Tuesday, December 25, 2018

लोहे के तवे पर ही बनाएं बिना चिपके, क्रिस्पी डोसा

साउथ इंडियन खाने के शौकीन हैं पर घर पर मार्केट जैसा अच्छा डोसा नहीं बना पाते हैं तो अपनाएं ये कारगर टिप्स.


टिप्‍स

- हमेशा रोटी और डोसा बनाने के लिए तवा अलग-अलग ही रखें. 
- डोसा बनाने से पहले तवे को अच्छी तरह से साफ कर लें. ध्यान रखें कि तवे पर जरा सा भी तेल चिपका हुआ न हो।
- धीमी आंच में तवा गर्म कर एक चम्मच तेल डालकर पूरे तवे पर लगा लें और जैसे ही हल्का धुंआ आने लगे तब आंच बंद कर दें.
ऐसा करने से तवा नॉन स्टिक जैसा तैयार हो जाएगा।
- इसके बाद तवा ठंडा कर दोबारा धीमी आंच में तवे पर तेल डालकर गर्म करें और तेल के गर्म होते ही आधे कटे प्याज से अच्छे से रगड़ कर साफ़ कर लें, अब तवा तैयार है डोसा बनाने के लिए।
- अगर डोसा पलटने में दिक्कत हो तो पलटे के जिस साइड से डोसा पलटेंगे उस साइड को जरा सा पानी में डूबो लें और फिर देखिए डोसा बहुत ही आसानी से पलट जाएगा. 
- तवे को चिकना करने के लिए आप आधे कटे प्याज की सहायता भी ले सकते हैं. प्याज को तेल में डूबोकर तवे पर तेल लगाने से डोसा बहुत क्रिस्पी बनता है।
- इतना करने के बाद भी अगर डोसा चिपकता है तो तवे पर थोड़ा सा आटा बुरककर अच्छे से रगड़ें और फिर पोंछ दें. तवा एकदम सही हो जाएगा. 
- नॉन- स्टिक तवे पर भी अगर डोसा चिपकता है तो इसके साथ भी यही स्टेप्स अपनाएं।

Thursday, December 20, 2018

प्लास्टिक की बोतल में पीते हैं पानी तो हो सकता है कैंसर, फर्टिलिटी पर भी पड़ता है असर

बाइसफेनॉल ए यानी कि बीपीए एक ऐसा केमिकल है जो बोतलों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है और तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बनता है।


☢ पानी की जगह कुछ चीजों का सेवन आपको हाइड्रेट रखने में मदद करता है।

भारत में जो प्लास्टिक के बोतल इस्तेमाल किए जाते हैं उनके निर्माण में बाइफेनॉल ए का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित नहीं है। बाइसफेनॉल ए यानी कि बीपीए एक ऐसा केमिकल है जो बोतलों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है और तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बनता है। प्लास्टिक बोतलों के लगातार इस्तेमाल से दिल संबंधी समस्या, दिमाग को नुकसान, डाबिटीज तथा गर्भावस्था में समस्या जैसी दिक्कतें आने लगती हैं। ऐसे में बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि आप प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल बंद कर दें।

प्लास्टिक बोतल के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान –

कैंसर का खतरा – प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल कैंसर की वजह बन सकता है। एस शोध के मुताबिक जब ज्यादा तापमान या धूप की वजह से बोतल गर्म होती है तब उसके प्लास्टिक से डाई ऑक्सिन का स्राव शुरू हो जाता है। यह डाइ ऑक्सिन हमारे शरीर में घुलकर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। महिलाओं में यह ब्रीस्ट कैंसर का कारण बनता है।

दिमाग के लिए नुकसानदेह – प्लास्टिक को बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली बाइसफेनॉल ए यानी कि बीपीए की वजह से दिमाग की फंक्शनिंग प्रभावित होती है। इससे इंसान की याद्दाश्त क्षमता और समझने की शक्ति कमजोर होने लगती है। एक शोध में यह बताया गया है कि प्लास्टिक की बोतल में इस्तेमाल किए जाने वाले बीपीए की वजह से अल्जाइमर्स का भी खतरा बढ़ जाता है।

फर्टिलिटी होती है प्रभावित – बीपीए सिर्फ दिमाग के लिए नुकसानदेह नहीं है। इसकी वजह से महिला और पुरुष दोनों में गुणसूत्रों की संख्या कम होती है। इसकी वजह से शुक्राणु और अंडाणु दोनों प्रभावित होते हैं। ऐसे में प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से बचें।

गर्भवती महिलाओं के लिए – प्लास्टिक में मौजूद बीपीए गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास को प्रभावित करता है। इसीलिए गर्भावस्था में महिलाओं को प्लास्टिक की बोतल न इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।

दिल की बीमारी का कारक – प्लास्टिक की बोतल से पानी पीने से बीपीए केमिकल्स खून में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसे में यह दिल को कमजोर बनाते हैं। इससे शरीर में रक्त संचार भी प्रभावित होता है।से नहीं हो पाता है।

Sunday, August 19, 2018

इंडियन टॉयलेट और वेस्‍टर्न टॉयलेट में कौन है बेहतर ?



