का तेल और जैतून का तेल मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है।

43. खाज-खुजली:

50 ग्राम कलौंजी के बीजों को पीस लें और इसमें 10 ग्राम बिल्व के पत्तों का रस व 10 ग्राम हल्दी मिलाकर लेप बना लें। यह लेप खाज-खुजली में प्रतिदिन लगाने से रोग ठीक होता है।

44. नाड़ी का छूटना:

नाड़ी का छूटना के लिए आधे से 1 ग्राम कालौंजी को पीसकर रोगी को देने से शरीर का ठंडापन दूर होता है और नाड़ी की गति भी तेज होती है। इस रोग में आधे से 1 ग्राम कालौंजी हर 6 घंटे पर लें और ठीक होने पर इसका प्रयोग बंद कर दें। कलौंजी को पीसकर लेप करने से नाड़ी की जलन व सूजन दूर होती है।

45. हिचकी:

एक ग्राम पिसी कलौंजी शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी आनी बंद हो जाती है। तथा कलौंजी आधा से एक ग्राम की मात्रा में मठ्ठे के साथ प्रतिदिन 3-4 बार सेवन से हिचकी दूर होती है। या फिर कलौंजी का चूर्ण 3 ग्राम मक्खन के साथ खाने से हिचकी दूर होती है। और यदि 3 ग्राम कलौंजी पीसकर दही के पानी में मिलाकर खाने से हिचकी ठीक होती है।

46. स्मरण शक्ति:

लगभग 2 ग्राम की मात्रा में कलौंजी को पीसकर 2 ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

47. पेट की गैस:

कलौंजी, जीरा और अजवाइन को बराबर मात्रा में पीसकर एक चम्मच की मात्रा में खाना खाने के बाद लेने से पेट की गैस नष्ट होता है।

48. पेशाब की जलन:

250 मिलीलीटर दूध में आधा चम्मच कलौंजी का तेल और एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती है!

ये सात बातें दर्शाती है, लिवर खराब होने के लक्षण !

आपने कई बार सुना होगा कि, स्वास्थ्य ही जीवन की पूंजी है . ऐसे में आपको अपनी इस सम्पति का बेहद ख्याल रखना चाहिए . अब अगर हम शारीरिक बीमारियों की बात करे तो लिवर हमारे शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग होता है . यदि लिवर खराब हो जाये तो आपका जीवन ही खत्म सा हो जाता है . वैसे तो लिवर की खराबी के बहुत से कारण हो सकते हैं, पर इनमे से एक मुख्य कारण है, शराब का सेवन करना और भोजन में मिर्च मसालो का ज़्यादा इस्तेमाल करना .

इसके इलावा भी इसके कई अन्य कारण होते है. यहाँ तक कि लिवर में खराबी होने से कभी कभी हमारे शरीर में कुछ बदलाव भी होने लगते हैं, जिन्हें हम नज़र अंदाज़ कर देते हैं . जैसे यदि आपका पेट बढ़ रहा है, तो आप यही सोचेंगे कि यह मोटापे की वजह से हो रहा है . पर क्या आप जानते हैं, कि लिवर के ख़राब होने से भी पेट पर सूजन आने लगती है, जिसकी वजह से पेट फूलने लगता है . इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको बतायेगे कि लिवर खराब होने के क्या क्या लक्षण है, जो आपके लिए जानना बेहद जरुरी है .

१. मुह से बदबू का आना.. इस स्थिति में मुँह में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाने के कारण मुँह से बदबू आने लगती है . दरअसल लिवर में खराबी के कारण भी ऐसा होने लगता है . इसलिए मुँह की बदबू को नज़र अंदाज़ ना करें . वरना बाद में यह एक गंभीर रूप भी ले सकती है .

२. डार्क सर्कल और आँखों में थकान का होना.. इसमें यदि आपको हमेशा थका थका सा महसूस हो या आप रात में जितनी भी नींद क्यों ना लें, फिर भी आपको यही लगे कि आपकी नींद पूरी नहीं हुई . तो इस स्थिति में आँखों में डार्क सर्कल होने लगते हैं और यदि आँखे सूजने लगे तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है .

