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'गर्मी बहुत है यार, एसी चला दे 18 पर!' मई-जून की चिलचिलाती गर्मी हो या फिर बारिश के बाद जुलाई-अगस्त की उमस, दिल्ली समेत उत्तर भारत में एयरकंडिशनर के बिना अब काम नहीं चलता.
एक ज़माना था जब किसी के घर एसी लगने पर उसके रईस होने की चर्चा शुरू हो जाती थी, लेकिन अब खिड़कियों के बाहर टंगे एसी आम बात है.
लेकिन इन दिनों ये एसी दूसरी वजहों से चर्चा में हैं. ख़बरें उड़ी कि एसी को अब 24 डिग्री सेल्सियस तापमान से नीचे नहीं चलाया जा सकेगा.
ये आधा सच है. पूरा ये कि ऊर्जा मंत्रालय ने सलाह दी है कि एसी की डिफ़ॉल्ट सेटिंग 24 डिग्री सेल्सियस रखी जाए ताकि एनर्जी बचाई जा सके. ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि अगले छह महीने तक जागरुकता अभियान चलाया जाएगा और प्रतिक्रिया ली जाएगी.
अगर सब ठीक रहा है तो एसी को 24 डिग्री पर सेट करना अनिवार्य बनाया जा सकता है. मंत्रालय का दावा है कि इससे एक साल में 20 अरब यूनिट बिजली बचाई जा सकेगी.
ऊर्जा राज्य मंत्री आरके सिंह ने पूरा मामला समझाने की कोशिश की.
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''एसी पर 1 डिग्री सेल्सियस टेम्परेचर बढ़ाने से 6% एनर्जी बचती है. न्यूनतम तापमान को 21 डिग्री के बजाय 24 डिग्री पर सेट करने से 18% एनर्जी बचेगी.''
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि कमरे में तापमान कम पर रखने के लिए कम्प्रेसर को ज़्यादा वक़्त तक मेहनत करनी होती है और 24 से 18 डिग्री पर सेट करने के बजाय ऐसा नहीं कि तापमान वाकई इतना कम हो जाता है.
क्यों एसी को लेकर बवाल?
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लेकिन ये पूरा मामला क्या है? क्या वाक़ई कोई सरकार ये तय कर सकती है कि हमारा एसी किस तापमान पर चलेगा? और अगर ऐसा हो तो भी क्या फ़ायदा है? क्या एसी का टेम्परेचर ज़्यादा रहने से प्रकृति को कुछ फ़ायदा होता है?
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में प्रोग्राम मैनेजर, (सस्टेनेबल स्टडीज़) अविकल सोमवंशी ने बीबीसी को बताया कि सरकार ये प्रयोग करके देखना चाहती है.
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इसमें एसी बनाने वाली कंपनियों से कहा जा सकता है कि वो एसी की डिफ़ॉल्ट सेटिंग 24 डिग्री पर रखें. फिलहाल एसी कंपनियां 18 से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच ये तापमान रखती हैं.
उन्होंने कहा, ''अगर बात बनती है तो आगे बनने वाले एसी में 24 डिग्री सेल्सियस तापमान सेट होगा, जिसे ग्राहक ज़रूरत पड़ने पर कम या ज़्यादा कर सकता है.''
सोमवंशी का कहना है कि ऊर्जा संरक्षण और प्रकृति के बचाव के हिसाब से ये काफ़ी अहम फ़ैसला साबित हो सकता है.
''असल में एसी कमरे का तापमान 18 डिग्री तक ले जाने के लिए बने ही नहीं है. होता क्या है कि एसी का तापमान 18-20 डिग्री सेल्सियस सेट होता है और लोग उसे बदलने की ज़हमत भी नहीं उठाते. ऐसा करने पर वो ज़्यादा एफ़िशिएंट नहीं रहते, ज़्यादा बिजली खाते हैं.''
एसी क्या सच दिखाता है?
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''और आपको जानकर हैरानी होगी कि जब एसी का बोर्ड तापमान 18 डि.से. पर दिखा रहा होता है तो कमरे का तापमान असल में इतना नहीं होता.''
और एसी का तापमान तय करने की ये कोशिश पहली बार नहीं है. दुनिया के दूसरे मुल्क़ों में भी ऐसा है. जापान में 28, हॉन्गकॉन्ग में 25.5 और ब्रिटेन में 24 डिग्री सेल्सियस पर इसे तय किया गया है.
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लेकिन ये तो बात हुई नए एसी की. उन लाखों पुराने एसी का क्या, जो पहले से घरों में लगे हैं, सोमवंशी ने कहा, ''ऊर्जा मंत्रालय की तरफ़ से आया बयान साफ़ कुछ नहीं कहता लेकिन इशारा इस तरफ़ भी है कि मौजूदा एसी के तापमान को भी 24 या उससे ज़्यादा रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.''
सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का कहना है कि सरकार के नए प्रस्ताव को एसी कंपनियों की तरफ़ से हरी झंडी मिल गई है, लेकिन एसी के लिए डिफ़ॉल्ट तापमान सेट करने की जो कोशिश 2016 से जारी हैं, उनका विरोध भी हुआ है.