Indian Toilet vs Western Toilet In Hindi इंडियन टॉयलेट और वेस्‍टर्न टॉयलेट को लेकर लोगों के मन में यह दुविधा बनी रहती है कि इन दोनों में से कौन बेहतर है। हम सभी लोग यह महसूस करते हैं कि आज कल पश्चिमी संस्‍कृति हमारे व्‍यक्तिगत जीवन मे अपना स्‍थान बना चुकी है। हम लोग अपना खान-पान, रहन-सहन, पोषाक आदि सभी चीजों में पश्चिमी सभ्‍यता का अनुकरण कर रहे हैं। यदि व्‍यक्तिगत जीवन की बात की जाए तो शौचालय जैसी चीजों में भी हम पश्चिमी देशों की पद्यतियों को अपनाते जा रहे हैं। लेकिन इनका उपयोग करने से पहले हमें इंडियन टॉयलेट का उपयोग और वेस्‍टर्न टॉयलेट के उपयोग के फायदे और नुकसान के बारे में पता होना चाहिए। आइए जाने इंडियन टॉयलेट और वेस्‍टर्न टॉयलेट में क्‍या अंतर है और कौन सी व्‍यवस्‍था हमारे लिए अनुकूल है।

इंडियन टॉयलेट सीट के फायदे – Indian Toilet Ke Fayde In Hindi

भारत में सबसे ज्‍यादा इंडियन टॉयलेट का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग करते समय व्‍यक्ति अपने पैरों के सहारे बैठकर मल त्‍याग करता है। इस प्रकार की व्‍यवस्‍था को स्क्वेटिंग पोजिशन (Squatting Position) कहते हैं।

इंडियन टॉयलेट आपको फिट रखती हैं – Indian Toilet Makes You Fit In Hindi

आप व्‍यायाम के महत्‍व को जानते हैं, यह आपके जीवन में बहुत ही आवश्‍यक है। आप इंडियन टॉयलेट का उपयोग कर रोजाना व्‍यायाम कर सकते हैं जो आपकी आयु-संभाव्यता (Life Expectancy) को बढ़ा सकते हैं। कुछ लोग जो वेस्‍टर्न टॉयलेट  का उपयोग करते हैं वे भारतीय शौचालयों का महत्‍व नहीं समझते हैं। भारतीय शौचालयों का उपयोग करते समय आप न केवल अपने हाथों का उपयोग करते है बल्कि पैरों का भी उपयोग करते हैं। जिससे आपके शरीर में व्‍यायाम की स्थिति बनती और आपको पसीना भी आता है।

ऐसा माना जाता है कि जिस तरह से हम इंडियन टॉयलेट में बैठते हैं, इस स्थिति में रक्‍त परिसंचरण अच्‍छी तरह से होता है और आपके हाथों और पैरों को व्‍यायाम करने में भी मदद करता है।

भारतीय टॉयलेट गर्भावस्‍था के लिए है अच्‍छा – Bhartiya Sochalay Garbhavastha Ke Liye Achha Hai In Hindi

गर्भवती महिलाओं को इंडियन सीट का उपयोग करना चाहिए यह उनके स्‍वास्‍थ्‍य के अनुकूल होता है। इंडियन टॉयलेट का उपयोग उन्‍हें प्राकृतिक तरीके से फायदा पहुंचाता है। इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने पर यह उनके गर्भाशय पर दबाव देने से बचाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि भारतीय शौचालयों का उपयोग गर्भवती महिला को प्राकृतिक डिलीवरी (Normal delivery) के लिए और प्रसव अधिक आसान और सुरक्षित बनाने में मदद करता है।

इंडियन सीट का उपयोग स्‍वच्‍छ और स्वास्थ्‍यकर होता है – Indian Toilet Benefits for Clean And Hygienic In Hindi

शौच क्रिया के बाद साफ-सफाई बहुत ही आवश्‍यक है जो भारतीय परंपरा के अनुरूप है। आपको शायद मालूम हो कि वेस्‍टर्न टॉयलेट का उपयोग करने के बाद पेपर या जेड स्प्रे का उपयोग किया जाता है। इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने के बाद हम अपने अंगों को पानी से हाँथ से साफ करते हैं और उसके बाद साबुन और पानी के साथ अपने हाथों को साफ करते हैं। अपने गुदा द्वार को केवल पेपर से साफ करके आप पूरी तरह स्‍वच्‍छ नहीं रह सकते हैं। इसलिए अपने गुदा द्वार को साबुन से साफ करना बेहतर है ताकि बैक्‍टीरिया वहां न रहे। इसलिए इंडियन टॉयलेट का उपयोग बहुत ही फायदेमंद और स्‍वच्‍छ और स्वास्थ्‍यकर होता है।

इंडियन टॉयलेट का उपयोग करे पानी की बचत – Indian Toilet Benefits for Saves Water In Hindi