३. पाचन तन्त्र में तकलीफ होना.. यह लिवर में खराबी होने का सबसे बड़ा लक्षण है . जी हां यदि आप भोजन में ज़्यादा मिर्च मसाले खा लेते हैं, तो इससे सीने में जलन होने लगती है. इसलिए हाज़मे की खराबी लिवर में प्रॉब्लम को दर्शाती है .

४.चेहरे पर सफ़ेद धब्बो का होना.. कभी कभी आपके चेहरे की रंगत पीली सी पड़ने लगती है और चेहरे पर सफ़ेद धब्बे भी पड़ने लगते हैं . इसे बिलकुल भी नजरअंदाज न करे . ऐसी स्थिति में बिना देरी किये डॉक्टर से जरूर संपर्क करे .

५ .आँखों में पीलापन होना.. इस स्थिति में यदि आँखों का सफ़ेद भाग, पीला पड़ने लग जाए, तो यह भी परेशानी का कारण बन सकता है . इसलिए आँखों के पीले पड़ने को नज़रअंदाज़ ना करें . यह भी आगे चल कर कोई गंभीर रूप ले सकती है,क्योंकि लिवर के खराब होने पर आँखों का सफ़ेद रंग पीला पड़ने लगता है और नाख़ून भी पीले पड़ने लगते हैं .

६.खाना स्वादिष्ट न लगना.. यदि आपको खाने में कोई स्वाद ही महसूस न हो. इसके इलावा यदि आपसे खाना भी नहीं खाया जाये, तो यह भी ध्यान देने वाली बात है . दरअसल लिवर में एक एन्ज़ाइम होता है, जिसे बाइल कहते है . जो कि बहुत कड़वा होता है . ऐसे में लिवर के ख़राब होने पर, बाइल मुँह तक पहुँचने लगता है, जिसकी वजह से ही मुँह का स्वाद ख़राब हो जाता है .

७. पेट का सूजना.. हम आपको बता दे कि पेट का बड़ा होना, हमेशा मोटापे को ही नहीं दर्शाता . इस स्थिति में यदि आपका पेट दिन पर दिन बड़ा होता रहे , तो हो सकता है, कि आपका पेट सूज रहा है . वैसे लिवर में खराबी होने के कारण भी पेट पर सूजन आ जाती है . इसलिए इस बात का खास ख्याल रखे.

प्याज है हाई बी पी का प्रभावशाली इलाज।


अगर आप हाई ब्लड प्रेशर की दवा खा खा कर परेशान हो गए हैं तो एक बार ये घरेलु नुस्खा ज़रूर आज़मा कर देखें। ये बिलकुल सरल और सर्व सुलभ है। आइये जाने।

प्याज का रस एक चम्मच और शुद्ध शहद एक चम्मच बराबर मात्रा में मिलाकर नित्य दस ग्राम (दो चम्मच) की मात्रा में एक बार लेना रक्तचाप में बहुत प्रभावशाली है।

प्याज का रस खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करके दिल के दौरे(हार्ट अटैक) को रोकता है। प्याज स्नायु संस्थान (नर्वस सिस्टम) के लिए टॉनिक, खून साफ़ करने वाला, पाचन में सहायक और हृदय की क्रिया को सुधारने वाला तथा अनिद्रा को रोकने वाला है। शहद शरीर पर शामक प्रभाव डालकर रक्तवाहिनियों की उत्तेजना घटाकर और उनको सिकोड़कर उच्च रक्तचाप घटा देता है। शहद के प्रयोग से हृदय सबल व् सशक्त बनता है। ये प्रयोग कम से कम 5 से 7 दिन कर के देखें। लाभ होने पर आवश्यकतानुसार कुछ दिन और लें।


अन्य घरेलू उपचार


  • ठीक रक्‍तचाप के लिए स्‍व्‍यं को शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय बनायें।
  • तैलीय व अधिक नमक वाले आहार से करें पूरी तरह परहेज।
  • नींबू पानी का सेवन करने से रक्‍तचाप रहता है नियंत्रित।
  • डॉक्‍टर से पूछकर ही किसी उपाय को अपनी दिनचर्या में करें शामिल।

 