सीएसई के मुताबिक बीईई ने इससे पहले ये प्रस्ताव दिया था कि एसी ऑन करने पर तापमान 27 डिग्री सेल्सियस रहे. कंपनियों का कहना था कि अगर ऐसा होता है तो ग्राहक को दिक्कत होगी और उसे हर बार एसी चालू करने पर इसे बदलना होगा.
देश में सभी इमारतों के लिए इंडोर कंफ़र्ट मानक तय करने वाले नेशनल बिल्डिंग कोड (एनबीसी) सेंट्रली एयरकंडीशंड इमारतों में एसी का तापमान 23.5-25.5 डिग्री सेल्सियस रखा जा सकता है जबकि घरों में लगने वाले एसी के मामले में ये 29 डिग्री तक हो सकता है.
कौन सा तापमान सही?
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जापान साल 2005 से इस बारे में अभियान चला रहा है जिसमें कंपनियों और आम घरों को एसी का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस पर रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में भी इसके मानक तय हैं जहां गर्मियों में 25.6 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान नहीं रख सकते. दुनिया की जानी-मानी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इसे 23.3-25.6 डिग्री सेल्सियस रखने को कहा जाता है तो लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में 24 डिग्री सेल्सियस के आसपास रखने के निर्देश हैं.
सीएसई के मुताबिक एसी दरअसल किसी परिवार के बिजली के बिल का 80 फ़ीसदी हिस्सा रखते हैं. स्टडी के मुताबिक दिल्ली में गर्मियों के महीने में जितनी बिजली इस्तेमाल होती है, आधे से ज़्यादा घरों को ठंडा रखने के लिए है.
दरअसल, एयर कंडिशनर चलाने के लिए बिजली का ज़्यादा इस्तेमाल होता है. ये अतिरिक्त बिजली हमारे पर्यावरण को और गर्म बना रही है. पर्यावरणविदों का कहना है कि साल 2001 के बाद के 17 में से 16 साल अधिक गर्म रहे हैं.
ऐसे में एयर कंडिशनर की बढ़ती डिमांड कोई हैरानी का विषय नहीं है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक 2050 तक एयर कंडिशनर चलाने के लिए लगने वाली एनर्जी आज के मुक़ाबले में तीन गुना हो जाएगी.
इसका मतलब साल 2050 तक दुनियाभर के एयर कंडिशनर उतनी बिलजी की खपत करेंगे जितनी अमरीका, यूरोपीय संघ और जापान मौजूदा वक्त में मिलकर करते हैं.
सीएसई के एक पुराने अध्ययन में कहा गया था कि जब बाहर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचता है तो 5 स्टार रेटिंग वाले एसी 25 फ़ीसदी ज़्यादा बिजली खाते हैं और उनकी ठंडा रखने की क्षमता 13-15 फ़ीसदी तक गिर जाती है.
एसी बनाम कूलर
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देखिए धंधा-पानी
लेकिन क्या एसी गर्मी भगाता है? अविकल सोमवंशी से जब ये पूछा गया कि क्या एसी से निकलने वाली गर्मी, प्रकृति का तापमान भी बढ़ाती है, उन्होंने कहा ''ऐसी कोई सटीक स्टडी तो याद नहीं आती. लेकिन ऐसी कई रिसर्च हैं जो बताती है कि एसी घर की गर्मी निकालकर बाहर कर देता है. वो गर्मी ख़त्म नहीं करता, बल्कि उसकी जगह बदल देता है.''
दूसरी तरफ़ डेज़र्ट कूलर के मामले में अलग टेक्नोलॉजी काम करती है. कूलर गर्म हवा लेता है, उसे भीतर घुमाता है, पानी की मदद से उसी हवा को ठंडा बनाता है और फिर बाहर फेंकता है.
सोमवंशी ने कहा, ''कूलर को लेकर दिक्कत ये भी है कि भारत में उन्हें लेकर कोई स्टार रेटिंग सिस्टम नहीं है, जैसा कि एसी या पंखों के मामले में होता है.''
भारत में काफ़ी गर्मी पड़ती है, इसलिए यहां रहने वाले लोग उस गर्मी को झेलने की क्षमता भी रखते हैं. ऐसे में एसी को 18 या 20 पर चलाने को सामान्य ज़रूरत नहीं बताया जा सकता.
उन्होंने कहा, ''यूरोप के कुछ मुल्क़ ऐसे हैं, जहां अगर तापमान 28 डिग्री पार कर जाता है तो वहां कहा जाता है कि गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. जबकि भारत में 40 डिग्री तापमान भी सामान्य है.''
लेकिन क्या सिर्फ़ एसी या कूलर के दम पर गर्मी ने निपटा जा सकता है? जानकार बताते हैं कि भारत में बड़ी दिक्कत ये भी है कि इमारतों के बनने में लगने वाला सामान और उनका डिजाइन गर्मी बढ़ाने वाला है.
सोमवंशी ने कहा, ''यहां ज़्यादातर मकान कंक्रीट के बनते हैं. मकान करीब-करीब होते हैं क्योंकि आबादी का घनत्व ज़्यादा है. इसके अलावा इमारत बनाते वक़्त वेंटिलेशन का ध्यान भी नहीं दिया जाता. यही वजह है कि रात में भी मकान ठंडे नहीं होते.''