पानी को काफी हद तक भारतीय शौचालयों का उपयोग कर बचाया जा सकता है। पानी की बचत एक महत्‍वपूर्ण विषय है। यदि हम पानी की बचत नहीं करेगें तो निश्चित रूप से भविष्‍य में हमे पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है। जब हम इंडियन टॉयलेट का उपयोग करते हैं तो आमतौर पर केवल 2 या 4 मग पानी की आवश्‍यकता होती है। लेकिन यदि हम वेस्‍टर्न टॉयलेट  का उपयोग करते हैं तो हमें बहुत अधिक पानी की आवश्‍यकता होती है जो कि फ्लैश सिस्‍टम के द्वारा बर्बाद किया जाता है। इसलिए पानी की बर्बादी को रोकने के लिए इंडियन टॉयलेट का उपयोग करना फायदेमंद होता है।

भारतीय टॉयलेट विभिन्‍न कैंसरो को रोकता है – Indian Toilet Prevent Colon Cancer In Hindi

पेट से संब‍ंधित कोलन कैंसर और अन्‍य बीमारियों को रोकने में इंडियन टॉयलेट का उपयोग फायदेमंद होता है। इंडियन टॉयलेट सीट में बैठना (Squatting) हमारे शरीर में कोलन से मल को पूरी तरह से निकालने में मदद करता है। इस प्रकार यह कब्‍ज, एपेंडिसाइटिस, कोलन कैंसर और अन्‍य प्रकार की बीमारियों की संभावनाओं को कम करने में मदद करता है।

इंडियन टॉयलेट पर्यावरण अनुकूल होते हैं – Indian Toilet Benefits for Eco Friendly In Hindi

कुछ लोग इंडियन टॉयलेट और वेस्‍टर्न टॉयलेट में अंतर बताते हैं कि दोनों में इंडियन टॉयलेट पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। जब आप वेस्‍टर्न टॉयलेट का उपयोग करते हैं तो इसके साथ ही आपको पेपर की आवश्‍यकता होती है जिससे इस प्रकार के कागजों की बर्बादी होती है। वेस्‍टर्न टॉयलेट का उपयोग करने पर पानी भी अधिक मात्रा में खर्च किया जाता है। जबकि इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने पर आपको बहुत ही कम मात्रा में पानी की जरूरत होती है और आप साबुन का उपयोग कर आपने आपको स्‍वच्‍छ भी रख सकते हैं। इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने पर आपको किसी भी प्रकार के पेपरों को बर्बाद करने की जरूरत नहीं होती है। इसलिए इंडियन टॉयलेट का उपयोग किया जाना फायदेमंद होता है।

इंडियन टॉयलेट का उपयोग पाचन को बढ़ाता है – Indian Toilet Benefits for Digest Properly In Hindi

यदि आप अपने दैनिक जीवन में इंडियन टॉयलेट का उपयोग करते हैं तो यह आपके पाचन के लिए अच्‍छा माना जाता है। जब आप इंडियन टॉयलेट मे बैठते हैं तो यह भोजन को पचाने में मदद करता है। क्‍योंकि बैठते समय आपके पेट में दबाव पड़ता है जिससे मल को बाहर निकालने में आसानी होती है। जबकि वेस्‍टर्न टॉयलेट में ऐसा नहीं होता है। इनका उपयोग करते समय पेट में किसी प्रकार का दबाव नहीं पड़ता है और उपयोगकर्ता सुविधाजनक स्थिति में बैठता है।

भारतीय टॉयलेट के फायदे कब्‍ज से बचने में – Indian Toilets Prevent Constipation In Hindi

हमारे शरीर में मौजूद अपशिष्‍ट पदार्थों को पूरी तरह से बाहर निकालने में इंडियन टॉयलेट मदद करते हैं। इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने पर यह हमारे शरीर में पर्याप्‍त दबाव देता है जिससे हमारा पेट अच्‍छी तरह से साफ हो जाता है। डॉक्‍टरों द्वारा किये गए अध्‍ययनों से पता चलता है कि भारतीयों की तुलना में पश्चिमी देशों के लोगों में पेट से संबंधित समस्‍याओं का खतरा अधिक होता है। इस प्रकार इंडियन टॉयलेट का उपयोग करके कब्‍ज और अन्‍य पेट की समस्‍याओं को दूर किया जा सकता है।

इंडियन टॉयलेट सीट के फायदे संक्रमण से बचाए – Indian Toilet Seat Sankraman Se Bachaye In Hindi

यदि आप इंडियन टॉयलेट का उपयोग करते हैं तो यह आपके लिए फायदेमंद है क्‍योंकि इसका उपयोग करने पर आपको मूत्र पथ संक्रमण या यूटीआई आदि की संभावनाएं कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि टॉयलेट सीट से आपका सीधा संबंध नहीं होता है। आप अपने पैरों के सहारे इंडियन टॉयलेट का उपयोग करते, जबकि वेस्‍टर्न टॉयलेट  से आपका सीधा संपर्क होता है जिसके कारण आपको ऊपर बताए गए संक्रमणों का खतरा ज्‍यादा होता है।