आजकल लोगों की जिंदगी का ढंग काफी बदल गया है। मशीनों पर बढ़ती निर्भरता ने बेशक हमारी जिंदगी को आसान बना दिया है, लेकिन इससे हमें कई बीमारियां भी मिली हैं। उच्‍च रक्‍तचाप इनमें से एक है। यह बीमारी भले ही छोटी लगती हो, लेकिन हृदयाघात और अन्‍य हृदय रोग होने का यह प्रमुख कारण है। ऐसे में जरूरी है कि उच्‍च रक्‍तचाप को नियंत्रित रखा जाए। आइए जानते हैं कुछ ऐसे घरेलू उपाय जो आपके रक्‍त चाप को संतुलित और नियंत्रित रखते हैं।

 

High Blood Pressure in Hindi

 

 

हाई ब्‍लड प्रेशर के सामान्‍य लक्षण

हाई ब्लड प्रेशर में चक्कर आने लगते हैं, सिर घूमने लगता है। रोगी का किसी काम में मन नहीं लगता। उसमें शारीरिक काम करने की क्षमता नहीं रहती और रोगी अनिद्रा का शिकार रहता है। इस रोग का घरेलू उपचार भी संभव है, जिनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने से बिना दवाई लिए इस भयंकर बीमारी पर पूर्णत: नियंत्रण पाया जा सकता है। जरूरत है संयमपूर्वक नियम पालन की। आइए जानें हाई ब्लड प्रेशर के लिए घरेलू उपाय।

 

हाई ब्लड प्रेशर के लिए घरेलू उपाय

  • नमक ब्लड प्रेशर बढाने वाला प्रमुख कारक है। इसलिए हाई बी पी वालों को नमक का प्रयोग कम कर देना चाहिए।
  • लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार घरेलू उपाय है। यह रक्त का थक्का नहीं जमने देता है। और कोलेस्‍ट्रॉल को नियंत्रित रखता है।
  • एक बडा चम्मच आंवले का रस और इतना ही शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।
  • जब ब्लड प्रेशर बढा हुआ हो तो आधा गिलास मामूली गर्म पानी में काली मिर्च पाउडर एक चम्मच घोलकर 2-2 घंटे के अंतराल पर पीते रहें।
  • तरबूज के बीज की गिरी तथा खसखस अलग-अलग पीसकर बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें। इसका रोजाना सुबह एक चम्‍मच सेवन करें।

 

High Blood Pressure in Hindi

 

  • बढे हुए ब्लड प्रेशर को जल्दी कंट्रोल करने के लिये आधा गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़कर 2-2 घंटे के अंतर से पीते रहें।
  • पांच तुलसी के पत्ते तथा दो नीम की पत्तियों को पीसकर 20 ग्राम पानी में घोलकर खाली पेट सुबह पिएं। 15 दिन में लाभ नजर आने लगेगा।
  • हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए पपीता भी बहुत लाभ करता है, इसे प्रतिदिन खाली पेट चबा-चबाकर खाएं।
  • नंगे पैर हरी घास पर 10-15 मिनट चलें। रोजाना चलने से ब्लड प्रेशर नार्मल हो जाता है।
  • सौंफ, जीरा, शक्‍कर तीनों बराबर मात्रा में लेकर पाउडर बना लें। एक गिलास पानी में एक चम्मच मिश्रण घोलकर सुबह-शाम पीते रहें।
  • पालक और गाजर का रस मिलाकर एक गिलास रस सुबह-शाम पीयें, लाभ होगा।
  • करेला और सहजन की फ़ली उच्च रक्त चाप-रोगी के लिये परम हितकारी हैं।
  • गेहूं व चने के आटे को बराबर मात्रा में लेकर बनाई गई रोटी खूब चबा-चबाकर खाएं, आटे से चोकर न निकालें।
  • ब्राउन चावल उपयोग में लाएं। यह उच्च रक्त चाप रोगी के लिये बहुत ही लाभदायक भोजन है।
  • प्याज और लहसुन की तरह अदरक भी काफी फायदेमंद होता है। इनसे धमनियों के आसपास की मांसपेशियों को भी आराम मिलता है जिससे उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है।
  • तीन ग्राम मेथीदाना पावडर सुबह-शाम पानी के साथ लें। इसे पंद्रह दिनों तक लेने से लाभ मालूम होता है।

 

याद रखें उच्‍च रक्‍तचाप हमारी सेहत के लिए बेहद खतरनाक होता है। लेकिन, रक्‍तचाप अगर सामान्‍य से कम हो, तो वह भी सेहत के लिए कम खतरनाक नहीं होता। इसलिए किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्‍सक से सलाह जरूर लें।