इंडियन टॉलेट के नुकसान – Indian Toilet Ke Nuksan In Hindi

आपके द्वारा यदि इंडियन टॉयलेट का इस्‍तेमाल किया जाता है तो यह आपके लिए फायदेमंद होता है। लेकिन इसका उपयोग कुछ विशेष लोगों के लिए नुकसान दायक भी हो सकता है। आइए जाने इंडियन टॉयलेट किन लोगों को नुकसान पहुंचा सकता है।

बुर्जुग लोग, ऑस्टियोआर्थराइटिस के रोगीयों के लिए इंडियन टॉयलेट आरामदायक नहीं होता है।इंडियन टॉयलेट का इस्‍तेमाल करते समय अधिक दबाव डालने पर ब्रेन ऐन्यरिज़म (Brain Aneurysm) कोशिकाओं को क्षति पहुंच सकती है जिससे मृत्‍यु तक होने की संभावना होती है।

वेस्‍टर्न टॉयलेट कैसा होता है – Western Toilet Kaisa Hota Hia In Hindi

प‍श्चिमी सभ्यता के टॉयलेट सीट शौच क्रिया करने का ऐसा स्‍थान है जहां पर आप आसानी के साथ अपने कूल्‍हों की सहायता से बैठकर मल त्‍याग कर सकते हैं। वेस्‍टर्न टॉयलेट आजकल बहुत ही प्रचलित हो रहे हैं। इसे मुख्‍य रूप से ब्रिटेन में प्रारंभ किया गया था जो पश्चिमी देशों से होते हुए भारत जैसे अन्‍य देशों में भी उपयोग किया जाने लगा है। मल त्‍याग करने की इस व्‍यवस्‍था को सिट डाउन पॉजिशन (Sit Down Position) कहा जाता है।

वेस्‍टर्न टॉयलेट के फायदे – Western Toilet Ke Fayde In Hindi

आप जानते हैं कि भारत में भी वेस्‍टर्न टॉयलेट का उपयोग काफी प्रचलित है। इसका उपयोग करने के कुछ विशेष फायदे होते हैं जो इसकी उपयोगिता को बढ़ाते हैं। आइए जाने वेस्‍टर्न टॉयलेट के फायदे क्‍या हैं।

इंडियन टॉयलेट की अपेक्षा वेस्‍टर्न टॉयलेट को अधिक आराम दायक माना जाता है। इसका उपयोग करने पर आपको किसी भी प्रकार से मांसपेशियों में तनाव नहीं आता है। वेस्‍टर्न टॉयलेट विशेष रूप से वृद्धावस्‍था वाले लोगों के लिए सुविधा जनक होता है। इसके फायदे उन लोगों के लिए भी होते हैं जो ऑस्टियोआर्थराइटिस के रोगी हैं और जिन्‍होंने हाल ही में सर्जरी कराई है।

पश्चिमी टॉयलेट के नुकसान – Western Toilet Ke Nuksan In Hindi

यदि आप इंडियन टॉयलेट का उपयोग करते हैं लेकिन वेस्‍टर्न टॉयलेट का इस्‍तेमाल करने की सोच रहे हैं तो आपको पता होना चाहिए कि वेस्‍टर्न टॉयलेट का उपयोग करने पर आपको किस प्रकार के नुकसान हो सकते हैं।

 वेस्‍टर्न टॉयलेट का उपयोग करने पर आपकी त्‍वचा का सीधा संपर्क टॉयलेट सीट से होता है जिसके कारण आपको संक्रमण फैलने की संभावना ज्‍यादा होती है।इंडियन टॉयलेट की अपेक्षा आपको वेस्‍टर्न टॉयलेट में अधिक पानी की आवश्‍यकता होती है।भारतीय शौचालयों की तुलना में मल त्यागने की प्रक्रिया में अधिक ताकत लगनी पड़ती है।

कुल मिलाकर, दोनों टॉयलेट सीट के अपने फायदे और नुकसान हैं। हालांकि, हमें हमेसा पानी की बचत और अपने शरीर की साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए। यह आपके ऊपर है कि आप किसे चुनते हैं, कोई भी आपको मजबूर नहीं कर रहा है। लेकिन जब भी आप टॉयलेट सीट के लिए किसी दुकानदार के पास जाते हैं तो भारतीय और पश्चिमी शौचालयों (वेस्‍टर्न टॉयलेट) के फायदे और नुकसान के बारे में उनसे बात करें और अपनी जरुरत के हिसाब से दोनों में से किसी को भी चुन सकते हैं।

                   ⏬ यें हैं मुख्य समस्या ⏬

⏬ यें हैं समस्या क्या समाधान ⏬

Monday, July 9, 2018

खाना बनाते वक्त जब हो जाए गड़बड़, तो अपनाएं ये किचन हैक्स

खाना बनाते समय अक्सर छोटी-छोटी गलतियां हम सभी करते हैं, जिससे खाने का स्वाद भी बिगड़ जाता है। पर कुछ बातों को ध्यान में रखकर आप किचन के काम में परफेक्शन ला सकते हैं। खाने में कैसे आएगा स्वाद बता रही हैं मिताली जैन

जब नमक हो ज्यादा
यदि सब्जी या सूप में नमक ज्यादा हो जाए, तो एक चौथाई आलू छीलकर सूप में डाल दें। यह अतिरिक्त नमक सोख लेगा और आपको स्वाद के साथ भी कोई समझौता नहीं करना पड़ेगा। लेकिन सूप सर्व करने से पहले आलू निकालना न भूलें। 

ताकि न रुलाए प्याज
प्याज काटते समय आंखों में आंसू आना स्वाभाविक है, लेकिन इससे बचने का एक बहुत अच्छा तरीका है। प्याज को छीलकर दो हिस्सों में काट लें। फिर एक बड़ी कटोरी में पानी लेकर उन दोनों हिस्सों को पांच मिनट के लिए रख दें। 

जब पांच मिनट बाद प्याज काटेंगी, तो आंखों से आंसू नहीं आएंगे। आप चाहें तो अपने चाकू पर थोड़ा-सा नींबू का रस भी डाल सकते हैं, इससे भी प्याज काटते समय आंखों से पानी नहीं आता। 

इसके अलावा प्याज को पॉलीथिन में बांधकर आधे घंटे के लिए फ्रिज में रख दें। इसके बाद प्याज काटें। 

अगर जल जाए चावल
अगर चावल पकाते समय हल्का जल जाए, तो उन्हें फेंकें नहीं। बस चावलों को आंच से उतारकर उसके ऊपर सफेद ब्रेड दस मिनट के लिए रख दें। यह चावलों से जली हुई महक खत्म कर देगी और चावल फिर से खाने लायक हो जाएंगे।

स्वादिष्ट पुदीने की चटनी
पुदीने की चटनी अगर आप मिक्सी में बना रही हैं, तो इसे ज्यादा देर तक मिक्सी में न पीसें अन्यथा इसके स्वाद में कड़वाहट आ जाएगी। 

दरअसल, ज्यादा देर तक पीसते रहने से पत्ते के तेल से विकृत गंध निकलना शुरू हो जाती है। जो चटनी के स्वाद को खराब कर देती है। 

अगर आप सिर्फ पुदीना की चटनी बनाना चाहती हैं, तो ग्राइडिंग स्टोन यानी सिलबट्टे पर पीसें। इस तरीके से पत्ते का तेल धीरे-धीरे निकलता है। इस कारण स्वाद खराब होने की संभावना कम हो जाती है।

रसभरा है नींबू
एक नींबू में तकरीबन तीन चम्मच तक रस होता है, लेकिन हम कभी भी उसका सारा रस नहीं निकाल पाते। अगर आप चाहती हैं नींबू का सारा रस निकालना, तो नींबू को पहले बीस सेकंड के लिए माइक्रोवेव में गर्म करें। फिर उसे बीच से काटकर रस निकालें। इससे नींबू का सारा रस निकल जाएगा।

जब दोबारा इस्तेमाल करें तेल
अगर आप कुकिंग तेल को बिना किसी गंध के दोबारा इस्तेमाल करना चाहती हैं, तो इसे पहले धीमी आंच पर रखें। फिर कटे हुए अदरक को पंद्रह मिनट के लिए तेल में पकाएं। अदरक पहले पकाए हुए पकवान की गंध को खत्म कर देगा। ध्यान रहे कि अदरक के स्लाइस धीरे-धीरे ही गोल्डन ब्राउन हों।

अदरक का आकार
अदरक की आकृति कुछ ऐसी होती है, जिसे छीलने में काफी परेशानी आती है और अदरक का काफी हिस्सा यूं ही बेकार चला जाता है। इससे बचने के लिए आप किसी पीलर का इस्तेमाल करने की बजाय छोटे चम्मच के पिछले हिस्से से इसे आराम से घिसिए। इससे अदरक का एक बड़ा हिस्सा बरबाद होने से बच जाएगा।

ताकि तीखी न हो मिर्च
कुछ महिलाओं को मिर्च काटने के बाद हाथों में जलन की शिकायत होती है। इससे बचने के लिए मिर्च काटने से पहले अपने हाथों में वेजिटेबल ऑयल लगाएं। अगर आप तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहती हैं, तो मिर्च को दो टुकड़ों में काटें। फिर कांटे की मदद से उसके बीज निकाल लें। यह एक बेहतर तरीका है।

झटपट जमाएं बर्फ 
गर्मियों में बर्फ शीघ्र जमानी हो, तो आप गर्म पानी को ही फ्रिज में जमने के लिए रखें। हैरानी में पड़ गई न! हां, यह सच है कि गर्म पानी सामान्य पानी की अपेक्षा जल्दी जमता है।

Friday, July 6, 2018

एसी 24 डिग्री पर सेट करने से क्या हो जाएगा?


'गर्मी बहुत है यार, एसी चला दे 18 पर!' मई-जून की चिलचिलाती गर्मी हो या फिर बारिश के बाद जुलाई-अगस्त की उमस, दिल्ली समेत उत्तर भारत में एयरकंडिशनर के बिना अब काम नहीं चलता.

एक ज़माना था जब किसी के घर एसी लगने पर उसके रईस होने की चर्चा शुरू हो जाती थी, लेकिन अब खिड़कियों के बाहर टंगे एसी आम बात है.

लेकिन इन दिनों ये एसी दूसरी वजहों से चर्चा में हैं. ख़बरें उड़ी कि एसी को अब 24 डिग्री सेल्सियस तापमान से नीचे नहीं चलाया जा सकेगा.

ये आधा सच है. पूरा ये कि ऊर्जा मंत्रालय ने सलाह दी है कि एसी की डिफ़ॉल्ट सेटिंग 24 डिग्री सेल्सियस रखी जाए ताकि एनर्जी बचाई जा सके. ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि अगले छह महीने तक जागरुकता अभियान चलाया जाएगा और प्रतिक्रिया ली जाएगी.

अगर सब ठीक रहा है तो एसी को 24 डिग्री पर सेट करना अनिवार्य बनाया जा सकता है. मंत्रालय का दावा है कि इससे एक साल में 20 अरब यूनिट बिजली बचाई जा सकेगी.

ऊर्जा राज्य मंत्री आरके सिंह ने पूरा मामला समझाने की कोशिश की.

ये बक्सा रेगिस्तान से पानी निचोड़ लेता हैघंटों इंतज़ार, फिर धक्का-मुक्की और गालियां, तब मिलता है पानी

''एसी पर 1 डिग्री सेल्सियस टेम्परेचर बढ़ाने से 6% एनर्जी बचती है. न्यूनतम तापमान को 21 डिग्री के बजाय 24 डिग्री पर सेट करने से 18% एनर्जी बचेगी.''

ऊर्जा मंत्री ने कहा कि कमरे में तापमान कम पर रखने के लिए कम्प्रेसर को ज़्यादा वक़्त तक मेहनत करनी होती है और 24 से 18 डिग्री पर सेट करने के बजाय ऐसा नहीं कि तापमान वाकई इतना कम हो जाता है.

क्यों एसी को लेकर बवाल?

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लेकिन ये पूरा मामला क्या है? क्या वाक़ई कोई सरकार ये तय कर सकती है कि हमारा एसी किस तापमान पर चलेगा? और अगर ऐसा हो तो भी क्या फ़ायदा है? क्या एसी का टेम्परेचर ज़्यादा रहने से प्रकृति को कुछ फ़ायदा होता है?

सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में प्रोग्राम मैनेजर, (सस्टेनेबल स्टडीज़) अविकल सोमवंशी ने बीबीसी को बताया कि सरकार ये प्रयोग करके देखना चाहती है.

गर्मी बढ़ने का एक कारण, ठंडक देने वाले एयर कंडिशनर

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इसमें एसी बनाने वाली कंपनियों से कहा जा सकता है कि वो एसी की डिफ़ॉल्ट सेटिंग 24 डिग्री पर रखें. फिलहाल एसी कंपनियां 18 से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच ये तापमान रखती हैं.

उन्होंने कहा, ''अगर बात बनती है तो आगे बनने वाले एसी में 24 डिग्री सेल्सियस तापमान सेट होगा, जिसे ग्राहक ज़रूरत पड़ने पर कम या ज़्यादा कर सकता है.''

सोमवंशी का कहना है कि ऊर्जा संरक्षण और प्रकृति के बचाव के हिसाब से ये काफ़ी अहम फ़ैसला साबित हो सकता है.

''असल में एसी कमरे का तापमान 18 डिग्री तक ले जाने के लिए बने ही नहीं है. होता क्या है कि एसी का तापमान 18-20 डिग्री सेल्सियस सेट होता है और लोग उसे बदलने की ज़हमत भी नहीं उठाते. ऐसा करने पर वो ज़्यादा एफ़िशिएंट नहीं रहते, ज़्यादा बिजली खाते हैं.''

एसी क्या सच दिखाता है?

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''और आपको जानकर हैरानी होगी कि जब एसी का बोर्ड तापमान 18 डि.से. पर दिखा रहा होता है तो कमरे का तापमान असल में इतना नहीं होता.''

और एसी का तापमान तय करने की ये कोशिश पहली बार नहीं है. दुनिया के दूसरे मुल्क़ों में भी ऐसा है. जापान में 28, हॉन्गकॉन्ग में 25.5 और ब्रिटेन में 24 डिग्री सेल्सियस पर इसे तय किया गया है.

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लेकिन ये तो बात हुई नए एसी की. उन लाखों पुराने एसी का क्या, जो पहले से घरों में लगे हैं, सोमवंशी ने कहा, ''ऊर्जा मंत्रालय की तरफ़ से आया बयान साफ़ कुछ नहीं कहता लेकिन इशारा इस तरफ़ भी है कि मौजूदा एसी के तापमान को भी 24 या उससे ज़्यादा रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.''

सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का कहना है कि सरकार के नए प्रस्ताव को एसी कंपनियों की तरफ़ से हरी झंडी मिल गई है, लेकिन एसी के लिए डिफ़ॉल्ट तापमान सेट करने की जो कोशिश 2016 से जारी हैं, उनका विरोध भी हुआ है.

सीएसई के मुताबिक बीईई ने इससे पहले ये प्रस्ताव दिया था कि एसी ऑन करने पर तापमान 27 डिग्री सेल्सियस रहे. कंपनियों का कहना था कि अगर ऐसा होता है तो ग्राहक को दिक्कत होगी और उसे हर बार एसी चालू करने पर इसे बदलना होगा.

देश में सभी इमारतों के लिए इंडोर कंफ़र्ट मानक तय करने वाले नेशनल बिल्डिंग कोड (एनबीसी) सेंट्रली एयरकंडीशंड इमारतों में एसी का तापमान 23.5-25.5 डिग्री सेल्सियस रखा जा सकता है जबकि घरों में लगने वाले एसी के मामले में ये 29 डिग्री तक हो सकता है.

कौन सा तापमान सही?

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जापान साल 2005 से इस बारे में अभियान चला रहा है जिसमें कंपनियों और आम घरों को एसी का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस पर रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में भी इसके मानक तय हैं जहां गर्मियों में 25.6 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान नहीं रख सकते. दुनिया की जानी-मानी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इसे 23.3-25.6 डिग्री सेल्सियस रखने को कहा जाता है तो लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में 24 डिग्री सेल्सियस के आसपास रखने के निर्देश हैं.

सीएसई के मुताबिक एसी दरअसल किसी परिवार के बिजली के बिल का 80 फ़ीसदी हिस्सा रखते हैं. स्टडी के मुताबिक दिल्ली में गर्मियों के महीने में जितनी बिजली इस्तेमाल होती है, आधे से ज़्यादा घरों को ठंडा रखने के लिए है.

दरअसल, एयर कंडिशनर चलाने के लिए बिजली का ज़्यादा इस्तेमाल होता है. ये अतिरिक्त बिजली हमारे पर्यावरण को और गर्म बना रही है. पर्यावरणविदों का कहना है कि साल 2001 के बाद के 17 में से 16 साल अधिक गर्म रहे हैं.

ऐसे में एयर कंडिशनर की बढ़ती डिमांड कोई हैरानी का विषय नहीं है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक 2050 तक एयर कंडिशनर चलाने के लिए लगने वाली एनर्जी आज के मुक़ाबले में तीन गुना हो जाएगी.

इसका मतलब साल 2050 तक दुनियाभर के एयर कंडिशनर उतनी बिलजी की खपत करेंगे जितनी अमरीका, यूरोपीय संघ और जापान मौजूदा वक्त में मिलकर करते हैं.

सीएसई के एक पुराने अध्ययन में कहा गया था कि जब बाहर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचता है तो 5 स्टार रेटिंग वाले एसी 25 फ़ीसदी ज़्यादा बिजली खाते हैं और उनकी ठंडा रखने की क्षमता 13-15 फ़ीसदी तक गिर जाती है.

एसी बनाम कूलर

देखिए धंधा-पानी

लेकिन क्या एसी गर्मी भगाता है? अविकल सोमवंशी से जब ये पूछा गया कि क्या एसी से निकलने वाली गर्मी, प्रकृति का तापमान भी बढ़ाती है, उन्होंने कहा ''ऐसी कोई सटीक स्टडी तो याद नहीं आती. लेकिन ऐसी कई रिसर्च हैं जो बताती है कि एसी घर की गर्मी निकालकर बाहर कर देता है. वो गर्मी ख़त्म नहीं करता, बल्कि उसकी जगह बदल देता है.''

दूसरी तरफ़ डेज़र्ट कूलर के मामले में अलग टेक्नोलॉजी काम करती है. कूलर गर्म हवा लेता है, उसे भीतर घुमाता है, पानी की मदद से उसी हवा को ठंडा बनाता है और फिर बाहर फेंकता है.

सोमवंशी ने कहा, ''कूलर को लेकर दिक्कत ये भी है कि भारत में उन्हें लेकर कोई स्टार रेटिंग सिस्टम नहीं है, जैसा कि एसी या पंखों के मामले में होता है.''

भारत में काफ़ी गर्मी पड़ती है, इसलिए यहां रहने वाले लोग उस गर्मी को झेलने की क्षमता भी रखते हैं. ऐसे में एसी को 18 या 20 पर चलाने को सामान्य ज़रूरत नहीं बताया जा सकता.

उन्होंने कहा, ''यूरोप के कुछ मुल्क़ ऐसे हैं, जहां अगर तापमान 28 डिग्री पार कर जाता है तो वहां कहा जाता है कि गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. जबकि भारत में 40 डिग्री तापमान भी सामान्य है.''

लेकिन क्या सिर्फ़ एसी या कूलर के दम पर गर्मी ने निपटा जा सकता है? जानकार बताते हैं कि भारत में बड़ी दिक्कत ये भी है कि इमारतों के बनने में लगने वाला सामान और उनका डिजाइन गर्मी बढ़ाने वाला है.

सोमवंशी ने कहा, ''यहां ज़्यादातर मकान कंक्रीट के बनते हैं. मकान करीब-करीब होते हैं क्योंकि आबादी का घनत्व ज़्यादा है. इसके अलावा इमारत बनाते वक़्त वेंटिलेशन का ध्यान भी नहीं दिया जाता. यही वजह है कि रात में भी मकान ठंडे नहीं होते.''

Wednesday, May 23, 2018

त्रिदोष नाशक दाल

वात, कफ और पित्त की समस्या को दूर करने के लिए ऐसे करें मूंग दाल का सेवन !

मूंग की छिलके वाली दाल को स्टील के बर्तन में पकाकर यदि शुद्ध देसी घी में हींग-जीरे से छौंककर खाया जाये तो यह वात-पित्‍त और कफ तीनों दोषों को शांत करती है। इस दाल का प्रयोग रोगी व निरोगी दोनों कर सकते हैं। 

मूंग की छिलका​ दाल – वात, कफ और पित्त का संतुलन बिगड़ने से हमारा शरीर बीमारियों की चपेट में आ जाता है. हालांकि अधिकांश लोग वात, कफ और पित्त के बारे में नहीं जानते हैं.

अगर आप भी नहीं जानते हैं तो हम आपको बता दें कि सिर से लेकर छाती के बीच तक के रोग कफ के बिगड़ने से होते हैं.

जबकि छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक होनेवाले रोग पित्त के बिगड़ने की वजह से होते हैं. तो वहीं कमर से लेकर घुटने और पैरों के आखिर तक होनेवाली बीमारियां वात के बिगड़ने से होती हैं.

लेकिन आप मूंग की छिलका​ दाल की मदद से वात, कफ और पित्त की समस्या को दूर करके खुद को कई बीमारियों से बचा सकते हैं. लेकिन इससे पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि आखिर वाक, पित्त और कफ दोष होता क्या है।

वात, कफ और पित्त दोष है क्या ?

शरीर में वात, कफ और पित्त के बीच संतुलन के बिगड़ने से ही हमारा शरीर कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ जाता है. हालांकि ये कोई दोष नहीं बल्कि ये धातुएं है जो हर इंसान के शरीर में मौजूद होती हैं और उसे स्वस्थ रखती हैं. जब शरीर के भीतर मौजूद ये धातुएं दूषित या विषम होकर रोग पैदा करती हैं तब ये दोष में तब्दील हो जाती है.

वात, पित्त और कफ के असंतुलन से होनेवाली समस्या को त्रिदोष कहते हैं. इन तीनों के असंतुलन से होनेवाली बीमारियों से निजात पाने के लिए त्रिदोष को फिर से संतुलन में लाना पड़ता है.

वात, कफ और पित्त दोष के लक्षण

पित्त- 14 से 60 साल की उम्र के बीच अगर कोई पित्त दोष से होनेवाली बीमारियों से परेशान है तो उसके अंदर बार-बार पेटदर्द का होना, गैस बनना, खट्टी डकारे आना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

कफ- बच्चे के जन्म से लेकर 14 साल की उम्र तक कफ का संतुलन बिगड़ने से बार-बार खांसी, सर्दी, छींक की समस्या जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

वात- बुढ़ापे के दौरान शरीर में वात का संतुलन बिगड़ने के चलते लोग इससे होनेवाली बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं. ऐसे में घुटने और जोड़ों में सबसे ज्यादा दर्द होता है.

मूंग की छिलका​ दाल से दूर करें वात,कफ और पित्त

वैसे तो लोग खाने में कई तरह की दालें खाते हैं लेकिन इन सबमें मूंग की दाल ही एकमात्र ऐसी दाल है जो सबसे पौष्टिक है और इसमें विटामिन ए, बी, सी, ई भरपूर मात्रा में पाई जाती है.

मूंग की दाल में पोटैशियम, आयरन, कैल्शियम, मैग्निशियम, कॉपर, राइबोफ्लेविन, फाइबर और फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है और इस दाल की खासियत है कि इसमें कैलोरी की मात्रा एकदम कम होती है.

वात, कफ और पित्त दोष से निजात पाने के लिए मूंग की छिलके वाली दाल को पकाकर इसमें शुद्ध देसी घी से हींग और जीरे का तड़का लगाकर खाना चाहिए. इस तरह से बनाई गई दाल का सेवन करने से आप अपने शरीर के इस त्रिदोष को शांत कर सकते हैं.

गौरतलब है कि मूंग की दाल का सेवन स्वस्थ और बीमार लोग भी कर सकते हैं. इसलिए अगर आप भी वात, पित्त और कफ की समस्या से परेशान हैं तो फिर मूंग की दाल का सेवन करके अपने शरीर को स्वस्थ और निरोगी बना सकते हैं।